बोर हो गए लिखते पढ़ते
आओ कर लें अब कुछ बातें
कुछ देश की, कुछ विदेश की
हलकी फुलकी सी मुलाकातें।
जो आ जाये पसंद आपको
तो बजा देना कुछ ताली
पसंद न आये तो भी भैया
न देना कृपया तुम गाली।
एक इशारा भर ही होगा
बस टिप्पणी बक्से में काफी
जिससे अगली बार न करें
हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
आओ कर लें अब कुछ बातें
कुछ देश की, कुछ विदेश की
हलकी फुलकी सी मुलाकातें।
जो आ जाये पसंद आपको
तो बजा देना कुछ ताली
पसंद न आये तो भी भैया
न देना कृपया तुम गाली।
एक इशारा भर ही होगा
बस टिप्पणी बक्से में काफी
जिससे अगली बार न करें
हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो लीजिये सुनिए –
लन्दन आजकल .
🙂
aaj badi halki fulki kavita:)
speaker hai nahi…
@ एक इशारा भर ही होगा बस टिप्पणी बक्से में काफी
** अगली पोस्ट (इस तरह की कब आ रही है?
*** जी ये तो हमारा इशारा था ..:)
अगर टिप्पणी बक्से में कुछ कह कर टिप्पणी डालने की सुविधा होती तो हम यह भी कह ही देते कि
संगीत और गीत में अब मानवीय संवेदना, लोकाचार का नहीं, “गुल्लक तोड़कर टनटनाने” का प्रतीक ज्यादा है। कान-फाड़ संगीत, नृत्य के नाम पर मस्ती करती युवा-भीड़ का पागलपन न जाने कहां ले जाएगा हमारी संस्कृति, पंरपराओं और धरोहरों को?
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई आदरेया ||
ज़रूर मिलते रहिए शिखा जी आप का तहे दिल से स्वागत है …
गुफ्तगू का यह प्रयोग पसंद आया …इस बहाने तुम्हारी आवाज़
से भी मिलना हो जाएगा …न झटको जुल्फों से पानी …तपसरा
काफी भरा-भरा और पसंद आए वैसा बन पडा है। ख़ुशी भी हुई,
ऐसे ideas तुम्हें आते रहते हैं …पुराने समय के गानों
के दौर को वापस लाने की बात में दम है …और आज के बच्चों
को वैसे गाने और उनकी poetry पसंद आती है, यह भी हमें
मालूम है और जिसमें सच्चाई है।
वाह मज़ा आ गया ….आपका आलेख आप ही की आवाज़ में …..It was simply great !!!
बहुत अच्छा लगा सुनकर। ऐसा लगा कि कभी पढ़ा हूँ इसे आपके ब्लॉग में।
हम क्या कहें ? हमारा तो radio चला ही नहीं. बस नमस्कार के बाद बंद हो जाता है.
आखिर चल ही गया .
ऑडियो ब्लॉगिंग अच्छी लगी .
Maza Aaa Gaya.
ब्लॉग पर तो नहीं है। "लन्दन डायरी " में पढ़ा होगा आपने।
हाँ जी पढ़ा है…..मगर सुनने का मज़ा ही और है….
<3
🙂
anu
बक़ौल चचा गालिब,
" सुनो साहब, जिस शख़्स को जिस शगल का ज़ौक़ हो और वो उसमे बेतकल्लुफ़ उम्र बसर करे … उसका नाम ऐश है !! "
आपके लिए हम बस यही कहेंगे कि "ऐश किए रहो और हम सब को कराये रहो… :)"
वाह मैंने तो सुन लिया . अच्छा रहा ये कीबोर्ड से कंठ तक का सफ़र. रही बात हिंदी गीतों में माधुर्य को वापस लाने की, मुझे तो पक्क उम्मीद है की वो दिन आएगा . संगीत से ज्यादा गीतों के बोल को नुकसान हुआ है जहां बे सर पैर के शब्दों को जोड़कर गीत का रूप दे दिया जाता है. आप का ये प्रयोग अच्छा लगा . सुन्दर
वाह, बहुत कभी रचना एवं साथ ही कनखजूरा………. वेरी गूड…..
क्या बात हो गयी….
इंडियन राम भी हुए 'मेड इन चाइना' के मुरीद – ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
शिखा जी यहाँ तो सारा माधुर्य आपकी आवाज में समाया है । बहुत ही मधुर स्पष्ट एवं शुद्ध …। हर चीज का एक दौर होता है और वह पलट कर आता भी है हाँ कुछ परिवर्तित होकर ।आज भी कुछ गीत मधुर तो हैं पर गुनगुनाने लायक नही कठिन व जटिल हैं । लक्ष्मी-प्यारे ,मदनमोहन,सलिल चौधरी ,सचिन देव आदि के कालजयी मधुर संगीत की तो बात ही क्या है । आपकी यह पोस्ट आनन्ददायक है ।
इतनी अच्छी आवाज़… वैसे अंदाज़ बीबीसी वाला… बात मार्के की… अब अगले हफ्ते का इंतज़ार। इशारा ही काफी है।
"सागर से सुराही टकराती बादल को पसीना आ जाता ,
तुम ज़ुल्फ़ अगर बिखरा देते सावन का महीना आ जाता |"
आवाज़ शानदार और अंदाज़ तो और भी शानदार |
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (31-10-12) को चर्चा मंचपर | जरूर पधारें | सूचनार्थ |
वाह वाह क्या बात , क्या बात , क्या बात ………… :):)
इन ध्वनि तरंगों ने काफी तरंग पैदा की …. बढ़िया प्रयोग …. और ये बात तो सच है कि पुराने गीतों में जितना माधुर्य है वो आज कल के कम ही गीतों में मिलता है ….
aapki awaj sun kar laga ki aap ek masum dil ki malkin hai .awaj bhi kabhi kabhi bahut kuchh kah jati hai.
aapne sahi kaha ki naye giton ke sagar me gote lagane se kabhi kabhimkuchh moti hath lag hi jaye hain pr kabhi kabhi……………
rachana
मिलेगी क्यों नहीं… हम और आप जैसे लोग बाकि हैं अभी दुनिया में…. 🙂
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 31/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
बहुत ही अच्छी और सुन्दर..
बहुत सुंदर ..
maza aa gaya …bahut shaandaar prastuti,awaaz bahut achhi
bahut sundar , kya bat hai? bhai maine to pahali baaar aavaj ko suna. bahut shandaar prastuti lagi . bas isi tarah se sunati rahana.
सब रंगों से हट कर कुछ अलग सी कविता …बहुत खूब
शिखा जी हिंदी का वो दौर फिर से आएगा…हम सबको इस बात की पूरी उम्मीद है …आप ही की तरह :))))
पढ़ रखा था। आज सुन भी लिया। अच्छा लगा।
मजेदार बात यह समझ में आयी कि पढ़ने में हम अपनी इस्पीड से पढ़ सकते हैं लेकिन सुनने में मामला अगले के कब्जे में होता है।
मुझे तो लगता है कि अपनी सब पोस्टों के पाडकास्ट करके उसी पोस्ट के नीचे लगाने चाहिये आपको। आपको क्या सबको जिसकी भी आवाज अच्छी है। सोचिये और करिये अमल इस सुझाव पर अगर सही लगे।
आपका आलेख सुन्दर उससे भी मधुर आपके वचन और गायन का अंदाज़ ,ये हुई न बात नया नया सब कुछ नया …..
बढ़िया रोचक कविता ..
अच्छा है!!! आपको गुनगुनाते हुए सुनना तो और भी बढ़िया लगा |
गुलज़ार, जावेद साहब के बाद और भी हैं, दिखायी-सुनायी भी दे रहे हैं , इनमे प्रसून जोशी और इरशाद कामिल मुख्य हैं | मेरे गिटार इंस्ट्रक्टर ने भी कहा था जतिन-ललित के बाद से क्लासिकल टच ख़त्म हो गया है , पर इंडियन ओशियन और राम संपत का संगीत उम्मीद जगाता है | बस ज़रुरत है उन्हें सुनने की और प्रोत्साहित करने की |
एक और बात, हम किसी भी देश पर कहीं का साहित्य और संगीत थोप नहीं सकते | साहित्य और संगीत में प्रभावित होना बहुत पहले से चला आ रहा है | आर डी बर्मन का संगीत भी प्रभावित रहता था पर उसमे उनकी की गयी मेहनत भी झलकती थी | ९० के दशक से पूरी तरफ लिफ्ट करने का जो दौर चला उसने संगीत को बिगाड़ा | हमारे देश में वाकई में कोने कोने में संगीत भरा हुआ है | उसे लाने की ज़रुरत है आगे, बस फिर वही गंगा बह निकलेगी |इन्डियन ओशियन इसी लिए मुझे बहुत बढ़िया लगते हैं , वो संगीत को हिन्दुस्तान से ही खोज कर ले आते हैं |
सुन्दर कविता
करती रहिए गुस्ताखी…
हिंदी गीतों पर सटीक टिप्पणी ….आवाज भी मंत्रमुग्ध कर देने वाली है!!!
आनंद आ गया!!
आपको एक मिठाई मेरे तरफ से…आजकल "जतिन-ललित" का नाम लेता कौन है….एक्के दुक्के दिख जाते हैं जो उनका नाम लेते हैं…..मैं एक hardcore JL फैन हूँ…..मतलब बहुत दुखी हो गया था मैं जब इनकी जोड़ी टूटी थी…..
बस एक थोडा सा कन्फ्यूजन है :
"इतना सुहाना मौसम और इतना दिलकश नज़ारा की बस कार की छत ऊपर उठाइये और निकल जाईये जहाँ भी डगर ले चले"
मतलब सुहाने और दिलकश मौसम के नज़ारे के लिए अब कन्वर्टबल कार खरीदनी होगी 😉
और एक पर्सनल रिक्वेस्ट :
एक गाना रिकोर्ड कीजिये अपनी आवाज़ में, ब्लॉग पर लगाइए…"ना झटको ज़ुल्फ़ से पानी" अगर रिकॉर्ड कर देंगी तो बड़ा उपकार होगा…बड़ा इंट्रेस्टिंग सी कहानी है इस गाने के साथ 🙂
पसंद आया आप यह नया अंदाज़ भी ….बहुत खूब
अगर ये गुस्ताखी है तो बार-बार करती रहें ये मीठी सी गुस्ताखी
अभि !! बड़ी मुश्किल से ऑडियो ब्लॉग पर लगाना सीखा है.अब गाना गाना भी सीखना होगा ???.न बाबा. ये अपने बस की बात नहीं.
बहुत ही बढ़िया …अनूप जी और अभि की बात पर गौर किया जाए ….
एक निवेदन मेरा भी …
बहुत ही बढ़िया
सादर
कुछ न कहते हुये भी बहुत कुछ कह दिया ।
आपकी आवाज़ सुनने का लालच ऐसा रहा की नियम तोड़ कर ऑडियो सुना …
खूबसूरत अंदाज़ एवं आवाज़ !
करते रहिये ऐसे भी सफल प्रयोग !
एक इशारा भर ही होगा
बस टिप्पणी बक्से में काफी
जिससे अगली बार न करें
हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो सुनों ध्यान से जरा इत्मीनान से ,केकड़ा मनोवृत्ति छोड़ों ,दूसरों के ब्लॉग पे भी जाया करो .महानता बोध से खुद को न भरमाया करो .कभी आया जाया करो .यहाँ वहां बे -मकसद बे -इरादा .
वाह आपतो एक साथ बहुत कुछ हैं -एक रेडिओ जाकी के साथ ही एक बेहतरीन पोड्कास्टर -आवाज पर भी काबिले तारीफ़ कंट्रोल है !
शिखा जी आपकी आवाज़ को प्रथम बार सुना एक सुखद अहसास हुआ |मनोरंजन के साथ -साथ बहुत सुन्दर सन्देश या समीक्षात्मक आलेख भी सुनने को मिला |उम्दा
शब्दों का जादू कि स्वर का सम्मोहन, तय करना मुश्किल ! अतीत की शेल्फ़ से यादों की किताब उठाकर कुछ पन्ने पलटना और वर्तमान के विचलनों की पड़ताल करना आसान नहीं होता. तटस्थता बेहद ज़रूरी है यह सब करते हुए. समस्त वार्ता का ख़ूबसूरत पहलू यही है कि यहाँ बिना किसी लाग-लपेट के विद्रूपता को विद्रूपता कहा गया है. " हिन्दी को निम्न स्तर की भाषा बनाकर पेश किया जा रहा है " बिलकुल सच है ! सुनकर बहुत अच्छा लगा कि परदेस में रहने के बावजूद भी वहाँ की भावी पीढ़ी भाषाई और सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति सजग है. समय-समय पर इस प्रकार का विचार-विनिमय निहायत ज़रूरी हैं सुखद भविष्य की उम्मीद रोशन रखने के लिए. हार्दिक अभिनन्दन शिखा जी विमुग्धकारी प्रस्तुति के लिए!!!
आपकी खूबसूरत आवाज़ में आपका आलेख सुना। आपकी चिंता जायज़ है, हिंदी फिल्मी गीतों से उसकी प्रभावकारिता खत्म होने का कारण है गीतों से काव्यात्मकता का ग़ायब हो जाना। जब तक काव्य का तत्व गीतों में समाहित नहीं होगा। हिंदी फिल्मी गीत ऐसे ही प्रभावहीन और अल्पजीवी रहेंगे।
सुन्दर रचना
बहुत ही रोचक और सार्थक प्रस्तुति शिखा जी। आनंद आ गया। आप ही के स्वर में आप के भाव और विचार सुनना बहुत अच्छा लगा।
aapki awaz mai vktvya sune ,rafi kai gane ki yad dilayi ,dhanyabad
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