क्या अब भी होली की टोली
घर घर जाया करती है ?
क्या सांझ ढले अब भी
महफ़िल जमाया करती है।
क्या अब भी ढोलक की थापों पे
ठुमरी, ख्याल सजाये जाते हैं ?
“जोगी आयो शहर में व्योपारी”
क्या अब भी गाये जाते हैं।
क्या अबीर गुलाल की बिंदी
हर माथे पे लगाई जाती है ?
क्या गुटके रेता की अब भी
थाली जिमाई जाती है।
क्या अब भी खड़ी, बैठकी होली का
रिवाज निभाया जाता है ?
हुड़दंगी होली से अलग क्या
सांस्कृतिक पर्व मनाया जाता है।
छोड़ आये हम वो गलियाँ…
बढ़िया!!!
Badhiya!
बहुत खूब
सही में बहुत कुछ याद आया।
शानदार
पुराना सोना खरा सोना
अतिथि बनिए
दिन आप चुनें
सोम या मंगल
अगला आमंत्रण आपको
अनुजा
यशोदा
पहाड़ों के जीवन में अभी भी वही स्वाभाविकता और सहजता है .अपनी परंपराओं को सँजो कर रखा है .
वाह होली का रंग जमा दिया…सुन्दर रचना?
बहुत खूब , अफ़सोस की अब यह गुजरे जमाने की बातें हो गयीं !
आपकी लिखी रचना सोमवार 6 मार्च 2023 को
पांच लिंकों का आनंद पर… साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
काफी कुछ बदल गया है,. पर अभी भी बहुत कुछ है, स्वागत है आपके सुंदर भावों का.. होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ??
काफी कुछ बदल गया है,. पर अभी भी बहुत कुछ है, स्वागत है आपके सुंदर भावों का.. होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ??
क्या अब भी ढोलक की थापों पे
ठुमरी, ख्याल सजाये जाते हैं ?
“जोगी आयो शहर में व्योपारी”
क्या अब भी गाये जाते हैं।
बहुत खूबसूरत यादें संजोए लाजवाब सृजन ।
अपनी जड़ों को याद करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति । रं
सुंदर रचना । सादर ।
आह…देश छूटने की पीड़ा सहित किस कदर कलप कर भावों को संजोया है …बहुत मार्मिक भाव??