आजकल हर जगह अन्ना की हवा चल रही है .बहुत कुछ उड़ता उड़ता यहाँ वहां छिटक रहा है.ऐसे में मेरे ख़याल भी जाने कहाँ कहाँ उड़ गए .और कहाँ कहाँ छिटक गए….
क्षणिकाएं ……..
क्षणिकाएं ……..
अपनी जिंदगी की
सड़क के
किनारों पर देखो
मेरी जिंदगी के
सफ़े बिखरे हुए पड़े हैं
है परेशान
महताब औ
आफताब ये
शब्बे सहर भी
मेरे तेरे बोलो पे
टिके हैं.
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
बारिश की
बूंदों को
पलकों पे
ले लिया है
आँखों के
खारे पानी में
कुछ तो
मिठास आये.
आ चल
निशा के परदे पे
कुछ प्रीत के
तारे जड़ दे
इस घुप
अँधेरे कमरे में
कुछ तो
चमक आये.
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो.
हम
इस खौफ से
पलके नहीं
बंद करते
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये
'हम
इस खौफ से
पलकें नहीं
बंद करते
उनमे बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर न जाए '
****************
खूबसूरत पंक्तियाँ ….भावपूर्ण रचना
Wow! Kya gazab kee rachana hai!
हम खौफ से पलकें बंद नहीं करते …
बहुत सुन्दर !
खूबसूरत चित्र !
शब्दों के लिहाफ वाली ज्यादा पसंद आई..
न कोई अब चैन हरेगा,
भारत अब न डरेगा।
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो.
—
वाह!
रचना में बहुत अच्छे शब्द चित्र प्रस्तुत किये हैं आपने तो!
शुभानाल्लाह , विचारो की आवारगी ही तो कविता का मूल है . टहलने दीजिये विचारों को .विस्तृत फलक की ऊँचाई से से लेकर आत्मा की गहराई तक .पढ़कर मन अह्वलादित हुआ . एक से बढ़कर एक क्षणिकाये .
बारिश की बूंदों को पलकों पे ले लिया है
आँखों के खारे पानी में कुछ तो मिठास आये.
वह , एक अलग अंदाज़ में खूबसूरत रचना ।
आईला…. अंग्रेजों भारत छोडो…..मज़ा गया……… इस कविता में….बिलकुल ही जुदा अंदाज़ ……. कमाल का…..
क़त्ल करने वाली बात सब. 🙂
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो.
बहुत बढ़िया….. प्रभावित करती है यह अलग सी प्रस्तुति…..
antim panktian kamaal kar gayin..
बहुत सटीक रचना…
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 12 – 04 – 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ …शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
khoobsurat rachna…aabhar
बहुत खूब
क्या बात . क्या बात , क्या बात …
ख्यालों की मटरगश्ती बहुत बढ़िया रही …
सड़क के किनारे से
जो एक सफा उठाया
लगा जैसे मन को
सुकून आया …
महताब औ आफताब
बेकरार हैं
सुनने के लिए
शब्बा खैर शब्बा खैर ..
रूह को मिल गयी
राहत सर्दी से
तूने जो ओढ़ लिया
लिहाफ शब्दों का ..
आँखों का खारा पानी
गर हो गया मीठा
तो कम हो जायेगी
कीमत अश्कों की
जो तारे जड़ दिए
प्रीत के घुप अँधेरे में
अरमानों के फ़लक पर
एक चाँद निकल आया है
बना दिया है
जो गंडोला
मेरे अक्स को तूने
चल आ झील की
सैर कर आयें
काजल बन कर
रहते हैं
तेरी आँखों में
मेरे डर का डर
निकाल दे तू
अपने दिल से
:):):)
एक से बढ़कर एक क्षणिकाये बिलकुल नए अंदाज़ में. बहुत बढ़िया.
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो….
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत क्षणिकाओं के लिए आपको हार्दिक बधाई।
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
कमाल की क्षणिकाएं। बेहद खूबसूरती से आपने ज़िन्दगी के विभिन्न आयामों को छूआ है।
वाह संगीता दी !अपने तो जबरदस्त्त जबाब दे दिए 🙂 अर्थ पूर्ण हो गया :).
इस सुन्दर सी नज़्म के बारे में
सोचा था नज़्म लिखूं
कोशिश करके देखूं
शायद बन जाए कोई इक जवाब
सुन्दर सा
जिसमें शिखा ने
उन नाज़ुक लम्हों को
पलकों की चिलमन पर रखकर
पेश किया है.
देखा संगीता दी ने पहले से ही
लिख डाला है
उतना ही सुन्दर सा जवाब
मैं लाजवाब सा
लौट के अपने रस्ते वापस चल जाता हूँ!!
शब्दों के लिहाफ में
सुन्दरतम पंक्तियाँ सिमट कर आई…
कुछ पंक्तियों का परहेज भी जरूरी था,
शायद…मेरे नज़रिए से…
बहरहाल ख्याली मटरगश्ती जो तुम्हारी कलम से टपकी,
पसंद आई…
@सलिल जी ! आपकी लाजबाबी ने तो हमें लाजबाब कर दिया ..
बहुत खूब.
बारिश की
बूंदों को
पलकों पे
ले लिया है
आँखों के
खारे पानी में
कुछ तो
मिठास आये.
बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत रचना ! हर शब्द मन में बस गया !
बारिश की बूंदों को पलकों पे ले लिया है आँखों के खारे पानी में कुछ तो मिठास आये.
आ चल निशा के परदे पे कुछ प्रीत के तारे जड़ दे इस घुप अँधेरे कमरे में कुछ तो चमक आये.दो पलकों के
वह , एक अलग अंदाज़ में खूबसूरत रचना ।
दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
हाय ! तस्वीरों और ,
शब्दों से कुछ ,
किए हैं ,वार ऐसे ,
कोई खुद को ,
कत्ल होने से ,
रोके भी तो ,
कैसे रोके …….
बहुत सुंदर जी बहुत ही अदभुत
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
kabhi to suraj rooh se mil jaye
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
sabdo ke lihaff ko odhe rahiye….aur aapka sukoon hame aapke post me dikhte rahega..:)
बहुत सशक्त रचना के लिए बधाई।
यह रचना खूबसूरत है पर बीच-बीच में इतनी तीव्र कौंध है कि उसके आगे आसमानी बिजली भी फीकी पड़ जाये.
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
सुन्दर अभिव्यक्ति !
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
सुन्दर अभिव्यक्ति !
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
Badiyaa …
क्या गजब की ख्याली मटरगश्ती है, मटरगश्ती में जो मजा आता है वो कहीं और नहीं . कहीं गहरे दिल को छूटी पंक्तियाँ तो कहीं वाकई मौज के भाव लिए – ये शिखा वो तो नहींलगती है.
"बारिश की बूंदों को पलकों पे ले लिया है आँखों के खारे पानी में कुछ तो मिठास आये."
बहुत खूबसूरत प्रयोग सुन्दर अति सुन्दर |
इन पंक्ति यों को पढ़कर राजेश खन्ना की अमर प्रेम पिक्चर का वो डायलाग याद आ गया "पुष्पा आई हेट टियर्स "
Barhia ! 🙂
बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
'बारिश की बूंदों को पलकों पे ले लिया है आँखों के खारे पानी में कुछ तो मिठास आये.'
लगता है दिल उंडेल दिया है.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपका स्वागत है.
बढ़िया लगा ये अंदाज़।
देर के लिए माफ़ी …
बेहद उम्दा क्षणिकाये … बधाइयाँ !
एक से बढ़ कर एक.
अपने शब्दों को लिहाफ़ से बाहर ही रखिये ,जिससे हम लोगों की रूहॊं को पुरसुकून मिलता रहे । सभी एक से बढ़कर एक । बहुत ही भावपूर्ण ।
बड़ी मजेदार मटरगस्ती है जी!
१.अपनी जिंदगी की
सड़क के
किनारों पर देखो
मेरी जिंदगी के
सफ़े बिखरे हुए पड़े हैं
क्या जबरअतिक्रमण है।
२.हम
इस खौफ से
पलके नहीं
बंद करते
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये
कोई गल्ल नहीं जी। उसके पास नोकिया मोबाइल है। उसकी फ़्लैश रोशनी में काम भर का दिखता है। 🙂
पहली बार आयी हूं आपके ब्लाग पर ,अबये अफ़सोस है और पहले क्यों नहीं आयी ! खूबसूरत है आपका अंदाज़े-बयां .
बारिश की
बूंदों को
पलकों पे
ले लिया है
आँखों के
खारे पानी में
कुछ तो
मिठास आये.
अत्यंत भावपूर्ण रचना ,बधाई कम से कम …
यही तो अदा है जानम की अँधेरे से डरते हैं और फिर उसी में चाहत चमकाने की कशिश भी है ! वाह !!
बेहद अच्छी रचना। दिल खुश हो गया पढ़कर।
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये…
वाह… बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति…
बेहद उम्दा क्षणिकाएं है…
सादर..
सभी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं !. अंतिम कविता तो अतुलनीय है..
"हम
इस खौफ से
पलके नहीं
बंद करते
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये"
आंखों के खारे पानी में कुछ तो मिठास आ जाये …
बेहतरीन अभिव्यक्ति ….
बारिश की
बूंदों को
पलकों पे
ले लिया है
आँखों के
खारे पानी में
कुछ तो
मिठास आये.
..
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो…
..
क्या कहूं हर जगह एक जैसे प्रशंसा के शब्द …नही मन नही है यही कहूँगा की आपको पढने में देर कर दी …बहुत अच्छा लिखती हैं आप ..और हाँ फेसबुक पर आपको आज से ६ महीने पहले मैंने रेकुएस्ट भेजी थी …शायद पता नही आप ने ठुकराया या आपकी बढती लोकप्रियता देखकर फेसबुक वालों को ही अच्छा नही लगा
बहरहाल आभार आपका
जब भी समय मिलेगा मैं आपकी रचनाओं को पढने को कोशिश जरूर करूंगा !
वाह …बहुत खूब कहा है आपने …।
अच्छी मटरगश्ती है ये तो!!
शब्द चित्रों का अनुपम बिम्बात्मक दृश्यांकन
बहुत खूबसूरत
कहावत है -"जिसका तन और मन सुंदर होता है उसका भाव भी सुंदर होता है।" कविता की भाषा-शैली और भाव अति सुंदर हैं।धन्यवाद।
रचना में बहुत अच्छे शब्द चित्र प्रस्तुत किये हैं|
धन्यवाद|
ek se badhkar ek.. umda kshanikaayen.. kis kis ka zikra karoon… har ek pankti mai bhavnatmak SPANDAN ka ehsaas dastak deta hua sa laga… ye khayali matargashi itni laajavab hai to chintan kitna goodh hoga… gud job di !!
अरे दी !
एयी तो चोमोत्कार ! खूब भालो ! 🙂
कमाल की नज़्म कही है,दी !बहता चला गया इस के साथ !
सभी क्षणिकायें एक से बढ कर एक सुन्दर हैं । ़ाणिका मे मन के भावों को पूरी तरह व्यक्त करना मुश्किल होता है लेकिन शिखा ने ये काम बखुबी कर दिखाया है। बधाई।
काश… अभिताभ से मेरी दोस्ती होती.
मैं उनसे जरूर कहता-
शिखाजी इस रचना को अपनी आवाज दे दो
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
कमाल की क्षणिकाएं
सुन्दर प्रस्तुति
आपका चित्रों का चुनाव काफी सशक्त है
मटरगश्ती में आपने लाजबाब कविता लिख डाली है। अबतक मेरे द्वारा पढ़ी गयी आपकी रचनाओं में सबसे अच्छी लगी। साधुवाद।
बहुत ही प्यारी लगी ये नज़्म दी..
lammal ka likha ji, behtreen prastuti!
बहुत सुनदर कविता है, एकदम भावविभोर कर देने वली। आभार
सुन्दर नज्म है..
शुभकामनाएं
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
आदरणीय शिखा जी
यह शब्दों के लिहाफ जिन्दगी के कई राज छुपा कर रखते हैं लेकिन अभिव्यक्त भी तो यही करते हैं ..और रूह को चैन तो परमात्मा से मिलने के बाद ही मिलेगा …आपकी सभी क्षणिकाएं गहरे अर्थ संप्रेषित करती हैं …आपका आभार
हम
इस खौफ से
पलके नहीं
बंद करते
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये
जब व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर चलते हुए चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो उसे यह अहसास होता है …बहुत सुंदर भाव ..आपका आभार
bhawuk man ki bhigi rachna.
badhai
बारिश की,बूंदों को,पलकों पे,ले लिया है,आँखों के
खारे पानी में,कुछ तो मिठास आये……
आपकी कविता ने तो मेरे दिल को एक नया अहसास करवाया है,
आज दिन में मैंने करीब एक घंटे आपके ब्लॉग के साथ गुजारे है काफी सुखद अहसास हुआ है जिसकी कि आप तो कल्पना भी नहीं कर सकती है , मेरी उत्सुकता बढ़ चुकी है समय समय पर आपके ब्लॉग पूरा पढ़ना चाहता हूँ , आपको मेरी उत्सुकता ब्लॉग कि बढ़ने के लिए हार्दिक बधाई
स्पर्श और स्पंदन
स्पर्श को में नजदीक से जानता हूँ क्योंकि में भावुक होने पर अपनी व्यथा को मेसेज का रूप देता हूँ जिससे की मेरा मन हल्का हो जाता है मेरे मेसेज और स्पर्श की कवितायें आप भी भेद नहीं कर पाएंगी ,
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये …
सच है कुछ शब्द ओस की बूँद की तरह आराम देते हैं … शब्दों का कमाल ही क्रांति भी लाता है … बहुत लाजवाब हैं सब ..
कमाल है …अत्यल्पभाषी संगीता दी भी बोल गयीं इतना …….उनकी यह टिप्पणी ऐतिहासिक हो गयी है …शिखा जी ! भाग्यशाली हैं आप …..क्षणिकाओं के बदले क्षणिकाएं ले लीं आपने….या यूँ कहूँ कि संगीता दी को कलम उठाने पर विवश कर दिया आपने. भाव और साहित्य दोनों ही दृष्टियों से उत्कृष्ट रचनाएँ हैं आपकी. जो जैसा चश्मा लगा ले उसे वैसा ही दिखाई दे ……बड़ी पारदर्शी हैं आपकी क्षणिकाएं.
शिखा जी बहुत ही सुंदर कविता बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
शिखा जी बहुत ही सुंदर कविता बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
bhaashaagat naveen prayog "shabbe sahar" ,"gandole "-achche lage .
abhivyakti me bhi saundary aur naveentaa hai .
badhaai sulekhan ke liye .
veerubhai
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