सुनो आज मौसम बहुत हसीं है
फिफ्टी फिफ्टी के अनुपात में
सूरज और बादल टहल रहे हैं
चलो ना , हम भी टहल आयें
जेकेट – नहीं होगी उसकी ज़रूरत
हाँ ले चलेंगे अपनी वो नीली छतरी
जिसपर गिरती हैं जब बारिश की बूँदें
तो रंग आसमानी सा हो जाता है
और टप टप की आवाज के साथ
लगता है जैसे खुले आकाश के नीचे
कर रहा हो कोई टैप डांस
एक ही छतरी को दोनों पकड़ते हुए
कितना मुश्किल होता है न चलना
तुम हमेशा कहते हो बीच रास्ते
क्यों नहीं लेती अपनी अलग छतरी
मैं नहीं कह पाती तुमसे,बुद्धू हूँ न
उस एक छतरी में डगमगा कर चलना
तुम्हारे साथ खुले आसमान के तले
नृत्य करने जैसा एहसास देता है .
उफ़ बहुत फिल्मी हो ,
हाँ हाँ मालूम है यही कहोगे
इसीलिए तो नहीं कहती कुछ
वरना तो मन की तिजोरी
भरी पड़ी है शब्दों से
न जाने क्या क्या है कहने को
यह भी कि काश कभी चलते चलते
किसी टापू पर हम दोनों खो जाएँ
और कम से कम दो दिनों तक
न मिले कोई बचाने वाला .
मैं चाहती हूँ देखना
क्या तब भी तुम्हें आता है याद
खाने का समय और दो सब्जियां
देखना चाहती हूँ मैं
प्योर प्रायवेसी के उन पलों में
क्या याद करते हो तुम
साथ बिताये वो सुनहरे पल।
हाँ बाबा हाँ ,जानती हूँ
बातों से नहीं भरता पेट
कोरी भावनाएं हैं यह सब
फालतू लोगों के शगल
फिर भी …
उफ़ कितनी जिद्दी हूँ न मैं
टप टप टपा टप टप ….

कभी कभी फिल्मी होना अखरता नहीं … 😉
suno.. !!! chhate pe chhed na kar den… barish ke bundo se jab laten bhingti hai to aur khubsurat lagti hai…. behtareen..
बढिया बरसाती मौसम 🙂
bahut khub
Poem of subtle feelings! Profound!
Loved it 🙂 🙂
कल्पना में जीना अच्छा लगता है, पानी का बरसना यह भाव बरबस ही ले आता है।
अरे, आप भी कम फ़िल्मी नहीं हो.
कौन कहता है प्यार से पेट नहीं भरता ??????
🙂
अनु
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
एक का भीगना, बहकना, बह जाना
बरसते मौसम में
और दूसरे का तटस्थ होना
क्या ज़िंदगी है …!
कभी-कभी फ़िल्मिया जाना,जीवन का रस और आनन्द लेने का चाव- यही तो !
waah waah kya baat hai!!
टैप डांस वाला एकदम मस्त रहा बोले तो रापचिक . जीवन में कभी कभी फ़िल्मी होना पृष्ठ तनाव को कम करता है .:)
वाह,पढ़ते ही भाव जागृत हो गए मेरे तो 🙂 | बहुत सुन्दर | बधाई |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
मन को हल्का करती…सरल सुंदर रचना
रिमझिम बारिश की याद आ गयी..
बढ़िया प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
बारिश में यह भी अच्छा ख्याल है ……फिफ्टी …..फिफ्टी ….!!!!
बहुत गजब बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
आज की मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
🙂 uff ye ehsaas…. aksar aankho se girte hai tap tap tap
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें शिखा जी |
छाता हो या छत , उसके नीचे साथ हो 'उनका' तभी मन हर्षित होता है ।
आपकी रचना फ़िल्मी बिल्कुल नहीं है , हकीकत के बहुत करीब है ,यह तो ।
हसीं ख्वाब हकीकत से कुछ देर मुक्ति चाहते हैं जिद्दी लड़की !
एक सी नीरस सी ज़िंदगी में बारिश की बूंदों ने मचाई खलबली ….जिससे टैप डांस की कल्पना छलकी ….और कल्पना की उड़ान के साथ ही निर्जन टापू का ज़िक्र ….याद दिला गया कहो न प्यार है का सीन …. पर जेहन में वहाँ भी खाने का समय और दो सब्जियाँ … उफ़्फ़ अब आगे क्या लिखूँ ?
खूबसूरत एहसास से लबरेज सुंदर रचना
wah!sirhan si hone lagi rachna padh kar….kya bheega bheega khayal hai!!
प्रेम के इतने गहरे समुन्दर में जाते जाते … बाहर निकलने का प्रयास पर फिर … सिर पकड़ के डूबा दिया …
यादें ताज़ा कर सकने के काबिल रचना …
बहुत खूबसूरत…
वाकई बातों से पेट नहीं भरता …
खूबसूरत एहसास
भीग रहे हैं टप टपा टप में
उफ़ कितनी जिद्दी हूँ न मैं
हां सो तो है 🙂 🙂 🙂
"…टप टप की आवाज के साथ"…बूंदों की धुन पर, एक छतरी तले साथ-साथ चलते हुए, व्यक्त-अवयक्त अंतरंगता को जी-भर जी लेने की ललक, रूढ़ियों-वर्जनाओं की चौहद्दी से दूर उन्मुक्त " खुले आकाश के नीचे " एक-दूसरे को महसूस लेने की उत्कंठा प्रिय लगती है इस क्रम में जहाँ प्रिय के सँग-सँग " एक छतरी में डगमगा कर चलना …खुले आसमान के तले / नृत्य करने जैसा एहसास देता है !" दो-दिन की ज़िन्दगी में दो कदम का यह साहचर्य यदि जो कुछ भी अनकहा है, अनजिया है, अनछुआ है, अपरिभाषित है उसे जीवनानुभव में ढाल लेने का साधन बन जाए तो समय-सरगम सुरीली हुए बिना न रहे ! यह सत्य विदित है 'नेरेटर' को इसीलिए जिस सहजता से बात कही गई है यहाँ, मन मोह लेती हैं ये पंक्तियाँ : " न जाने क्या-क्या है कहने को / यह भी कि काश कभी चलते-चलते / किसी टापू पर हम दोनों खो जाएँ / और कम-से-कम दो दिनों तक / न मिले कोई बचाने वाला / मैं चाहती हूँ देखना / क्या तब भी तुम्हें आता है याद / खाने का समय और दो सब्जियां / देखना चाहती हूँ मैं / प्योर प्रायवेसी के उन पलों में / क्या याद करते हो तुम / साथ बिताये वो सुनहरे पल…उफ़ कितनी जिद्दी हूँ न मैं" बिना कोई शब्दाडम्बर रचे सुरुचिपूर्ण रचना की प्रस्तुति !
छतरी के नीचे
बरसती हैं यादें
भीगो देती हैं मन
छतरी तो बस
रोक पाती है बूँदों को
नहीं भीग पाते
बदन।
लगी आज बारिस की फिर वो झड़ी है ,
लगता है कहीं आज फिर बर्फ पड़ी है।
बसती है अपने ख्वाबों ख्यालों में जो
लगता है अपनी तो किस्मत में नहीं है। 🙂
YE BHI KHUB RAHI. AAPAKI LEKHANI KA KAMAL
अच्छा लगता है ये जिद्दी होना । सब व्यावहारिक हो जायें तो प्यार कहां रहे ।
सोनल जी की बात से सहमत हूँ 🙂
टिप-टिप बरसा पानी,पानी ने आग लगा दी
आग लगी पानी में, दिल को तेरी याद आई………
bhut
sundar
सिर पर छतरी,लेकिन फुहारें कहाँ सीधी रहती हैं -दोष मन का नहीं मौसम का है!
जाने कब और कैसे …और सबसे ख़ास बात …किसको लेखन का कीड़ा काट खाए कह पाना मुश्किल है और बहना …जब ये काट खाए तो फिर मर्ज़ हो जाता है लाइलाज ….बस तो मेरी गलती नहीं थी ..कीड़े का असर था ….मैंने भी ब्लॉग बना डाला ….आप पधारो हमारे ब्लॉग पर …हम दोनों मिलकर इस 'कीड़े' का इलाज ढूढ़ेगें …वो कहते हैं ना …एक से दो भले 🙂
ब्लॉग(स्याकी के बूटे) का रास्ता नीचे दिया है ……
http://shikhagupta83.blogspot.in/
जिसकी इतनी प्यारी चाह हो वह खुद कितना प्यारा होगा ….काश मैं लड़का होती ….:)
:):)
ब्लोगर आजकल कुछ ज्यादा ही समस्या देने लगा है. अनूप शुक्ला जी का सन्देश आया है कि कमेंट बॉक्स नहीं खुल रहा अत: उनका ये बब्बर शेर मैं यहाँ पहुंचा दूं –
"तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह,
भीग तो पूरा गये लेकिन हौसला बना रहा
कट्टा कानपु्री"
अद्भुत,, शुभकामनाएं
कमाल की रचना
वारिश का ख्याल भी तन मन को भिगो जाता है.
मनमोहक प्रस्तुति.
bhut behtreen
An fascinating discussion is value comment. I think that you need to write more on this subject, it might not be a taboo subject however generally persons are not enough to speak on such topics. To the next. Cheers
naturally like your website however you need to take a look at the spelling on several of your posts. A number of them are rife with spelling problems and I to find it very bothersome to tell the truth then again I’ll certainly come back again.