चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर.
ये पंक्तियाँ बचपन से ही कोर्स की किताबों में पढ़ते आ रहे थे .गाँधी को कभी देखा तो ना था. पर अहिंसा और उपवास से अंग्रेजी शासन तक का तख्ता पलट दिया था एक गाँधी नाम के अधनंगे फ़कीर से वृद्ध ने. यही सुनते आये थे. अंग्रेजों की गुलामी से आजादी तो मिल गई परन्तु इस प्रगति शील देश में भ्रष्टाचार की प्रगति भी होती गई. और इसी बीच अचानक एक ७२ साल वृद्ध ने भ्रष्टाचार के खिलाफ गाँधी वादी अनशन की घोषणा कर डाली.रोजमर्रा के कामो में भी भ्रष्टाचार से जूझने वाली जनता को अचानक इस वृद्ध में गाँधी दिखाई देने लगे .जन आन्दोलन की ऐसी आंधी चली कि जिन युवाओं ने कभी गाँधी को देखा ना था.शायद कभी जाना भी ना था. उन्हें लगा कि गाँधी ऐसे ही होते हैं. वही अवस्था, वही तरीका. अब तो दशा सुधरकर ही रहेगी, किसी ने हाल ही में ईजिप्ट में हुई जनक्रांति का हावाला दिया. तो किसी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ गाँधीवादी आन्दोलन का. और एक जन सैलाब इस अभियान से जुड़ गया. इसे जनक्रांति का आगाज़ माना जाने लगा .
पहली बार लगा कि मीडिया अपना काम कर रही है. किसी लाला या नेता की भाषा नहीं बोल रही. पहली बार किराये की भीड़ नहीं बल्कि आम जनता का सैलाब दिखाई दिया , पहली बार किसी आन्दोलन में आगजनी नहीं हुई, पुतले नहीं फूंके गए ,निर्दोषों पर लाठियां नहीं बरसीं .और पहली बार देश का युवा वर्ग भारी संख्या में इस अहिंसावादी आन्दोलन का हिस्सा बन गया .इस आशा में कि गाँधी जी के अनुयायी अन्ना, गाँधी ही के तरीके से अब व्यवस्था सुधार कर ही रहेंगे.लोकपाल बिल के आते ही जादू की छड़ी से सब अचानक सुधर जायेगा.और फिर वे भी एक सुव्यवस्थित और न्यायप्रिय समाज का हिस्सा होंगे.पर उन्हें क्या पता था कि भले ही गाँधी की नीयत में कोई खोट ना हो.परन्तु कुछ खास प्रिय लोग और कृपा पात्र उनके भी थे. जिन्होंने उनकी आड़ में अपनी रोटियाँ जम कर सेकीं.उन्हें क्या पता था कि इस समिति के सदस्य अचानक कहाँ से आये ?और उन्हें किस तरह चुना गया?. वे क्यों ये सोचते कि समिति के सदस्य भी वही सब नहीं करेंगे जो अब तक सरकारी महकमो में होता आया है. उन्हें तो बस अन्ना में अपने राष्ट्रपिता का रूप दिखाई दिया और उसी के पीछे वे हो लिए.
हर अखबार , हर नुक्कड़ हर चैनल पर बस अन्ना… अन्ना…..और अन्ना … .अंतर्जाल भी बिछ गया अन्ना और आन्दोलन के लेखों से. हर कोई बस लिख रहा था और लिख रहा था अन्ना पर. और जिस शिद्दत से लिख रहा था और इस आन्दोलन में अपनी उपस्थिति दिखा रहा था अगर उसका एक चौथाई भी काम अपने सरकारी मकहमे में बैठ कर अपने कर्तव्यों के पालन के लिए किय होता तो शायद एक ७२ वर्षीय वृद्ध को भूखे पेट अनशन पर बैठना ही ना पड़ता.
परन्तु हमारे देश में तो यही रिवाज़ है जो जोर से बोलता दिखा उसी के पीछे हो लिए .बिना ये सोचे कि अचानक इस आन्दोलन की किसी को भी सूझी कैसे? बिना ये जाने कि इसके व्यवस्थापकों ने इसकी व्यवस्था कब और कैसे की . हम ये क्यों सोचे कि बला की ढीट सरकार अचानक से कैसे इतनी मुलायम हो गई कि इस आन्दोलन का पक्ष लेने लगी और जिस देश में अनगिनत मुद्दे और केस सालों साल चला करते हैं वहीँ ये सरकार तुरंत ही अन्ना की शर्तें क्यों मान गई. तुरत फुरत में ही समिति बन गई. कोई यह सोचने को तैयार नहीं कि वे सब कौन है …अरे जाने दीजिये उन्हें. अगर जनता के हुजूम में पत्थर फेंक कर भी समिति का सदस्य चुना जाता तो हमारे भृष्ट प्रशासन में पहुँचते ही वह भी खरबूजे की तरह रंग बदल लेता और यहाँ तो उसी प्रशासन और राजनीति की चाशनी में पके हुए योद्धा हैं सब. क्या गारंटी है कि वे पाक साफ़ निकल आयेंगे.
जो भी हो …जो भी मकसद हो इस आन्दोलन का …और जो भी परिणाम निकले.
मुझे बस एक बात अच्छी लगी कि जो भी हुआ शांति पूर्ण तरीके से हुआ और देश के हर वर्ग और आयु का व्यक्ति उसमें शामिल था.
और डर है तो वह भी एक, कि इतनी शिद्दत और लगन से युवाओं ने इस आन्दोलन में हिस्सा लिया ,आशाएं उनके मन में जगीं,सपने जगे …अगर यदि वे टूटे तो……इस देश का युवा टूट जायेगा …और यदि ऐसा हुआ तो …ये देश कहाँ बच पायेगा... .
शिखा जी
ये सपना अब सच होकर रहेगा……………एक जागरुकता का संचार तो हुआ ही है इस आंदोलन से …………अब हम सभी का कर्तव्य बनता है अपने अपने तरीके से इसमे सहयोग करें क्योंकि ये आंदोलन हम सभी के लिये था …।
आपने काफी उम्दा लिखा है शिखा जी … बस एक बात से सहमत नहीं हो सकता जीवन में कभी भी …"अहिंसा और उपवास से अंग्रेजी शासन तक का तख्ता पलट दिया था एक गाँधी नाम के अधनंगे फ़कीर से वृद्ध ने" … केवल गांधी ही नहीं थे … और भी बहुत से लोग थे … पर यह इस देश का दुर्भाग्य है कि उन लोगो को अब कोई याद भी नहीं करता … क्युकि उनको याद करना मतलब कुछ बहुत बड़े बड़े लोगो की गलतियों को याद करना ! खैर एक बहुत बड़ी बहस का मुद्दा है यह … एक बार फिर इस बेहद उम्दा आलेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं !
अरे जाने दीजिये उन्हें. अगर जनता के हुजूम में पत्थर फेंक कर भी समिति का सदस्य चुना जाता तो हमारे भृष्ट प्रशासन में पहुँचते ही वह भी खरबूजे की तरह रंग बदल लेता और यहाँ तो उसी प्रशासन और राजनीति की चाशनी में पके हुए योद्धा हैं सब. क्या गारंटी है कि वे पाक साफ़ निकल आयेंगे.
अन्ना के आन्दोलन ने बेशक सरकार को लोकपाल बिल के लिए राजी कर दिया और एक नए तरीके से किये गए विरोध से एक नया माहौल भी सामने आया लेकिन अभी तक इस अनशन और गांधीवादी आन्दोलन के परिणाम सामने आने बाकी है , देश में जो समर्थन अन्ना जी के प्रति देखा गया उससे यह जाहिर होता ही कि देश की जनता इस बिल के प्रति आशान्वित है कुछ भ्रषटाचार कम होगा लेकिन सब कुछ अभी भविष्य के गर्भ में है …आपकी पोस्ट में बहुत से पहलुओं पर बहुत गंभीरता से विचार किया गया है ..आपका आभार
चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर.
73 साल का ये शख्स वाकई अक क्रांति का आगाज तो लोया ही है. जो कम 121 करोड़ आबादी वाले इस देश के 100 करोड़ युवा नहीं कर सके…वो काम इस शख्स ने किया …हालाँकि आगे की रह सबसे कठिन लगती है मुझे यहीं मुस्तैद रहने की जरुरत है…
अक्षरश: सत्य कहा है आपने इस आलेख में …इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
जब रोम रोम में भ्रष्टाचार समाया हुआ है.. हम कितने मुक्त हो पाएंगे यह देखने वाली बात है… केवल अन्ना से नहीं हो सकेगा यह.. हर एक व्यक्ति में गहन अनुशाशन की जरुरत है… बढ़िया आलेख !
शिखा बहुत सही लिखा है, लेकिन जिस लक्ष्य को लेकर अन्ना आगे चले हैं , उसमें उनकी भीड़ में अभी कितने भ्रष्ट भी शामिल होंगे. भ्रष्टाचार अब इंसान की रगों में खून बन कर दौड़ रहा है क्या हम उस खून को बदलने में सफल होंगे. अभी लड़ाई बहुत आगे तक जानी है.
आदरणीय शिखा दीदी
सत्य कहा है आपने इस आलेख में
सभी को मिलकर साथ देना होगा
भले ही देश की आज़ादी में और बहुत से कारण शामिल थे लेकिन अंग्रेज़ी सरकार गांधी की अहिंसा और उपवास के सामने ठहर नहीं पायी …सच है जो केवल गाँधी के बारे में पढ़ा या सुना आज अन्ना के माध्यम से इस ताकत को देखा और जाना भी है ..लेकिन …सरकार क्या सच ही सहयोग करेगी ? या इस आपदा से निपटने के लिए एक कदम पीछे हट कर फिर तेज़ी से अपना जाल बिछाएगी …क्या सरकार अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारेगी ? क्यों कि करोड़ों का घोटाला तो सरकार ही कर सकती है ..जनता इन भ्रष्टाचार से त्रस्त हो गयी है ..इसी लिए अन्ना के आन्दोलन को विशाल जन समर्थन मिला ..सरकारी तंत्र परेशान है यह सोच कर कि इतना समर्थन बिना रुपयों के कैसे संभव है …जब कि उनके ज़रा से आयोजन में करोड़ों का बजट बन जाता है ..रैली में लाने के लिए लोगों को किराया भाड़ा खाना पीना सबकी व्यवस्था कि जाती है ..अन्ना के आंदोलन में लोग अपने पैसे खर्च कर कैसे जुटे ?
अब देखना यही है कि इस राजनीति से अन्ना कैसे दो दो हाथ करते हैं ..और जनता के भरोसे को कायम रखते हैं …बहुत अच्छा और समसामयिक लेख …
लेख की शरुआत रामधारी दिनकर की कविता की पंक्तियों से कर रोचकता प्रदान की है …
Anna!!
tum aage badho, ham tumhare saath hain..:)
bas yahi awaaj to aa rahi thi ..uss bhir se….aur hame bhi dur se hi sahi uss bhir ka hissa banane me khushi hui …pata nahi kyon!! kahin andar laga ki kuchh badlega…!
par abhi bhi sayad laga hua hai, kyonki uske baad ka samapan sahi nahi hua…
par ummid to hai na…:)
ek samayik rachna…badhai shikha!
पड गयी जिधर भी एक दृष्टि ,गड गए कोटि दृग उसी ओर . भैया अपनी भी दृष्टि ऊपर की तरफ है की क्या पता आसमान में सुराख़ करने के लिए उछाला गया पत्थर मेरे ऊपर ही गिरे . मजाक से इतर बात आपने सौ टके सही और दुरुस्त फरमाई है .. मौके का फायदा उठाना वाले भी होगे वहा , जरुरत उनकी पहचान और उनसे दूर रहने की . हमने अपने गिरेबान में झाकना शुरू कर दिया है . उम्मीद है की अन्ना की चिंगारी भ्रष्टाचार के रावण को जला पायेगी .
सत्यमेवजयते.भगवद्गीता अ.२ श.४१ के अनुसार
"हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मक बुद्धि एक ही होती है.किन्तु अस्थिर विचारवाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली अनन्त होती हैं."
यदि बुद्धि का निश्चय पक्का है,तो डर किस बात का.हाँ,यदि बुद्धि को लक्ष्य से भटकायेंगे तो जरूर मुश्किल होगी.हमें तो यही गाते रहना होगा और उस पर चलना भी होगा
'हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब एक दिन एक दिन
मन में है विश्वास ,पक्का है विश्वास ,हम होंगे कामयाब एक दिन .'
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका .
एक बार फिर से आपको निमंत्रण है मेरे ब्लॉग पर आने का,राम-जन्म के शुभावसर पर.कृपया आइयेगा जरूर.
phir wahi aalam hai… anna hazaare tune ker diya kamaal
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
"दिल बोले" में सचमुच ही दिल बोला है…
flaring…!
मीडिया की बात हो, चाशनी में
पगे नेताओं की, युवाओं की, देश वासियों की,
गाँधी जी की या अन्ना हजारे जी की…
यहाँ-वहां शीखा दृष्टि चोखी-चोखी…
लेख अच्छा लगा…
Sorry, शीखा नहीं शिखा
भ्रष्टाचार से तो सभी त्रस्त है!
डूबते को तिनके का सहारा ही काफी है!
अब नही तो कभी भी नही…यही समय है सुधरने और सुधारने का….एक अच्छी प्रस्तुति ।
achha hai…lekin har daur me ek kahawat hoti hai shikha, nayi peedhi ko josh hai hosh nahi, doosri cheej nayi peedi ko rajneeti ke ander ki saudebaaji, gandagi, gathbandhan abhi kuch nahi pata hai, issliye jo unko dikha ya mila wo unke liye pahla mauka ttha jo ki poori tarah se jazbaaton se labrej ttha, magar anna ke kandho per ab unn karoron yuvaon ke sapno bojh hai, wo kaise nibhayenge ye tto waqt ki gart me hai…lets wait n watch..
Kewal ek aandolan se kahan kuchh hoga??Gandhi ji ne zindagee bhar aandolan aur satyagrah kiye!
Khair! Aapka aalekh aur apnee baat kahne kaa tareeqa umda hai is me koyee shak nahee!
मीडिया ने इस बार काफी रचनात्मकता का परिचय दिया. अन्ना हजारे जी ने एक बार फिर अहिंसा के पथ की शक्ति दिखा दी..
ढेरों लोग एसएमएस और मिस कॉल कर स्पर्श क्रांति का सुख लेते रहे.
शिखा, अन्ना के आन्दोलन के सामने सरकार के झुकने के पीछे क्या मंशा है, कितने लोग अब इसको इस्तेमाल करेंगे, और क्या सकारात्मक होगा, ये तो धीरे-धीरे ही समझ में आयेगा. हां, अन्ना के आन्दोलन के चलते एकजुटता का संदेश ज़रूर मिला.किसी भी विधेयक की सार्थकता तभी सिद्ध होती है जब उसका कड़ाई से पालन हो, और जनता द्वारा हो, वरना विधेयक केवल कागज़ी मसौदा बन के रह जाता है. भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम तो अभी भी मौजूद है, लेकिन इसका पालन कितना होता है? भ्रष्टाचार तो यहां जड़ों में समा गया है.
अच्छी पोस्ट.
भीड़ के पीछे भागना होता है मीडिया को।
आए दिन लोग यह बहस करते हैं कि गांधी जी के विचार आज सार्थक हैं या नहीं। कितनी भूल कर रहे हैं हम। बहस का विषय तो यह होना चाहिए कि गांधी जी के विचारों की अनदेखी करके हम कितने असफल हुए हैं और हो रहे हैं।
कम से कम अण्णा हज़ारे की सफलता और उनको मिला जन समर्थन यही साबित करता है।
सुधार ….
चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
यह पंक्तियाँ …सोहन लाल द्विवेदी जी की हैं …
कवि का नाम गलत ध्यान था ..क्षमा चाहती हूँ ..
हमारी और हमारे बाद की पीढ़ी ने गाँधी जी को देखा नहीं , सिर्फ पढ़ा है …
अन्ना जैसी विभूतियाँ गाँधी को किंवदंती नहीं बनने देंगी , तसल्ली हुई …
मीडिया द्वारा इस अहिंसक आन्दोलन को इतनी कवरेज और समर्थन बताता है की यदि लोकतंत्र के सजग प्रहरी और प्रमुख स्तम्भ के रूप में अपना कर्तव्य इसी प्रकार निभाता रहे तो सच्चे अर्थों में देश के लोकतंत्र को कोई नजर नहीं लगा सकता !
सबको अपने हिस्से का कार्य करना होगा…सपना जरुर साकार होगा.
अन्ना हजारे तो एक उदाहरण हैं। नजीर! भले ही लोकपाल बिल बने न बने, लागू हो या न हो लेकिन कुछ लोग इस से जरूर प्रभावित हुये होंगे और उससे उन्होंने सोचा होगा कि बदलाव संभव है।
आपने यथार्थपरक चित्रण किया है. एक और महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर आया कि देश के युवा वर्ग ने बढ़-चढ़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जो एक शुभ संकेत है.
निर्बल से लड़ाई बलवान की…
ये कहानी है दिए की और तूफ़ान की…
जय हिंद…
अन्ना तो एक ज़माने से मेरे हीरो रहे हैं. मुझे अच्छा लगा कि आज करोड़ों और भी उनके साथ खड़े हैं. I hope the oppressed of today does not become the oppressor tomorrow, given the opportunity…
जिस देश में नौकरशाहों और राजनेताओं पर सीधे कानून लागू नहीं होता हो यदि उस देश में ऐसा कानून बनाने की पहल हो तो उसके साथ आने वाले व्यवधानों को नजरअंदाज करना ही पड़ेगा। लोग कहते हैं कि क्या इससे भ्रष्टाचार समाप्त होगा? अरे भाई जब कानून ही ना हो तो खुली छूट मिल जाती है, लोकपाल विधेयक के रूप में एक कानून तो इनपर लागू होगा। लेकिन यह है कठिन मार्ग, क्योंकि इतने बरसों से इन लोगों ने यही समझा है कि हम राजा है और ये प्रजा। अब स्वयं को भी कानून के दायरे में आता देख, आन्दोलन की धार कम करने के प्रयास तो किये ही जाएंगे।
Anna Hazare ji has just torched against the dark of corruption, and the awesome support form all of india , from all category was tramendous.
so it was an 1st step, the question is how long we can marched to reach our ultimate destination of "Corruption free India".
jai hind jai bharat
nice article!
शिखा जी, दो बातें कहना है, इस आलेख की तारीफ़ के अलावा:
१. मीडिया ने नहीं बनाया.. मीडिया तो इसी का अफ़सोस मना रहा है कि हमने तो इस आदमी को तीसरे पन्ने पर भी जगह नहीं दी, ये सीधा पहले पन्ने पर कैसे पहुँच गया.. (यह खुद एक पत्रकार का कहना है).. यह तो जनता के बीच से उठा,जनता का हीरो था.
२. जब भरा पड़ा हो आदमी तो एक छोटा सा दिया भी मशाल लगने लगता है. तकलीफ का पहाड़ उठाता इंसान पत्थर पूजने से भी परहेज नहीं करता.. वही गांधी के साथ हुआ, जयप्रकाश के साथ और अब अन्ना के साथ..
बस देखना ये है कि जो उनके साथ किया देश ने वही इनके साथ भी न हो, जबकि संभावनाएं वही हैं!!
हम तो चाहेंगे की जो भी हो अब अच्छा ही हो 🙂
वैसे ये बात सच है की ऐसा जन आंदोलन जिसे मिडिया या किसी नेता ने नहीं बनाया, खुद जनता जुडी, मैंने पहली बार देखा है..
mere bhee… fully agree… well-done amma… whoops…
good post…
चलिये देखते हे अन्ना हजारे कितना खरा उतरते हे जनता की नजरो मे, कही बाबा राम देव को दबाने के लिये ही यह नाटक तो नही खेला इस सरकार ने?क्योकि बाबा राम देव तो मोट बन गये थे इस सराकार ओर इन भार्ष्ट नेताओ के लिये…
सच है…. यही समय है जागरूक हो नए बदलावों की नीव रखने का….. आपकी बातों से सहमत हूँ….
अभी आगे आगे देखिये होता है क्या ?
सरकार को जल्दी इसलिए पडी थी कि कहीं भीड़ मनमोहन की पगड़ी न उतार ले
तब तो बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा
सुन्दर लेख…अन्ना के बहाने हमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने का हथियार-सा मिल गया है. अन्ना गग्न्धी तो नहीं बन सकते, क्यों कि वे कहीं-कहीं हिंसा के भी पक्षधर नज़र आते हैं, खैर, फिर भी राह वही है गाँधी वाली. उनका काम लोगों ने पसंद किया. आपने ठीक लिखा है,कि मीडिया ने उन्हें समुचित महत्त्व दिया वरना आन्दोलन इतना व्यापक नहीं हो सकता था..
शिखाजी, परिणामों की जानकारी होने के दम्भ ने कि भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता, हमने भ्रष्टाचार की नींव को और अधिक मजबूत किया है। आपने अपने ब्लाग पर इस आन्दोलन को स्थान देकर एक पुनीत कार्य किया है। इस प्रकार के विचारों का प्रकाशन पूरी सकारात्मक सोच के साथ करना आवश्यक है। हार्दिक आभार।
Why comparison with Gandhi , no match
आपके विचार महत्वपूर्ण हैं…
बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने….हार्दिक बधाई
वैसे अभी बहुत कुछ भविष्य के गर्भ में है…
बिलकुल सही फरमाई आपने ! सरकार इस लिए जल्दी झुकी क्योकि चार – पांच राज्यों में मतदान सामने था ! यह मुद्दा नौजवाने के मूवमेंट को मोड़ सकता था ! जो भी हो इसके फल का इंतज़ार है !
दिल मेरा भी यही बोले. पर समस्या यह है कि जो मेन स्ट्रीम मीडिया है वो हर चीज को शक की निगाह से देखता है और नेता तो सारे अन्ना को एकदम खारिज करने पे तुले हैं. दरअसल अब वो दिन भी जल्द आने वाला है जब पब्लिक भ्रष्ट नेताओं को दौडा -दौड़ा कर मालाएं पहनाएगी| अन्ना के अनशन में जो यूथ पहुचा वो किसी टिकट की जुगत में नहीं आया था| स्वतःस्फूर्त लोग वहाँ पहुचे और देश में बदलाव की धमक साफ सूनी जा सकती है बशर्ते अन्ना अपने मिशन में डटे रहें| अन्ना की गांधी से तुलना का कोई औचित्य ही नहीं है| सवाल गांधी के रास्ते पे चलने का है और यह रास्ता ही सदियों से इस देश की दिशा तय करता आया है|
बेहतरीन प्रस्तुति
सच है.. अन्ना जी को हम आज का गांधी कह सकते हैं। लेकिन अन्ना जी को गांधी जी से भी मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ रही है। हम दूसरों से मुकाबला कर सकते हैं, लेकिन जब अपने ही लोग सामने हों तो ताकत कम हो जाती है। लेकिन नाउम्मीद बिल्कुल नहीं हूं।
जागरूकता बढ़ रही है …बदलाव अवश्य आएगा ! शुभकामनायें !!
ये कोई ज्यादा उत्तेजित होने की ठोस वजह नहीं है इस तरह के बल्कि इससे भी ज्यादा ताकतवर जय प्रकाश और वी पी सिंह के आन्दोलन थे कोई ठोस नतीजा निकला नहीं , अन्ना को जो चाहिए था वोह उनको मिल चुका है, अब हम और आप केवल वक़्त का इन्तजार ही कर सकते है, मैं भूल नहीं पाता लेकिन देश की जनता की भूलने की बीमारी पुरानी है , हो सकता है कि अगले कुछ महीनों में कोई नया घोटाला या नया आन्दोलन हो और जनता उसमे व्यस्त हो जाए , भ्रष्टाचार कही बाहर से नहीं इसकी जड़ें हमारे आस पास ही होती है और हम जानते हुए भी अनजान बनने का ढोंग करते रहते है , कामन वेल्थ गेम्स वाले केस को जनता भुला चुकी है ये एक बहुत लम्बी सीरीज है , सो आई से ओनली डोंट वरी बी हैप्पी एंड गेट एन्जॉय ……..
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अडचनें आना शुरू हो गयी हैं…Let's see what future has in store.
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शिखा जी, बहुत ही सुंदरता के साथ आपने भ्रष्टाचार विरोध के इस अभियान ओर उसके प्रभावों का आकलन किया है. आपकी लेखनी काफी धारदार है. शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार हो रहा है शिखा जी.
अभी दिल्ली से लौटा हूँ … शुरू में ज़रूर मीडीया ने साथ दिया .. पर अब लगता है फिर से मीडीया सरकारी भौंपू बन गया है … नेताओं ने अपनी कुटिल चालें शुरू कर दी हैं … अफ़सोस होता है ….
शिखा जी,
मैं भी भारतीय वायु सेना से अवकाश प्राप्त वायु सैनिक हूं इसलिए जानता हूं कि अन्ना साहेब एक भूतपूर्व सैनिक होने के नाते जब लड़ाई का बिगुल बजा दिए हैं तो यह जंग जीत कर ही रहेंगे। काश!उन्हे वो मुकाम मिल जाता जिसके वे वास्तविक रूप से हकदार हैं।सार्थक पोस्ट।
देखा, देर से आने का एक ये भी नुकसान है, कि कहने के लिए कुछ रह नहीं जाता 🙂
वैसे
बहुत अच्छा लिखा है शिखा जी.
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' जी की बात से बिल्कुल सहमत हूँ।
पहली बार लगा कि मीडिया अपना काम कर रही है. किसी लाला या नेता की भाषा नहीं बोल रही. पहली बार किराये की भीड़ नहीं बल्कि आम जनता का सैलाब दिखाई दिया , पहली बार किसी आन्दोलन में आगजनी नहीं हुई, पुतले नहीं फूंके गए ,निर्दोषों पर लाठियां नहीं बरसीं .और पहली बार देश का युवा वर्ग भारी संख्या में इस अहिंसावादी आन्दोलन का हिस्सा बन गया
bahut khoob likha hai aapne
bahut achcha post likha aapne.
हमारी कमजोरी कहे या महानता ?हम गाँधी ही की खोज में लगे रहते है |
हर युग में गांधीजी प्रासंगिक है क्या ?और भीड़ क्यों बनते है ?
बहुत सरे प्रश्न उठते है मन में ?
जो भी हुआ शांति पूर्ण तरीके से हुआ
अब देखना है जीतता कौन है भ्रष्टाचार या सदाचार ? सार्थक पोस्ट बधाई
parivarta to hoga – avashya.
आज तो बस जय हिंद करने को जी चाह रहा है।
बहुत सटीक आलेख है
लफ्ज़ – लफ्ज़ आंदोलित करता है
ये अभियान
सफलता की मंजिल तक पहुंचे ,,,
इस मननीय लेख के माध्यम से
हम सभी भगवान् जी से प्रार्थना करते हैं .
अच्छा आलेख।
उम्मीद तो जगी है………. मगर भ्रष्ट नेताओं का कुछ मिडिया समूहों के साथ मिलकर अन्ना और उनके खेमे पर हमला साबित करता है की कुछ न कुछ बड़ा खेल परदे के पीछे है….
बहुत अच्छी प्रस्तुति….
अन्ना को दूसरा गांधी कहना गलत है. अगर वो गाँधी की राह पर चल रहे थे तो अबतक क्यों चुप रहे? गांधी बनना इतना सहज नहीं कि अनशन पर बैठ गए और गांधी बन गए. भ्रष्टाचार आज की नयी उपज नहीं है. फिर भी इतना ज़रूर हुआ की जन चेतना जागी, और आवाज़ में बुलंदी आयी. अब देखना है कि गांधी की राह पर चलने वाले अन्ना महज़ जनलोकपाल विधेयक से किस तरह भ्रष्टाचार दूर कर पाते हैं जबकि कमिटी के सदस्यों का नया नया रहस्य खुल रहा. अगर भ्रष्टाचार से पूरा देश पीड़ित है तो फिर भ्रष्ट कौन? क्या सिर्फ सत्ताधारी हिन् भ्रष्ट हैं? अब देखते हैं आगे आगे क्या होता है. अच्छे आलेख केलिए शुभकामनाएं शिखा जी.
बहुत अच्छा लिखा है .. अब देखते हैं आगे आगे क्या होता है !!
अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
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अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है
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