कितना आसान होता था ना
जिन्दगी को जीना
जब जन्म लेती थी कन्या
लक्ष्मी बन कर
होता था बस कुछ सजना संवारना
सखियों संग खिलखिलाना,
कुछ पकवान बनाना और
डोली चढ़ ससुराल चले जाना
बस सीधी सच्ची सी थी जिन्दगी
अब बदल क्या गया परिवेश
बोझिल होता जा रहा है जीवन
जो था दाइत्व वो तो रहा ही
बहुत कुछ जुड़ गया है उसपर
अब लक्ष्मी ही नहीं
सरस्वती भी बनना है ,
पाक कला छोडो
विज्ञान , अर्थशास्त्र भी पढना है।
अब पैसा संभालना ही नही
उसे कमाना भी है
और तो और उसे भुनाना भी है
हर तरफ उम्मीदें
हर तरफ अरमान
कहाँ जाये वो
कैसे बनाये अपना मुकाम
एक तरफ समाज ,
एक तरफ घर संसार
पति मांगे भार्या, बंदनी
मालिक चाहे समर्पित गुलाम
न छूटे उससे मायका
ना अपनाए उसे ससुराल
अपना ही मन जाने ना
ढूंढे खुद को यहाँ वहां
दो पाटों के बीच में
ये कोमल कली पिस गई है
आज की लड़की
बहुत असमंजस में पड़ गई है.
ये कोमल कली पिस गई है
आज हिआज की लड़की
बहुत असमंजस में पड़ गई है.
aapne vedna ko bahut achche se prastut kiya hai…….
bhhavnaon ko bahut hi behtareen shabdon mein dhaala hai aapne………
bahut achchi lagi yeh kavita………
असमंजस तो सदैव था , नारी के जीवन में |
स्थियाँ भले ही बदल गयीं हों लेकिन तनाव तो
वही है , पहले वाला यानि — '' ढूंढे खुद को यहाँ
वहां / दो पाटों के बीच में '' |
सुन्दर कविता…
शुक्रिया …
ये कोमल कली पिस गई है
आज की लड़की
बहुत असमंजस में पड़ गई है.
और आज की लडकी को असमंजस से बाहर आना ही होगा
क्योकि यह आज ही नही पिसी है दो पाटो के बीच
यह दायरो मे बांधी गयी है और दायरे तोडकर बाहर आना ही होगा
आज की लडकी को
bahut sahii abhivkyati haen aaj ki naari ki
aaj bhi nari apane ko do pato ke bich apane aap ko dhundh rahi hai ………..
एक लडकी के लिए आज के हालात क्या मायने रखते हैं, आपने इसे सलीके से बयां किया है।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
बहुत सुन्दर रचना है।
बधाई!
बड़ी गहरी रचना है, बधाई.
दो पाटों के बीच में
ये कोमल कली पिस गई है
आज की लड़की
बहुत असमंजस में पड़ गई है…..
SACH KAHA HAI … AAJ KI NAARI ANEK HISSON MEIN BATEE HAI …… BAHOOT HI GAHRI RACHNA HAI …
aapne hundred percent sahi kaha…aaj ki ladki kaaphi asmanjas me hai…thanks for posting such nice poem………again thanks.
अच्छी बात ये है कि वो लड़की इन पाटों की परिभाषाओं के परे अपने लिए नई परिभाषाएं गढ़ रही है। पिसना बहुत हुआ, अब तो बस उड़ान भरनी है उसे।
सच तो ये है कि एक लड़की होना एक सौभाग्य की बात है। ज़रा सोचिए कि क्या कोई पुरुष हंसते मुस्कुराते इतना कुछ कर सकता है?
MUJHE LAGTA HAI LOG APKE VISHAY PAR KAM PAR APKE MADHYAM SE APNI BAAT RAKHNA CHAHTE KHER JO BHI HO,AAJKAL ABHIVYAKTI AUR SWANYSTUTI MAIN FARQ KARN THODA MUSKIL HAI.
MUJHE LAGTA HAI YEN PANKTIYAN 75% HI HAI AISA LAGTA HAI 25% KUCH CHOOTH SA GAYA HAI AUR VAH HAI SAPOORNTA,AAP SHAYAD APNE MANTAVYA SE AKHIR MAIN BHATAK GAYIN HAIN,
MERE VICHAR TO YAHI HAIN
शक्ति प्रजापति जी !
आप यहाँ तक आये और अपनी प्रितिक्रिया दी आभारी हूँ ..आपको ७५ % ही पसंद आया खेद है मुझे. अगली बार १०० % देने की कोशिश रहेगी.
रही बात अभिव्यक्ति की ..तो मेरे ख्याल से मन की बात व्यक्त करना ही अभिव्यक्ति है ..और लोग यहाँ यही करते हैं ..आपकी रचना पढ़ते हैं और जो भाव मन में उत्पन्न होते हैं उन्हें टिपण्णी के तौर पर लिख देते हैं. अबकी अपनी अपनी सोच और विचार होते हैं ..आपके विचारों का भी स्वागत है.
बहुत सुन्दर बलिदानों की मूर्त नारी की किस किस व्यथा से अवगत कराएंगी!!!
शिखा जी, नमस्कार, एक लड़की की भावनाओं को और हमारे समाज में लड़कियों के प्रति आये बदलाव को आपने बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है, धन्यवाद्!
Shikha jI,
Katu satya hai, naari har jagah pis rahi hai .. aur iskay liye hamara samaj hi doshi hai …
Surinder
SHIKHA JI SMAAJ KE BADLTE PRIVESH ME BETIYO SE JEEVAN BAHR DHEJ LIYA JAATA HE BS USKE ROOP OR SAWROOP BDAL JAATE HE..AAPKI RCHNAAYE HMESHA SNAAJ KO AAINA DIKHAATI HE..BESHAK BAHUT HI BDIYA KAAM KR RHI HE KLAM KE SHAARE..BDHAAIYA..
जो था दाइत्व वो तो रहा ही
बहुत कुछ जुड़ गया है उसपर
यही मुख्य बात है……दूभर हो गई ज़िन्दगी……
बहुत वैचारिक भावना को सबके आगे रखा……मेरा तो मन खुश हो गया
ये कोमल कली पिस गई है…
आज की लड़की – बहुत असमंजस में पड़ गई है…
bahut acche se aaj ki ladki ko chitrit kiya hai…!
i like it..
'आज की लड़की – बहुत असमंजस में पड़ गई है…'
sateek chitran.
bahut achchee kavita likhi hai
सुन्दर अभिव्यक्ति…वास्तव में असमंजस.
पंकज झा.
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