तुम्हारे उठने और 
मेरे गिरने के बीच 
बहुत कम फासला था. 
बहुत छोटी सी थी ये जमीं 
या तो तुम उठ सकते थे 
या मै ही, 
मैंने 
उठने दिया दिया था तुम्हे 
अपने कंधो का सहारा देकर 
उसमे झुक गए मेरे कंधे 
आहत हुआ अंतर्मन 
पर ह्रदय प्रफुल्लित था 
आत्मा की आवाज़ सुनकर. 
पर आज 
सबकुछ नागवार सा है, 
भूल गए हो तुम 
अपनी ज़मीन, 
मिल जो गया है तुम्हें आसमान 
इन कन्धों की अब नहीं जरुरत,
बढ़ जो गया है वजूद तुम्हारा. 
पर याद रखना मेरे हमदम 
जिस दिन 
जिन्दगी की सांझ आएगी न 
यही जमीन पास होगी 
इन्हीं कंधो पर तेरा हाथ होगा. 
और तब होउंगी मैं 
बस मैं तेरे पास ,तेरे साथ 
तब शायद होगा तुझे 
अहसास मेरे जज्बों का..