६ फरवरी …. . मेरे दिल के बहुत करीब है ये तारीख ,मेरे हीरो का जन्म दिवस…जी हाँ एक ऐसा इंसान जो जिन्दगी से भरपूर था ..जीवन के हर पल को पूरी तरह जीता था. एक मेहनतकश इंसान…. जिसके शब्दकोष में असंभव शब्द ही नहीं था,..व्यक्तित्व ऐसा रौबीला कि सामने वाला मुंह खोलते हुए भी एक बार सोचे ,आवाज़ ऐसी कि विरोधी सकते में आ जाएँ…जी हाँ ऐसा था मेरा हीरो — TDH (tall —dark और handsome -) “मेरे पापा “.
कहने को तो वो अब हमारे बीच नहीं हैं …जिन्दगी से हर पल प्यार करने वाले इस प्यारे इंसान को हमसे उनकी मधुमेह की बीमारी ने असमय छीन लिया..परन्तु मैं उन्हें आज भी उसी जिन्दादिली से याद करती हूँ जिस तरह वो जिया करते थे…मैं आज भी उनका जन्मदिन उसी उत्साह से मानती हूँ जैसे वो मनाया करते थे….बहुत शौक था उन्हें अपने घर लोगों को बुलाकर दावत करने का…न जाने कैसे कैसे बहाने ढूंढ लिया करते थे …और बुला लिया करते थे सब मेहमानों को….और जो ,न आ पाने का बहाना करे..उसे खुद अपने साधनों से बुलवा भेजते थे और फिर वापस घर भी छुड्वाया करते थे. मांसाहार तो क्या प्याज भी नहीं खाते थे.परन्तु लोगों को चिकेन बना कर खिलाते थे…खुद कभी बियर तक नहीं चखी जीवन में ,पर हमारे घर की छोटी सी बार हमेशा भरी रहती थी...थोड़े अजीब भी थे वो – कोई मांगे न मांगे पर वो सबकी मदद करने को तैयार…मुझे आज भी याद है मेरे high school का रिजल्ट आया था…और मेरी एक सहेली जो उनके ऑफिस के एक क्लर्क की बेटी थी…एक नंबर से इंग्लिश में फेल हो गई थी…तो हम भी थोड़े से दुखी थे उसके लिए क्योंकि बाकी विषयों में अच्छे नंबर थे उसके…बस फिर क्या था पापा ने राय दे डाली उन्हें कि कॉपी खुलवाओ १/२ no . की बात है बढ़ जायेगा…परन्तु वो महाशय कहने लगे अरे क्या साहब कौन इतना झंझट करेगा —लड़की है ,कौन तोप मारनी है अगले साल पास हो जाएगी…बस ये बर्दाश्त न हुआ पापा से और तभी अपना एक मातहत भेज सारी कार्यवाही करवाई और उसका नतीजा ये हुआ कि उसका १ no .बढ़ गया… ….मेरी सहेली का एक साल बच गया और उसकी आँखों में ख़ुशी और कृतज्ञता के धागे मुझे आज भी नजर आते हैं.ऊपर से इतने कड़क और अनुशासन पसंद कि तौबा है… एक बार ५ मिनट की देरी हो जाने की वजह से अपने से ३ रैंक बड़े अफसर को छोड़ कर चले गए दौरे पर…और वो अफसर भुनभुनाता रह गया, कर कुछ नहीं पाया क्योंकि पापा जैसा कर्तव्यनिष्ठ और काम का इंसान उन्हें दूसरा नहीं मिल सकता था.हम सब भी घर में उनके गुस्से से बहुत डरा करते थे ..वो घर में आते तो दस मिनट तक हम तीनो बहनों में से कोई उनके सामने नहीं जाता था कि पहले देख लें पापा का मूड कैसा है उस हिसाब से व्यवहार करेंगे…मूड ख़राब है तो चुपचाप अपनी पुस्तकें लेकर बैठ जाते थे.:).पर मन के इतने भावुक और संवेदनशील थे कि हिंदी फिल्म्स देखकर फूट फूट कर रो दिया करते थे , किसी की शादी में जाते थे तो विदाई तक रुकते ही नहीं थे .क्योंकि वो जानते थे कि खुद को काबू में नहीं रख पाएंगे , लड़के वाले की तरफ से होते तब भी, क्यों कि फूट फूट कर रोता उन्हें सब लोग देख लेंगे और उनकी रौबीली image का बंटाधार हो जायेगा.दूसरों की ख़ुशी में खुद बाबले हुए जाते थे .मतलब बिलकुल बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना टाइप.घूमने का शौक ऐसा कि साल में १ महीने के लिए जाना ही जाना है …एक बार तो हम अपने छमाही इम्तिहान में मेडिकल लगा कर गए थे घूमनेअब क्या क्या याद करूँ और क्या बिसराऊं ..उनसे जुड़ा हर व्यक्ति उनके पास रहकर अपने आप को सुरक्षित महसूस करता था ..ऐसा था मेरा हीरो…आज भी है ..यहीं मेरे आसपास.मैने ये कविता कुछ समय पहले लिखी थी उनके लिए आज इस मौके पर आपको समर्पित करती हूँ.
पापा तुम लौट आओ ना,
तुम बिन सूनी मेरी दुनिया,
तुम बिन सूना हर मंज़र,
तुम बिन सूना घर का आँगन,
तुम बिन तन्हा हर बंधन.
पापा तुम लौट आओ ना
याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे ,
जब मेरी पहली पूरी फूली थी,
और तुमने गद-गद हो
100 का नोट थमाया था.
और वो-जब पाठशाला से मैं
पहला इनाम लाई थी,
तुमने सब को
घूम -घूम दिखलाया था.
अपने सपनो के सुनहरे पंख ,
फिर से मुझे लगाओ ना.
पापा तुम लौट आओ ना.
इस जहन में अब तक हैं ताज़ा
तुम्हारे दौरे से लौटने के वो दिन,
जब रात भर हम
अधखुली अंखियों से सोया करते थे,
और हर गाड़ी की आवाज़ पर
खिड़की से झाँका करते थे.
घर में घुसते ही तुम्हारा
सूटकेस खुल जाता था,
और हमें तो जैसे अलादीन का
चिराग़ ही मिल जाता था.
वो अपने ख़ज़ाने का पिटारा
फिर से एक बार ले आओ ना.
पापा बस एक बार लौट आओ ना.
आज़ मेरी आँखों में भरी बूँदें,
तुम्हारी सुदृढ़ हथेली पर
गिरने को मचलती हैं,
आज़ मेरी मंज़िल की खोई राहें ,
तुम्हारे उंगली के इशारे कोतरसती हैं,
अपनी तक़रीर अपना फ़लसफ़ा
फिर से एक बार सुनाओ ना,
बस एक बार पापा! लौट आओ ना.
पापा की परी ने, उनकी गुड़िया ने किया कैसे अपने हीरो को याद. ये अंदाज़ है अनूठा. रुला गया. शिखा…आपके पापा को अपनी बिटिया पे हरदम नाज़ रहेगा. वो कहीं भी रहें, उनका आशीष आपके साथ ही है!
शिखा…काश अंकल जहाँ भी हों, इसे पढ़ रहें हों और देख रहें हों क़ि उनकी प्यारी बेटी ने कितने प्यार से याद किया है,उन्हें…..वे स्नेह बरसा रहें होंगे तुम पर और बहुत ही गर्व भी कर रहें होंगे…इतना प्यार भरा सुन्दर सा आलेख जो लिखा है…
कविता तक पहुँचते पहुँचते तो नज़रें धुंधला गयीं…पता है, तुम अपने मजाकिया लहजे में कहोगी,आँखें पोंछ लो और पढो….नहीं थोड़ी देर इन्हें भीगी ही रहने दो…आजकल बहुत कम भीगती हैं आँखें.
शिखा,
आज का संस्मरण सच में बहुत दिल को छू लेने वाला है…एक बेटी की यादों में पिता का होना…मन भीग भीग गया सोच कर और इस लेख को पढ़ कर…बेटियां बहुत ही संवेदनशील होती हैं…इसे पढ़ कर मैंने भी खुद को अपने पापा की यादों से जुड़ा हुआ महसूस किया….
और उसपर तुम्हारी प्यार भरी कविता….शब्द नहीं हैं उन पंक्तियों पर कहने को…..बस तुमको शुभकामनायें
आँखें बंद करो तो उन्हें अपने पास ही पाओगे. वो आज हमारे साथ नहीं पर कहीं और किसी के साथ तो होंगे, भले ही किसी भी रूप में……..
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
ऐसे सच्चे हीरो को शत शत नमन.. भावुक कर दिया आपकी कविता ने.. औ चित्र देखकर सहज ही लगता है कि कितने रौबीले व्यक्तित्व के धनी रहे होंगे वो…
उनके जन्मदिन पर शुभकानाएं उन्हें भी और आपको भी.
जय हिंद…. जय बुंदेलखंड…
पापा लौट आओ न ..
बहुत भावुक कर दिया आपने।
तुम बिन सूनी मेरी दुनिया,
तुम बिन सूना हर मंज़र,
तुम बिन सूना घर का आँगन,
तुम बिन तन्हा हर बंधन.
May God Bless You———
किसी शायर ने कहा है-
दर्द जब हद से गुजर जाता है।
तो यकीनन दवा बन जाता है।
पढ़ते वक्त ऐसा लगा कि अपने आप को आईने में देख रहा हूँ
बेटियां बहुत ही संवेदनशील होती हैं, इसमें कोई शक नहीं।
भावुक कर देने वाला संस्मरण
बी एस पाबला
कुछ भी कह लो –
पापा, पिताजी, बाबूजी, अब्बा.. कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक – प्यार, समर्पण और त्याग !
ये सारे संबोधन हमेशा ये अहसास कराते हैं कि हमारे सिर के ऊपर उनका स्नेहयुक्त हाथ है ….हमे किसी बात की फिक्र करने की कोई जरूरत नही है … हर फ़िक्र को हमारे पास आने से पहले पापा नाम की अभेद दीवार लांघनी होगी !
[मा के उपर तो सभी लिखते है, पिता का ऋण लोग अक्सर भूल जाते है.]
काश एसा हो जाता हम समय की सूईयों को पकड पाते और हमारे अपने हमसे दूर कभी ना जा पाते…..
शिखा तुम्हारा इस तरह अपने पापा को याद करना दिल को भीतर तक भिगो गया !
पापा की लाडली सदा खुश रहे …यही कामना है !
आँख नम हो आई..पिता जी की पुण्य याद को नमन!! आज जहाँ भी होंगी, बिटिया को देख खुश हो रहे होंगे. उनका आशीष तो सदैव महसूस करोगी ही.
शिखा जी, आदाब
सच में आपने सबको भावुक कर दिया
इतना प्यार करने वाली बेटी पाकर वो भी कितना नाज़ करते होंगे.
उनकी स्मृति को संजोये रखना, बस
Hi..
" PAPA TUM FIR LAUT AAO NA"
Ek beti ka marmsparshi aagrah..
Aalekh padhte hue man main kitni hi baatain aayin.. Parantu lekh ki samapti tak man ke sabhi shabd, aansu bankar aankhon ke kor geele kar gaye.. Main kinkartavya vimudh sa baitha rah gaya hun. Ek beti ke apne pita se pyaar ki parakashta kitni hogi jo apne Papa ji ko aaj tak..bula rahi hai.. ESHWAR har Papa ko aisi Beti de.. Par ek baat jaan len Shikha ji..
Duniya se jo door hain jaate..
Dil main jinda rahte hain..
Aakhon main aansu banakar ke..
Aise vakt hi bahte hain..
Apna khayal rakhiyega..
DEEPAK..
very very touching …you r a wonderful daughter
सच कहती हो …पिता बेटियों के लिए हीरो ही होते हैं ….किस तरह हमारा दर्द एक दूसरे से मिलता है …साथ चलता है …साथ पलता है …बस यादें साथ रहती हैं ….बेटी के श्रद्धा के आगे नतमस्तक होकर उस पिता को प्रणाम जो नहीं होकर भी हमेशा साथ होतेहैं ….!!
इक था बचपन, इक था बचपन,
बचपन के इक बाबूजी थे,
अच्छे-सच्चे बाबूजी थे,
दोनों का प्यारा सा बंधन
इक था बचपन, इक था बचपन…
शिखा जी, अंकल पर बड़े मर्मस्पर्शी उदगार…हो सके तो पुरानी फिल्म आशीर्वाद में लताजी का गाया ये गीत यू ट्यूब या नेट पर सुनना…
जय हिंद…
kyun rulaaane par tulee huee ho….aisa likh kar …
पापा! लौट आओ ना.nice
पापा को मेरी श्रद्धांजलि…. पापा का व्यक्तित्व जानकर बहुत अच्छा लगा…. और आपकी कविता पढ़ कर रोना आ गया…. ऐसे ही मैं अपनी माँ को याद करता हूँ…. अभी मेरे पिताजी की बरसी थी…. लेकिन मुझे पिताजी याद नहीं आ रहे थे…. मैं अपनी माँ को उस दिन याद कर के रो रहा था…. थी तो पिताजी की बरसी…. लेकिन मुझे लग रहा था कि मेरी माँ की बरसी है… शायद मैं माँ के जाने के बाद ….पिताजी में ही माँ खोजा करता था…. जो कि मुझे कहीं नहीं मिली…. पिताजी में…. बस रोना यह आ रहा था कि अब दोनों ही नहीं हैं…. अभी तो मैं वैसे भी बच्चा हूँ…. लोग पचास साठ के हैं लेकिन उनके माता-पिता अभी तक हैं…. और मैं इस उम्र में ही अनाथ हो गया…. यही सोच कर रोना आता है…. आपकी इस पोस्ट ने मुझे और सेंटी कर दिया …. आंसू निकल आये…..
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट….
भावुक, दिल को छु लेने वाले पल,
आज़ मेरी आँखों में भरी बूँदें,
तुम्हारी सुदृढ़ हथेली पर
गिरने को मचलती हैं,
आज़ मेरी मंज़िल की खोई राहें ,
तुम्हारे उंगली के इशारे को तरसती हैं,
ये पन्क्तिया बहुत ही सुन्दर है,
आँखें नम हो आयी बेटी पिता का यह शाश्वत प्रेम देख -लायिक फादर लायिक डाटर
ऐसे योग्य कर्तव्यनिष्ठ और मानवता से परिपूर्ण व्यक्तित्व को मेरा भी नमन
mata pita ka rishta hi to sabse anmol hota hai aur wahin se sanskaron ke beej padte hain to phir wo kaise humse door ho sakte hain wo to hamesha hi hamare aas paas hote hain hamre vyavhar aur hamare sanskaron mein ……..isliye wo hamesha aapke sath hi rahenge.
बहुत अच्छा किया जो आपने अपने पापा की याद में उनकी जिंदादिली को याद किया …. उनके अच्छे पलों को अपना रहबार बनाया ………. बहुत ही अच्छी लगी आपकी कविता भी ……….. ऐसे हीरो को मेरा नमन है ………..
शब्दों में बांध कर याद कर लिया सिर्फ तुमने ही याद नहीं किया. मेरे को भी याद दिला दिया. पापा का तो सिर्फ का ही रूप होता है.
तुमारी कृति ने सचमुच आँखें गीली कर दीं.
कहते हैं न,
कौन रोता है किसी और कि खातिर इ दोस्त सबको अपनी ही बात पर रोना आया.
मर्मस्पर्शी आलेख के लिए बधाई.
इस मर्मस्पर्शी संस्मरण के लिए बधाई स्वीकारें। मन को भिगो गयी आपकी भाव सरिता।
——–
ये इन्द्रधनुष होगा नाम तुम्हारे…
धरती पर ऐलियन का आक्रमण हो गया है।
Shikha,
bahut hi marmik aalekh,
tum 'Papa ki Pari' ho aur betiyon ke liye papa se bada koi hero hota bhi nahi ..
tumhaare hero ko mera bhi naman..
wo jahan bhi hai..apni beti par kitna grav kar rahe honge yah kalpana se pare hai..unhein khud par bhi bahut abhimaan hoga..
yah aisa sambandh hai…jiske lop hone ki koi sambhavna nahi..tumhaare hero tum mein ji rahe hain..aur wo tumhaare bacchon mein bhi jee rahe hain..isliye ..wo amar hai…
unhein meri bhi bhav bheeni shradhanjali..
नि:संदेह भावनाओं की कोई सीमा नहीं होती. वह हमारे भीतर पैठ बनाती हैं व जीवनपर्यंत संग रहती हैं. यह सुखद है. पुण्यात्मा को सादर नमन.
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shikha ji,
aapke papa ki yaad aur prem bhari shradhanjali ne mujhe bhi apne papa ki yaad dila diya. yun to mai chhoti thee jab mere papa gujar gaye, lekin kuchh baaten har waqt yaad rahti hai. pita na sirf hero hote apne bachchon ke balki jiwan mulya ki samajh bhi unse hin milti hai. bahut achha laga padhkar, yaaden bhi aur kavita bhi. shubhkamnayen.
पिता जी से किलकर अच्छा लगा।
सच ' पापा ' तो अविस्मरणीय ही होते हैं.
आज अगर तुम होते पापा, अपने गले लगा लेते.
हाथों के स्पर्श तुम्हारे, तन-मन नेह जगा देते,
" सब हैं फिर भी कमी तुम्हारी " मन उदास कर जाती है
खुशियों के हर क्षण में पापा , याद तुम्हारी आती है.
– विजय
पिता जी से मिलकर, अच्छा लगा।
कृपया पुरानी टिप्पणी मिटा दें।
पिता एक घने वृ्क्ष की तरह होते हैं जो स्वयं धुप मे खड़े रह कर अपने बच्चों को छाया देते हैं। आज हम उस छाया से वंचित है। उनका स्मरण करना ही कृतज्ञता व्यक्त करना है।
आभार
:'(
पिता का साया हर कोई चाहता है
बेहद भावुकता भरा संस्मरण
बहुत सुन्दर संस्मरण ! कविता भी प्यारी सी है। खासकर पहली पूरी फ़ूलने पर सौ रुपये वाली बात ! अपने हीरो के बारे में विस्तार से संस्मरण लिखिये कभी।
सुन्दर पोस्ट!
कुछ यादे रक्त में समायी होती हैं, जैसे-जैसे रक्त का प्रवाह होता है यादे सी सनसनाती रहती हैं। पिता को स्मरणांजलि देने का प्रकार बहुत अच्छा लगा। उन्हें हमारा भी नमन।
शिक्षा, तुम्हारा नाम उन्होने शिखा नही सचमुच शिक्षा ही रक्खा होगा, भले ही तुम्हे प्यारसे तुम्हे शिखा कहकर बुलाते होगे।कृतज्ञता, प्रेम और श्रद्धा इन तीनो शब्दों को तुमने समानार्थी बना दिया है।
अधखुली अंखियों से सोया करते थे,
और हर गाड़ी की आवाज़ पर
खिड़की से झाँका करते थे.
घर में घुसते ही तुम्हारा
सूटकेस खुल जाता था,
और हमें तो जैसे अलादीन का
चिराग़ ही मिल जाता था.
behtareen
bahut hi bhabuk aalekh, andar tak bhigo gaya
too good: 100/10 marks
Aapne to rula diya!
गद्य और पद्य दोनों का काव्य
देख कर निःशब्द हूँ ..
नमन ..
शिखा जी
बड़ा भावुक सस्मरण है। पर हां,बड़े हमेशा बच्चों के साथ रहते हैं।
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shikha ji aap ke papa aap ke hero hain hindi ke prtee aap ke lagav thata desh ke pratee prem taareefe kabil hai aap per naj hai jai hind
भाबुक कर देने वाला संस्मरण लिखा है आपने |
आपके पिता जहाँ भी होंगे आप पर नाज कर रहें होंगे |
शिखा जी ……आपके पिता जी और आपके बारें में कुछ भी कहे तो शब्द बहुत छोटे पड़ेंगे ……आपके स्वर्गीय पिता जी को मेरा सत् सत् प्रणाम .
शिखाजी,
पिता के विछोह की मारक पीड़ा खूब पहचानता हूँ. यही पीड़ा कतरा-कतरा आपकी कविता में बोलती है और यह पुकार अनंत तक गूँजकर कहीं कोई संवाद छोड़कर लौटती हैं मन के निभृत एकांत में. आपके मानसलोक में वैसे ही बिखरकर शांत हो जाती है, जैसे किसी स्वर-वाद्य का एक तार छेड़ दिया गया हो और उसकी गूँज क्रमशः मद्धिम होती हुयी शांत हो गई हो…. यह तार बार-बार छेड़ा जायेगा और इस गूँज की आवृत्ति यावज्जीवन होती रहेगी… यह ऐसी गूँज है, जिसे सुने बिना बेचैन रहती है हमारी पूरी सत्ता और सुन लूं तो बेकली और बढ़ जाती है… इन दोनों स्थितियों के बीच जीने को मनुष्य अभिशप्त है…
मेरे ब्लॉग पर आपका आना और टिपण्णी छोड़ जाना प्रीतिकर लगा ! अवकाश मिले तो मेरे ब्लॉग के पिछले पन्नों में पिताजी की अस्वस्थ दशा पर लिखी मेरी एक छोटी-सी कविता पढ़िए, शीर्षक है–'नव चेतना के छंद…'
साभिवादन–आनंद.
शिखा जी ऐसे हीरो कभी मरते नहीं सिर्फ देह त्यागते हैं और स्मृतियों में बस जाते हैं…नमन है ऐसे अनूठे ज़ज्बे वाले इंसान को…इश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.
नीरज
मैंने भी बहुत कम उम्र में माँ और पिताजी दोनों को खो दिया. ऐसी कोई भी रचना मैं बिना रोये नहीं पढ़ पाती. मेरे पिताजी भी मेरे हीरो थे, शायद सभी बेटियाँ अपने-अपने पिताओं से ऐसे ही जुड़ी होती हैं. बहुत मुश्किल से सँभाल रखा था खुद को, आपने रुला दिया. कुछ कह नहीं पा रही हूँ…
मौत कितने रंग बदले
ढ़ंग बदले
मौज बदले तरंग बदले
जब तलक जिंदा कलम है
हम तुम्हे मरने न देंगे
पिता -पुत्री दोनो भाग्यशाली हैं-पिता इसलिये की वे अब तक बेटी के जहन में इस शिद्दत से जिन्दा हैं ,बेटी इसलिये कि वह अपने पितृ प्रेम से सराबोर हुई पिता की याद को जीवित रखे है।आज के इस आपा-धापी के युग में ऐसी बेटी धन्य है-मैं अगले जनम में तुम्हारा पिता तो नहीं बन सकता क्योंकि तुम तो अपनेप्रिय पूज्य पिता की ही बेटी बनना चाहोगी पर तुम्हारा भाई बनकर आना चाहूंगा
प्रभु आपको सदैव सुखी रखे तन मन व सांसारिक हर कोण से इस दुआ के साथ सिमटता हूं
shikha jee aap sandesh padkar achcha laga aap nayee rochak jan karee ke liye hamse joore rahe kyonkee bhavisya vigyan ka hai jeevan kee ladayee me vigyan ka mahatv hai keyokee vigyan nahi hota to ham aur aap is tareeke se nahi milatee jaivigyan
पिता का स्मरण!! अत्यंत गलदश्रु भावुकता में ले आया.आपने पद्य और गद्य में उन्हें जिस तरह से हम सभी के लिए जिवंत करने की कोशिश की है, निश्चित ही लेखन प्रशंसनीय है.
helo shikha ji..
pehle bhi aapki kavita padh chuki hu..lekin aaj thoda aur kareeb pahuch gayi aapki rachna ke aur aapke papa ke…..aur apne papa k bhi…
shikha ji jaane wala lauta nahi karte…milna he to hame hi ab to jana hoga unke paas ….dekho to kaisi conditions hoti hai na life me kisi mukam par?…
bheegi aankho k sath……
आपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई …….
भावुकता के चरम शीर्ष पर है ये पोस्ट. मैं स्वयं एक पापा हूं , और बही अभी अपने पापा को हार्ट अटेक से ठीक होने के बाद और खुद के एक्सीडेंट के बाद यह पता चलता है, कि हम अपने बच्चों के लिये क्या हैं.
जीवन मृत्यु का चक्कर तो चलता रहता है.समय-असमय हम अपने प्रिये को खो देते हैं तो बरसों बाद भी उन्हें भूल नहीं पाते.वो हमारे दिल में, हमारी यादों में बने रहते हैं और अक्सर हम उन्हें याद भी करते हैं और अपने नजदीक भी पाते हैं.
बहुत समानता है हम दोनों में. मेरा नाम तरुशिखा , रूस से engineering की पढाई १९९०-९६ तक. Podfak वोल्गोग्राद से और ९२-९६ तक मॉस्को में रही. तीन बहने और पापा की लाड़ली. लिखने पढने का शौक और पेशा भी. रूस के ऐसे ही दिनों की गवाह और यादों में ऐसा ही रूस. कहाँ थी तुम, मॉस्को में मिलते तो मज़ा आता.
दिल को छूने वाली कविता
@tarushikha!अरे वाह वाकई ..इसका मतलब हम एक ही समय पर मोस्को में थे.अपना मेल आई डी भेजिए.
अपने पापा की लाडली हो हैना सिखा दी तुम्हारे पापा भी कितने अच्छे है काश तुम्हारे पापा मेरे पापा होते
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