चढ़ी चूल्हे पर फूली रोटी,
रूप पे अपने इतराए
पास रखी चपटी रोटी,
यूँ मंद मंद मुस्काये
हो ले फूल के कुप्पा बेशक,
चाहे जितना ले इतरा
पकड़ी तो आखिर तू भी,
चिमटे से ही जाए.
***
लड्डू हों या रिश्ते,
जो कम रखो मिठास(शक्कर)
तो फिर भी चल जायेंगे।
पर जो की नियत (घी) की कमी,
तो न बंध पायेंगे।
***
कढी हो या रिश्ता, जबतक पक ना जाए
उसे प्रेम की करछी से चलाते रहना जरूरी है.
वरना ज़रा सा उफ़ान आया नहीं कि
कढी की तरह प्रेम भी बह जाएगा
कढी आधी रह जाएगी और
बिखरा रिश्ता समेटा नहीं जाएगा.
***
हलवा हो या बच्चा
जो बनाना हो अच्छा
रखिये थोड़ा धैर्य और
पकाइये मन्दा मन्दा.
जो कम -ज्यादा किया घी
या तेज रक्खी आंच,
हलवा तो न बन पायेगा
बल्कि बच्चा और हाजमा,
दोनों बिगड़ जाएगा.
***
वो रिश्ता क्या जो पनीर सा हो,
दूध से पानी अलग हो तो बने ।
रिश्ता तो दाल चावल सा हो
जो पूर्ण हो जब एक दूजे में मिले।
***
आज हफ़्तों बाद आटे को हाथ लागाया
और आलू परांठा बनाया
तभी आटे की दो परतों के बीच से
आलू निकल कर चिल्लाया
बनाओ आटे को मेरे अनुकूल
तभी उसमें समा, उसे लजीज़ बनाऊंगा
नहीं तो ऐसे ही निकल भाग जाऊंगा
और तुम्हारे परांठे में अकेला बस
अकड़ा आटा ही नजर आयेगा
जिसे कोई नहीं खायेगा।
बात आटे आलू की है पर कुछ रिश्तों पर भी लागू होती है.
है कि नहीं ?
***
'व्यंजन' जिन्हे 'स्वर' मिले |
वाह!!! बहुत लजीज और फायदेमंद व्यंजन के साथ बातें भी।
बढ़िया चिंतन … 🙂
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
—
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-09-2014) को "अहसास–शब्दों की लडी में" (चर्चा मंच 1749) पर भी होगी।
—
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
शारदेय नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच कहा है … अच्छी नीयत का होना कितना जरूरी है ये बात हर शै समझाती है …
स्वाद के सीख लिए हर व्यंजन …
ये तो लगता है रसोई -पुराण की शुरुआत है – आँखों देखे नीति-वचन वहीं तो पकेंगे !
यूँ कलछी-चिमटे के साथ जाने कितने विचार गुन-बुन लेती हैं आप…अच्छा लगता है…|
क्या बात है, बेहद उम्दा प्रस्तुति ।
Sach kahein ….lazeez khaane ko dekh muh me paani aa gya…sunder prastuti..vyanjan ko swar de diya aaapne
रसोई में पकते खाने से …बनते-बिगड़ते रिश्ते …कमाल है …बहुत खूब
वाह, बहुत खूब
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