मन उलझा ऊन के गोले सा
कोई सिरा मिले तो सुलझाऊं.
दे जो राहत रूह की ठंडक को,
शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं.
कोई सिरा मिले तो सुलझाऊं.
दे जो राहत रूह की ठंडक को,
शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं.
बुनती हूँ चार सलाइयां जो
फिर धागा उलझ जाता है
सुलझाने में उस धागे को
ख़याल का फंदा उतर जाता है.
चढ़ाया फिर ख्याल सलाई पर
कुछ ढीला ढाला फिर बुना उसे
जब तक उसे ढाला रचना में
तब तक मन ही हट जाता है।
फिर उलट पलट कर मैं मन को
काबू में लाया करती हूँ
किसी तरह से बस मैं फिर
नन्हा इक स्वेटर बुन जाया करती हूँ
काबू में लाया करती हूँ
किसी तरह से बस मैं फिर
नन्हा इक स्वेटर बुन जाया करती हूँ
Nice Poem by Shikha Vershney
sundar….
…….मगर बुने जाते हैं 'खामोशी की सलाइयों' पर पर |
shabdo ke bunkar…………jo bhi buna, achchha hi lagta hai 🙂 padhna !!
मन उलझा ऊन के गोले सा
कोई सिरा मिले तो सुलझाऊं.
दे जो राहत रूह की ठंडक को,
शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं.
( Man ki uljhan ko shbdon ka sahara, very wel diosa)
बुनती हूँ चार सलाइयां जो
फिर धागा उलझ जाता है
सुलझाने में उस धागे को
ख़याल का फंदा उतर जाता है.
(Zehni kashmkash ko bakhubi utara hai, Bahut Khub,)
चढ़ाया फिर ख्याल सलाई पर
कुछ ढीला ढाला फिर बुना उसे
जब तक उसे ढाला रचना में
तब तक मन ही हट जाता है।
(Kuchh bhi adhure man se nahi karna chahiye, bas ek hi arth,)
फिर उलट पलट कर मैं मन को
काबू में लाया करती हूँ
किसी तरह से बस मैं फिर
नन्हा इक स्वेटर बुन जाया करती हूँ
(nd of the story, kaise bhi karke pryas apne parinam tak pahunch jata hai,)
१.वे लिख रहे हैं कवितायें
जैसे जाड़े की गुनगुनी दोपहर में
गोल घेरे में बैठी औरतें
बिनती जाती हैं स्वेटर
आपस में गपियाती हुई
तीन फ़ंदा नीचे, चार फ़ंदा ऊपर*
उतार देती हैं एक पल्ला
दोपहर खतम होते-होते
हंसते,बतियाते,गपियाते हुये।
औरतें अब घेरे में नहीं बैठती,
आपस में बतियाती नहीं,
हंसती,गपियाती नहीं
स्वेटर बिनना तो कब का छोड़ चुकी हैं!
लेकिन वे कवितायें उसी तरह लिखते आ रहे हैं वर्षों से
जैसे औरतें गपियाती हुई स्वेटर बिनतीं थीं
और किसी तरीके से कविता सधती नहीं उनसे।
http://hindini.com/fursatiya/archives/1619
ह्म्म्म्म्म्म………….. अब जब बुनो, मुकम्मल बुनना 🙂
🙂 ji ,
http://shikhakriti.blogspot.co.uk/2010/08/blog-post_13.html
बहुत सुन्दर. जीवन भी स्वेटर बुनने जैसा ही तो है
i love shikha "the poet "
अनु
सुंदर स्वेटर
बढ़िया कविता
स्वेटर बुन जाये और जाड़े से पहले तो , अंत भला तो सब भला कहते है .
ख़यालों के फंदे सलाइयों पर चढ़ते उतरते ऐसे ही रचना रूपी स्वेटर बनाते रहें ….. भले ही मन उलझा हो कहीं तो सिरा मिल ही जाएगा … सुंदर तरीके से मन का निरूपण किया है ।
kya baat bahut achi rachna likhte rahe
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
—
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (17-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा – 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
—
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
—
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं"
वाह!
धागे सुलझते , उलझते बुन ही जाता है एक स्वेटर
जैसे कि " दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है "
मन उलझा ऊन के गोले सा
कोई सिरा मिले तो सुलझाऊं.
दे जो राहत रूह की ठंडक को,
शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं.
जीवन का ताना बाना और सुंदर खयाल …..!!
हमारी तो लछियाँ ही नहीं सुलझ रही आपका कम से कम स्वेटर तो बुना 🙂
चढ़ाया फिर ख्याल सलाई पर
कुछ ढीला ढाला फिर बुना उसे
जब तक उसे ढाला रचना में
तब तक मन ही हट जाता है ..
बहुत खूब … ऐसे ही ख्यालों की बुनाई से रचना का सृजन हो जाता है … जीवन के ताने बाने को इन सलाइयों के माध्यम से बुन लिया आपने तो …
बहुत खूब !
मन के धागों को सुलझा लिया ,
तो समझो सारा जहां पा लिया !
वाह, एक एक शब्द सही प्रकार से निकलता और मन को सुलझाता।
कल 18/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
शब्दों के फंदे
भावों की सलाई
और एहसासों का नमूना – अथक परिश्रम
स्वेटर की गर्माहट अनोखी है !
कभी शीतल
कभी गुनगुनी … मैं भी फंदे डाल लेती हूँ –
ज़िन्दगी के कुछ नमूने तुम सिखाना
अनुभवों के कुछ सलीके मैं बताउंगी
कि उतरे फंदों को आसानी से कैसे उठाते हैं
वाह …Rashmi di is back 🙂
वाह, खूबसूरत,लाजवाब रचना.
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : लुंगगोम : रहस्यमयी तिब्बती साधना
सन्नाटे की सलाईयाँ और मौन ख्यालों की बुनावट -लगे रहिये!
बहुत खूब उधेड़ बुन मन की स्वेटर की मार्फ़त।
उधेड़-बुन भी स्वेटर से ही बना है, पहले उधेड़ों और फिर बुनो। अच्छी रचना।
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना….. भावो का सुन्दर समायोजन……
ख्यालों की इसी उधेड़बुन के बाद जो नन्हा सा स्वेटर बन गया है वह कितना खूबसूरत बन पड़ा है ज़रा यह भी तो देखिये ! आप इसी तरह सुंदर-सुंदर स्वेटर बुनती रहिये और हम उसकी नरम मुलायम गर्मी के अहसास से खुश होते रहें और क्या चाहिये ! बहुत खूबसूरत रचना शिखा जी ! बधाई !
एक उधेड़बुन से इतना खूबसूरत शब्दों का जाल.. फंदे.. ओफ्फोह स्वेटर बुना है आपने.. भावनाओं की गर्माहट महसूस हो रही है.. 🙂
मन की उधेड़बुन का नाम ही जीवन है बहुत सुन्दर रचना
जाड़े का स्वागत करती सुन्दर रचना।
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (2) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
वाह !
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