आलेख

अमूमन कहा जाता है कि दोस्त ऐसे रिश्तेदार होते हैं जिन्हें हम खुद अपने लिए चुनते हैं. परन्तु मुझे लगता है कि दोस्त भी हमें किस्मत से ही मिलते हैं.क्योंकि मनुष्य तो गलतियों का पुतला है इस चुनाव में भी गलती कर सकता है खासकर जब बात अच्छे और सच्चे दोस्तों की हो.तो ऐसे दोस्त किस्मत वालों को ही नसीब होते…

लन्दन में ओलम्पिक जोश अपने चरम पर है.27 जुलाई को उद्घाटन समारोह है.परन्तु अफ़सोस यह कि हमें उद्घाटन  की तो क्या पूरे खेलों में से किसी एक की भी टिकट नहीं मिली है. और हमें ही नहीं, हमारी पहुँच में जितने भी लोग हैं किसी को भी नहीं मिली है.ऐसे में हमने सोचा कि क्यों फिर ये छुट्टियां बर्बाद की जाएँ, जब…

बस काफी भरी हुई है .तभी एक जोड़ा एक बड़ी सी प्राम लेकर बस में चढ़ता है.लड़की के हाथ में एक बड़ा बेबी बैग है और उसके साथ के लड़की नुमा लड़के ने वह महँगी प्राम थामी हुई है.दोनो  प्राम को सही जगह पर टिका कर बैठ जाते हैं. प्राम में एक बच्चा सोया हुआ है खूबसूरत कम्बल से लगभग पूरा…

पुलिस कहीं भी हो हमेशा ही डरावनी सी होती है .इस नाम से ही दहशत का सा एहसास होता है .पुलिस नाम के साथ ही सख्त, क्रूर, डरावना, भ्रष्ट, ताक़तवर, असंवेदनशील  और भी ना जाने कितनी ही ऐसी उपमाएं स्वंम ही दिमाग में चक्कर लगाने लगती हैं. यानि हाथ में डंडा लिए और कमर में पिस्तोल खोंचे कोई पुलिस वाला…

 मैं मानती हूँ कि लिखा दिमाग से कम और दिल से अधिक जाता है, क्योंकि हर लिखने वाला खास होता है, क्योंकि लिखना हर किसी के बस की बात नहीं होती और क्योंकि हर एक लिखने वाले के लिए पढने वाला जरुरी होता है और जिसे ये मिल जाये तो “अंधे को क्या चाहिए  दो आँखें” उसे जैसे सबकुछ मिल जाता है.और इसीलिए…

हमारे समाज को रोने की और रोते रहने की आदत पढ़ गई है . हम उसकी बुराइयों को लेकर सिर्फ बातें करना जानते हैं, उनके लिए हर दूसरे इंसान पर उंगली उठा सकते हैं परन्तु उसे सुधारने की कोशिश भी करना नहीं चाहते .और यदि कोई एक कदम उठाये भी तो हम पिल पड़ते हैं लाठी बल्लम लेकर उसके पीछे…

यूँ सुना था तथाकथित अमीर और विकसित देशों में सड़कों पर जानवर नहीं घूमते. उनके लिए अलग दुनिया है. बच्चों को गाय, बकरी, सूअर जैसे पालतू जानवर दिखाने के लिए भी चिड़िया घर ले जाना पड़ता है. और जो वहां ना जा पायें उन्हें शायद पूरी जिन्दगी वे देखने को ना मिले.ये तो हमारा ही देश है जहाँ न  चाहते हुए भी हर…

बचपन से राजा महाराजाओं ,राजघरानो के किस्से सुनते आये हैं.उनके वैभव, राजसी ठाट बाट, जो कभी भी किसी भी हालत में कम नहीं होते थे. बेशक जनता के घर खाली हो जाएँ पर राजा का खजाना कभी खाली नहीं होता था.. राज परिवार में से किसी की  भी सवारी नगर से निकलती तो सड़क के दोनों और जनता उमड़ पड़ती.बच्चे ,बूढ़े, स्त्रियाँ सभी करबद्ध खड़े…

“आज मैंने घर में मंचूरियन बनाया बहुत अच्छा बना है.सबने बहुत तारीफ़ की।” “कल हम घूमने जा रहे हैं, बहुत दिनों बाद.बहुत मजा आएगा।” “किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है, आ जा पूरी छोलों के साथ प्याज भी है।” …….(सभार राजीव तनेजा ) वाह वाह वाह… क्या लगता है आपको  सहेलियां बात कर रही हैं ? या कोई…

लन्दन के एक मंदिर में त्यौहारों पर लगती लम्बी भीड़ त्यौहार पर मंदिर में लगती लम्बी भीड़, रंग बिरंगे कपड़े, बाजारों में, स्कूल के कार्यक्रमों में बजते हिंदी फ़िल्मी गीत,बसों पर लगे हिंदी फिल्म और सीरियलों के पोस्टर.और कोने कोने से आती देसी मसालों  की सुगंध .क्या लगता है आपको किसी भारतीय शहर की बात हो रही है.है ना? जी नहीं यहाँ भारत के किसी शहर की नहीं…