गद्य

यूँ सुना था तथाकथित अमीर और विकसित देशों में सड़कों पर जानवर नहीं घूमते. उनके लिए अलग दुनिया है. बच्चों को गाय, बकरी, सूअर जैसे पालतू जानवर दिखाने के लिए भी चिड़िया घर ले जाना पड़ता है. और जो वहां ना जा पायें उन्हें शायद पूरी जिन्दगी वे देखने को ना मिले.ये तो हमारा ही देश है जहाँ न  चाहते हुए भी हर…

बचपन से राजा महाराजाओं ,राजघरानो के किस्से सुनते आये हैं.उनके वैभव, राजसी ठाट बाट, जो कभी भी किसी भी हालत में कम नहीं होते थे. बेशक जनता के घर खाली हो जाएँ पर राजा का खजाना कभी खाली नहीं होता था.. राज परिवार में से किसी की  भी सवारी नगर से निकलती तो सड़क के दोनों और जनता उमड़ पड़ती.बच्चे ,बूढ़े, स्त्रियाँ सभी करबद्ध खड़े…

“आज मैंने घर में मंचूरियन बनाया बहुत अच्छा बना है.सबने बहुत तारीफ़ की।” “कल हम घूमने जा रहे हैं, बहुत दिनों बाद.बहुत मजा आएगा।” “किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है, आ जा पूरी छोलों के साथ प्याज भी है।” …….(सभार राजीव तनेजा ) वाह वाह वाह… क्या लगता है आपको  सहेलियां बात कर रही हैं ? या कोई…

लन्दन के एक मंदिर में त्यौहारों पर लगती लम्बी भीड़ त्यौहार पर मंदिर में लगती लम्बी भीड़, रंग बिरंगे कपड़े, बाजारों में, स्कूल के कार्यक्रमों में बजते हिंदी फ़िल्मी गीत,बसों पर लगे हिंदी फिल्म और सीरियलों के पोस्टर.और कोने कोने से आती देसी मसालों  की सुगंध .क्या लगता है आपको किसी भारतीय शहर की बात हो रही है.है ना? जी नहीं यहाँ भारत के किसी शहर की नहीं…

 नवभारत में प्रकाशित  क्या पुरुष प्रधान समाज में, पुरुषों के साथ काम करने के लिए,उनसे मित्रवत  सम्बन्ध बनाने के लिए स्त्री का पुरुष बन जाना आवश्यक है ?.आखिर क्यों यदि एक स्त्री स्त्रियोचित व्यवहार करे तो उसे कमजोर, ढोंगी या नाटकीय करार दे दिया जाता है और यही  पुरुषों की तरह व्यवहार करे तो बोल्ड, बिंदास और आधुनिक या फिर चरित्र हीन .यूँ मैं कोई नारी वादी…

  अभी कुछ दिन पहले करण समस्तीपुर की एक पोस्ट पढ़ी कि कैसे उन्होंने अपनी सद्वाणी  से एक दुर्लभ सा लगने वाला कार्य करा लिया जिसे उन्होंने गाँधी गिरी कहा.और तभी से मेरे दिमाग में यह बात घूम रही है कि भाषा और शब्द कितनी अहमियत रखते हैं हमारी जिन्दगी में. यूँ कबीर भी कह गए हैं कि- ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा…

फरवरी के महीने में ठंडी हवाएं, अपने साथ यादों के झोकें भी इतनी तीव्रता से लेकर आती हैं कि शरीर में घुसकर हड्डियों को चीरती सी लगती हैं.फिर वही यादों के झोंके गर्म लिहाफ बनकर ढांप लेते हैं दिल को, और सुकून सा पा जाती रूह. कुछ  मीठे पलों की गर्माहट इस कदर ओढ़ लेता है मन कि पूरा साल…

अभी तक नस्लवाद का इल्जाम पश्चिमी विकसित देशों पर ही लगता रहा है.आये दिन ही नस्लवादी हमलों के शिकार होने वालों की खबरे आती रहती हैं. कभी ऑस्ट्रेलिया से, तो कभी ब्रिटेन से तो कभी अमेरिका से. पर क्या कभी आपने सुना या सोचा कि अंग्रेज़ भी कभी इस नस्लवाद का शिकार हो सकते हैं.कुछ अजीब लगता है ना ? पर आजकल…

फ़्रांस की राजधानी पेरिस – द सिटी ऑफ़ लव, भव्यता, संम्पन्नता, ग्लेमर का पथप्रदर्शक.बाकी दुनिया से अलग एक शहर, जिसकी चकाचौंध के आगे सब कुछ फीका लगता है. लन्दन आने वाले हर व्यक्ति के  मन में सबसे पहले इस फैशन  की इस राजधानी को देख लेने की इच्छा बलबती होने लगती है. लन्दन से कुल  ३४३ km  ( सड़क से ) दूर पेरिस तक जाने…

स्मृतियाँ …बहुत जिद्दी किस्म की होती हैं..कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़तीं जितना इनसे दूर जाने की कोशिश करो उतना ही कुरेदती हैं और व्याकुल करती हैं अभिव्यक्त करने के लिए. फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो.घर में बच्चों को कहानी के तौर पर  सुनाने के रूप में या ,किसी संगी साथी से बाटने के रूप में.कहीं किसी डायरी…