रात बहुत गहरी है
फलक पर सिमटे तारे हैं
एक बूढा सा चाँद भी
अपनी बची खुची चाँदनी,
ओढ़े खडा है.
आस्माँ ने मुझे
दिया है न्योता,
सितारों जड़ी एक चादर
बुनने का.
इसके एवज में उसने
किया है वादा
शफक पर थोड़ी सी
जगह देने का.
पर मुझे तो पता है
शफ़क़ सिर्फ एक धोखा है
ये चाल है निगोड़े आस्माँ की
मुझे छलने जो चला है
स्वार्थी है बहुत वो
पूरा जग घेरे पड़ा है
पर हमने भी अब है ठानी
उससे भिड़ के दिखाना है
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.
आपके हिस्से का आकाश है उज्ज्वल
कविता है मनमोहक और भावविह्वल
बहुत सुन्दर शिखा…..
यही था न एक fb status….???
loved it!!!
anu
हाँ तुमने ही कहा था, पूरी कविता गढो 🙂
अपने हिस्से का आकाश
वाह 🙂
EK TATVA KO KHUD ME SMETNE kA PERYAS>>>>AKAS TO NILA DIKHTA HAI PER HATA NAHI>>>……..HME SAT RAGO KE SMUH ME EK RANG KA REFLECTION HI DIKHTA HAI>……….
वाह , कविता के निहितार्थ भाव प्रेरक और उत्साह बढ़ने वाले है . धरती अपनी है अब फलक भी . बहुत सुन्दर लिखा है .
सबके हिस्से का आकाश हो, वह आकाश एक हो..
शानदार
क्या बात है….:) 🙂 🙂 wonderful!!
me in spam !!!
अदम्य साहस से भरी सुंदर रचना …जीवन में कभी न हारने का संदेश दे रही है ….
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति शिखा जी …!!
काश । हो अपना एक आकाश ……।
खूबसूरत ख़्वाब और रचना तो और भी खूबसूरत ।
इस स्पैम ने बड़ा दुःख दीन्हा :)..निकाल लाये हैं बाहर .
waah!!!
सुंदर पंक्तियाँ…..यह चाह बनी रहे ….
बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति…अच्छा किया जो आपने इन पंक्तियों को पूरा गढ़ दिया। 🙂
"पर मुझे तो पता है…शफ़क़ सिर्फ एक धोखा है…ये चाल है निगोड़े आस्माँ की"
सिर्फ पता होना काफी नहीं … इसको याद भी रखना !
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.
बहुत सुन्दर!
http://voice-brijesh.blogspot.com
दृढ संकल्पों ,हौसलों ,इरादों की बेहतरीन रचना .भाव और अर्थ के समेकित अभिव्यक्ति .
शफ़क़ सिर्फ एक धोखा है
ये चाल है निगोड़े आस्माँ की
मुझे छलने जो चला है
स्वार्थी है बहुत वो
पूरा जग घेरे पड़ा है
पर हमने भी अब है ठानी
उससे भिड़ के दिखाना है
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.
ram ram bhai
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सोमवार, 11 फरवरी 2013
अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीश
http://veerubhai1947.blogspot.in/
सारे भाव कविता में मढ़ से गए।
लय भी एक ही रवानगी में मिली …
शिकायतों में अधिकार सहज मिश्रित …
अपने हिस्से का आकाश मिल जाए
बिछाने को, एक कवितामई इच्छा …!
भले ही धोखा हो,आसमान का थोड़ा-सा हिस्सा अपने साथ रखना ज़रूरी है!
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ….. आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
bahut sunder rachna
वाह ! अपने हिस्से का आसमान हमको यहीं बिछाना है .
यही अपने हिस्से का आसमान मेरी किसी कहानी में भी आया है !
बहुत ही सुन्दर भाव लिए सुंदर कविता.
वाह ….
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.kya umdaa khyal hai….wah.
अच्छी रचना.
कभी http://www.kahekabeer.blogspot.in पर भी आएं
🙂
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.
सुन्दर आह्वान
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है….
आसमां को खुद ही हिलाना होगा …आकाश से शुरुआत हो कर अपना सूरज भी खुद ही बुनना पढता है … जीवन अपने आप नहीं देता सबकुछ …
अपने बलबूते पर कुछ कर गुज़रने का हौसला देती सुंदर अभिव्यक्ति …. शफक जैसी चमक देने का वादा निश्चय ही झूठा निकलता …. अब अपने आसमां में अपनी ख़्वाहिशों के तारों से सुंदर सी चादर बुन लेना 🙂
वाह, बहुत स्पष्ट चुनौती है आस्माँ को, आपको अपना आकाश बिछाने का मौका अवश्य मय्यसर होगा, आखिर हिम्मत और साहस भी तो काम आयेगा. बहुत उम्दा रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
शिखा जी!
आप कविताएं भी ग़ज़ब लिखती हैं…
शुभकामनाएं…
बहुत उम्दा , कमाल की रचना ,,,,शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST… नवगीत,
'स्व' को पहचान 'स्वत्व' के प्राप्य हेतु सन्नद्ध ह्रदय का उद्गार है यह सुन्दर कविता. " रात बहुत गहरी है / फलक पर सिमटे तारे हैं " संघर्ष की स्थितियां हैं हर कदम और उनसे जूझना भी आसान नहीं. फिर भी चुनौती को स्वीकारना ही होगा, अंजाम चाहे जो हो. तलाश लेना ही होगा अपने हिस्से का आकाश विडम्बनाओं के असीम अंतराल में: " पर हमने भी अब है ठानी / उससे भिड़ के दिखाना है / कह दो, उस आस्मां से / जरा सा खिसक जाए / अपने हिस्से का आकाश,/ हमें भी बिछाना है." संकल्प शंक्ति से उर्जस्वित सहज प्रभावी कृति !
अपने हिस्से का आकाश !
वाह !
बुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सून आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
पर मुझे तो पता है
शफ़क़ सिर्फ एक धोखा है
ये चाल है निगोड़े आस्माँ की
मुझे छलने जो चला है
स्वार्थी है बहुत वो
पूरा जग घेरे पड़ा है
पर हमने भी अब है ठानी
उससे भिड़ के दिखाना है
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.
गजब की पैनी निगाह , पारखी नज़र के संग हौसला
🙂
बहुत खूब!
"आकाश में जगह ही सही"
बहुत ही सुन्दर ढंग से
प्रकृति के माध्यम से
मानव स्वभाव को भी
चित्रित किया गया है …
बधाई ….
sunder bhav bhari kavita badhai
rachana
सुंदर रचना
अपने हिस्से का आकाश कब्जे में कर के रजिस्ट्री करा लें। क्या पता बजट के बाद रजिस्ट्रेशन फ़ीस/सर्कल रेट बढ़ जाये। 🙂
पर हमने भी अब है ठानी
उससे भिड़ के दिखाना है
कह दो, उस आस्मां से
जरा सा खिसक जाए
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है.—–adbhut
सारी कशमकश तो बस इस अपने हिस्से के आसमान की ही है …… सस्नेह !
आस्माँ ने मुझे
दिया है न्योता,
सितारों जड़ी एक चादर
बुनने का.
इसके एवज में उसने
किया है वादा
शफक पर थोड़ी सी
जगह देने का…
वाह ! सुंदर !
शिखा जी
दो बार पढ़ने पर कविता कुछ समझ आ गई…
🙂
अपने हिस्से का आकाश,
हमें भी बिछाना है
हर किसी को तो अपना आकाश बिछाने का ख़याल नहीं आता …
संपूर्ण बसंत ऋतु सहित
सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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