इंसान अगर स्वभाववश कोमल ह्रदय हो तो वह आदतन ऊपर से एक कठोर कवच पहन लेता है। कि उसके नरम और विनम्र स्वभाव का कोई नाजायज फायदा न उठा सके। ज्यादातर आजकल की दुनिया में कुछ ऐसा ही देखा जाता है. विनम्रता को लोग कमजोरी समझ लिया करते हैं। जैसे अगर कोई विनम्रता और सरलता से अपनी गलतियां या कमजोरियां स्वीकार ले तो हर कोई उसकी कमियाँ निकालने पर आमदा हो जाता है क्योंकि दूसरों की कमियाँ गिनाने में ही उन्हें अपनी विद्वता का अहसास होता है शायद, परन्तु वहीँ एक कठोर स्वभाव वाले से कोई भी उसकी कमियों की चर्चा करने की हिम्मत कम ही करता है। अत: बहुत मुमकिन है कि इसी वजह से अन्दर से कोमल इंसान बाहरी रूप से बेहद कड़क नजर आते हैं और ये कठोरता का आवरण ओढ़ लेना शायद उनकी मजबूरी ही होती है।
वो भी कुछ ऐसे ही थे। मोम सा दिल और पत्थर सी जुबान जो अच्छे – अच्छों की खड़े खड़े घिघ्घी बंधवा दे।
“एक बेटा हो जाता” का सहानुभूति परक राग अलापने वाले शुभचिंतकों को, बेटे वालों के ऐसे – ऐसे उदाहरण देते कि वे सकपकाते से “मैं तो यूँ ही, मैं तो यूँ ” कहते रह जाते और उनकी वो खिसयानी शक्ल पर बारह बजते देख हम बहनों के होंठ सवा नौ की मुद्रा में फ़ैल जाते।
अगर कोई कहता “बहुत सिर चढ़ा रखा है बेटियों को, बाद में इन्हें ही परेशानी होगी”, तो टांग पर टांग रख, बड़े प्यार और इत्मीनान से कहते “दुनिया में किसी आदमी की औकात नहीं जो बेटियों को कुछ दे या उनके लिए कुछ करे बेटियाँ अपना ही लेकर आती हैं और अपना ही लेकर जाती हैं।
हमें नहीं याद कि कभी, किसी भी चीज़ के लिए उन्होंने हमें मना किया हो। पर हाँ हमारी जो डिमांड उनकी क्षमता से बाहर होती तो असमर्थता जाहिर करना तो उनके स्वभाव के विपरीत था, अत:तुनक कर कहते ..”हमने क्या जिन्दगी भर का ठेका लिया हुआ है ? कुछ फरमाइशें शादी के बाद के लिए भी रहनी चाहिए नहीं तो पति नाम का आदमी क्या घास खोदेगा”। पर उनके दिमाग पर वह फरमाइश फीड हो जाया करती और जब तक वह उसे पूरी न कर दिया करते चैन नहीं लेते थे।
अजीब विरोधाभास लिए व्यक्तित्व था वो। परंपरागत रस्मों – रिवाजों को मानने के बावजूद अन्दर से एक बेहद सुलझा और मॉडर्न इंसान, जिसके लिए अपने परिवार की खुशियों से बढ़कर कोई धर्म, कोई रीत -रिवाज नहीं हो सकता था। भारत के सभी तीर्थस्थानों के कई बार दर्शन करने वाला और दुनिया भर के सामाजिक रिवाजों को मानने वाला वह शख्स , जब बात इंसानी रिश्तों की आती तो किसी भी परम्परा , किसी भी कर्मकांड को एक पल में ठोकर मार देता।
उनके लिए परम्पराएँ और रिवाज हम इंसानों द्वारा इंसानियत के हित के लिए बनाए गए नियम हैं। परन्तु यदि उनसे इंसानी भावनाएं ही आहत हों तो उनके कोई मायने नहीं। परम्पराएं खुद हमने ही बनाई हैं और इंसानी हित में इन्हें बदलने का हक भी हम रखते हैं।
शायद यही कारण रहा कि आज भी रस्मों , परम्पराओं और धर्म के नाम पर ढकोसलों को हम बहने सिरे से नकार देती हैं। जब तक उनका कोई अर्थपूर्ण लॉजिक हमें न दिया जाये। आज जब जघन्य अपराधों के लिए लोगों के परम्परा , संस्कृति, लिबास जैसे बहाने सुनती हूँ तो समझ नहीं पाती कि आखिर अपराधिक मनोदशा तो अपराधी की अपनी सोच में होती है उसका भला किसी दुसरे के रहन सहन और रंग ढंग से क्या लेना देना हो सकता है। और अगर ऐसा है तो वह सिर्फ बहाना है। अपना अपराध छिपाने का , अपनी कमजोरियों को ढांपने का।
एक ऐसा इंसान सकारात्मकता जिसकी रग रग में बसती थी, जिसकी अर्धांगिनी उसके कहने पर दिन को रात और रात को दिन निश्चिन्त होकर कह दिया करती थी,वह पत्नी आज बेशक अपने रात- दिन खुद निर्धारित करने पर मजबूर है पर तस्वीर में बैठा वह इंसान आज भी हर बात पर जैसे मार्गदर्शन करता दिखता है।
और मेरे लिए तो वह तस्वीर भी अलादीन का चिराग है,मेरी आँखें कितनी भी गीली क्यों न हो, मन कितना भी भरा क्यों न हो उस तस्वीर पर नजर पड़ते ही जैसे सारी समस्याएं उड़न छू हो जाती हैं और होठों पर स्वत: ही मुस्कराहट आ जाती है।
कुछ लोग कभी ,कहीं नहीं जाते, जा ही नहीं सकते. वे होते हैं हर दम हर घड़ी अपनों के ही आस पास।
कुछ लोग कभी ,कहीं नहीं जाते, जा ही नहीं सकते. वे होते हैं हर दम हर घड़ी अपनों के ही आस पास।
सर्दियों के इस मौसम में उन्हें अलीगढ की नुमाइश में मिलने वाला हलवा – परांठा बेहद पसंद था। वो थे भी एकदम हलवा – परांठा से – हलवे से नरम और परांठे से कड़क।
तो आज केक की जगह उन्हें यह हलवा -परांठा ही समर्पित।
हैप्पी बर्थडे पापा। आई नो यू एन्जॉइंग इट . :):).
Happy Birthday … Uncle … :')
bhawbhini yaden……
आ लौट के आजा मेरे मीत ,तुझे मेरे गीत बुलाते हैं ……याद न जाए बीते दिनों की ……याद किया दिल ने कहाँ हो तुम …….,तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे …
किस्सा -कथा शैली में बेहतरीन संस्मरण .किस्से बयानी कोई पुरुषोत्तम पांडे जी से सीखे .शुक्रिया मेहरबान कद्रदान टिपियाने का ,हौसला दिलाने का .
एक बेहद ज़िंदा दिल इंसान से आपने साक्षात्कार ही करवा दिया .और अलीगढ -बुलंदशहर की नुकाइश मेराठ की नौचंदी का हलुवा पराठा याद दिलवा दिया .बेहद सशक्त रूपकात्मक अभिव्यक्ति
.दिल खुश हुआ पढ़के .
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पुरुषोत्तम पांडे जी ..कौन ????
कठोरता भी शायद यहाँ से भावुक होकर निकले, अपन तो क्या चीज़ है. इंसानियत के रिश्ते को मानने वाले बाहर से जैसे भी हो अन्दर से मोमदिल ही पाए जाते है . आत्मीयता और इंसानियत से भरे इन्सान विरले ही पाए जाते है अब. धर्मनिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा का अनुपम संगम. उनकी याद को प्रणाम और जन्म दिन की बधाई .
happy brday
पिता बेटियों के लिये आकाश होता है-सामने हो, चाहे न हो छाये रहता है !
उन्हें प्रणा.,
आपके पापा जी के बारे में पहले भी के पोस्ट में पढ़ चुका हूं। उनके जन्मदिन पर उनको याद करने का अच्छा अंदाज है। उनकी याद को नमन!
आपके पिता श्री को जन्मदिन की हार्दिक बधाई शिखा ! भावपूर्ण संस्मरण।
आपके स्नेह को जो आज भी उतना ही पा रहे हैं और
पाते ही रहेंगे, अपने लिए ढेर सा स्नेह आपके दिलों में,
जीवन में जो दे गए …वैसे आपके पापा की यादों को
नमन …
सुंदर संस्मरण….. शुभकामनाएं हमारी ओर से भी…..
विनम्र श्रद्धांजलि!
बात किस्साबयानी की है तो ज़िक्र अवश्य पुरुषोत्तम पांडे जी "जाले" वाले का होगा – http://purushottampandey.blogspot.com/
स्मृति सदा संबल दें..कोमल हृदय कोमल स्मृतियाँ छोड़ जाते हैं।
भाव भीनी यादें पापा की …
भावभीनी श्रद्धांजलि मेरी भी !पापा की मुस्कुराहट मे आपकी मुस्कुराहट की झलक है …!!बहुत अच्छा लिखा है …!!
जन्मदिन की हार्दिक बधाई ! भावपूर्ण रोचक संस्मरण।
RECENT POST बदनसीबी,
सुंदर स्मृतियाँ
बहुत ही भावप्रधान संस्मरण | जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | आभार
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
…पापाके स्वभाव और व्यक्तित्व का कितना सुन्दर वर्णन!…बहुत बढिया संस्मरण!..जन्मदिन पर हार्दिक शुभ-कामनाएं!
विनम्र स्मरण।
janamdin ki shubhkamnayen…!!! ek pyari see beti ka papa ke liye shabd….:)
यादें…यादें…और यादें…कितनी खूबसूरत धरोहर हैं यह …हमारे जीवन की सौगात …पूज्य पिताजी को प्रणाम …उनकी सोच को प्रणाम ….और उन्हें आज के दिन … उस हलवे परांठे का एक कौर , मेरी तरफ से भी ….
अच्छा संस्मरण है।
शुभकामनाएँ!
कुछ लोग वाकई कही नहीं जाते यही रहते है हमारे आस पास …. हैप्पी बी'डे
हलवा परांठा से पहले जो बात याद आती है वो है अलीगढ की नुमाइश … अजीब कॉम्बिनेशन पर जी ललचाने वाला ..पहली बार जब चखा था तो मन खुश हो गया था 🙂
अच्छी है शिखा जी,
कभी http://www.kahekabeer.blogspot.in पर भी आइये.
आपका अभय.
पापा के जन्मदिन पर भावभीनी स्मृतियाँ ….बेटियाँ पिता के ज्यादा करीब होती हैं …. यह इस संस्मरण को पढ़ पता चलता है … निश्चय ही हलुआ परांठा एंजॉय किया होगा तुम्हारे पापा ने … उनके जन्मदिन की तुमको बधाई ।
आपने अपनीं यादों के कुछ अनमोल रतन हमारी झोली में डाले. बहुत आभारी हैं हम.
कुछ लोग दिल में बस जाते हैं,
कुछ दिल को चुरा ले जाते हैं.
आपके पिताजी के बारे मे सुनकर लगा ऐसे
जैसे वे दिल ही बनकर सदा धड़कते हैं आपके सीने में.
सस्नेह
देविना
शुक्रिया अनुराग जी ! अभी इस लिंक पर जाकर देखा,अच्छा ब्लॉग है.वीरेंद्र जी की यही टिप्पणी वहां भी अंकित है,शायद वह गलती से उसे यहाँ भी चिपका गए हैं:).खैर शुक्रिया उनका.
भावुक कर गई आपकी पोस्ट … हवा परांठा जरूर मुस्कान दे गया होठों पर …
आपको पिताजी का जनम दिन मुबारक … दिल में ऐसी ही मीठी यादें बसी रहें ….
यही तो है साहित्य, जिसने परस्पर कभी मिले नहीं, परस्पर कभी दिखे नहीं दो मनुष्यों का ऐसा भावप्रवण मिलन करवाया कि ह्रदय उसांसें लेने को विवश हो गया। आपके पापा जैसा मैं स्वयं को भी महसूस करता हूं। उनके व्यवहारगत उतार-चढ़ाव से जैसे मेरा विशेष तारतम्य है। भीतर से कोमल बाहर से कठोरवाली आपकी अपने पिता के बाबत कही गई उक्ति बहुत ही विचारणीय है। उनके जन्मदिन पर आपका यह संस्मरण उल्लेखनीय है। उनको मेरी ह्रदय अनुभूतांजलि।
वो थे भी एकदम हलवा – परांठा से – हलवे से नरम और परांठे से कड़क।
सचमुच पापा ऐसे ही होते हैं, बाहर से कड़क और भीतर से नर्म, मम्मी के जाने के बाद हमने भी महसूस किया… बहुत सुन्दर यादें… आपके पापाजी को सादर नमन….
अनमोल यादें।
पिता की स्मृतियाँ सदा बल प्रदान करती हैं।
विनम्र श्रधांजलि।
जन्मदिन अंकल जी के संस्मरण से हमें भी बहुत कुछ जानने को मिला।
हार्दिक श्रद्धांजलि।
सादर
जानिए मच्छर मारने का सबसे आसान तरीका – ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
."हमने क्या जिन्दगी भर का ठेका लिया हुआ है ? कुछ फरमाइशें शादी के बाद के लिए भी रहनी चाहिए नहीं तो पति नाम का आदमी क्या घास खोदेगा"।
शिखा हमारे पापा भी ऐसा ही कुछ कहते थे….जब हम फरमाइशों की अति करते…
और फिर शादी के बाद कहने लगे जो चाहिए हमसे कहना(अगर पति न दिलवाए तो :-)) …
:-)शायद सब प्यारे पापा एक से होते हैं…
बड़ा प्यार आया इस पोस्ट पर…
ढेर सारी शुभकामनाएं
अनु
सुंदर संस्मरण…यादें अक्सर दिल में ताजगी भर देती हैं।।।
A very happy birthday to uncle 🙂 🙂
मीठे,कड़क पापा को सादर प्रणाम –
अनमोल यादे , कभी हंसाती कभी रुलाती ,
आप के पापा को विनम्र श्रद्धांजलि !
भावुक
अपनी मधुर स्मृतियों को हमारे साथ इतनी भावप्रवणता के साथ शेयर करने के लिए शुक्रिया शिखा जी ! आपके पापाजी निश्चित रूप से एक अनन्य व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं ! उनकी सोच को नमन !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है
….
आज की हलचल में …. गलतियों को मान लेना चाहिए ….. संगीता स्वरूप
.
बहुत भाव-भीनी रचना !
आपके पापा भी ये सब सुन-समझ रहे होंगे…
ढेरों शुभकामनाएँ !
~सादर!!!
वाकई हल्वे से नर्म और पराठें से कडक… यही मृदु यादें जीवन को पल्लवित करती हैं.
रामराम.
मन को छू गई आपकी लेखनी …..सादर
जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ (aapke papa ke liye )
Happy Birthday to Uncle
आपके फोटो से कितना साम्य है.. हमेशा आप के साथ ही हैं.
आपके पिता श्री को जन्मदिन की हार्दिक बधाई पिता हों तो ऐसे
हम अपने पिता से बिछड़ी रूहें हैं …
संस्मरण पढ़ते आँखें भर आयी !
उन पुण्य स्मृतियों को नमन !
" मधुर स्मृतियाँ " ……a great daughter of a great dad ..
सुहानी यादें!
आपके व्यक्तित्व निर्माण के एक सर्वथा नए पहलू से परिचय हुआ आभार और बधाई !
A daughter never ever can forget Father!
आपके संस्कारों में आपके पिताश्री का परिचय व्यक्तित्व बन कर समाया हुआ है। भाग्यशाली हैं आप। बधाई हो आर्यपुत्री!
Father and Daughter.. 🙂
शिखा जी, किसी के भी पिता के बारे में पढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है. आज बड़ी हिम्मत जुटाकर पढ़ पायी हूँ. आपके पापा के बारे में जब भी पढ़ती हूँ, तो अपने बाऊ की याद आ जाती है. वो भी कुछ मामले में परम्परावादी थे, हाँ, धार्मिक नहीं थे. पर उन्हें भी अपने देश की संस्कृति से गहरा लगाव था, अपने देश की मिट्टी से बहुत जुड़ाव था. वो भी आज मेरे पास नहीं है, लेकिन मेरे साथ हमेशा रहते हैं.
बेटी की यादें पापा की-भावुक कर गयीं !
बहुत अच्छी यादें आपने हमारे बिच रखा,तहे दिल से धन्यवाद .
हम तो आजे देखे.. पूरे दस दिन लेट. कोई ना, अंकल जी से मेरे हिस्से का आशीर्वाद लेकर कूरियर कर दीजियेगा. 🙂
घर और घर से बाहर के चक्कर में कभी बैठ पाए और कभी नहीं , बहुत सुन्दर यादें और ऐसी यादें जिन्हें हम कभी अपने मन से अलग नहीं कर सकते हैं . पापा को कभी कोई भूल सकता है , हाँ जन्मदिन तो एक बहाना है कि उन्हें याद करके ……..
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