मार्च ख़तम होने को है पर इस बार लन्दन का मौसम ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा। ठण्ड है कि कम होने को तैयार नहीं और ऐसे में मेरे जैसे जीव के लिए बहुत कष्टकारी स्थिति होती है। पैर घर में टिकने को राजी नहीं होते और मन ऐसे मौसम में बाहर निकलने से साफ़ इनकार कर देता है। ऐसी परिस्थितियों में अगर कहीं से निमंत्रण आ जाये तो मैं अपने मन को बहाना देकर ठेलने में कामयाब हो जाया करती हूँ। आखिर यही हुआ। बर्मिंघम में रहने वाली साहित्यकार, शैल अग्रवाल (लेखनी डॉट नेट वाली ) जी का सस्नेह आग्रह आ पहुंचा कि 17 मार्च रविवार को एक काव्य गोष्ठी रख रही हूँ कुछ लोगों के साथ। अपनी पसंदीदा कविताओं के साथ आ जाओ। अब मन को घर के बाहर धकेलने का मौक़ा तो मिल गया पर बाधाएँ और बहुत थीं, – दूसरा शहर , टिकट की बुकिंग , बच्चों को छोड़ने का इंतजाम और कम से कम ४ घंटे का अकेले सफ़र उसपर सुबह छ: बजे घर से निकलना, मतलब पांच बजे उठना. इसी उहापोह में कुछ वक़्त निकल गया। फिर डॉ कविता वाचक्नवी जी से बात हुई तो रास्ता निकला कि उन्हीं के साथ अभी भी टिकट मिल सकता है तो आनन-फानन में ढूंढा और कम से कम लन्दन – बर्मिंघम की टिकट उनके ही साथ मिल गई।एक तरफ से अकेले आना इतना तकलीफ देह नहीं होगा,फिर काफी अरसे से कोई हिंदी साहित्य का कार्यक्रम नहीं हुआ था, बहुत से लोगों से मिलने का भी मन था यह सोच कर हमने जाने के फैसला कर लिया।
और जैसी की उम्मीद थी कविता जी के साथ वक़्त न जाने कहाँ बीत गया। हालाँकि रास्ते भर बर्फबारी हमारे साथ साथ चली .परन्तु बस के अन्दर कविता जी की बातें खासी गर्माहट लिए हुए थीं और मेरे लिए तो जैसे एक अलग युग की पहचान.
खैर बर्मिंघम पहुँच कर फिर एक लोकल बस लेकर हम शैल जी के घर पहुंचे और उसके बाद की जानकारी इन चित्रों के जरिये –
दिव्या माथुर जी के साथ , बस आकर बैठे ही हैं अभी।
डॉ सतेन्द्र श्रीवास्तव (केम्ब्रिज यूनिवार्सिटी के पूर्व प्रवक्ता)। निखिल कौशिक (फिल्मकार )और बर्मिघम के एक सर्जन और कवि.
कविता जी और जर्मन मूल की हिंदी साहित्यकार जूटा ऑस्टिन
शैल जी ने दीप जलाने के लिए बुलाया सभा में उपस्थित वरिष्ठतम (डॉ सतेन्द्र श्रीवास्तव) और कनिष्ठतम को 🙂 , तो सौभाग्य मिला मुझे भी।
पर कहीं सौभाग्य तो कहीं नुकसान कनिष्ठतम होने के कारण रचना सुनाने का आगाज भी मुझे ही करना पड़ा।
शुरू हुआ कार्यक्रम। एक से बढ़कर एक रचनाएं . और मंत्रमुग्ध श्रोता।
भोजन और फिर चाय। कहने की जरूरत नहीं, तस्वीरें खुद कर रही हैं अपना हाल (स्वाद) बयां।
सभा अपनी समाप्ति पर , परन्तु शैल जी का स्नेह कभी समाप्त नहीं होता .
और एक खूबसूरत दिन , बेहतरीन रचनाओं, रचनाकारों से मिलकर और शैल जी का आभार व्यक्त करते,हम लौट आये अपने घर…. अकेले …
हम यूँ फसलों से गुजरते रहे और स्वरलहरियां पीछा करती रहीं :).
आपका सानिध्य तो लेखनी से सदैव ही रहता है । सचित्र रोचक वर्णन और हाँ ,स्वादिष्ट भी ।
achchhe bolte photos aur uska details bhi.. kahin kavitaon sunai nahi padne lage…:)
शिखा जी, आत्मीय तफसील रही बर्मिंघम की …
कोई भी काम अगर दिल से करो तो वहां जान आ जाती है …
और आपके काम में यह बात अक्सर देखने को मिले …
तस्वीरों ने भी जैसे शब्दों की ही जगह ले ली …कुछ कविताएं
भी टेग की होती तो पढ़ लेते …कविता जी से आपकी बातचीत
"एक अलग युग की पहचान …!". आपकी कही इस पंक्ति ने
कविता जी की शख़्सियत का एहसास कराया… खाना और
उसकी सजावट दोनों ने ही मन को ललचाया…
शोर्ट बट स्वीट अपडेट …थैंक्स !
वाह…!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
काश कि हर दिन यूँ ही गुज़रे…..तमाम खुशियाँ समेटे..
अनु
अच्छी लगी काव्यमयी संध्या की चित्र प्रस्तुति.भोजन तो जोरदार दिख रहा है , सच में कविता सुन के या सुना के भूख तो जोरदार लगती होगी .
सुंदर वर्णन. सहित्य सृजन में लगी रहें. खाने के टेबल को देख् कर ही स्वाद भी मिलने लगा.
विलायत में अपनों का साथ और एक काव्य मुलाकात — वाह क्या बात !
अति सुन्दर।
बहुत शानदार संध्या रही होगी शिखा. तस्वीरें बता रही हैं, कि पक्के इरादे हों तो मौसम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता 🙂 शानदार तस्वीरें हैं.
ऐसे अवसर जीवन में जब भी मिलें …हाथ बढ़ाकर लपक लेना चाहिए ….एक धरोहर बन जाते हैं….बहुत सुन्दर तसवीरें ….और सुन्दर संस्मरण …पता नहीं तुमसे मिलना कब हो…ऐसे ही किसी मौके का इंतज़ार रहेगा …..हिंदुस्तान में …:)
वापसी बड़ी विचारमग्न है
बधाई आपको …
जय हो …
आज की ब्लॉग बुलेटिन होली तेरे रंग अनेक – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
रोचक प्रस्तुति,,, चित्रों ने ही सब कह दिया,,,बधाई ,,,
Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
वाह. मुझे तो खाने की तस्वीरें देखकर और अधिक आनन्द आ गया.
सुंदर, आत्मीय आयोजन ….. अच्छा लगा जानकर
पूरी परितृप्ति -ऐसे सुन्दर दिवसयापन की बधाई !
बहुत अच्छा लगा कि वहाँ लन्दन में तमाम ठण्ड के बावजूद हिंदी प्रेमीयों ने इतना सुन्दर आयोजन किया… और फोटो से स्मृतियों को हमसे साझा किया .. बधाई
…कितना सुन्दर आयोजन!..एक एक तस्वीर माहौल की सुन्दर गर्माहट बयां कर रही है!…सुन्दर रचनाओं रसास्वादन तो कितना अनूठा रहा होगा!…बहुत बहुत बधाई!
चित्रों से सुसज्जित रोचक वर्णन ….. इस आयोजन में शामिल होने पर बधाई …
काव्य और स्नेहीजनों के साथ बिताये वक्त की स्वरलहरियां बहुत सुखद एहसास देती हैं. चित्रों से सारा आलेख जीवंत हो उठा है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
kuchh kavitayein bhi ho jaati to post kaa swaad sorry jaayka badh jaata 🙂
आपका सफर ओर स्वरलहरियों का आनद इस पोस्ट से नज़र आ रहा है …
ऐसी काव्य-गोष्ठियां उत्साह का पुनर्संचार कर देती हैं … बधाई इस सफल कार्यक्रम की …
सुन्दर।
सफल कवि सम्मेलन के लिए बधाई।
bahut sunder , is mahfil main hone ki ichcha jag gai
वाह, हर प्रकार से संतुष्टि, मन का और पेट की।
वरिष्ठतम से लेकर कनिष्ठतम तक, सभी कुछ उत्तम…
जय हिंद…
कविताओं की कोई बात ही नहीं! ऐसी कैसे गोष्ठी भाई! कुछ चुनिन्दा कवितायें बतानी चाहियें थी कि सुनाई गयी! 🙂
प्रतिभागी कवियों से संपर्क करके, मंगा कर पोस्ट करती हूँ 🙂
अपनी कविता के लिये किससे संपर्क करना होगा! 🙂
हम यूँ फसलों से गुजरते रहे और स्वरलहरियां पीछा करती रहीं :).
सुन्दर चित्रों के साथ भाव पूर्ण विवरण भी ….!!बहुत अच्छा लगा पढकर …!!
बधाई एवं शुभकामनायें ….!!
खुबसूरत यादें और सुन्दर शाम का आनंद शानदार चित्र बयां करते हैं
चित्रमय रिपोर्ट के साथ खूबसूरत यादें… बधाई.
bahut sundar chitran , chintron ne sab kuchh kah diya. are apani kavita to hamen sunaya nahin to padha hi deti.
भारतीय शैली में हिन्दी काव्य-गोष्ठी का यह आयोजन पूरी तरह सफल रहा, चित्र ही कह रहे हैं. सम्बन्धों की ऊष्मा के साथ ही साथ रचनात्मकता को भी नई ऊर्जा प्राप्त हुई होगी. ऐसे अवसर विशिष्ट होते हैं. रचनाकारों की उत्साहपूर्ण उपस्थिति का एहसास हो रहा है. जूटा ऑस्टिन जी के सहभाग ने सार्थकता दी होगी पलों को. दीप-प्रज्वलन करते हुए आपका फ़ोटो, और वापस लौटते हुए…बहुत सुन्दर हैं. बहुत-बहुत बधाई शिखा जी, और ह्रदय से धन्यवाद शानदार महफ़िल में हमें शामिल करने के लिए!
अच्छा बाँध दिया तुमने उस दिन को ….. । यादगार दिन रहा और यात्रा भी अच्छी कटी। आधा घंटा विलम्ब से चलना भी हमारे हित में रहा, वरना 905 के लिए खुले में और आधा घण्टा खड़े रुकना पड़ता… विक्टोरिया पर कम से कम अंदर तो थे हम। 🙂 जाती यात्रा में तुम्हारा साथ सुखद रहा। लौटती यात्रा सुविधा की दृष्टि से काफी आरामदायक थी। ट्रेन समय से छूटी और वेम्बली से हजारों की भीड़ स्टेडियम से सीधे ट्रेन में आ गई इसलिए मध्यरात्रि होने के बावजूद मैं मजे से भीड़भाड़ में घर तक आ गई ।
bhtreeen badhai ho ji
सुंदर काव्यमय संध्या का सचित्र विवरण
वहां होने का अनुभव दे गया ,
साभार…..
सुन्दर प्रस्तुति
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