कल रात बिस्तर पर जल्दी चली गई थी. पड़ते ही आँख लग गई मगर थोड़ी देर में ही तेज तूफानी आवाजों से अचानक नींद खुल गई. डबल ग्लेज शीशों के बावजूद हवाओं का भाएँ भाएँ शोर घर के अंदर तक आ रहा था. बीच बीच में आवाज इतनी भयंकर होती कि लगता खिड़कियाँ तोड़ कर तूफ़ान कमरे में फ़ैल जाएगा. मैं इन आवाजों को नजरअंदाज कर फिर से आँख बंद करने ही वाली थी कि सारा घर कांपने लगा. फर्श, छत सब हिलने लगे. मैं हड़बड़ाकर उठी. पलंग से उतरी तो गिरते गिरते बची. किसी तरह लड़खड़ाते हुए दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खोलकर बच्चों के पास जाना चाहती थी पर दरवाजा जाने कैसे लॉक हो गया था …मैं चिल्लाकर पति को आवाज देने लगी कि बाहर से यह दरवाजा खोलो जल्दी. परन्तु जैसे कोई नहीं सुन पा रहा था. तभी अचानक मेरी जोर-जबरदस्ती से दरवाजा खुल गया और मैंने देखा कि अगले कमरे में पति भी वैसे ही बंद हो गए हैं …उन्हें खोलकर बेटे को देखने पास के उसके कमरे में गई. वह सो रहा था…याद आया कि नीचे कमरे में बेटी को सोफे पर बैठकर टीवी देखता छोड़कर आई थी, उसे बुखार था. सीढियां उतर रही थी कि देखा बेटी कम्बल लपेटे ऊपर आने की कोशिश कर रही है. जाकर उसे सहारा देकर शयनकक्ष में ले जाकर लिटाया. तब तक तूफ़ान थम चुका था और पति किसी काम से बाहर निकल रहे थे. मैंने कहा … “मत जाओ, बाद में चले जाना, अभी मौसम ठीक नहीं है न”. पर पति लोग मानते हैं क्या. निकल गए. मैं चिल्ला कर बोली. “फालतू मत घूमना, जल्दी आ जाना”…
और आँख खुल गई ….
सपने आखिर सपने ही नहीं होते. हमारी मनस्थिति का आइना होते हैं.
तूफानी हवाएं रात को वाकई चल रहीं थीं.
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