मुझे नृत्य से बेहद लगाव है और इसलिए टीवी की शौकीन ना होने पर भी उस पर पर आने वाले नृत्य के रियलिटी कार्यक्रम मैं बड़े चाव से देखती हूँ .”नच बलिये” जैसे कार्यक्रमों में भारतीय नृत्य के अलावा सभी विदेशी और आधुनिक नृत्य शैली होने बाद भी वह डांस कार्यक्रम ही लगा करते थे.परन्तु
आजकल स्टार प्लस पर डांस का एक कार्यक्रम आ रहा है .जिसका उद्देश्य और नाम तो है ” जस्ट डांस ” पर उसमें सिर्फ डांस ही मुझे दिखाई नहीं पड़ता. नृत्य देसी हो या विदेशी भावों की, ताल की महत्ता होती है. हमने तो यही सुना था.परन्तु वहां हो रहे नृत्य को देखकर तो लगता है कि इनसे बेहतर वो रस्सी पर करतब दिखाने वाले होते हैं. उन्हें इस मंच पर ले आया जाये तो उस तबके की आर्थिक समस्या कम होने के साथ साथ उनकी कला और मेहनत को भी पहचान मिल जाये. जब अपने हाथ पैर तोड़ मोड़ कर, गर्दन में फंसाकर गुलाटी ही मारनी है नृत्य के नाम पर तो, फिर मदारी का वो जीव ही क्या बुरा है.कुछ बच्चे भी देख कर खुश हो लेंगे और उन्हें अपनी परम्पराओं से जुड़ने का भी मौका मिलेगा. या फिर इन प्रतियोगियों को ओलम्पिक सरीखी स्पर्धा के लिए भेजना और तैयार किया जाना चाहिए. जहाँ इनकी क्षमता और प्रतिभा का सही उपयोग हो और देश का भी कुछ फायदा हो. हमेशा अंडा मिलता है. शायद कुछ कुछ मैडल मिल जाएँ.
पर उस मंच पर गुलाटी या नटबाजी भी सबकी मान्य नहीं . यानि वह भी उसी की मान्य है जो ये सब आगे जाकर एफ्फोर्ड कर सके .किसी फल का ठेला लगाने वाले को या किसी ऐसी युवती को ये कला भी दिखाने का अधिकार नहीं जिसने ये कला विधिवत पैसे देकर ना सीखी हो.तो उनके तो निर्णायक महोदय एक टोकरी आम भी खा जाते हैं, और एक सलाम देकर चलता करते हैं. कि भैया तुम्हें दो बार इस मंच पर गुलाटी मारने का मौका दिया बस बहुत है तुम्हारे लिए. अब जाओ जाकर आम बेचो, सब मॉडर्न नर्तक बन जायेंगे तो हमें कौन पूछेगा .
ऐसी बात नहीं कि हमें विदेशी नृत्य कला से कोई दुश्मनी है.हालाँकि मैं ना तो नृत्य की ज्ञानी हूँ , ना कोई बिधिवत शिक्षा ही ली है. हाँ देश और विदेश में टैप से लेकर सालसा और लातिन से लेकर ,बेले और रूसी लोक नृत्य तक हर स्तर पर देखें जरुर हैं.माना कि हमारी भारतीय शैली में एक एक शब्द और भाव को नृत्य में अपनी भंगिमाओं से दर्शाने की जो अद्भुत शैली होती है उतनी वहां नहीं है .फिर भी सबमें लय, ताल, और संगीत के स्वरों पर किस नजाकत और प्राभावी ढंग से थिरक कर दर्शकों की रूह तक सन्देश पहुँचाया जाता है मुख्यत: इसी भाव की महत्ता देखी जाती है. फ्यूजन के नाम पर एक धीमी गति के संगीत पर जिमनास्ट करते हुए जमीं पर लुढ़कने को नृत्य कहा जाये ऐसा तो कभी नहीं देखा. अरे जब यही सब करना है तो हिंदी गीत के शब्द क्यों खराब करने? किसी भी संगीत पर उछल लो.इस मंच पर हो रहे नृत्य से गीत के एक भी शब्द का कोई लेना देना नहीं होता.
यहाँ तक कि “कभी कभी” की बेहद संजीदा शायरी रूप पर भी बिना उसके शब्दों को किसी भी रूप में भावों या मुद्राओं से दर्शाए हुए, बस हाथ पैर टेड़े करके उछल कूद की जाती है.अब इसमें नृत्य की कौन सी कला देखी गई पता नहीं. ओडिसी जैसी नाजुक नृत्यकला में फ्यूजन के नाम पर बेल्ली डांस किया जाता है. और फिर उसे उत्कृष्ट नृत्य के शैली में रखकर कहा जाता है कि हाँ हमें यही तो चाहिए .एक ऐसा कलाकार जो कुछ भी कर सके.कहीं भी फिट हो सके. पर वहीँ एक सधे हुए शुद्ध नर्तक को यह कह कर चलता कर दिया जाता है कि आप में वर्साटीलिटी नहीं है. अब हो सकता है निर्णायकों को नर्तक के साथ साथ कोई ऐसा भी चाहिए हो जो जिसे यदि जनता नर्तक मानने से इंकार कर दे तो बेचारा कम से कम नटबाजी करके अपनी रोटी कमा सके.
यूँ ज़माना खिचडी का ही है आजकल. हर चीज़ में मिलावट है.संगीत में मिलावट, लिबास में मिलावट, भाषा में मिलावट, खाने में मिलावट, यहाँ तक कि योग साधना में भी मिलावट तो नृत्य कैसे अछूता रहे .और फिर निर्णायक मंडल बड़े ,कुशल, व्यावसायिक ,सफल, और गुणी लोग होते हैं. वह किस चीज़ में “वाओ फेक्टर” ढूंढेंगे हम क्या कह सकते हैं . अपनी तो यूँ भी यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते:)
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achha khasa postmartom kar diya aapne to, ab bechara Hritki rohan /bhairvi marchent & queen khan ka kya hoga!
इ लो जी ,हम तो समझे रहे की किसी फिलम का नाम है इ ." हिप्स डोंट लाई " वाली कला केवल शकीरा के पास ही क्यू रहे . अब उसका भोंडी नक़ल हमारे जमूरे जमूरी भी तो करेंगे . आप भी ना पता नहीं कहाँ कहाँ नजर दौड़ाती है , जीने खाने दो जी , नृत्य का फलता फूलता बाज़ार नटों को एक अदद रिअलिटी शो का मुकाम तो दिलवा ही देता है . अपनी तो आदत है की चुप नहीं रहेंगे .
badhiya likha hai aapne, kash aapki post se we log kuch sikh pate
nice
डांस के नाम पर सर्कस आता है दीदी…. हम तो ऑडिशन तक ही देखते हैं, उसके बाद तो डांसर्स का ब्रेन वाश कर दिया जाता है…. और स्टार प्लस से घटिया प्रोग्राम तो किसी के पास हैं ही नहीं..
chintan karna mana hai…
shikha ji
kahin na kahin humne bhi yahi socha tha mujhe aur meri beti ko dance bahut pasand .atah humne dekgna shuru kiya hai .pr dekhten hain milavat kahan tak chalti hai
rachana
मिलावट स्वास्थ्यवर्धक नहीं होती है।
indian television me content kee kami hai aur realty show me asani se sathi content mil jate hain… badhiya aalekh
जब सारी बात "नाच मेरी बुलबुल कि पइसा मिलेगा" पर आकार रुक जाए, तो फिर कला की बात ही कहाँ रह जाती है!! सब कुछ प्रायोजित हो गया है, जजों के झगड़े भी और जजों की तारीफ भी. आपने भी अच्छी खबर ली है!!
ufff kahan kahan tak iss ladki ki paarkhi najar jayegi…:)
rashmi di sahi hi kahti hai…guno ki khan ho tum…:)
SACHCHE ME gajabe kar dete hain..:)
@यूँ ज़माना खिचडी का ही है..
सही कह रही है.
इन सब को भी इसी रूप में लिया जाय.
न खिचड़ी, न मिलावट, जमाना तो फ्यूजन का है.
अच्छा किया जो इनकी खबर ली
एक बार देखा है वो शो दोबारा देखने की इच्छा ही नही हुई
फ़्युजन का फ़्युज उड़ाने वाली पोस्ट
हाँ हाँ यही डांस है …. शायरी पर जब स्लो मोशन का डांस देखा तो बस .. अब क्या कहें ..हम तो कुछ कहते ही नहीं …सारे कार्यक्रम प्रायोजित होते हैं … और दर्शक आराम से बेवकूफ बनते हैं … पर यही सोच लो न सबका काम चलना चाहिए ..पापी पेट का सवाल है ..सटीक और सार्थक लेख
सही कह रही हो …इस मिलावट को झेलने की आदत डाल लेनी चाहिए !
शुभकामनायें !
आदत डाल लीजिये नहीं तो बहुत दुख होगा आगे चल कर , सब चलता है ….
पहले तो वो बात जो सबसे बाद में कहनी थी। आपके इस वाक्य पर एक गीत याद आ गया
@ अपनी तो यूँ भी यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते:)
** हमको तो शिकायत है कि ….! 🙂
अब सच में शिकायत … कि आप ये सब शो भी देख ही लेती हैं !
खैर पसंद अपनी-अपनी!
तभी तो ऐसे कार्यक्रम बनते हैं और चलते भी हैं।
आपकी शिकायत हम अपने आपसे भी करते रहते हैं. फिर भी शौक के चलते देख ही लेते हैं. और बेशक उनके फेलिअर ही सही, कुछ एक अच्छे डांस भी देखने को मिल ही जाते हैं.
सम्यक विवेचना.
पंकज.
सच कहा.. आज कल खिचड़ी काही जमाना है..खिचड़ी जल्दी हजम होजाती है न कोई खास मेहनत नही करनी पड़ती है इसीलिए….
बिलकुल दुरुस्त फरमाया…आपने.बढ़िया ,कसा हुआ लेखन!!
पता नहीं ये हर और डिसटार्सन का ही ट्रेंड क्यों चल पडा है !
दुर्भाग्यपूर्ण !
चलो अच्छा किया हमने कि कभी देखा ही नहीं!
फ्यूजन तो समझ में आत है किन्तु ये फ्यूजन कभी कभी वास्तव में कन्फ्यूजन ज्यादा लगता है |यदि मनोरंजन की जगह केवल डांस देखना हो तो फिर देशी छोड़ विदेशी चैनल देखीये एक्शन पर सो यु थिंक यु केन डांस आता है वहा भी बालीवुड डांस ने जगह बना ली है और आप विदेशियों को भी हिंदी फ़िल्मी गानों पर नाचते देख सकती है और पाश्चात्य नृत्यों सालसा आदि का असली वर्जन देख सकती है बिना किसी मिलावट के |
बिल्कुल सही कहा है आपने .. बेहतरीन ।
बहुत सही लिखा है आपने आज कल डांस की तो क्या कहें गाने भी संगीत को शर्मसार करते हैं क्या करें कुछ लोगों का टेस्ट बदल रहा है.
कल मैंने पहली बार ये कार्यक्रम देखा … एक कलाकार ने पोटी करने का स्टेप दिखाया साथ में फ्लश भी चलाया …और उसका चयन भी हुआ ..यहीं से स्तर का पता चल गया …. चेहरों पर ना भाव ना भंगिमा ..ना लास्य … उफ़
Diosa,
Amuman to aapki bat sahi hai magar ye kyun bhool rahe hain, ki ham hindustan main hain or hindustan main apni bat kahne ki aazadi hai, agar unhain lag raha hai ki wah sahi hain to obeiousely paisa unka, time unka, kam kaj bhi unka, karne dete hain, shyad galti se koi tukka lag jaye, fir bhi batour vyangkar is bar aap us subject par pahunchi jahan koi jarurat nahi thi. 🙂
मुझे नृत्य के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं है, लेकिन अच्छा हो नृत्य तो दिल खुश होता है, वैसे ये मिलावट वाली बात मुझे भी एकदम पसंद नहीं..
क्या कीजियेगा दीदी, आजकल ज़माना भी ऐसा ही है..
वैसे अच्छा है की मैं ऐसा कार्यक्रम नहीं देखता..
ये एक बदलाव का दौर है और जो अच्छा होगा वो टिकेगा … जहां तक टी वी वालों की बात है … वो तो जो चाहते हैं परोस देते हैं …
जैसे जज वैसा तमाशा…
क्या एक्स्पेक्ट किया जाय और…
अच्छा आकलन किया है आपने…
खिचड़ी डांस जब टी आर पी बढ़ा देता हो तो मेहनत क्यों की जाए…
shikha ji
bahut hi achha sawaal uthaya hai aapne .main bhi aapki baat se puri tarah sahmat hun.waqai aaj kal dans
ke naam par dans nahi balki lagta hai koi khel ho raha ho aur ham sab tamash-been bane baithe dekh rahe hain.
jo log itni mehanat se kalabaziyan seekhte hain aue apna hunar dikhlate hai .vah kisi aur xhetra me dikhlaye to shayad apne lakxhy ko prapt kar sakte hain
par nritua ke naam par nahi—
bahut bahut hi prshanshniy lekh
bahut hi achha laga
bahut bahut badhai
poonam
आपने बहुत सही आकलन प्रस्तुत किया है!
आजकल जो बिकता है , वही बेस्ट है .
नृत्य, संगीत और आध्यात्म के बिना तो भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती.ये वे विधाएं हैं जिनसे पूरे विश्व में हमारी एक अलग पहचान बनती है ………फ्यूजन शैली एक परिवर्तन है …जो शीघ्र ही हमें यह बताने वाला है कि यह लम्बी रेस का घोड़ा नहीं है……..वापस आने के लिए थोड़ा डीविएशन ज़रूरी है ….शिखा जी निराश होने की आवश्यकता नहीं है. भारतीय नृत्य विधाएं अमर हैं भले ही हमें सीखने के लिए भारत से बाहर जाना पड़े. आपकी तरह ही …."अपनी तो यूँ भी यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते:) "
डांस पर पोस्ट अच्छा लगा। इसे ही यदि हिंदी में नृत्य कहा जाए तो उतना प्रभावशाली नही लगेगा। धन्यवाद।
हाँ यही डांस है ….
अजी यह डांस नहीं डंक है।
aapke es lekh ke baare me mai yehi do line kahunga
jo dikhta hai mai vahi kehne ka aadi hoon,
mai es shehar ka sabse bada fasaadi hoon.
नृत्य पर कोई ऐसा भी लिख सकता है. गज़ब! सार्थक बारीक बीनी.तीखा!
हमज़बान की नयी पोस्ट आतंक के विरुद्ध जिहाद http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.htmlज़रूर पढ़ें और इस मुहीम में शामिल हों.
Every thing is mutating these days so how can these reality shows stay away from it.
And I agree the concept of just dance is lil offbeat.
शुरू करते हैं एक बोगस डांस …लेकिन वहां डांस का केवल नाम होगा डांस नहीं….शायद ये डांस रियल्टी शो का यही फार्मूला है…
बढ़िया है आपका सुझाव और उसका स्वागत भी है….सड़कों पर 1 रूपये के लिए रस्सिओं पर चलने वालों को डांस करने का अब ,मौका दिया जाना चाहिए.
हम भी देख लेते हैं कभी डांस वाली नौटंकी।
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जीवन का सूत्र…
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं?
आजकल यही डांस कहलाता है
पियेला टाईप 🙂
मिलावट की पसन्द मिलावट ही होती है ।
सुधा भार्गव
हम जैसे आम आदमियों को रोज़ाना की आपाधापी में जितना डांस करना पड़ता है, उसके आगे ये सारे कहीं पानी भी नहीं भरते…
जय हिंद…
मुझे तो पता है जी की ऐसे प्रोग्राम्स में ऐसा ही होता है. इसलिए मैं इन्हें देखता ही नहीं.
आपको पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा. खुद से मिलती सोच रखनेवाले विचार पढना हमेशा अच्छा लगता है.
aaj kal ke dance show par chot.. milavat vahan bhi hai… sundar lekh
रोचक पोस्ट
कैसा मिलावटी खाना परोसा जा रहा है.खानेवाले मजे से खा भी रहे हैं.फास्ट फूड के जमाने में मार्केट से और क्या उम्मीद की जा सकती है. बकवास चीजें यदि स्टेटस सिम्बाल हैं तो बैक वर्ड बन कर गरीबी रेखा के नीचे रहने में भी गर्व होना चाहिये.
शिखा जी, जो देख रहे हैं वो ठीक, जो नहीं देखा, वो और भी ठीक.
आपके विचार अच्छे लगे। मुझे तो नृ्त्य और संगीत समझ में नहीं आते। हाँ, एक अनुरोध अवश्य है कि इस रचना को स्टार प्लस वालों को मेल कर दें।
बहुत सही. नृत्य में किये जाने वाले या किसी भी पारम्परिक विधा में किये जाने वाले नकारात्मक प्रयोग मुझे भी पसंद नहीं.
आपकी बात सोलह आने सही है।
अपनी तो यूँ भी यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते:)
-सही है वरना तो आजकल गुजारा ही मुश्किल हो जाये…डांस के नाम पर जो परोसा जा रहा है कि भगवान ही मालिक है.
अब डांस का मतलब है अंतर्मन की भडास निकल लो. अच्छा लेख है, छोटा मगर रंजक
बहुत सच कहा है..आज रिअलिटी शोज में जो उछल कूद और व्यायाम के जो करतब दिखाए जाते हैं, उन्हें डांस तो कभी भी नहीं कहा जा सकता..बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख.
sahi sahi… ekdam sahi… mai bhi wo dance ka shouk hone ke karan hi dekhti thi par ab sirf Mehar" ke karan dekhti hu…
DID acchha tha… 🙂
सुन्दर प्रस्तुति. हम भी कुछ नहीं कहते.
ये टीवी के रियलटी शो सिर्फ पैसे की रियलटी को समझते है रियलटी से कोसो दूर। जो ज्यादा बिक जाये वही रियल शो है। ोसो दूर। जो ज्यादा बिक जाये वही रियल शो है।
हहहह सब कुछ कह कर कहते हो कि कुछ नही कहते। वाह! मन को मनाने का अंदाज़ अच्छा है:)
क्या करें, टी वी देखना ही कम कर गिया है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
🙂 🙂 नाच तो अपने गाँव में होता है. उसे आप देख लेती तो लेख में और कुछ भी शामिल हो जाता.
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