क्योंकि हमने पढ़ना छोड़ दिया है –
– हमारी अभिव्यक्ति में गलत , अभद्र शब्दों का प्रयोग होता है क्योंकि हम सही और सुन्दर शब्दों का प्रयोग जानते ही नहीं।
– अपने भावों को अभिव्यक्त करते समय क्रोध, घृणा, पैर पटकना, आदि क्रियाओं को काम में लेते हैं क्योंकि किसी भाव को उपयुक्त शब्दों से अभिव्यक्त करना हम नहीं जानते।
– हम अपने इतिहास से अनभिज्ञ रहते हैं और भविष्य के प्रति उपेक्षित, क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है और हम वह दर्पण देखना ही नहीं चाहते।
– हम तुरत क्रिया प्रतिक्रिया में यकीन करने लगे हैं. क्योंकि दृश्य माध्यम के प्रति अधिक अनुरागी हो गए हैं. जहाँ एक दृश्य जाता है और तुरंत दूसरा आ जाता है. उसपर विचार करने का समय नहीं मिलता। और बिना विचारे जो करे …
– हम सामने वाले की बात समझना तो दूर, सुनना भी नहीं चाहते क्योंकि हम नहीं जानते कि वह भी एक पहलू हो सकता है. हमें सिक्के का सिर्फ वह हिस्सा दिखता है जो उस वक़्त हमारे सामने होता है.
– दुनिया के दूसरे छोर पर छोड़ो अपनी नाक से आगे क्या हो रहा है, उस तरफ के लोग क्या सोच रहे हैं, कैसे रह रहे हैं, क्या कर रहे हैं. उस सबके प्रति हमने संवेदनशील होना छोड़ दिया है क्योंकि हमारी नजर संकीर्ण हो गई है. हम कुएं के मेंढक की तरह व्यवहार करने लगे हैं.
– क्योंकि जब हम कुछ पढ़ते हैं –
– तो झट से उस पर अमल या उसका विरोध करने नहीं बैठ जाते. उसका असर हम पर ठहर कर होता है.
– पढ़ना हमें धैर्य से मनन करना सिखाता है.
– साहित्य हमें दुनिया भर के इतिहास को पढ़कर अपना भविष्य संवारना सिखाता है.
– वे किताबें ही हैं जो हमें उस स्थान, जहाँन तक भी ले जाती हैं जहाँ हम शारीरिक रूप से नहीं पहुँच पाते।
– पढ़ने से हमारा मस्तिष्क खुलता है और-हम किसी विषय या परिस्थिति में विभिन्न कोण से व्यापक फ़लक पर सोच पाते हैं.
– पढ़ना हमारी भाषा, कल्पनाशीलता, समझ, अभिव्यक्ति और पूरे व्यक्तित्व का विकास करता है.
– हम इन सभी से अब अलग एवं निर्लिप्त होते जा रहे हैं.
– हम असंवेदनशील. बेसब्र, कुंठित, स्वार्थी, क्रूर एवं नफरती होते जा रहे हैं.
– क्योंकि- हमने पढ़ना छोड़ दिया है.