कैसे कहूँ मैं भारतीय हूँ
क्यों करूँ मैं गुमान
आखिर किस बात का
क्या जबाब दूं उन सवालों का
जो “इंडियन” शब्द निकलते ही
लग जाते हैं पीछे …
वहीँ न ,
जहाँ रात तो छोड़ो
दिन में भी महिलायें
नहीं निकल सकती घर से ?
बसें , ट्रेन तक नहीं हैं सुरक्षित
क्यों दूधमुंही बच्चियों को भी
नहीं बख्शते वहां के दरिन्दे ?
क्या बेख़ौफ़ खेल भी नहीं सकतीं
नन्हीं बच्चियाँ ?
कैसे जाते हैं बच्चे स्कूल ?
क्या करती हैं उनकी मम्मियाँ
क्या रखती हैं हरदम उन्हें
घर के अन्दर बंद
या फिर बाहर भी नहीं करतीं
एक पल को नज़रों से ओझल.
क्या हैं वहां कोई नागरिक अधिकार?
अपने किसी नागरिक की क्या
कोई जिम्मेदारी लेती है सरकार ?
क्यों एक भी मासूम को नहीं बचा पाती
दुश्मनों के खूनी शिकंजे से ?
कैसे वे मार दिए जाते हैं निर्ममता से
उनकी जेलों में ईंटों से
क्या होते है वहां पुलिस स्टेशन?
क्या बने हैं कानून और अदालतें?
या बने हैं सिर्फ मंदिर और मस्जिद
गिरजे और गुरुद्वारे……
ओह.. बस बस बस ..
चीखने लगती हूँ मैं
लाल हो जाता है चेहरा
बखानने लगती हूँ
अपना स्वर्णिम इतिहास
सुनाने लगती हूँ गाथाएँ महान
उत्तर आता है ..
ओह !! इतिहास है
वर्तमान नहीं,
और भविष्य का तो
पता ही नहीं..
मैं रह जाती हूँ मौन,स्तब्ध
और चीखने लगते हैं
फिर से वही प्रश्न..
yeh prashn ab har bhartiy ki jubaan par hain…
ab iska kya jawaab degi sarkaar.yeh dekhne ki baat hain
अनुतरित प्रश्न
आप प्रश्न पूछिये … अधिकार है आपको … सूचना का अधिकार … पर माफ कीजिएगा कि आप अभी कतार मे है … जवाब देने वाले व्यस्त भारत निर्माण मे है !
ye peshan to ab shayad hi kabhi pichha chhodenge
यक्ष प्रश्न है . सच में हम कब तक अपने कर्णधारों को स्वर्णिम भूत दिखाकर बहलाते रहेंगे. वर्तमान तो हर स्तर पर स्याह है . भ्रष्टाचार और बदनीयती अपने शबाब पर है . बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने . साधुवाद
सुंदर रचना..और प्रायः हर संवेदनशीन भारतीय के यही प्रश्न है इस वक्त…..
अभी दिल्ली बहुत दूर है ..।
वाकई…….शिवम् से सहमत.
🙁
अनु
न जाने कब इन चीखते प्रश्नों के जवाब मिलेंगे ….. पुछने वाले शायद स्वयं ही मौन हो जाएंगे … सार्थक प्रश्न पूछती समसामयिक रचना …
हर रात के बाद सवेरा जरुर होता हे हर भारतीय भगवान भरोसे
शिखा जी, दर्द का जैसे सैलाब उमड़ आया है …
आपकी चिंताएं आशंकाएं और घुटन हमारी, हर माँ पिता और
भाई-बहन की चिंता है,हर नागरिक की चिंता है …! मानवीय
अच्छाईयों की क्राईसिस का सा समय है …बच्चियों बेटियों
महिलाओं को लेकर हम सब भी जैसे एक मानसिक कारावास
ही भुगत रहे हैं …लड़कियों की असुरक्षा, उनके घूमने-फिरने पर
लगी डायरेक्ट-इनडायरेक्ट पाबंदियां हमारी अपनी आत्मा पर
पड़ी पाबंदियां हैं …उन्हें सुरक्षित और मुक्त ज़िंदगी जीने का हक़
है और इस हक़ को हमें सुरक्षित करना हैं …प्रयत्न तो हो ही रहे
हैं पर यह हर किसी की प्रायोरिटी होनी चाहिए, हर एक नागरिक
की …बच्ची-लड़की-महिला की सुरक्षा में हर किसी को अपना-अपना
योगदान देना है …जिसके सकारात्मक निष्कर्ष भी मिलने शुरू
होने ही चाहिए …और हमें यह करना है… हर जगह और अपने-
अपने हर लेवल पर …
उत्तर तो हैं और खोजे जा सकते हैं पर इच्छाशक्ति ही नहीं तो क्या किया जाय……
वाह वाह..हमेशा की तरह
बेहद मार्मिक और संवेदनशील रचना. अब तो लगता है ये सवाल अनुतरित ही रहेंगे.:(
रामराम
…कि जीना बोझ लगता है !
बहुत सटीक अभिव्यक्ति ..
भाग्य के भरोसे ही रहते हैं हम भारतवासी !!
पूछो-पूछो …और पूछो ….
खीझ-खीझ कर पूछो ….
पूछ-पूछ कर खीझो ….
हम नहीं देंगे
आपके एक भी सवाल का ज़वाब
क्योंकि हम गुण्डे हैं
बदमाश हैं
कातिल हैं
घोटालेवाज हैं
नरक के कीड़े हैं
मगर हमारी गलती क्या है यह तो बताओ?
वोट तो तुम्हीं ने दिया था हमें
और अब
जब हम अपनी प्रकृति के अनुरूप
भारत को तबाह करने में लगे हैं
अपने स्व-धर्म का पालन करने में लगे हैं
तुम्हें कोई हक़ नहीं होता
हमसे एक भी सवाल पूछने का।
सुन्दर रचना . इसी लिए इतिहास सुकून देता है
कितने शर्म की बात है ..आज से कुछ साल पहले जब मनोज कुमार की फिल्में देखते थे …पूरब पश्चिम…उपकार …तो मन गर्व से भर जाता था …और सर ऊँचा …लेकिन अब जब दुनिया में हिंदुस्तान की थू थू होते देखते हैं…जब महिला प्रवासी दूसरे देशों में जाना पसंद करती हैं ..बनिस्बत भारत आने को तो वही सर शर्म से झुक जाता है…..कैसे गर्व से कहें की हम भारतीय हैं….
chikhtey prashno ke jawab shaanti mein hain …
समाधान खोजती पोस्ट जिम्मेदारियों की ओर उंगली उठाती पोस्ट …..
ओह !! इतिहास है
वर्तमान नहीं,
और भविष्य का तो
पता ही नहीं..
मैं रह जाती हूँ मौन,स्तब्ध
और चीखने लगते हैं
फिर से वही प्रश्न..
बद से बद्दतर होते हालात ….चीखते अनुत्तरित प्रश्न …और मौन खड़े हम सब ….!!
सार्थक अभिव्यक्ति …..
?????????? सब के सब मौन
समस्यायें भरी पड़ी हैं पर जूझना तो है ही..
Legacy ढोनी ही होती है
इन्ही चीखते प्रश्नों में उलझ कर चली जा रही है जिंदगी।
ज़वाब न कोई देता है , न पूछता है ! मार्मिक प्रस्तुति।
कटु सत्य।
अब इसके दूसरे पहलू पर भी विचार करें। ऐसा नहीं है कि ये घटनाएँ अचानक से घटनी शुरू हुई हैं। ऐसा नहीं है कि पहले यह सब बिलकुल ही नहीं होता था। सुखद यह है कि अब ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं और उम्मीद यह है कि हमारा आपका आक्रोश इसे कम करने में सहायक होगा।
अब उस सुनहरे अतीत के इतिहास भी कलंकित होने लगा है . लगता है कि वे अब सिर्फ और सिर्फ किवदंतियां बन कर रह गयीं है . वर्तमान का चेहरा इतना घिनौना है कि हम उसको देख नहीं पा रहे है . समझ सकती हूँ तुम्हारी हालत
फिर भी भारतीय होने पर गर्व है (अभी तक तो …क्यों कि उम्मीद अभी बाकी है )
प्रश्न दर प्रश्न -मगर उत्तर गायब!
सुन्दर सामयिक रचना
उत्तर कौन देगा? पूरी उलट-पलट कर स्वयं खोजे और समाधान निकाले बिना निस्तार नहीं!
no mam
ye prashn bhi hum he
aur iske uttar bhi humi
jab tak na koi jyoti mile
humko dhundhna he
jab tak na koi chhhor mile
humko badhna he
jab mil jaye punj-prakasha
chalte hi rahna he
failana he jyoti waha tak
tam ka jaha nisana he
by the way you've written on a burning issue
THNKS
प्रश्न तो हमेशा ही खड़े हैं
अफ़सोस होता है ऐसे माहोल पे … सच कहा है कैसा स्वर्णिम इतिहास …
पुरातन का ढोल पीट रहे हैं बस … आज को नहीं देखना चाहते … न ही जकाब देना चाहते हैं …
कुछ न कहेंगे
लब सी लेंगे
आंसू पी लेंगे…
बस ये सवाल हैं जिनका जवाब मिलना उतना ज़रूरी नहीं जितना उन सवालों का खत्म होना आवश्यक है!!
विलम्ब के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ!! 🙂
सुन्दर प्रस्तुति . बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
काश इन सवालों की चीख व्वस्थापकों तक पहुँच सकती ।
समसामयिक चित्र खींचती अत्यंत सार्थक रचना….
bahut khoob….shubhkaamnaaye
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भारत का अतीत गौरवशाली रहा है पर वर्तमान दशा चिंताजनक है
प्रश्न कई हैं पर जवाब मूक हैं
अनुत्तरित प्रश्न…
bilkul sahi kaha…humme say koi bhi shayad hi uttar dey paye
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