इस शहर से मेरा नाता अजीब सा है। पराया है, पर अजनबी कभी नहीं लगा . तब भी नहीं जब पहली बार इससे परिचय हुआ। एक अलग सी शक्ति है शायद इस शहर में कि कुछ भी न होते हुए भी इसे हमने और हमें इसने पहले ही दिन से अपना लिया। अकेलापन है, पर उबाऊ नहीं है। सताती हैं अपनों की यादें, कचोटता है इतिहास, बेबस कर देती हैं दूरियां फिर भी …जाने क्या है कि इससे जुड़ा हुआ ही महसूस करती हूँ . एक सुरक्षा कवच की तरह यह सहेजे रहता है मुझे। जब भी कभी जिन्दगी से निराशा सी हुई इसने ही संभाला है, फैला देता है ये अपनी अकपट सी बाहें और मैं अपनी सारी नश्वरता उसे सौंप देती हूँ , हो जाती हूँ हवा सी हलकी फिर से बहने को उसी दिशा में जिस में चलना चाहिए मुझे. इस शहर ने मुझे सपने नहीं दिए पर उन तक पहुंचने की राह दिखाईं और फिर उन्हें पूरा करना सिखाया. इस शहर ने मुझे मुझतक पहुंचाया.मुझसे मेरा परिचय कराया और खुद से दोस्ती करना भी सिखाया.
थोड़ा अपना सा,थोड़ा बेगाना सा ..
कुछ भी अतिरेक नहीं होता इस शहर में . समय पर सब कुछ होता है , व्यवस्थित सा। यहाँ तक कि मौसम भी कहे अनुसार ही चलता है, अपने ही समय पर डेफोडेल आते हैं और अपने ही समय पर गुलाब। सर्दी और गर्मी की भी अपनी सीमायें हैं . वो भी एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करतीं फिर आदमी की तो विसात ही क्या। सब कुछ संतुलित. यहाँ जिन्दगी से डर नहीं लगता। कल ऐसा होगा तो क्या होगा ये खौफ नहीं होता। उसने देखा तो क्या सोचेगा यह ख़याल नहीं आता। सड़क पर अपने ही साए से भय नहीं लगता। नहीं होती लाठी हाथ में पर पीठ भी झुकी नहीं होती। बस जरा इसके स्वभाव में ढलने की बात है फिर कुछ भी तो असहज नहीं लगता।
शायद इसलिए जब जब जिन्दगी की शीत लहर ने छुआ एक धूप की किरण इसने हमेशा पहुंचा दी सहलाने को। गरमाने को मन और देने को हौसला चलते जाने को। इस बेगानी धरती पर अब अपने ही बेगाने लगे तो लगें पर यह शहर अपना सा ही लगता है।आलम यह कि अपनों से दूरियों और यायावरी की आदत के वावजूद यह शहर अब घर लगता है। अब कहीं से भी आकर इसकी सरहद के अन्दर पहुंचना सुकून देता है .
ऐसा ही है यह शहर लन्दन – कुछ कुछ बेगानों सा फिर भी अपना सा , जाना पहचाना सा। । ये एकदम रुई से बादल हाथों की पहुँच से बस थोडा सा ही दूर, एकदम अभी अभी धुल कर आया जैसे, नीला स्वच्छ आसमान, बादलों के बीच में से शरारती बच्ची की तरह झांकती यह धूप और नादान बच्चे की तरह कहीं भी, कभी भी टपक पड़ने वाली ये बूँदें , सब अपनी सहेलियां लगने लगीं हैं,जिनके आसपास रहने से उनकी महत्ता पता नहीं लगती पर दूर जाते ही फिर मिलने की तड़प सी हो आती है।
ऐसे ही सुकून सा आ जाता है इस शहर से गले मिलकर .
हाँ यह शहर अब अपना अपना सा लगता है।
बहुत उम्दा अहसास सुंदर प्रस्तुति,,,
RECENT POST : प्यार में दर्द है,
ये तो एकदम कविता टाइप हो गया-फैला देता है ये अपनी अकपट सी बाहें और मैं अपनी सारी नश्वरता उसे सौंप देती हूँ , हो जाती हूँ हवा सी हलकी फिर से बहने को उसी दिशा में जिस में चलना चाहिए मुझे
लंदन के बारे में खोयापानी में लिखी यह बात याद आ गयी-"यूं लंदन बहुत दिलचस्प जगह है और इसके अलावा इसमें कोई खराबी नजर नहीं आती कि गलत जगह पर स्थित है।"
वाह बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर | लंदन में हज़ारों भारतीय हैं वहां अनजाना भले ही ना महसूस हो पर बेगाना देश बेगाना ही होता है और अपना अपना ही |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
हम्म्म्म्म! बेगानों में अपनों सा अहसास और अपनों में बेगानों सा। आपको वहाँ बेगाने भी अपने से लगते हैं। यहाँ आलम यह है कि अपने बेगाने से लगते हैं। आपका अहसास इतना मखमली है …अभिव्यक्ति इतनी गुलाबी है …और शब्द इतने फ़ीदरी कि उड़ कर वहीं आ जाने का मन करता है। मैंने अपने पंख खोल दिये हैं ……कल जब भोर में सूरज निकलेगा, मैं टेम्स नदी पार कर आपके पास तक पहुँच जाऊँगा।
आपके अपने शहर और आपके लिए मुबारकबाद
शिखाजी,
आप का लेख "थोड़ा अपना सा थोड़ा बेगाना सा….।" पढ़ा। निंसन्देह आप की भावाभिव्यक्ति अत्यन्त सुन्दर है पर जो आप ने लिखा है," लन्दन में मौसम भी कहे अनुसार चलता है।" मुझे कुछ जँचा नहीं, क्यों कि मुझे तो लगता है वर्तमान काल में प्रकृति भी मनुष्य के व्यवहार से,उस की उठा-पटक से दुःखी हो मानव को हर प्रकार का कष्ट देने को आमादा है।
पिछली बार जब मैं लन्दन में थी तो मैंने सुना था १९ साल के बाद खूब बर्फ बारी हुई है। सभी रेल मार्ग पर चलने वाले और सड़क पर चलने वाले वाहन ठप्प हो गये।
जरा मेरे ब्लोग"http://www.unwarat.com 'मेरी यादों के प्याले के कुछ मन मोहक लम्हें' को पढ़ कर देखिये। उस बर्फबारी के समय में वहाँ थी। उसी का वर्णन मैंने उस संस्मरण में किया है। आशा है आप मेरे कथन को अन्यथा नहीं लेंगी।
आप से अनुरोध है मेरा ब्लोग पढ़ने के बाद लेखों और कहानियों पर अपने विचार व्यक्त करेगीं। मुझे अच्छा लगेगा।
विन्नी,
आपका कहना ठीक है विन्नी जी, बिलकुल अब हर जगह ही मौसम कुछ अनमना सा होने लगा है. ठीक कहा आपने, हुई थी इतनी बर्फबारी और उस पर तब मैंने भी आलेख लिखा था.इस साल तो सर्दियाँ निकल जाने के बाद भी हुई.
परन्तु मेरे एहसास यह एक दिन के नहीं, सामान्य स्थिति के हैं. अब भी लन्दन में मौसम बाकी जगह के मुकाबले काफी संतुलित रहता है. न ज्यादा गर्मी न ज्यादा ठण्ड.
शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया का,जरुर पढूंगी आपके संस्मरण.
(इस शहर ने मुझे सपने नहीं दिए पर उन तक पहुंचने की राह दिखाईं और फिर उन्हें पूरा करना सिखाया……………..)यह वाक्य विरोधाभास लिए हुए है।
जब शहर ने सपने नहीं दिए तो तब कौन से सपने थे जिन तक पहुंचने की इसने राहें दिखाईं?
सपने इस शहर में आने से बहुत पहले के थे :).
सकारात्मक सोच..सकारात्मक उर्जा…सकारात्मक एहसास।
सोच नकारात्मक हो तो अपना घर, अपना गांव, अपना शहर ही काटने को दौड़ता है। अपवाद छोड़ दें ते सब कुछ अपने आप पर निर्भर करता है।
काव्यात्मक अभिव्यक्ति।
पते की बात कही आपने. काफी हद तक सहमत हूँ.
हम्म ..अभी जाकर पढ़ा. दिलचस्प और सही टिप्पणी है युसुफी साहब की लन्दन के बारे में.
मन के एहसासों की सुंदर अभिव्यक्ति । यह लगाव , अपनापन ही है उस शहर से जिसने अपने बारे में कुछ कहने के लिए बाध्य कर दिया और मुझे पूरा विश्वास है शिखा जी लिखने के बाद सुकून बहुत मिला होगा ।
बेहतरीन !
सहज सुंदर गद्य …! शिखा जी।
सुंदर शहर वैसी ही सुंदर गद्य रचना…!
पढ़ते-पढ़ते ऋतू मय हो जाए, कोई भी …
नेचुरल अभिव्यक्ति…! संयत सधी भाषा और सटीक से शब्द !
कितना लाघव और सौंदर्य है इस ललित लघु निबंध में …!
शहर से प्यार किया, उसे प्रेमपत्र भी लिखा…!
यहाँ व्यक्त प्राकृतिक सौंदर्य सौम्य और आहलादक है, स्पर्शक
भी …जिस शहर को आप जिए, उसी की जीवंत फिज़ा में ममत्व
भी निबद्ध सा है, कि जिसकी उदासी उबाऊ न हो कर रहनुमा सी
हो जाए …
रीडिंग प्लेज़र है आपके लेखन में …
आप इतनी असीम झांय लिए भी लिख सको, साश्चर्य ख़ुशी हुई।
लिखने का हक है आपको और लिखते रहिये …! आप
ऐसे ही खुश रहें और लिखें, लिखते रहें सदा …आमीन 🙂
अच्छी लगी तुम्हारी खुद के साथ की गयी सरगोशी……….उम्दा.
मंगलवार 07/05/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ….
आपके सुझावों का स्वागत है ….
धन्यवाद …. !!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (20 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
शिखा क्या आप भी लंदनवाली होने के नाते बकौल यूसुफ़ी साहब कार चलाते वक्त इतनी हमदर्द और शिष्ट रहती हैं कि इकलौते पैदल चलने वाले को रास्ता देने के लिये अपनी और दूसरों की राह खोटी करके सारा ट्रैफिक रोक देती हैं…
इस उम्दा पोस्ट के माध्यम से यूसुफ़ी साहब जैसी अज़ीम शख्सीयत से भी तारूफ्फ़ हुआ, इसके लिए शुक्रिया…आज ही नोएडा में यूसुफ़ी साहब की किताब का हिंदी में हुआ तर्जुमा खरीदने जा रहा हूं…
जय हिंद…
हर शहर की अपनी खूबियाँ होती हैं और कुछ कमियां भी। लेकिन इन्सान जहाँ रहता है , उसी जगह से लगाव सा हो जाता है। अच्छा है कि लन्दन अच्छा लगता है।
"…जाने क्या है कि इससे जुड़ा हुआ ही महसूस करती हूँ. एक सुरक्षा कवच की तरह यह सहेजे रहता है मुझे। जब भी कभी जिन्दगी से निराशा-सी हुई इसने ही सँभाला है, फैला देता है ये अपनी अ-कपट सी बाँहें और मैं अपनी सारी नश्वरता उसे सौंप देती हूँ, हो जाती हूँ हवा-सी हलकी फिर से बहने को उसी दिशा में जिस में चलना चाहिए मुझे. इस शहर ने मुझे सपने नहीं दिए पर उन तक पहुँचने की राह दिखाईं और फिर उन्हें पूरा करना सिखाया. इस शहर ने मुझे मुझ तक पहुँचाया. मुझसे मेरा परिचय कराया और खुद से दोस्ती करना भी सिखाया…समय पर सब कुछ होता है, व्यवस्थित-सा। यहाँ तक कि मौसम भी कहे अनुसार ही चलता है, अपने ही समय पर डेफोडेल आते हैं और अपने ही समय पर गुलाब।…यहाँ जिन्दगी से डर नहीं लगता। कल ऐसा होगा तो क्या होगा ये खौफ़ नहीं होता। उसने देखा तो क्या सोचेगा यह ख़याल नहीं आता। सड़क पर अपने ही साए से भय नहीं लगता। नहीं होती लाठी हाथ में पर पीठ भी झुकी नहीं होती। बस ज़रा इसके स्वभाव में ढलने की बात है फिर कुछ भी तो असहज नहीं लगता।…शायद इसलिए जब-जब ज़िन्दगी-की शीत लहर ने छुआ एक धूप-की किरण इसने हमेशा पहुँचा दी सहलाने को।"……..
बार-बार पढ़े जा रह हूँ ये वाक्य और सोच रहा हूँ कि क्या वाकई लन्दन जैसा एक महानगर किसी वाशिन्दे-को इस क़दर लुभावना लग सकता है! वैसे इसमें हैरत की भी बात नहीं है, यदि उस शिद्दत का लगाव कोई महसूस करे जैसा ये पंक्तियाँ दर्शाती हैं. शह्र-का भी दिल होता है शायद तभी तो लन्दन-के एक-एक स्पन्दन-को अपनी धडकनों में जीते हुए यह प्रेमपत्र-सा सुन्दर लेख लिखा है शिखा जी आपने. प्रीतिकर और लालित्यपूर्ण लेखन है.
शहर से अपनापन हो जाये तो समझ लें कि टिकने का ठिकाना मिल गया। हम तो कितने शहर बदल चुके हैं कि प्यास निश्चय बनता ही नहीं।
लन्दन को भी आपसे प्यार अवश्य हो गया होगा और वह भी आपके अपनेपन से ओतप्रोत होगा ।
आत्मीयतापूर्ण लेखन ।
दोस्तों को अपने पास बुलाने का बेहद दिलचस्प अंदाज़ …… चलो आते हैं तुम्हारे पास 🙂
ह्म्म्म्म~~~~~~~ यूँ तो शिखा तुमने बेशक लिखा बेहद अच्छा है…. मगर क्या है कि हर जगह की अपनी ही एक खासियत होती है,जहां से आप जुड़ जाओ अपना सा लगने लगता है,असल में जिसको भी प्यार करने लगते हो आपका पूरा अपना-सा बन जाता है….यही मन की खासियत है…. यही जीवन का तरीका है
बड़ा आत्मीय सा आलेख लगा . किसी भी स्थान के साथ आत्मीयता से जुड़ जाना , उसकी आत्मा को समझ पाना.और उसके गुण अवगुण को आत्मसात कर लेना , अद्भुत होता होगा . बधाई आपको इस आलेख के लिए .
चलो अच्छा है, आपको अपना अपना सा लगने लगा वहाँ, नहीं तो मुझे तो टेन्शन हो रही थी कि आप हमें मिस कर रहीं होंगी… पर मिस तो करती ही होंगी न? 🙂
आइये न 🙂 स्वागत है.
हाँ :)थोड़ा थोड़ा.
बेहद हटकर लिखा गया आलेख है जो काव्यात्मक अभिव्यक्ति देता है. सकारात्मक सोच सही मार्ग दिखाती है. शुभकामनाएं.
रामराम.
आपने जिन-जिन जगहों के बारे में लिखा है, खासकर अपने जुड़ाव के बारे में तब तब एक ही बात दिल में आयी है कि आप शहरों को, जगहों को सिर्फ इमारतों या लोगों से नहीं एक आत्मीयता से देखती हैं.. और आपके यही भाव आपके इन आलेखों को पाठक से जोड़ते हैं..
इस आलेख को पढ़ने के बाद जिसने न भी देखा हो यह शहर उसे भी प्यार हो जाए!! बहुत ही जीवंत!!
सिर्फ यही नहीं यार मुझे तो हर वह जगह अपनी सी लगने लगती है जहां 1-2 साल गुज़र जाएँ इसलिए मैं अब तक crawley और bourmouth दोनों को बहुत मिस करती हूँ।
🙂
मुझे लगता है हर शहर में रहने की आदत सी हो जाती है….जैसे हमें अपनों के साथ की आदत हो जाती है..फिर उसकी हर बात भली लगती है….और अपना एक स्वभाव भी होता है….किसी के स्वभाव में सहज एक्सेप्टेंस होती है,जैसे आपके…..फिर सब कुछ भला सा अपना सा लगेगा ही….
so the credit goes to you,not the place 🙂
love-
anu
शहर लंदन …जिसे पहले दिन से ही अपना लिया गया हो … सुकून तो उसे देना ही था … शहर को जिस तरह अपनाया है वो लेखन शैली ही बता रही है …काव्यात्मक रूप में गद्य विधा …. हर शब्द जैसे पाठक महसूस कर रहा हो … कम से कम मैं तो कर रही हूँ …
बेहतरीन अभिव्यक्ति
शांत शहर ही लगता है , जितना लन्दन के बारे में सुना है . परदेश में किसी शहर से लगाव होने का मतलब है मन अच्छी तरह रच बस गया है ! बहुत बधाई !
लगता है आपने समय को समेत लिया है अपनी आगोश में ….
बाहरी परिवेश के भीतर एक आन्तरिकता हर शहर की अपनी ,उससे जुड़ जाने के बाद अपनापन लगता है,उसकी हवा,पानी,मौसम सब परिचित और आदत में ऐसे शुमार कि कहीं जाओ तो मन में घुमड़ जाते हैं.मोह कहें क्या इसे !
जब व्यवस्थाओं पर विश्वास हो तो सुरक्षा आती है और सुरक्षित होते ही अपनापन लगने लगता है। छोटी सी बात लेकिन सारगर्भित।
🙂
so touchy ….
बहुत ही अपनेपन से समेटा वह अपनापन …..जो इस शहर ने दिया ….बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..!!!
बहुत 'टची' व 'प्रशंसनीय' टिप्पणियां …!
शुक्रिया 🙂
आज की ब्लॉग बुलेटिन क्यों न जाए 'ज़ौक़' अब दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
सुन्दर अहसास
अपने से इस शहर को भावनात्मक अंदाज से जोड़ा है शब्दों के साथ … अपनी सी खुशबू जब शहर से आने लगे तो जुड़ाव सहज ही हो जाता है …
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति …मन में अपनापन हो ,कहीं कोई चीज़ पराई नहीं लगती …!!
लन्दन आने की इच्छा है , वहां कोई आयोजन रखिये न 🙂
बेहतरीन !!
'सबकुछ संतुलित है यहाँ, कोई खौफ नही, कोई डर नही' काश ऐसी होती हमारी दिल्ली!
बहुत खूब
हाँ शिखा …मैं भी सतीश सक्सेना जी की बात से सहमत हूँ …एक आयोजन लंदन में रखो …हम भी आएँगे
आप लोग आ जायेंगे तो आयोजन अपने आप हो जाएगा :).
आप लोग आ जायेंगे तो आयोजन अपने आप हो जाएगा :).
मैं २-३ बार लन्दन गया हूँ. सच में वहाँ सब कुछ अपना सा लगता है
yu toh har wo cheez apni se lagti hai jisme hum ramte hain , per pardesh main apna sa sehar mausam ,nidarta ka anubhava sach kisi swapan k sakar hone se kam na hoga .
Vesvik dharatal per bhi kam tar nahi hoga wo sehar
agar to hume apne gaon ki mitti se bhi pyar h par waqt ka sagar london ko apna sa bana gaya ya ki london ne apko apna bana liya …bas itni guzarish hai ki …agli peedhi ko waha rehte hue bhi apne desh k kisi sehar main bhi us begane se apne sehar ki ada doondh lena jarur sikhaiyega
per sach tarif k qabil hai wo sehar aur apki usse nijta
Four to five associated with this fruit juice have to be consumed each week to obtain the desired result. Use these circumspectly however, while they may lower blood sugar levels, that’s an unsatisfactory effect in males whose blood sugar are properly balanced.
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The prostate gland is a vital section of a male’s reproductive :. It secretes fluids that assisted in the transportation and activation of sperm. The prostate related is located just as you’re watching rectum, below the bladder and surrounding the urethra. When there is prostate problem, it will always be really miserable and inconvenient for your patient as his urinary product is directly affected.
The common prostate health issues are prostate infection, enlarged prostate and prostate type of cancer.
Prostate infection, often known as prostatitis, is the most common prostate-related problem in men younger than 55 years. Infections of the men’s prostate are classified into four types – acute bacterial prostatitis, chronic bacterial prostatitis, chronic abacterial prostatitis and prosttodynia.
Acute bacterial prostatitis could be the least common of kinds of prostate infection. It is a result of bacteria based in the large intestines or urinary tract. Patients can experience fever, chills, body aches, back pains and urination problems. This condition is treated by utilizing antibiotics or non-steroid anti-inflammatory drugs (NSAIDs) to help remedy the swelling.
Chronic bacterial prostatitis is often a condition of a particular defect inside the gland and also the persistence presence of bacteria inside the urinary tract. It can be a result of trauma for the urinary tract or by infections from other regions from the body. A patient may feel testicular pain, back pains and urination problems. Although it is uncommon, it is usually treated by removal in the prostate defect then the utilization antibiotics and NSAIDs to help remedy the soreness.
Non-bacterial prostatitis is the reason for approximately 90% of prostatitis cases; however, researchers have not to establish the cause of these conditions. Some researchers believe that chronic non-bacterial prostatitis occur because of unknown infectious agents while other believe intensive exercise and high lifting might cause these infections.
Maintaining a Healthy Prostate
To prevent prostate diseases, an appropriate diet is important. These are some in the steps you can take to maintain your prostate healthy.
1. Drink sufficient water. Proper hydration is necessary for overall health and this will also keep the urinary track clean.
2. Some studies declare that a few ejaculations each week will prevent cancer of the prostate.
3. Eat pork in moderation. It has been shown that consuming over four meals of beef every week will heighten the chance of prostate diseases and cancer.
4. Maintain an effective diet with cereals, vegetable and fruits to be sure sufficient intake of nutrients needed for prostate health.
The most crucial measure to consider to make certain a wholesome prostate would be to choose regular prostate health screening. If you are forty years old and above, you need to go for prostate examination at least one time per year.
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