तब से अब तक कई सदियाँ बीत गईं,.औद्योगिक क्रांति हुई, ह्युमन राईट की बातें की जाने लगीं. राजे रजवाड़े दुनिया से ज़्यादातर ख़तम हो गए .कहीं इक्का दुक्का ही बचे. पर उन में राजसी वैभव और उसके प्रदर्शन का रिवाज़ जस का तस बना रहा.इस पर ना किसी व्यवस्था का फरक पडा ना जाति, धर्म, देश या परिवेश का.

इन्हीं कुछ चुनिन्दा रजवाड़ों में एक मुख्य है इंग्लैंड,जो एक समय में विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य था. जिसके लिए कहा जाता था कि सूरज ब्रिटेन के साम्राज्य में ही उदय भी होता है और अस्त भी.उस दौरान अपने गुलाम देशों से बहुत सा बैभव उन्होंने बटोरा और सदियों तक शासन किया.कालांतर में गुलाम देश आजाद होते गए और ब्रिटेन के साम्राज्य के साथ ही इसकी आर्थिक स्थिति भी सिकुड़ती गई.और आज इंग्लैंड भी बाकी देशों की तरह आर्थिक मंदी से गुजर रहा है.और ऐसे दौर में इंग्लैंड की रानी इस वर्ष अपनी हीरक जयंती मना रही हैं.और इसी उपलक्ष में देश भर में तैयारियां जोरों पर हैं,तरह तरह के आयोजन शुरू हो गए हैं इनमें ही एक के तहत रानी ने अपने जनता से मिलने का दौरा ( जुबली टूर ) पिछले दिनों रेडब्रिज नाम के इलाके से शुरू किया.इस इलाके में उसदिन करीब १ किलोमीटर तक सुबह ७ बजे से ही लगभग १०,००० लोग जमा हो गए थे.इलाके के सभी प्राईमरी और सेकेंडरी स्कूलों के कुछ चुनिन्दा बच्चों को रानी से मिलने का गौरव प्रदान करने के लिए वहीँ सड़क पर धूप में घंटों पहले जमा कर दिया गया.सबके हाथों में यूनियन जेक,पोस्टर थे. माँएं अपने नवजात बच्चों को लिए रानी के दुर्लभ दर्शनों के लिए घंटो सड़क पर खड़ी इंतज़ार कर रहीं थीं. निर्धारित समय पर रानी की सवारी आई साथ में एडिनबरा के राजकुमार भी.कार से उतर कर दोनों तरफ लोगों की भीड़ से घिरी एक सड़क पर कुछ दूर चलीं, जो लोग सड़क के निकट थे उन्हें एक झलक नसीब हुई. उसके बाद उन्होंने कुछ औपचारिकतायें निभाईं फिर वह अपनी कार में स्कूली बच्चों के बीच से निकलीं, बच्चों को कार से एक हाथ हिलता दिखाई दिया और कुछ बड़े बच्चों को एक झलक चेहरे की भी मिल गई .और बस हो गया जनता का रानी का गौरवपूर्ण दर्शन समारोह संपन्न.और बच्चे रानी से मिलने का गर्वित अहसास लिए लौट आये.

वहीँ भारत में पैदा हुए इस्ट इंडिया कम्पनी के चीफ एक्ज्यूकेटिव संजीव मेहता ने इस उपलक्ष में दुनिया का सबसे महंगा सुविनियर (स्मृति चिन्ह ) बनाया है.£१२५,००० के सोने के इस सिक्के पर हीरों का मुकुट पहने रानी की छवि अंकित है.उन्होंने १किलो के ऐसे ६० सिक्के बनवाये हैं जो रानी के स्वर्णिम ६० सालों के शासन काल को दर्शाते हैं. ६० सिक्के चांदी के भी बनाये जायेंगे,हर एक कीमत £२५,००० होगी.संजीव मेहता के अनुसार यह पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य रूपी मुकुट में एक गहने के रूप में भारत की प्रतिष्ठा का प्रतीक है.और देश की इतने वर्षों तक सेवा करने वाली इस महिला को सम्मान है.
नवभारत (अवकाश २२/४/२०१२) से सभार .
gauravpurn itihas ko deekhane ke liye apne ko kangaal bana dena…..:)
par koi nahi ho jaye ye angrej kangaaal! hame to achchha hi lagega:-D
apart from joke… Shikha, aap ki reporting itni pyari hoti hai, ki jis se koi matlab nahi, fir bhi ham sab samay dete hain, usko padhte hain…bahut behtareen!
navbharat times pe aapke aalekh ke liye badhai aur shubhkamnayen:)
राजसीपन बरकरार है इस परम्परा में.
सार्थक शीर्षक.
सार्थक लेख है और इसमें ब्रिटेन के राजसिपन का स्पस्ट चित्रण है |
एक साम्राज्य जिसमें कभी सूरज नहीं डूबता था और अब डूबते सूरज की चमक.. इस आर्थिक मंदी के दौर में ये आयोजन और समारोह "डूबते सूरज की चमक" कम "बुझते दिए की लपट" अधिक लग रही है!!
आपने जिस प्रकार एक निष्पक्ष और तटस्थ होकर इस लेख के माध्यम से जानकारी दी है, उसमें ऐसा लग रहा कि हम एक रिपोर्ट पढ़ रहे हैं. यही इस आलेख की विशेषता है.. कोई पूर्वाग्रह नहीं और कहीं कोई लगाव नहीं!!
बहुत बहुत बधाई!!
queen is queen after all…….
ब्रिटेन में आज भी जनता, रानी को दिल से चाहती है और इज्ज़त देती है…हाँ मगर उनका प्रतिशत धीरेधीरे कम होता जा रहा है…..व्यवहारिक कारणों की वजह से
सादर.
अनु
ब्रिटिश सामाज्य…डूबता सूरज…ही तो हो!…अब भी महारानी जी अपने ऐश्वर्य की चमक को किसी भी कीमत पर बरकरार रखना चाहती है!…बहुत बढियां जानकारी!….आभार!
कमाल का शीर्षक है शिखा और बहुत सार्थक मुद्दा भी. किसी भी पत्रकार की पैनी नज़र ऐसे समारोहों के औचित्य पर होनी ही चाहिये. बधाई.
भारत में भी अभी भी तमाम राजे रजवाड़ों की चमक बाकि है… तत्कालीन ग्वालियर (सिंधिया) रियासत के वंशजों को यहाँ की जनता आज भी राजा मानकर सम्मान देती है…
आपके आलेख से तमाम जानकारियां हासिल हुईं… साथ ही राजा-महाराजाओं की कहानियां याद हो आई…
अच्छी रपट है 🙂
साख पर बट्टा न लगे बस ….. और गौरवपूर्ण इतिहास का सवाल तो खैर है ही ..
मेरे एक परिजन लन्दन में थे …एक अंग्रेज भिखारी एक दिन उनसे टकराया …
"वुड यू प्लीज लेंड मी अ पौंड? मतलब उधार दे दो ,फिर एक सवाल और ..
"व्हिच कंट्री यू हैव कम फ्राम"
मेरे परिजन इस अचानक आयी मुसीबत से संभल ही रहे थे कि मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा ..
"इंडिया "
वंस वी रूल्ड दैट कंट्री -उसने गर्व से कहा …. 🙂
रस्सी जल गयी है मगर अकड़ बरकरार है ..
वैभव का भोंडा प्रदर्शन तो कोई इनसे सीखे …
आप कैसे टालरेट करती हैं यह सब ?
the britishers are known to be well educated people. and as u wrote they also follow this foolish like celebrations.
aur ye to yaha bhi hota hai! then what is the difference between them and rest of the world. "Hamam me sabhi nanage hote hain" ! nice stare, Title is Amazing! infact Suraj ko jabardasti uga rakha hai!
किसी भी हालत में एक स्तंभ बचा कर रखा है वहाँ पर, यहाँ तक कि हम भी अपना गौरवशाली इतिहास वहीं पर तलाश कर रहे हैं।
बहुत बढियां जानकारी
समय सदा एक सा नहीं रहता. आज विश्व बदल रहा है
फोर एवेरी नेशन … इट्स टाइम टू चेंज दी हिस्ट्री … हिस्ट्री व्हिच डेपिक्ट्स कोलोनियलिज्म एंड इम्पेरीयलिज्म… मस्ट रीडिफाइन विदिन इटसेल्फ… वैरी नाइज़ आर्टिकल… कौन्ग्रेट्स फोर बींग पब्लिश्ड ….
जानकारी मिली ।
आभार ।।
सार्थक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की 150वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें तथा मेरी अब तक की काव्य यात्रा पर अपनी प्रति क्रिया दें , आभारी होऊंगा .
इस आलेख के माध्यम से तुमने बहुत कुछ बताया
जनता का हाल कुछ भी हो, राजाओं के राजसी ठाठ में कभी कमी नहीं आती. लेकिन जनतंत्र में भी शासकों का व्यवहार और सोच राजाओं से कम नहीं है. बहुत रोचक आलेख…
आप वहीँ हैं, तो चार-पांच सिक्के उड़ा के इधर भिजवा दीजिए तो मजा आ जाए 🙂
वैसे ये आलेख बहुत पसंद आया..ब्रिटेन की महरानी के बारे में बहुत से किस्से सुन चूका, पढ़ चूका हूँ, देख चूका हूँ(फिल्मों में)..
शाही ठाठ बाठ ।
फिर भी हीरो वर्शिपिंग वहां भी होती है ।
शीर्षक आपने बहुत ही सही दिया है .. ये चमक दमक अब उनके डुबते हुए सूरज की ही है जिनके राज में कभी सूरज डूबता ही नहीं था।
ये राजसी ठाट-बाट ये लोग कब तक दिखाते रहेंगे। और इस चकाचौंध से किसकी आंखें चौंधियाना चाहते हैं।
आलेख के द्वारा कई नई जानकारियां मिलीं। आपकी लेखन शैली चमत्कृत करती है।
इंगलिस्तान के रानी साहिबा की हुकूमत के ६० साल , हीरक जयंती. लूटी हुए संपत्ति तो अब ख़तम हो ही गई होगी. बिना किसी प्राकृतिक संसाधन के इत्ते दिनों तक रंगबाजी चली ये क्या कम है . सूरज डूबना क्या , दिये भी बुझेंगे . मैंने भी निकाल लिया गुबार .
एक उम्दा आलेख … बधाइयाँ और शुभकामनायें !
हम त यही सुनते आये हैं कि अंग्रेजों के राज में सूरज कब्भी नहीं डूबता। जब्कि आपने लिखा है (-सूरज ब्रिटेन के साम्राज्य में ही उदय भी होता है और अस्त भी) 🙂 ये फ़रक शायद अंग्रेजों के इलाके में होने और उससे अलग इलाके में होने के चलते है।
हम त यही सुनते आये हैं कि अंग्रेजों के राज में सूरज कब्भी नहीं डूबता। जब्कि आपने लिखा है (-सूरज ब्रिटेन के साम्राज्य में ही उदय भी होता है और अस्त भी) 🙂 ये फ़रक शायद अंग्रेजों के इलाके में होने और उससे अलग इलाके में होने के चलते है।
डूबते सूरज की चमक …. बस अब दिखावा ही बचा है … राजशाही का दिखावा …. बहुत अच्छी जानकारी दी है …
अंग्रेजों के राज में सूरज कभी नहीं डूबता था … मतलब की कहीं न कहीं दिन रहता था … वैसे अलग अलग जगह तो उदय भी होता था और अस्त भी … तो उनके राज में उदय और अस्त होने वाली बात तो सटीक ही है …
पूरा लेख पढ़ने के बाद बस कुछ सोचने सा लगा हूँ..
राजसी वैभव और उसके प्रदर्शन का रिवाज़ जस का तस बना रहा.इस पर ना किसी व्यवस्था का फरक पडा ना जाति, धर्म, देश या परिवेश का.
ACTUALLY IT IS A PART OF OUR TRADITION ,COSTUM AND CULTURE SO IT WILL TAKE TIME TO SINK.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं….
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी……
ऐसा ही शायद ….. बहार कुछ भीतर कुछ , दिखावे की परम्परा या परम्परा का दिखावा
राजशाही समाप्त होने के बाद के ये दिखावटी जलवे हैं !
सच ही कहा कि रस्सी जल गयी , बल नहीं गया !
अंग्रेज घमंडी रहे हैं …
हमें तो इस सिक्का अपना सा लग रहा है 🙂
बढ़िया पोस्ट ..
समर्थ कहीं का भी हो …प्रदर्शन से बाज़ नहीं आता।
जानकारी तो मिली ही, आलेख ने विचार को विवश भी किया। ऐसे प्रसर्शनों को ही कई बार राष्ट्रगौरव मान लिया जाता है।
अच्छा आलेख है……विचारणीय भी।
पूरे विश्व में राजाओं की चमक तो बाकी है … भारत जैसे देश में जहां आज कानूनन राजा नहीं रहे वहां पे भी इनकी टोर आज भी राजा जैसे ही है …
पर ये सच है की ब्रिटेन का मामला अलग है …
bahut khoobsurti ke saath likhi hain….wah.
प्रजा को राजा की तरह सोचने का हक़ नहीं है |
राजा राजा है, प्रजा प्रजा |
उम्दा पोस्ट।
राजनैतिक दृष्टि से देखें तो दुनियाँ में दो ही जाती पाई जाती है…शोषक और शोषित। जब तक मानव है यह कभी नहीं बदलेगा। राजा राज करेगा उसी हाँका मस्ती में। प्रजा जीती रहेगी उसी फाँका मस्ती में। लोकतंत्र हो या राज तंत्र..जन जन की दुश्वारियाँ कम नहीं होंगी। यही कटु सत्य है। कभी एक शेर लिखा था….
रहनुमा बदलने से दुश्वारियाँ नहीं जातीं
मालिक भेड़ बकरी का सदियों से कसाई है।
bhtreen jankari ………………….shukriya
बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति.
सबका रिवाज अपना अपना.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ.
जानकारी तो अच्छी थी, और जैसा कई लोगो ने लिखा शीर्षक सार्थक है | इस तरह पैसा बर्बाद करना तो यही दर्शाता है कि रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया 🙂 खैर देश-देश की बात है !!!
बाकी इस्ट इंडिया कम्पनी के चीफ एक्ज्यूकेटिव संजीव मेहता तो पहले एक और एलान कर चुके हैं कि वो महंगे ब्रांड मार्केट में उतारना चाहते हैं (http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-08-16/india/28311109_1_brand-new-avatar-sanjiv-mehta) |
उन्होंने आग्रह भी किया है कि उनकी बात मानी जाये, ये भारत हित में है, रानी तो उनसे बहुत खुश होंगी !!!! 🙂 🙂 🙂
रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गए…
जय हिंद…
बहुत ख़ूब!!
इस मामले में तो ज़माना न कभी बदला है न बदलेगा और कहीं हो न हो मगर यहाँ राजाओं का राजसी पन बरकरार रहेगा,फिर चाहे प्रजा को कर के रूप में कितनी भी दिक्कतों और परेशानियों का सामना क्यूँ ना करना पड़े। बहुत बढ़िया आलेख शुभकामनायें….
महत्वपूर्ण प्रश्न. वह बर्तानिया की रानी है. हीरक जयंती से जुड़े उस वैभवपूर्ण आयोजनों का अनुमान लग ही रहा है.
sunder jankari rani to rani hain
rachana
सुबह उगने वाला सूरज …शाम होने पर अस्त भी होता हैं ..ऐसा ही कुछ अब ब्रिटेन की रानी और देश के साथ भी हो रहा हैं
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति…!
राजाशाही और उसकी चकाचौंध हमारे दिलों में घर कर लेती है। इसकी आड़ में हम नहीं देख पाते अपनी भूख और गरीबी। बस एक क्षण की चमक-धमक ही हमारी खुशी का कारण बन जाता है। अमीर और गरीब का खेल हमेशा खेला गया है और हमेशा खेला जाता रहेगा। अच्छा सार्थक आलेख।
Raja raniyon kee chamak to ab nammatr ke Raja raniyon kee bhee hai.
Fir ye to sekadon salon tak wishw ke pratyek mahatwpeerna desh par sattadhariyon ka sawal hai. Jo Raja nahee hain we rajneta bhee to yahee sab karate hain han level alag alag hota hai.
srthak aalekah.
राज राजवाडों के शान-शौकत का अपना ही अंदाज़ होता है चाहे भारत हो या किसी भी देश में. आर्थिक मंदी के दौर से लगभग सभी देश गुजर रहे हैं, परन्तु सभी देश अपने अपने तरह से सरकारी तंत्र और संपत्ति का उपयोग करती है भले देश की जनता पर बोझ बढ़ जाए. इंग्लैण्ड की रानी का सम्मान वहाँ की जनता भी चाहती होगी और आलिशान आयोजन होना भी चाहिए, आखिर रानी हैं. अच्छी जानकारी मिली, शुभकामनाएँ.
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