कल देखा था मैंने उसे
वहीँ उस कोने में
बैठा था चुपचाप
मुस्काया मुझे देख
सोचा होगा उसने
कुछ तो करुँगी
बहलाऊँगी ,मनाऊंगी
फिर उठा लुंगी अहिस्ता से
हमेशा ही होता है ऐसे.
वो जब तब रूठ कर बैठ जाता है
थोडा ठुनकता है,
यहाँ वहां दुबकता है
फिर मान जाता है.
पर इस बार जैसे
कुछ अलग है
नहीं है हिम्मत मनाने की
जज्बा बहलाने का
स्नेह उसे उठाने का
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो
कुम्हलाया,सकुचाया, हताश सा
मेरा अस्तित्व .
सच! कभी कभी निरीहता व्यथित कर डालती है…
सुन्दर…
बहुत बढ़िया कविता…
बेहतरीन!
सादर
ओह ! अपने अस्तित्व से मूँह मत मोडिये …………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ओह! वॉट अ मीनिंगफुल …हार्ट टचिंग पोएम… टच्ड रियली टू द कोर ऑफ़ हार्ट….
बियुटिफुल…. ऐज़ ऑलवेज़…
सुंदर..
पर …. अस्तित्व यूँ मिटता नहीं
किसी में इतनी ताकत नहीं जो मिटा दे अस्तित्व को
क्षणांश को सब डगमगाते हैं
फिर अपने अस्तित्व को त्रिनेत्र बना
दुनिया को देखते हैं …
बेहद उम्दा भाव समेटे है आपने अपनी इस कविता मे … बधाइयाँ और शुभकामनायें !
शिखा जी… बेहतरीन कविता… अपुन निशब्द…
ये निरीहता क्षणिक है ……आपकी कविता के भावों के साथ ही बह गई …..हम अपने मन से ही छुपान-छुपाई खेलते हैं कभी कभी ….
सुंदर रचना ….
उसे बस!…आत्मीयता और प्यार चाहिए आपसे!…बहुत सुन्दर शब्दों में ढली कविता!…आभार!…बैशाखी की शुभकामनाएं!
khud ka astitwa:)
har din ham dhundhte hain
har din sochte hain…
kaise puchkaren, kaise dulare.. kaise usko khush rakhen..
par dinodin wo kumhlate ja raha hai… pata nahi kahan khota ja raha hai…!!
behtareen!! allrounder:)
सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!
ओह !!
झकझोर दिया आपने ।
दुबारा आता हूँ ।।
shikha ji aapki ye kavita sabhi ka drd bayan kar rahi hai .thakjate hain kabhi kabhi apne astitv ko sambhalte sambhalte ……………..
badhai
rachana
मुश्किल सह अस्तित्व था, दुराग्रही पहचान ।
खतरे में खुद पड़ चुका, रूठा जिद्दी जान ।
रूठा जिद्दी जान, जान अब मेरी खाए ।
करूँ नहीं एहसान, आज फिर कौन बचाए ।
है निरीह शैतान, सदा हमने बहलाया ।
रखा खींच ना कान, शिखा नख तक तड़पाया ।।
कमाल की अभिव्यक्ति है ….
मगर उसे सहयोग चाहिए आपका …ऐसा समय कम ही आता है और क्षणिक होता है !
शुभकामनायें आप दोनों को !
वाह अंत ने तो चमत्कृत कर दिया -मेरा वजूद !
प्रथम पंक्ति से अंतिम पंक्ति तक बांधकर रखती है यह कविता और अंत…!!!
आजकल सह-अस्तित्व का जमाना है जी . अपने अस्तित्व को समझाओ की ऐसे रोज रोज गुस्सा करने से कुछ नहीं होता , ऐसे में तो गुस्से का अस्तित्व ही दांव पर लग जायेगा.. वैसे भाव पक्ष इतना प्रबल है की वाह वाह कहने को दिल किया .
Awesome..
antim pankti ne to katal kar diya..Khatarnak kavita 🙂
सुन्दर.
नहीं है हिम्मत मनाने की
जज्बा बहलाने का
स्नेह उसे उठाने का
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो
कुम्हलाया,सकुचाया, हताश सा
मेरा अस्तित्व .
LET ME KNOW THE PLACE TIME AND OCCASION THERE YOU GET THIS MUCH NICE THOUGHT.IF YOU DONT MIND .
नहीं है हिम्मत मनाने की
जज्बा बहलाने का
स्नेह उसे उठाने का
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो
कुम्हलाया,सकुचाया, हताश सा
मेरा अस्तित्व .
LET ME KNOW THE PLACE TIME AND OCCASION THERE YOU GET THIS MUCH NICE THOUGHT.IF YOU DONT MIND .
अरे!! इतनी हताशा क्यों? तुम से मुझे हताशा की उम्मीद नहीं है 🙂
वाह…………….
बहुत सुंदर…………
चमत्कारिक अंत…
अनु
कविता शुरू होते लगा की न जाने कौन रूठा बैठा है जिसे मनाने की कोशिश नहीं की जा रही … अस्तित्व कभी कभी कहीं छिप जाता है लेकिन खत्म नहीं होता … कुछ पलांश लगता है ऐसा पर मालूम है कि दुलार लोगी … बहुत खूबसूरत रचना
अस्तित्व – के बारे में खूब लिखा है.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – किसी अपने के कंधे से कम नहीं कागज का साथ – ब्लॉग बुलेटिन
आह… ये भाव भी उपजते हैं कभी कभी ….हार्दिक शुभकामनायें
बहूत खूब शिखा जी ….LOL
शिखा जी मैने आपकी तमाम पिछली पोस्ट पढीं. बहुत अच्छा लिखती हैं आप. यहां कई लोग हैं जो बहुत अच्छा लिखते हैं. आपकी किताब के बारे में भी पढा. इस किताब को पढने का मन है,. नेट पर उपलब्ध है क्या?
कविता सुन्दर है लेकिन निराशा झलक रही है. आप के जैसी सफल शख्सियत की रचनाओं में निराशा या हताशा का स्थान नहीं होना चाहिये.
अस्तित्व … अक्सर इंसान खुद ही कभी थक जाता है उसे बचाये रखने में … गहरी रचना …
होता है कभी कभी अपने अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा कर बैठ जाते हें लेकिन ये क्षणिक है — कवि मन की एक स्थिति ये भी होती है. बहुत सुंदर शब्दों में अभिव्यक्ति !
Madam aapki kavita padkar esa laga jaise mai kavita k sath -sath chal raha hu vastav me bahut sundar kavita ki rachna ki aapne.
अपने अस्तित्व को सप्रयत्न बचाईये, वह सुदृढ़ रहा तो दुनिया सध जायेगी।
Bahut Khoob
Thanks
Arun
arunsblog.in
अद्भुत…
यह तो नाइंसाफी है खुद के साथ।
*
बहरहाल आप जो वहां ऊपर अपने फोटो के कोने में बैठी हैं बहुत अच्छी लग रही हैं।
बेहद सुंदर । पर रूठे अस्तित्व को और मनाइये ना मान ही जायेगा ।
क्या हम और क्या हमारा अस्तित्व, यह विचार ना जाने कितनी बार मन में हताशा भर देता है लेकिन फिर उसी के सहारे जीवन बिताने के लिए तत्पर होना ही पड़ता है। आपकी कविता दिल में उतरने वाली है। बधाई।
मन की गहरी कशमकश !
बहुत बढ़िया ।
अपने अस्तित्व का अहसास होना, और होते जाना, यही सबसे बड़ी बात है। इस दुनिया में कई बार लगता है मेरा कोई अस्त्तित्व ही नहीं है। अब उसका रूठना और मनाना एक मायावी चीज़ है। अहसास होना आध्यात्मिक।
अति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ …..
अस्तित्व से अक्सर मुलाकात करते रहना चाहिेए…
जय हिंद…
prabhavshali rachna :)last line ne samaa bandh diya ….
badi masoom si kashmkash hai….per isse jitni jaldi ubar jayen ,achchha hai….sunder..
रचना की शुरुआत में लगा कि किसी प्यारे से बच्चे के हठ की बात है, लेकिन अंतिम पंक्ति पढते ही हठात कह बैठी ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ! बेहद भावपूर्ण, शुभकामनाएँ.
अपने अस्तित्व के सिमटने या मिटने से बढ़कर हताशा और नहीं हो सकती !
खुद का खुद से रूठना काफी मुश्किल होता है,
पर खुद को खुद से मनाना और भी मुश्किल होता है,
बेहद मार्मिक और अर्थपूर्ण…..
वाह क्या बखूबी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है! 🙂
बहुत ही अच्छी कविता |
'नहीं है हिम्मत मनाने की
जज्बा बहलाने का
स्नेह उसे उठाने का
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो'
– ये अन्याय है उसके साथ,ऐसे मत छोड़िये उसे !
"अस्तित्व" शब्द अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है !!!! कविता बहुत सुन्दर है !!!
वाह सुंदर
bahut sundar
बेहद उम्दा भाव दिल को छू लेते है. कुछ बात तो है इस कविता में.
ऐसी कविता लिखने के बाद कम से कम एक सप्ताह सुबह शाम 5-6 किमी तेज चाल से टहलना चाहिए।
मन को छूने वाली कविता.. बहुत सुन्दर…
सारगर्भित है कविता…
पड़ा ही रहने दिया जाए अपने अस्तित्व को यूं ही…पर अस्तित्व को रिझाने को जतन व लालन-पालन वैसे ही है जैसे माता अपने लाडले से बच्चे से दुलार करे…पर कभी थकान भी हो जाए इस तरह अस्तित्व के दुलार-प्यार में…
शुरु से आखिर तक बाँधे रखे कविता… पर बात जब अपने ही अस्तित्व पर आकर रुके तो पढ़ने वालों को सहज ही विस्मय हो जाए…
शायद ऐसे ही भाव कविता में जान भी डाल दे…और साथ में कवित्री की महिमा और मनःस्थिति भी दर्शाए…
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