लंदन में इस साल अब जाकर मौसम कुछ ठंडा हुआ है. वरना साल के इस समय तक तो अच्छी- खासी ठण्ड होने लगती थी, परन्तु इस बार अभी तक हीटिंग ही ऑन नहीं हुई है. ग्लोबल वार्मिग का असर हर जगह पर है. वैसे भी यहाँ के मौसम का कोई भरोसा नहीं।शायद इसलिए
और हम जैसे दो नावों में सवार प्राणी इस मौसम से सामंजस्य बैठाये बीते मौसम को याद करते रहते हैं.
खिड़की के डबल ग्लेज्ड शीशों से छनकर थोड़ी धूप आने लगी है.चलो आज यह साड़ियों वाली अलमारी ही खोलकर सम्भाल लूं.न जाने कब से बंद पड़ी है. भारी साड़ी, एक्सेसरीज, कभी निकालने का मौका ही नहीं मिलता।
अपने देश में अब शादियों का मौसम आ रहा है। अरसा हो गया कोई शादी देखे। क्योंकि अपने देश में शादियां महूरत से होती हैं परन्तु यहाँ छुट्टी तो महूरत से नहीं मिलतीं न ।
शायद अपनी शादी में ही आखिरी बार शामिल हुई थी. उसमें तो बरात में मुझे नाचने को भी नहीं मिला।हमारे यहाँ शादियों में पता नहीं क्यों दूल्हा दुल्हन को ही बली का बकरा टाइप बना कर बैठा दिए जाता है. आँखों के आगे बचपन में देखी अनेक बारातों के दृश्य घूम गए हैं. वो नागिन धुन, मुँह में रुमाल दबाकर उसे बीन की तरह घुमाकर नाचता दुल्हे का भाई और वहीं सड़क पर नागिन बन लोटता उसका दोस्त। और फिर अचानक बजता ” ये देश है वीर जवानो का” गज़ब का जोशीला गीत. बच्चे, बूढ़े, सब के हाथ पैर नाचने को फड़कने लगते थे. ये और बात है कि आजतक यह नहीं समझ में आया कि उस हुड़दंगी माहौल में यह देश भक्ति गीत इतना क्यों बजा करता था.
बड़े शहरों में आज इन बारातों का स्वरुप क्या है, पता नहीं। परन्तु सुना है लाख अंग्रेजीदां हो गए हों लोग परन्तु छोटे शहरों में आज भी यही गीत बारातों की शान हैं.
हाँ हालाँकि महिला संगीत का स्वरुप काफी फ़िल्मी हो चला है. साड़ियों को यूँ ही हैंगर पर लटकाये बाहर कुर्सी पर रखकर किसी के ऍफ़ बी पर लगाए शादी के फ़ोटो देखने लगती हूँ. लोक गीतों , ढोलक की थाप और चटकीले फ़िल्मी गीतों पर नृत्य की जगह अब बाकायदा कॉरियोग्राफ किये हुए डांस परफॉर्मेंस ने ले ली है. सब कुछ यंत्रबद्ध सा लग रहा है. जहां सामने स्टेज पर अपना आइटम प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त किसी का भी उस कार्यक्रम में इन्वॉल्वमेंट नजर नहीं आता. सोचती हूँ कितना बोरिंग होता होगा मेहमानो के लिए. जैसे किसी शादी में नहीं किसी स्टेज शो में आये हों. एक कुर्सी पर बैठकर सामने होने वाले कार्यक्रम देखो, ताली बजाओ, खाना खाओ और चले आओ. बिना किसी के सुर में अपना बेसुरा सुर मिलाये और एकसाथ जुट कर बन्दर डान्स किये बगैर भला क्या मजा आता होगा।
यह भी शायद वहाँ मनोरंजन के बदलते मौसम का ही कमाल है, टीवी पर दिखाए गए नित नए गीत, संगीत, नृत्य की प्रतियोगिताएं और कार्यक्रम। आखिर हम घर में बैठे दर्शक कौन उस स्टार परिवार से जुदा हैं. अत: किसी भी आयोजन में, घर का हर सदस्य अब कॉरियोग्राफरों की मदद से एकदम शानदार और परफेक्ट परफॉर्मेंस देता दिखाई पड़ता है.
अच्छा है. सबकुछ सिस्टेमेटिक हो चला है.
यहाँ की भारतीय शादियां पता नहीं कैसी होती होंगी। आजतक उनमें भी शामिल होने का मौका नहीं मिला। क्योंकि अजीब बीच की सी स्थिति में हैं हम लोग. इतने छोटे नहीं कि अपने साथ वालों की शादियां हों, इतने बड़े भी नहीं कि उनके बच्चों का नंबर आ गया हो. और रिश्तेदारी यहाँ है नहीं।
पर लगता है यहाँ सब बहुत ही सादगी से होता होगा। सोच रही हूँ एक दिन किसी की शादी में बिन बुलाये मेहमान बनकर ही पहुँच जाऊं।
ये लो, चली गई धूप ख्यालों को पका कर.फिर से ग्लूमी सा हो आया है मौसम। बंद कर दी मैंने अपनी यादों की अलमारी भी. फिर किसी दिन खोलूंगी अच्छा मौसम देखकर।अब चल कर बाकी काम निबटाए जाएँ।
'बन्दर डांस' एक नया 'जॉनर' पता चला 'डांस' का ।
अच्छी धूप खिली आपके मन आँगन में ।
आपकी पीड़ा छलक रही है शब्दो से , एक बार समय निकालकर इन दिनों हिंदुस्तान तशरीफ़ लाइए , वो नागिन डांस और वीर जवानो का देश अभी भी बदस्तूर मिलेंगे . मस्त लिखा है .
सच ही लिखा है अब जब एक और जहां सब कुछ सिस्टेमेटिक हो चला है.वहीं दूसरी और इस सब की वजह से सब कुछ एक फ़ार्मैलिटि में बदल गया है फिर चाहे वो शादी ब्याह हो या फिर कोई तीज त्यौहार ऐसे में भरी साड़ियाँ और एक्सेसरीज,तो भूल ही जाओ 🙂
कभी मेरे बच्चों की शादी वाली ब्लॉगपोस्ट में शामिल हो जाया करिए साडि़यां पहन कर …
विचार बहुत अच्छे हैं भारत भारत ही रहेगा—-!
Desh keep praying aapka lagaav sarahniy hai…Kabhi India says to Bastar jarur aayiga..
bahut achchha likha hai aapne janti hain mujhe jab bhi maouka milta hai me sadi pahn hi leti hoon .
jab bhi ham milenge to ham sadi pahnenge ok
rachana
ok 🙂
रोमन में भी लिखें..sadi साड़ी या शादी में गहरा रिश्ता लगता है। दोनो स्पेलिंग एक सी है।:) मौसम, धूप, साड़ियँ हों और शादी की याद न आये! शादी याद आये और नागिन की धुन में थिरकते बराती न याद आयें, ऐसा कैसे हो सकता है! ये बैंड वाले नई धुन तैयार ही नहीं कर पाते। पुरानी सरल है। अब आप वहाँ की शादी में जाइये और वहाँ के बारे में बताइये। वैसे बोर होता होगा..यहाँ की तरह मस्ती वे कहाँ से ले पायेंगे।
aap ne ek dum tik chitran kiya hai.
vinnie
Jahan shadiyan ek anushthan na hokar ek EVENT ho gayi hai wahan shadi me hone wale saamoohik dance bhi ITEM SONG ban gaye hain. Is post par wahi muhavra dohrane ka man kar raha hai ki AB HAMARE ZAMANE WALI BAAT KAHAN!
Jahan shadiyan ek anushthan na hokar ek EVENT ho gayi hai wahan shadi me hone wale saamoohik dance bhi ITEM SONG ban gaye hain. Is post par wahi muhavra dohrane ka man kar raha hai ki AB HAMARE ZAMANE WALI BAAT KAHAN!
अपने परिवार ,समाज , देश से दूरी कई बार बहुत अखरती है , मगर यहाँ भी बहुत कुछ बदल चुका है. महिला संगीत सिर्फ नृत्य प्रतियोगिता बन कर रह गया है , स्टेज शो की तरह. हालाँकि उस समय के शादी के घरों में रोज शाम को बंदरों सा नाच कूद जबर्दस्त होता है आज भी 🙂
भीगा गई यह तरल पोस्ट !
सोचती हूँ कितना बोरिंग होता होगा मेहमानो के लिए. जैसे किसी शादी में नहीं किसी स्टेज शो में आये हों. एक कुर्सी पर बैठकर सामने होने वाले कार्यक्रम देखो, ताली बजाओ, खाना खाओ और चले आओ.bilkul sahi sochti hain aap……
Devanshu Nigam , Prashant Priyadarshi Abhishek Kumar सुन रहे हो ना … अपनी शादी की तारीख शिखा दी से बात करके तय करना … हम तो काफी पहले निपट लिए ..वरना ज़रूर बुलाते
वैसे अपनी हालत आपसे ज्यादा अच्छी नहीं है …गुरगांव में भी बेगाने से है ,जब दिल्ली में बीस हज्जार शादिया होती है हमें तब भी कोई नहीं बुलाता ,और हर शादी में नाच नहीं सकते ना
बहुत खूबसूरती से दिल के जज़्बात बयान कर दिए आपने…| अच्छा लगा पढ़ के…बधाई…|
प्रियंका
"और फिर अचानक बजता " ये देश है वीर जवानो का" गज़ब का जोशीला गीत. बच्चे, बूढ़े, सब के हाथ पैर नाचने को फड़कने लगते थे. ये और बात है कि आजतक यह नहीं समझ में आया कि उस हुड़दंगी माहौल में यह देश भक्ति गीत इतना क्यों बजा करता था."
यह आज भी एक बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ है … 😉
"आजतक यह नहीं समझ में आया कि उस हुड़दंगी माहौल में यह देश भक्ति गीत इतना क्यों बजा करता था."
बजा करता था
आपत्ति…घोर आपत्ति.. करता है बोलिए.. 🙂
शादी का दिन तो निकलने दीजिये.. यहाँ तो हालात ये है की जब शादी नहीं करना चाहते थे तब तो घर के सब "शादी कर लो.. शादी कर लो.." की रट लगाये हुए थे. अब शादी करना चाह रहे हैं तो वही लोग दिन आगे बढाते जा रहे हैं.. :-/
🙂
अब ये तो तुम्हारी बरात में ही पता चलेगा 🙂
कल 09/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
रूपहली धूप से मन की अलमारी खोल यादों की पेहरन लपेटे न जाने कितनी शादियों की बारात का चक्कर लगवा दिया …. नागिन धुन के बाद ये देश है वीर जवानों का ….गीत शायद संदेश देता हो कि देखो ये वीर भी जा रहा है शहीद होने :):):)
अब इंतज़ार है फिर से धूप निकालने का …. देखें इस पिटारी से अब क्या निकलता है …
सचमुच यहाँ शादियों और साड़ियों का मौसम है !
इसमें रहस्य क्या है…तब मुन्नी बदनाम हुई…..और लूंगी डांस वाला गाना नहीं था भाई… :-/
वाकई over सिस्टेमेटिक है सब आजकल…..
पहले शादी के कुछ दिन पहले से लड़के लड़की के मिलने पर पाबंदी हो जाती थी(बहुत पहले ज़माने की बात नहीं कर रहे…)
अब तो शादी के दो दिन पहले रात दिन दोनों मिलकर संगीत में संग संग नाचने की practice करते हैं 🙂
और ये साड़ी तो आजकल दुल्हन भी नहीं पहन रही है…
🙁
अनु
'बदलते मौसम में…!'
ज़मीनी सा आलेख ! शहरी संस्कृति की एक बाराती झलक !
आपकी यादों का टेस्ट टेस्टफुल रहा। सालों पहले एन्जॉय कि
हुई शादी की झलक जीवंत है जिसका लुत्फ़ हमने भी उठाया।
शिखा जी, इस आलेख को पढ़कर लगे आप कभी भी दरकिनार
नहीं हो सकते ब्लॉग और फे.बु. पर और कहीं भी क्योंकि आपके
लेखन में कुछ न कुछ तो ऐसा होता ही है जो आपके लेखन को
कुछ वज़न और महत्व दे जाए । और ज़्यादातर आपके लेख
पठनीय होते हैं।
फिर भी शादी उत्सव को लेकर यहां एक डिस्टेंस आलाप सा भी है। हम
यहाँ कितनी ही शादियाँ अटेंड करें, अनगिनत… जिन्हें एन्जॉय भी
करें और जो कुछ ही दिनों में सहज ही विस्मृत भी हो जाए । यहाँ देश
में रहते हुए उन होती और बीत जाती शादियों का किसी को कोई ख़ास
वीतराग भी न हो। आप देश से दूर हो तो आपकी यादों में एक सहज
राग-अनुराग भी रहे।
पर दूरदराज़ के परदेश में देखे गए देश के उत्सवों के ख़्वाब भी सलोने ही
होते हैं और यहाँ तो सलोने ख्वाबों की बारिश सी हुई है !
बहुत बढ़िया संस्मरण ..
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
ये सच है की आज तरीका बदल गया है … कुछ तो सिस्टेमेटिक हुआ है … पर सादगी वो भी भारतीय समाज में और लन्दन या उनमें जो बाहर रहते हैं … शायद कदापि नहीं … दुबई में तो आजकल बाहर जा कर शादियाँ करने का चलन होता जा रहा है … जो की कनाडा और लन्दन से ही आया लगता है …
पृथ्वी का मौसम पहले भी बदलता ही रहा है, हमारे लिए यह कुछ नया सा है
पढ़ तो बहुत पहले लिया था आज तो बस स्माईली लगाने आए हैं… 🙂
बहुत प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त हुई है आपकी पीड़ा
अरे शिखा, तुमने एक गीत तो मिस ही कर दिया .."आज मेरे यार कि शादी है "….सच कहा तुमने जब तक शादियों में ढोलक की थाप पर ५ देवी के गीत औए उसके बाद चुहल लेते हुए लोक गीत न हों " सास बहु का झगड़ा हुआ कमरे के बीच में …लड़ लो सासू लड़ लो साजन तो मेरे हाथ में" न हों तब तक शादी का मज़ा अधूरा है ….बढ़िया आलेख ..
वाह जी तो इत्ते शिद्दत से याद किया जा रहा है ………अरे आइए न नागिन से लेकर अनाकोंडा नृत्य तक दिखाएंगे आपको 🙂 पीडी , अभिषेक , शेखर ..एक से एक मौका है अब आने वाला 🙂 और हमारे जैसे नर्तक सब भी तैयार बैठे हैं 🙂
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