ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि अधिकांशत: भारत से बाहर रहने के कारण,आधुनिक हिंदी साहित्य को पढने का मौका मुझे बहुत कम मिला.बारहवीं में हिंदी साहित्य विषय के अंतर्गत जितना पढ़ सके वह एक विषय तक ही सीमित रह जाया करता था.उस अवस्था में मुझे प्रेमचंद और अज्ञेय की कहानियाँ सर्वाधिक पसंद थीं परन्तु और भी बहुत नाम सुनने में आते रहते थे या पत्र -पत्रिकाओं में छपी रचनाएँ पढ़ ली जाती थीं. पर बस यह इच्छा ही रह गई कि मन पसंद रचनाकारों की पुस्तकें खरीद सकूँ. हाँ देश विदेश भटकते हुए पुस्तकालयों की शेल्फ पर गिद्द दृष्टि जरुर रहती कि कहीं कोई परिचित या फिर अपरिचित ही नाम, हिंदी का दिख जाये ऐसे में जब जो उपलब्ध हुआ पढ़ डाला.कुछ ने बहुत प्रभावित किया तो कुछ ने नहीं. इसी क्रम में हाल में ही मन्नू भंडारी की छोटी कहानियों का एक संग्रह “अकेली “ हाथ आ गया. अब कोई नई किताब मिले या नई पोशाक, मेरा रिएक्शन एक जैसा ही होता है जैसे ही मिले पढ़/ पहन डालो ..कौन जाने कल हो ना हो.
तो बस वह किताब जो लेकर बैठी तो छोड़ने का मन ही नहीं हुआ.यूँ कहानियाँ बहुत पढ़ीं. कई भाषा में पढ़ीं पर इतनी सहजता से यथार्थ के करीब बहुत ही कम को पाया. ना तो इन कहानियों में कल्पना को यथार्थ की तरह पेश करने की कोशिश दिखी.ना ही यथार्थ को कल्पना के चोगे में लपेट कर परोसने का प्रयास. इनमें बुद्धिजीवी सोच को साबित करने के लिए कथ्य को मुश्किल से मुश्किल शिल्प का जामा नहीं पहनाया गया.बस जीवन के छोटे छोटे पलों को उसी सहजता से बिखेर दिया गया है.ये कहानियाँ किसी और की नहीं. मेरी , इसकी , या उसकी ही लगती हैं. एक साधारण ,भारतीय परिवेश में मानवीय (या शायद पति पत्नी के रिश्ते कहना ज्यादा बेहतर होगा)- के मनोविज्ञान की इतनी सुलझी हुई और सटीक समझ शायद मैंने किसी ओर रचनाकार की रचनाओं में नहीं महसूस की.जिन्हें पढ़ते हुए पल पल लगता रहता है ..हाँ यही तो..बिलकुल ..ऐसा ही तो है.
इन कहानी के पात्रों के रिश्ते कोई अजूबा नहीं हैं, ना ही दर्द में लिपटे हैं, ना ही किसी आकस्मिक हालातों के शिकार हैं. ये बस रोज मर्रा की जिन्दगी में गुजरते पलों की कहानियाँ हैं. इसके, उसके मन में उठते सवालों और जबाबों का लेखा जोखा. लेखिका जैसे कोई कहानी नहीं सुनाती पाठक को अपने आप के ही किसी हिस्से से रूबरू कराती है.
संग्रह में कुल १५ कहानियाँ है. सभी अलग मूड और हालातों की. परन्तु जैसे सभी में कुछ अपना सा है , जाना पहचाना सा.
फिर वह चाहे “क्षय “ की नवयुवती कुंती हो जिसके कन्धों पर क्षय ग्रस्त पिता , गृहस्थी, छोटे भाई की पढ़ाई का बोझ है. अपने उसूलों , अस्तित्व और रूचि के साथ समझौते करते हुए सहसा ही वह सोचने लगती है कि या तो पापा जल्दी ठीक हो जाएँ या…….
कोई दिखावा नहीं एक सीधी साधी स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया.
या फिर “छत बनाने वाले” के ताउजी और उनके घर के सदस्यों का रहन सहन और मानसिकता.हर छोटे शहर के घर के मुखिया का सटीक चरित्र चित्रण.जैसे -भतीजे के अपने आपको लेखक कहने पर
“ये भी कोई बात हुई भला.रामेश्वर ने अपना हाड पेल पेल के तुम्हें एम् ए करवाया अब उनके बुढ़ापे में तुम अपना शोक लेकर बैठ जाओ.”.
या फिर -“हमने तो भाई सर छिपाने और पैर टिकाने के लिए यह मकान बनवा लिया.कुछ भी हो अपने मकान की होड़ नहीं ..क्यों?”
और “तीसरा आदमी” के अपनी पत्नी से प्यार करने वाले उस साधारण पति का मानसिक द्वन्द. एकदम सहज, सच्चा, ईमानदार दृष्टिकोण. संग्रह की यही कहानी मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती है.कोई शक की इन्तहा नहीं, कोई कुंठा का चरम नहीं, कोई दीवानापन नहीं .
“उसने खुद आलोक के पत्र पढ़े हैं.उनमें कहीं कुछ ऐसा नहीं लगा जिससे वह आहत अनुभव करे- पर हमेशा उसे लगता है कि लिखे हुए शब्दों से परे भी कुछ है जरुर; वर्ना इन शब्दों में आखिर ऐसा है ही क्या जो शकुन यों प्रसन्न रहती है “
और एक बेहद ही सच्ची और भावुक कहानी “असामयिक मृत्यु” – परिवार के मुखिया की असामयिक मृत्यु के बाद के हालातों से गुजरता परिवार का हर एक सदस्य.और वक़्त हालातों के साथ ही चलती जाती जिन्दगी और बदलता सबका स्वभाव. एक एक घटना क्रम बेहद स्वाभाविक सा
“जब तक कडकी का कोड़ा नहीं पडा था सबका मन एक दूसरे के लिए उमड़ता रहता था, एक दूसरे को संभालता रहता था,लेकिन अब – “अम्मा तुमने २०० रु. पी ऍफ़ के रुपयों में से खर्च कर दिए?
क्या करती ? राजू मीनू की किताबे .
“यह सब बताने की जरुरत नहीं है बस ये जान लो इन्हें छुओगी भी नहीं.
मुझे क्या कहते हो? अपने पेट पर पट्टियां बाँध लो शारदा का दो टूक जबाब.
वहीँ “आकाश के आईने में” जैसे सारे तथाकथित उसूलों और आडम्बरों को खोल कर रख दिया है लेखिका ने. शहर में रहकर गाँव के कुओं , चूल्हों और हवा पानी के नाम पर आहें भरने वालों के लिए शहर और गाँव का वास्तविक फरक, जितनी सहजता से उभर कर आता है उतना ही व्यावहारिक जान पड़ता है. –
साड़ी का पल्लू नाक पर लगाते हुए लेखा ने कहा – ये बदबू किधर से आ रही है ?- पीछे की तरफ एक पोखरा है बड़ा सा उसके पानी में दुनिया भर का कूड़ा करकट सड़ता रहता है .अब तो आदत हो गई है.
“तरकारी काटती भाभी बोलीं -कलकत्ता के सैर सपाटे छोड़ कर कौन इस घनचक्कर में फंसेगा .यह तो हमारे ही खोटे भाग हैं जो दिन रात कोल्हू के बैल की तरह पिले रहते हैं.”
कहानी “त्रिशंकु” एक वास्तविक बुद्धिजीवी सोच से परिचय कराती कहानी है.
“हमारा घर यानि बुद्धिजीवियों का अखाड़ा. यहाँ सिगरेट के धुंए और कॉफी के प्यालों के बीच बातों के बड़े बड़े तुमार बाँधे जाते हैं.बड़ी बड़ी शाब्दिक क्रांतियाँ की जाती हैं.इस घर में काम कम और बातें ज्यादा होती हैं.”
और “तीसरा हिस्सा” में एक ईमानदार पत्रकार की मानसिक स्थिति और आक्रोश को बेहतरीन ढंग से दर्शाया गया है .
“और शेराबाबू की दुनाली हिंदी वालों की तरफ घूम गई -देश स्याला रसातल को जा रहा है, पर इन गधों को कोई चिंता नहीं .लगे हुए हैं रासो की जान को.रासो प्रमाणिक है या नहीं ? मान लो तुमने प्रमाणिक सिद्ध कर भी दिया तो कौन तुम्हें कलक्टरी मिल जाएगी.जहाँ हो वहीँ पड़े सड़ते रहोगे. तुम बस हो ही इस लायक कि दण्ड पेलो और गधो की जमात पैदा करते जाओ.”
संग्रह की आखिरी कहानी है “अकेली “– साल में एक महीने के लिए पत्नी का पात्र निभाती एक अकेली औरत की करुण कहानी.एक अलग से हालातों पर एक बेहद यथार्थवादी चित्रण.
“सुनने को सुनती ही हूँ पर मन तो दुखता ही है ये तो साल में ११ महीने हरिद्वार रहते हैं इन्हें तो नाते रिश्तेदारों से कुछ लेना देना नहीं है.मुझे तो सबसे निभाना पड़ता है.मैं तो कहती हूँ जब पल्ला पकड़ा है तो अंत समय तक साथ रखो तो यह तो इनसे होता नहीं सारा धरम करम ये ही बटोरेंगे और मैं अकेली यहाँ पड़ी पड़ी इनके नाम को रोया करूँ.उस पर कहीं आऊं जाऊं वो भी इनसे बर्दाश्त नहीं होता.”
किन किन बातों का जिक्र करूँ. मनु भंडारी की ज्यादा रचनाएँ नहीं पढ़ीं मैंने. परन्तु इस संग्रह ने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया है.इतना कि, साहित्य और कथा शिल्प की न्यूनतम समझ होते हुए भी अपने कुछ विचार मैं यहाँ लिखने से खुद को रोक ही नहीं पाई.
interesting Information!
मन्नू भंडारी -राजेंद्र यादव की कहानियां यथार्थ के धरातल पर , बिना किसी अतिश्योक्ति को दर्शाए , हमेशा आकर्षित करती है . आपने कहानी संग्रह" अकेली " में निबद्ध कहानियों का समग्र और सुँदर वर्णन किया है .आधुनिक कहानीकारों में मन्नू जी का नाम तो हमेश ऊपर के पायदान पर लिया जाता है . मैंने बहुत पहले इनकी लिखी कहानियों का संग्रह "मै हार गई " पढ़ी थी जिसकी याद अभी भी स्मृति पटल पर स्पष्ट है . तो लगाये रहिये अपनी गिद्ध दृष्टि पुस्तकालयों पर हमे भी इनके बारे में पढने का मौका मिलता रहेगा आपने माध्यम से . आभार आपका .
मन्नू भंडारी जी की कई कहानियाँ पढ़ चुकी हूँ। आपने जिस तरह से कहानी संग्रह"अकेली" का वर्णन किया है सचमुच काबिल-ए-तारीफ़ है।
बहुत-बहुत धन्यवाद शिखा जी।
मन्नू जी की कहानियों का यह संग्रह नहीं पढ़ा है। आपने जिस तरीक़े से इस पुस्तक की कहानियों पर प्रकाश डाला है, वह काफ़ी प्रभावशाली है। देखता हूं यह पुस्तक कितनी जल्द मिलती है।
एक संवेदनशील रचनाकार, समय-समाज-संस्कृति से जुड़े विषयों पर बेबाकी से विचार-विनिमय करतीं स्तंभकार, यात्रा-संस्मरण लेखन में दक्ष शिखा जी, बतौर समीक्षक मन्नू भण्डारी के कथा संग्रह "अकेली" पर आपकी विशद टिप्पणी साहित्य के प्रति आपकी गहरी समझ को प्रमाणित करती है । मन्नू भण्डारी उन कतिपय मूर्धन्य कथाकारों में एक हैं जिन्होंने हिन्दी उपन्यास व कथा साहित्य को गल्प की श्रेणी से उठाकर यथार्थ का आख्यान बनाया । मानवीय सम्बन्धों, विशेषतः पति-पत्नी के रिश्तों, के मनोविज्ञान को लेकर आपने मन्नू भण्डारी की सूक्ष्म परख को बिलकुल ठीक ही रेखांकित किया है । बधाई स्वीकारें सधी-सुलझी समीक्षा के लिए !!
मन्नू भंडारी जी का नाम हिन्दी साहित्य में अचीन्हा या अनजाना नहीं है.. इन्होने कहानियों में जिस प्रकार से घटनाएँ और चरित्र को पिरोया है वह इतना सहज है कि बिलकुल अपना सा लगता है.. कहीं भी अतिशयोक्ति नहीं.. घटनाएँ ऎसी, जैसे हमारे समाज का आइना हो..
आपने एक एक करके संग्रह की सारी कहानियों से परिचित कराया.. आभार आपका!
मनु भण्डारी जी की बहुत समय पहले कहानियाँ पढ़ीं थीं ….अभी हाल ही में उनका लिखा उपन्यास ( आत्मकथा ) एक कहानी यह भी … पढ़ा था … जिसने पति पत्नी के रिश्ते में जीवन भर संत्रास झेला हो वो बात सहज ही लेखन में उतर आएगी … तुमने इस कहानी संग्रह को कितनी सूक्ष्मता से पढ़ा है यह तुम्हारी हर कहानी पर विशेष टिप्पणी दर्शाती है … बहुत सुंदर पुस्तक परिचय … आभार
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
शिखा जी आपके द्वारा कहानी संग्रह"अकेली" का वर्णन सचमुच काबिल-ए-तारीफ़ है…बधाई
बहुत ही अच्छे ढंग से लिखा है
kaafi rochak andaaj …
मन्नू भंडारी नाम कुछ जाना पहचान सा लग रहा है हालाकी मैंने अभी तक इन्हे पढ़ा नहीं है। किन्तु जिस तरह से आपने इनकी कहानियों का वर्णन किया है। उसे पढ़कर लगा शायद यह भी प्रेमचंद जी के जैसा ही लिखते हैं और मैं प्रेमचंद की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ उम्मीद है मुझे इनकी रचनायें भी ज़रूर पसंद आयेंगी।
बढिया समीक्षा है शिखा. मन्नू जी मेरी पसंदीदा कथाकार हैं. मेरी तीन-चार बार की मुलाकात भी है उनसे. इतनी सरल और सुघड़ महिला हैं क्या कहूं. उनका अब तक प्रकाशित पूरा साहित्य है मेरे पास :p जब भी मौका लगे, उनका उपन्यास"आपका बंटी" और आत्मकथा "एक कहानी यह भी" ज़रूर पढना.इस वक्त बीमार हैं. राजेन्द्र जी भी बीमार हैं 🙁
manu bhandari ji ki in kahaniton ko aapne bahut hi sukshm drishti se padha hai .aapka vishleshan bahut sunder hai
abhar
rachana
मन्नू भंडारी एक सिद्धहस्त कथाकार रही हैं -अच्छी बात है आप उनकी इस कृति में डूबी और फिर सतह पर आ गयी हैं 🙂
मन्नू भंडारी जैसी बेहतरीन लेखिका को पढना और फिर ऐसा विवरण प्रस्तुत करना ….बहुत उम्दा
kitab khojta hun…aabhar..
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अब मुझे भी ''मन्नू भंडारी'' को पढ़ना होगा ….आभार इस जानकारी के लिए
jab bhi kuchh achha padho to lagtaa hai dimaag ko oxygen mil gai… bahut rochak andaaz mein likhaa hai aapne
काफी विस्तार से अच्छी जानकारी दी है ।
वैसे पढने का वक्त तो कम ही मिलता है ।
हिंदी साहित्य की कथा लेखिकाओं में मन्नू जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं ………उनकी कहानियाँ ही नहीं उपन्यास भी पठनीय है ….जिस कलेवर और धरातल पर वह कथानक का निर्माण करती हैं ,पात्रों की भावभूमि भी वही होती है, इसलिए मन्नू जी की हर रचना एक नया आयाम लेकर पाठकों के समक्ष उपस्थित होती हैं ..इसी तरह आपकी हर पोस्ट हमें कुछ नया दे जाती है…. !
" और लेखिका बनी समीक्षक " और इसमें भी सम्मान सहित उत्तीर्ण |
आपकी इस सुन्दर समीक्षा से पता चल रहा है कि पढने को बहुत कुछ है.
मन्नू भंडारी जी की रचनाएं भावनात्मक धरातल पर मन को छू लेती हैं। हालांकि उनकी आत्मकथा 'एक कहानी यह भी' मुझे थोड़ी कमजोर लगी। लगा जैसे उन्होंने यह सिर्फ अपनी कहानी बताने के लिए लिखी हो, उनकी शैली की छाप उस किताब पर थोड़ी कम दिखती है। लेकिन 'आपका बंटी' और 'महाभोज' जैसी पुस्तकें उनका नाम अमर रखेंगी।
इसको पढने का मन कर आया ….
शुक्रिया आपका !
मन्नू जी के बारे में पढकर अच्छा लगा। जब से साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई, मन्नू जी को पढता रहा हूँ। उनकी शायद ही कोई रचना हो जो न पढी हो। एक बार "बिन मांगे मोती मिलें" की तर्ज़ पर उनसे बात भी हो चुकी है। क्वार्टर सेंचुरी से भी अधिक पहले जब "अनुरागी मन" लिखी थी तब उनकी "यही सच है" का एक दूसरा सम्भावित पक्ष सामने रखने की इच्छा थी। अपनी कहानी पूरी होने से पहले ही उनकी कहानी पर आधारित रजनीगन्धा भी देख चुका था और कहानी के पात्रों को भी पहचान चुका था इसलिये जिस मंतव्य से लिखना आरम्भ किया वह हो न सका मगर मेरे आदर्श कथाकारों की सीमित सूची में उनका नाम सदा रहेगा। इस समीक्षा के लिये आपका आभार!
सुनने को सुनती ही हूँ पर मन तो दुखता ही है ये तो साल में ११ महीने हरिद्वार रहते हैं इन्हें तो नाते रिश्तेदारों से कुछ लेना देना नहीं है.मुझे तो सबसे निभाना पड़ता है.मैं तो कहती हूँ जब पल्ला पकड़ा है तो अंत समय तक साथ रखो तो यह तो इनसे होता नहीं सारा धरम करम ये ही बटोरेंगे और मैं अकेली यहाँ पड़ी पड़ी इनके नाम को रोया करूँ.उस पर कहीं आऊं जाऊं वो भी इनसे बर्दाश्त नहीं होता."
इन पकितयों ने स्त्री के मन में चल रहे अंतर्द्वंद्ध को बड़े ही रोचक ढंग से रूपायिच किया है । मन्नू भंडारी जी की पुस्तक "अकेली" मैं पढ़ा पढ़ा हूं एवं मेरे अपने मानसिक विचार की टकराहट को आपके मन में रचे बसे भावों से संघर्ष करता हुआ महसूस करता हूं । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
मन्नू भंडारी की कहानियां बचपन से पढ़ी हें , तब तो साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग में उपन्यास धारावाहिक छपा करते थे.
उनकी कहानियां एकदम जीवन की सच्ची तस्वीर की तरह आँखों के आगे घूम जाती थी. वैसे कहानी संग्रह का इतना सटीक विश्लेषण बहुत अच्छा लगा और पढ़ाने के लिए लालायित कर दिया.
सहज स्वाभाविक लेखन है मन्नू भंडारी जी का…
रोचक !
मन्नू भण्डारी का नाम दशकों से ख्याति प्राप्त रहा है।उनके उपन्यास "आपका बंटी" ने उन्हें ख्याति दी। प्रस्तुत कहानी संग्रह पढने का प्रयास रहेगा।
आपकी बताने की शैली में पढ़ने की इच्छा जगाने की शक्ति है।
आपने जिस तरह से कहानी संग्रह"अकेली" का वर्णन किया है सचमुच काबिल-ए-तारीफ़ है।
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From Creativity has no limit
संयोग कहिये कि कुछ दिन पहले ही मन्नू जी से मिल कर आया हूं.. उनकी प्रतिनिधि कहानियों का एक संग्रह हमारे प्रकाशन से भी आ सकता है…. यह किताब मैंने पढी है…..बढ़िया समीक्षा
मन्नू भंडारी की कहानियां मेरे किताबों के ड्यू लिस्ट में कब से हैं…लेकिन अब तक पढ़ा नहीं..और नाही इनकी कोई किताब है मेरे पास…मेरे पास अभी जितनी किताबें हैं उन्हें पढ़ने के बाद सबसे पहले मन्नू भंडारी को ही पढ़ने का इरादा है..
आपने कितने अच्छे तरीके से बताया है किताब के बारे में..
मन्नू भंडारी की कहानियों का लेखाजोखा और बारीक़
विश्लेषण पढ़कर सुखद लगा .
पढ़ना,समझना ,पढ़े को बारीकियों सहित समझाना ,
एक कौशल है ,इतनी गहराई से आपने मानव मन को पढ़कर
विश्लेषित किया .कोटिश बधाई ….
मन्नू भंडारी को अकेले तो कभी नहीं पढ़ा पर युवा अवस्था में जब स्कूल जाती थी तो पिताजी 'धर्मयुग ' लेते थे तब उनकी कई कहानिय पढ़ी ..उनकी कहानी 'आपका बंटी ' पर एक रेडियो एकांकी भी सुना था …और भी कई कहानिया आज भी सरिता या गृहशोभा में पढ़ती हूँ ..
आपकी समीक्षा बहुत बढ़िया लगी …
बहुत ..प्रभावी ..सार्थक प्रयास ….
ज़रूर पढेंगे अब …
बहुत ही प्रभावी वर्णन किया है … हर कहने पढ़ने में रूचि जगा दी है आपने … शुक्रिया इस किताब से परिचय करवाने का …
मन्नू जी की कहानियों में हमारे आस पास के ही जीवित पात्र हैं, जो हम सब में जीते भी हैं और हमें जीते हुए देखते भी हैं. बहुत अच्छी समीक्षा, बधाई.
मन्नू भंडारी को हिन्दी साहित्य जगत में कौन नहीं जानता?…यह एक अनमोल मोती है!…मन्नू भंडारी की सभी कृतियाँ संग्रहणीय है!…आप ने इनका परिचय बहुत सुन्दर शब्दों में दिया है….धन्यवाद!
bahut bdhiya smiksha .mannu bhandari ka" apka banti"upnyas jrur padhiyega .
हिन्दी साहित्य जगत में एक से एक नायाब हीरे हैं.. गर्व होता है
I got what you mean , regards for putting up.Woh I am glad to find this website through google. “Money is the most egalitarian force in society. It confers power on whoever holds it.” by Roger Starr.
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Today, while I was at work, my sister stole my iphone and tested to see if it can survive a twenty five foot drop, just so she can be a youtube sensation. My iPad is now destroyed and she has 83 views. I know this is completely off topic but I had to share it with someone!