अरुणा सब्बरवाल जी
का नया कहानी संग्रह जब हाथ में आया तो सबसे पहले ध्यान आकर्षित किया उसके शीर्षक
‘उडारी’ ने ।जैसे
हाथ में आते ही पंख फैलाने को तैयार. लगा कि अवश्य ही यथार्थ के आकाश पर कल्पना की
उड़ान लेती कहानियाँ होंगी और वाकई पहली ही कहानी ने मेरी सोच को सच साबित कर दिया
।
का नया कहानी संग्रह जब हाथ में आया तो सबसे पहले ध्यान आकर्षित किया उसके शीर्षक
‘उडारी’ ने ।जैसे
हाथ में आते ही पंख फैलाने को तैयार. लगा कि अवश्य ही यथार्थ के आकाश पर कल्पना की
उड़ान लेती कहानियाँ होंगी और वाकई पहली ही कहानी ने मेरी सोच को सच साबित कर दिया
।
संग्रह के शीर्षक वाली पहली कहानी – उडारी- कठोर यथार्थ पर मानवीय संवेदना और
प्रेम की कहानी है. जज़्बातों की उड़ान की कहानी है. अपनी भावनाओं और सामाजिक बंधनों
में बंधी एक औरत की कहानी है जो अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना चाहती है और
सामाजिक बंधनों को परे रख, अपने पंख पसार कर, खुशियों के आकाश में उड़ जाना चाहती है.
प्रेम की कहानी है. जज़्बातों की उड़ान की कहानी है. अपनी भावनाओं और सामाजिक बंधनों
में बंधी एक औरत की कहानी है जो अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना चाहती है और
सामाजिक बंधनों को परे रख, अपने पंख पसार कर, खुशियों के आकाश में उड़ जाना चाहती है.
इस संग्रह में कुल पन्द्रह कहानियाँ हैं और सभी कहानियां एक वृहद कैनवास पर
जीवन के विभिन्न आयामों को अनेक रंगों में चित्रित करती हैं जिसमें प्रेम का रंग
सबसे अहम् है.
जीवन के विभिन्न आयामों को अनेक रंगों में चित्रित करती हैं जिसमें प्रेम का रंग
सबसे अहम् है.
प्रत्येक कहानी जीवन से जुड़ी कहानी है जैसे हमारे ही आसपास की कोई घटना हो. कहानी पढते हुए उसके चरित्र अपने से ही
लगने लगते हैं. कई बार लगता है कि जैसे उस व्यक्ति को हम पहचानते हैं या यह तो
मेरी ही कहानी है और यह किसी भी कहानी की सफलता का मजबूत मापदंड है. सभी कहानियों
का कथ्य, चरित्र चित्रण, और
कथा विन्यास प्रभावशाली है.
लगने लगते हैं. कई बार लगता है कि जैसे उस व्यक्ति को हम पहचानते हैं या यह तो
मेरी ही कहानी है और यह किसी भी कहानी की सफलता का मजबूत मापदंड है. सभी कहानियों
का कथ्य, चरित्र चित्रण, और
कथा विन्यास प्रभावशाली है.
अरुणा जी कि इन कहानियों की शैली अधिकांशत: संवादात्मक है. लेखिका कभी स्वयं
से तो कभी उसके पात्र स्वयं से संवाद करते हुए कहानी को गति देते हैं. ये सम्वाद
जितने सच्चे प्रतीत होते हैं उतने ही रोचक और सरल भी हैं अत: पाठक के मन पर तुरंत
ही प्रभाव छोड़ते हैं.
से तो कभी उसके पात्र स्वयं से संवाद करते हुए कहानी को गति देते हैं. ये सम्वाद
जितने सच्चे प्रतीत होते हैं उतने ही रोचक और सरल भी हैं अत: पाठक के मन पर तुरंत
ही प्रभाव छोड़ते हैं.
अरुणा जी ने भारत और यूके का जीवन समान रूप से देखा और जिया है अत: ज़ाहिर है
कि दोनों देशों के सामाजिक परिवेश का संगम उनके लेखन में नजर आता है.
कि दोनों देशों के सामाजिक परिवेश का संगम उनके लेखन में नजर आता है.
संग्रह की – मरीचिका, पहली छुअन, मी टू, तुम और मैं, सोल
मेट आदि कहानियों में, एक आम इंसान की ज़िंदगी के
छोटे-छोटे अहसास, अनुभूतियाँ, प्रेम और जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं के बीच संघर्ष. इच्छाओं, अरमान और समाज के यथार्थ के बीच पिसते इंसान और उसकी भावनाओं का एक
मर्मस्पर्शी चित्रण है.
मेट आदि कहानियों में, एक आम इंसान की ज़िंदगी के
छोटे-छोटे अहसास, अनुभूतियाँ, प्रेम और जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं के बीच संघर्ष. इच्छाओं, अरमान और समाज के यथार्थ के बीच पिसते इंसान और उसकी भावनाओं का एक
मर्मस्पर्शी चित्रण है.
कहानी – उसका सच और ठहरा पानी, मानवीय संवेदना का चरम हैं. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भावनाओं का
ठहराव और परिवेश का कठोर सत्य पात्रों के चरित्र और संवादों के माध्यम से
प्रभावशाली तरीके से उभरता है. जब दाम्पत्य जीवन में शक
का कीड़ा सिर उठाने लगे तो उसके परिणाम कितने दुखद हो सकते हैं इसका बहुत
मार्मिक रूप प्रस्तुत किया है -कहानी “उसका सच’ में ।
ठहराव और परिवेश का कठोर सत्य पात्रों के चरित्र और संवादों के माध्यम से
प्रभावशाली तरीके से उभरता है. जब दाम्पत्य जीवन में शक
का कीड़ा सिर उठाने लगे तो उसके परिणाम कितने दुखद हो सकते हैं इसका बहुत
मार्मिक रूप प्रस्तुत किया है -कहानी “उसका सच’ में ।
वहीं “वह पहला दिन” और ‘बेनाम रिश्ते’ जैसी कहानियों में अपने देश से बाहर
रहने की और देश में वापस लौटने की छटपटाहट और नोस्टाल्जिया लगातार झलकता है.
रहने की और देश में वापस लौटने की छटपटाहट और नोस्टाल्जिया लगातार झलकता है.
इस संग्रह में एक बेहद खूबसूरत कहानी है – इंग्लिश रोज – यह भारतीय मानसिकता
और संस्कृति की आड़ में उसकी कमियां बताती और पश्चिमी संस्कृति के प्रति उसके
पूर्वाग्रह को ध्वस्त करती एक सशक्त और पठनीय कहानी है. एक भारतीय नारी अपने विवाहित
जीवन के कटु अनुभव के बाद एक नया कदम उठाना चाहती है. उसका अतीत और समाज उसे डराता
है. कहानी उसके मानसिक संघर्ष को चित्रित करती है और पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति
के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण उपलब्ध कराती है.
और संस्कृति की आड़ में उसकी कमियां बताती और पश्चिमी संस्कृति के प्रति उसके
पूर्वाग्रह को ध्वस्त करती एक सशक्त और पठनीय कहानी है. एक भारतीय नारी अपने विवाहित
जीवन के कटु अनुभव के बाद एक नया कदम उठाना चाहती है. उसका अतीत और समाज उसे डराता
है. कहानी उसके मानसिक संघर्ष को चित्रित करती है और पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति
के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण उपलब्ध कराती है.
मुझे संग्रह की सबसे खूबसूरत कहानियाँ लगीं – शीशे का ताजमहल और १६ जुलाई
१०८०.
१०८०.
दोनों ही कहानियाँ मानवीय ह्रदय की तह में जाकर उसकी संवेदना को पाठक के ह्रदय
में कुछ इस तरह रोपित करती हैं कि पाठक स्वयं को उसी परिस्थिति और जगह पर महसूस
करने लगता है. दोनों ही कहानियों का विषय लगभग एक जैसा है और दोनों कहानियाँ अपने
पात्रों के माध्यम से अपने मोह और स्वार्थ से परे, समाज
और उसके लोगों के भले के लिए अपना योगदान और त्याग देने के लिए प्रेरित करतीं हैं.
में कुछ इस तरह रोपित करती हैं कि पाठक स्वयं को उसी परिस्थिति और जगह पर महसूस
करने लगता है. दोनों ही कहानियों का विषय लगभग एक जैसा है और दोनों कहानियाँ अपने
पात्रों के माध्यम से अपने मोह और स्वार्थ से परे, समाज
और उसके लोगों के भले के लिए अपना योगदान और त्याग देने के लिए प्रेरित करतीं हैं.
कहानी का कथानक और भावनाओं पर पकड़ इतनी
मज़बूत है कि कहानी कहीं भी उबाऊ नहीं होती और अंत तक पाठक की उत्सुकता बनी रहती
है.
मज़बूत है कि कहानी कहीं भी उबाऊ नहीं होती और अंत तक पाठक की उत्सुकता बनी रहती
है.
लेखिका की कथानक, चरित्रों, भावों और प्रस्तुतीकरण पर पकड़ मज़बूत है. बस एक कमी बार बार पुस्तक पढते
हुए खलती है- वह है लगभग हर पन्ने पर टाइपिंग या प्रूफ रीडिंग की गलतियां. हालाँकि
ये गलतियां सूक्ष्म हैं और पूर्णत: प्रकाशन सम्बन्धी हैं फिर भी कहानियों के
प्रवाह को क्षण भर के लिए रोकती सी लगती हैं. हालाँकि कथानक और उनका शिल्प, भाव ऐसा है कि इसके बावजूद भी पूरी कहानी पढ़ा ले जाता है.
हुए खलती है- वह है लगभग हर पन्ने पर टाइपिंग या प्रूफ रीडिंग की गलतियां. हालाँकि
ये गलतियां सूक्ष्म हैं और पूर्णत: प्रकाशन सम्बन्धी हैं फिर भी कहानियों के
प्रवाह को क्षण भर के लिए रोकती सी लगती हैं. हालाँकि कथानक और उनका शिल्प, भाव ऐसा है कि इसके बावजूद भी पूरी कहानी पढ़ा ले जाता है.
आखिर में कहूँगी कि “उडारी”, विविध
विषयों से भरा हुआ, दो भिन्न समाज और परिवेश में आम
जीवन को दर्शाता हुआ एक सशक्त कहानी संग्रह है. आशा है
कि लेखिका अपनी कलम से ऐसे और भी सुन्दर उपहार पाठकों को देती रहेंगी.
विषयों से भरा हुआ, दो भिन्न समाज और परिवेश में आम
जीवन को दर्शाता हुआ एक सशक्त कहानी संग्रह है. आशा है
कि लेखिका अपनी कलम से ऐसे और भी सुन्दर उपहार पाठकों को देती रहेंगी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
wow very nice….
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शुभ लाभ । seetamni. bl0gspot.in की ओर से हार्दिक शुभकामनाए ।
बहुत ही उम्दा …. sundar lekh …. Thanks for sharing this nice article!! 🙂 🙂
बहुत सुन्दर समीक्षा … पुस्तक के मर्म को बाहर उजागर किया है … रोचक ..
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Really informative post. Much obliged.