तब डबल बेड पर चार और लोगों के साथ सिकुड़े – सिकुड़े लेट कर सोने में जो सुकून आता था, आज किंग साइज़ के पलंग पर फ़ैल कर सोने में भी नहीं आता. वह सुकून आपसी विश्वास का था. इस विश्वास का कि आजू बाजू जो लोग हैं वे अपने हैं, साथ हैं और हमेशा साथ और यदि हम साथ साथ हैं तो सब ठीक है. कुछ भी गलत नहीं हो सकता.
विश्वास और साथ
यह विश्वास आत्मविश्वास निर्मित करता है और आपके अपने व्यक्तित्व में सकारात्मकता का निर्माण करता है. किसी पर भी अविश्वास करने वाला इंसान खुद पर भी कभी विश्वास नहीं कर पाता और उसके व्यक्तित्व में एक तरह की हीनभावना दिखाई पड़ती है.
यह बातें हमने आपसे ही सीखीं पापा. आज भी यही विश्वास हमें हर बवंडर और भंवर से निकाल लाता है.
मुझे याद है – बात सन 1988 – 89 की रही होगी. मेरी छोटी बहन का हाईस्कूल का रिजल्ट आया था.
उस समय बोर्ड का रिजल्ट अखबार में आया करता था. जो बच्चे पास होते उनका रोल नंबर अखबार में होता और उसके आगे उनकी डिवीजन लिखी होती (F/S/T) और जो फ़ैल होते उनका रोल नंबर अखवार में नहीं होता था. हमारा घर पहाड़ों पर था और वहाँ तक अखबार वाले को आने में वक़्त लग जाया करता था और हमारे पापा भी कुछ मामलों में हमारी तरह ही बेसब्र थे. अत: बस स्टॉप पर ही एक मातहत को सुबह सुबह भेजा गया कि जैसे ही अखबार आये, वहीँ अखबार वाले से अखबार ले और तुरंत रिजल्ट देख कर फ़ोन पर बताये.
अखबार वाली बस लगभग सुबह 6 बजे आती थी. सवारी, सामान उतारते एक घंटा लग सकता था. फिर अखबार लेते और टेलीफ़ोन तक जाते (मोबाइल तो थे नहीं ) और आधा घंटा. यानि 8 बजे तक घर के फ़ोन के घनघनाने की पूरी उम्मीद से सब फ़ोन के आसपास भटक रहे थे. किसी को भी उस समय फ़ोन, किसी भी तरह से व्यस्त रखने की इजाजत नहीं थी.
खैर फ़ोन बजा. पापा ने ही उठाया और हमें सिर्फ इतना सुनाई दिया-
“हैं? अच्छा अखबार ले कर आओ” और उसके बाद पापा, हाथ को “पता नहीं कैसे” की मुद्रा में घुमाते हुए टहलने लगे. हमारी तो किसी की हिम्मत नहीं थी कि पूछते कि क्या हुआ? मम्मी ने पूछा तो जवाब मिला – आने तो दो अखबार, देखते हैं.
खैर अखबार आया . सबने बारी- बारी से आँखें फाड़- फाड़ कर देखा. पर उसमें बहन का रोल नंबर नहीं मिला. बहन बेहोश होने की हालत में आ गई पर पापा को देखकर खड़ी रही.
अब पापा का दिमाग चाचा चौधरी की तरह चलने लगा – जिसका दिमाग उस समय तथाकथित कम्प्यूटर से भी तेज चलता था. उन्हें अपनी बेटी के पास होने का 101% विश्वास था. उन्होंने बाहर खड़े अपने साबू को फिर शहर दौड़ाया और कहा अलग अलग अखबार वाले से 2-3 अखबार और लेकर आये. हो सकता है एक लोट में नंबर प्रिंट होने से रह गया हो. जब उनमें भी नंबर न होने की खबर आई फिर पापा ने तुरंत बरेली में स्थित बोर्ड ऑफिस को अर्जेंट एस टी डी कॉल बुक कराई, बड़ी मुश्किल से कॉल लगी तो वहाँ के बाबू साहब को यहाँ वहां के रेफरेंस बता कर उनसे मुख्य फ़ाइल में रोल नंबर देखकर रिजल्ट बताने की गुजारिश की. पर वह ज़माना कुछ और था साहेब, उस समय किसी सरकारी विभाग के बाबू किसी प्रधान मंत्री से कम रूतबा नहीं रखते थे. अत: उन्होंने बड़ी रुखाई और फिर मेहरबानी से पाँच मिनट फ़ोन होल्ड करवा कर बताया कि नहीं है नंबर .
पापा को अब भी विश्वास नहीं हुआ अब उन्होंने अपने साबू (अधीनस्थ) को तुरंत बरेली रवाना किया. उसे कुछ लोगों के नाम और नंबर दिए और उनसे बात कर के उसे सीधे बोर्ड के मुख्य ऑफिस जाकर वहां से मार्कशीट की डुप्लीकेट कॉपी निकलवा कर तुरंत लौट आने की हिदायत दी (उस समय रिजल्ट तो पहले आ जाता था परन्तु मार्कशीट और सर्टिफिकेट आराम से 2-4-6 महीने बाद आते थे) उसे रवाना करते हुए कहा कि “लौटते हुए बरेली में किप्स की दुकान से एक किलो काजू की कतली भी लेता आये. बेचारा वह अधीनस्थ हैरान तो बहुत हुआ पर “जी साहब” कहते हुए तुरंत बरेली रवाना हो गया.
इधर मम्मी भुनभुनाने लगीं “मिठाई पहले खा लो” आ जाता रिजल्ट तब ही मंगा लेते. पर नहीं, पापा यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि बहन फ़ैल हो सकती थी. खैर अब इंतज़ार शुरू हुआ रात का. रात भी आई. करीब साढ़े नौ बजे दरवाजे की घंटी बजी और पापा का साबू मार्कशीट और किप्स की मिठाई के डिब्बे के साथ खडा था. उसकी मुस्कान रिजल्ट बता रही थी . फिर भी पापा की आवाज का इंतज़ार हम पीछे खड़े होकर कर रहे थे. पापा ने मार्कशीट बहन को पकडाते हुए कहा ” ले फर्स्ट डिवीजन आई है” और इससे पहले कि उनकी रुलाई सबके सामने छूटे, अपनी गीली ऑंखें छुपाते हुए वहां से निकल गए.
तो जी, ये आलम था उनके अपने बच्चों पर विश्वास का और ये नतीजा था उस विश्वास का. मुझे पूरा यकीन है कि यदि मार्कशीट भी उनकी आशा के विपरीत निकलती तो वे कॉपियां खुलवा लेते और उन्हें दोबारा चेक करवाते.
ऐसे थे हमारे पापा. बच्चों की ख़ुशी और उनके भले से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं था और असंभव शब्द उनके शब्दकोष में ही नहीं था.
अपने अपनों पर पूरा विश्वास करना हमने आपसे ही सीखा है पापा. हम इसी तरह हमेशा आपका जन्मदिन मनाते रहेंगे, इस विश्वास के साथ कि आप हो, हमारे साथ हो, सदा रहोगे. इसी आपसी विश्वास और साथ की ताक़त हमें हर मुश्किल से उबार लेती है.
हैप्पी बर्थडे पापा !