रक्तिम लाली आज सूर्य की
यूं तन मेरा आरक्त किये है.
तिमिर निशा का होले होले
मन से ज्यूँ निकास लिए है.
उजास सुबह का फैला ऐसा
जैसे उमंग कोई जीवन की
आज समर्पित मेरे मन ने
सारे निरर्थक भाव किये हैं
लो फैला दी मैने बाहें
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे
बस उजली ही किरणों का
अब आलिंगन होगा इनमें
खिलेगा हर रंग कंचन बनके ,
महकेगा यूँ जग ये सारा
उसके सतरंगी रंगों से
मुझको अब रंगने हैं सपने.
नई उमंग से खोल दी मैंने
आज पुरानी सब जंजीरें
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें
कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
bahut sundar rachna
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है
Ahaa…Old Shikha is back..welcome back 🙂
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना है..इन्द्रधनुषी रंग समेटे हुए..
keya khoob kaha sikha ji
जीवन दर्शन से परिपूर्ण रचना है..
एक नए दिन की शुरुआत भर नहीं है ये.. बल्कि जीवन के किसी भी क्षण में निराशा को त्यागकर पुन: शुरुआत करने की लय है इन पंक्तियों में..
इन्द्रधनुष को बाहों में लेना शायद प्रकर्ति प्रदत इस जीवन का खुले दिल से स्वागत करना होगा.. यक़ीनन एक सकारात्मक कविता.. बहुत खूब
सबसे पहले तो इस कविता के विजेता बनने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई… अब पुनः इसकी तारीफ में क्या कहूं बस जान लीजिये कि ऊर्जा का संचार कर रही है ये हर तन-मन में..
आध्यात्मवास के बाद ज़िंदगी को समेटती यह खुली बाहें…इन्द्रधनुष के सारे रंग समाहित कर गयीं…बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति….
प्रतियोगिता में प्रथम आने की बधाई 🙂
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
वाह ………गज़ब के भाव समेटे एक बहुत ही सशक्त रचना।
कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
बाहों में आसमा का पिघलना … वाह क्या बिम्ब चुना है
सुन्दर रचना
हमारी भी बहुत बहुत बधाई शिखा जी…The Poetess 🙂
जिक्र करना था,ना…कि इसी कविता को पुरस्कार मिला है…वो भी प्रथम…बधाई ऐसे नहीं लेते..ट्रीट देनी पड़ती है..:)
शिखा जी बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है ऐसा लगा मानो नवजीवन का संचार हो रहा है।
bahut khubsurt rachna urja ka snchar karti hui sundar kavita .
bahut hi achchha hai ji , ji karata hai bar bar parha jaye
arganikbhagyoday .blogspot.com
बहुत उम्दा रचना है..निश्चित ही प्रथम पुरुस्कार के योग्य!! बहुत बधाई.
नई उमंग से खोल दी मैंने
आज पुरानी सब जंजीरें
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें
बहुत सुंदर भाव जो मन में एक नए जोश का, नई स्फूर्ति का संचार करते हैं
पुरस्कार के लियी बहुत बहुत बधाई
यदि कविता के क्षेत्र में मेरे द्वारा दिए गए प्रमाणपत्र की महत्ता होती तो शायद मैं अपने प्रमाण पत्र में यही लिखता है कि एक लेखिका है जो दिल से लिखती है।
मुझे तो दिल से लिखा हुआ ही ठीक लगता है। कुछ लोग भाषा का जोखिम उठाने के बाद जरूरत से ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल कर देते हैं और रचना की स्वाभाविकता खत्म हो जाती है।
आप हमेशा दिल को प्राथमिकता देती है इसे आपकी रचना का असर एक पाठक का पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेता।
बेहतर लेखन के लिए आपको बधाई।
Hi..
Ujiara aasha ka bharne..
Bahon main bahain failayin..
Timir nisha ka door ho gaya..
Khushiyan man ke bheetar aayin..
Dil ko khol agar jo koi..
Sab kuchh apna leta hai..
Eshwar aakar uski jholi..
Khushiyon se bhar deta hai..
Sundar bhav, kavita main aasha dikhai di..aur aasha hi to jeevan ko chalati hai..!
Deepak..
सूर्य की रक्तिम लाली ने तिमिर का विनाश किया. बांहों में आकार आसमान भी पिघल गया. सचमुच प्रथम पंक्ति की कविता. सुन्दरतम उदगार , तभी तो कहते है जहा ना पहुचे रवि , वहा पहुचे कवि (कवियत्री पढ़ा जाय), वैसे कविता के बारे मै मै क्या बोलू, . वो ऐसे ही होगा जैसे सूरज को दीपक दिखाना .
कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
—
बहुत सुन्दर भाव!
बहुत सुंदर…
आशावाद से भरपूर रचना है…और क्या कहूँ मैं भी ये मानती हूँ दिल से लेखन ही सच्चा लेखन है… दिल से लिखी गयी कविता सबसे खूबसूरत कविता है.
उसके सतरंगी रंगों से
सपने अब मुझको रंगने हैं .
नई उमंग से खोल दी मैंने
आज पुरानी सब जंजीरें
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें…..
शिखा जी,
आप काव्य में भी कितना सुन्दर लिखती हैं.
कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
शिखाजी,
हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आशा और ऊर्जा से लबरेज, प्राकृतिक बिम्बों से परिपूर्ण यह रचना निःसंदेह पुरस्कार योग्य ही है।
नई उमंग से खोल दी मैंने
आज पुरानी सब जंजीरें
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें
बंधनों को तोड़ नवजीवन को इंगि्त करती पंक्तियां।
बहुत सुंदर
आभार
सशक्त रचना, धन्यवाद.
नई उमंग से खोल दी मैंने
आज पुरानी सब जंजीरें
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें
ऊर्जा उमंग से भरी रचना — प्रेरणा देती और
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
वाह लाजवाब– नया बिम्ब —
बधाई हो इस नायाब तोहफे के लिये।
बहुत सुंदर कविता, कभी कभी दिल चहाता है इस जहान को अपनी बांहो मै भर ले
pighalta aasmaan, khuli baahen….mann halka ho gaya
बहुत ख़ूबसूरत रचना है
मन पर छा जाने वाले भाव।
…………….
अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।
हिन्दी है परवान चढी
झूम रहा परदेस सारा
स्पंदित हो उठी शिखा
फ़ैल रहा दस दिशा उजियारा
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे
बस उजली ही किरणों का
अब आलिंगन होगा इनमें
झर-झर झरते झरनों का
आस्मां तो पिघल ही रहा है 🙂
Shikha ji.. Pahli baar aapka blog padhaa, Aur bahut hi achha lagaa.
Apki ki kavita men shabdon ko bahut hi sunder dhang se piroya gaya hain.
Iske liye aapka ka dhnaybaad.
सुन्दर कविता है शिखा जी, लेकिन मुझे आपके आलेख और संस्मरण ज़्यादा पसंद हैं. बुरा नहीं मानेगीं न?
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
बहुत सुंदर रचना है
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ..
" वंदना जी ! कैसी बातें करती हैं आप ..बुरा क्यों मानूंगी ..बल्कि मुझे बहुत खुशी हुई आपकी ईमानदार राय मिली.
उजास सुबह का फैला ऐसा
जैसे उमंग कोई जीवन की
आज समर्पित मेरे मन ने
सारे निरर्थक भाव किये हैं
umang jagati shaandaar Rachna !
badhaii
bahut sundar rachana………badhai
Thanks for vising my blog but it is unfortunate to see that you had nothing to contribute on that issue.
jeet ke liye dher saari badhaai..
kavita sundar hai tabhi to sabko man bhayi hai..
ek baar fir badhai..
क़तरा क़तरा पिघलता रहा आसमां,
रूह की वादियों में न जाने कहां इक नदी,
इक नदी दिलरूबा गीत गाती रही,
आप यूं फ़ासलों से गुज़रते रहे,
दिल से कदमों की आवाज़ आती रही,
आप यूं….
जय हिंद…
अंतिम पंक्तियाँ अच्छी हैं ।
कुश भाई के शब्दों को रख कर जा रहा हूँ – '' इन्द्रधनुष को बाहों में लेना शायद प्रकर्ति प्रदत इस जीवन का खुले दिल से स्वागत करना होगा.. यक़ीनन एक सकारात्मक कविता.. '' .. अलग से क्या कहूँ ! आभार !
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे
बस उजली ही किरणों का
अब आलिंगन होगा इनमें
खिलेगा हर रंग बनके कंचन,
as usual ek behtareen rachna..:)
indradhanushi sapt rang ke saath….badhai
लो फैला दी मैने बाहें
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे
बस उजली ही किरणों का
अब आलिंगन होगा इनमें ..
भाव पक्ष … लेखन … शब्दों का ताना बाना … बहुत आशा वादी .. उर्जा प्रदान करती हुई रचना है …. सूर्य की लाली तो वैसे भी रक्त प्रवाह तेज़ कर देती है …
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना … चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut khub……..
bahut khubsurt rachna
kavita main aasha dikhai di
बहुत ही सशक्त भाषा. बेहद सुन्दर. बहुत बहुत बधाई.
http://www.nareshnashaad.blogspot.com
http://www.natsadgreat.blogspot.com
प्रकृति को अपने बांहों मे समेटती हुई मन के भावों का सुंदर चित्रण।
बेहतरीन ! मैं तो आपकी पंक्तियों में खो सा गया ….
इस लाजवाब रचना के लिए बधाई स्वीकार करें…
नीरज
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई हो
आप प्रतियोगिता में प्रथम आई!… बहुत अच्छा लगा..हार्दिक बधाई… ' आज इन बाहो में' … एक अनोखी ताजगी का अनुभव कराने वाली सुंदर रचना है!
बेहतरीन कविता…… बहुत खूब!
"लो फैला दी मैने बाहें
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे
बस उजली ही किरणों का
अब आलिंगन होगा इनमें"
really nice,
vivj2000.blogspot.com
mast hai …khush khush si poem hai ek dum … achha achha lag raha hai ..kavita padh kar aisa hi lagna chahiye na… 🙂
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