अपनी सभ्यता, सुरम्यता और जीवंतता के लिए विश्व फलक पर मशहूर लंदन आने वाले पर्यटकों की संख्या किसी काल समय की मुहताज नहीं है. भारत से भी यहाँ वर्ष पर्यन्त पर्यटकों की अच्छी खासी तादाद देखी जा सकती है. हर पर्यटक का किसी स्थान के प्रति अपना नजरिया होता है तो कुछ पूर्वाग्रह भी होता होगा. ऐसे में ही कोई बाहर से कुछ दिन यहाँ आकर, घूम कर कहे कि यहाँ के मूल निवासियों के दिल में बाहर से आये समुदायों के लिए नफरत है तो इसे सिवाय पूर्वाग्रह या अनुभवहीनता के और क्या कहा जा सकता है.
न ही यायावरी उन लोगों के लिए सार्थक है जो अपनी कूप मण्डूकता में यहाँ के वासियों को चरित्रहीन की संज्ञा पकड़ा देते हैं.
हर देश या शहर का अपना एक चरित्र होता है. एक संस्कृति और अनुशासन होता है. कुछ नियम कायदे भी होते हैं. परन्तु उन्हीं में कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जो अपनी मूल विशेषताओं को संभालते हुए भी बाहर से आने वाली हर संस्कृति को खुली बाहों से स्वीकारते हैं. हर धर्म, समुदाय की इज्जत करते हैं और उन्हें अपनी तरह से अपनी संस्कृति के साथ जीने का पूरा मौका देते हैं. लंदन एक ऐसा ही विविध जातीय शहर है जहाँ ३०० से भी ज्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं और ५० से भी अधिक समुदाय के लोग रहते हैं. और रहते ही नहीं बल्कि अपनी संस्कृति और परिवेश को पूरी तरह से जीते हुए रहते हैं. अपने त्योहारों को शिद्दत से मनाते हैं अपने बच्चों को अपने संस्कार देते हैं वहीं इस देश में भी एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाते हुए यहाँ के नियम कानून का पूरी तरह पालन करते हैं.
कहने का तात्पर्य है कि लंदन में रहने वाले बाहर से आये समुदाय के लोगों को न तो यह देश पराया मानकर भेदभाव करता है न ही यह लोग इस देश को पराया मानकर अपना जीवन जीते हैं.
यहाँ दिवाली पर पटाखे छुटाने के लिए रात ११ बजे बाद भी कोई मनाही नहीं है, यहाँ के समुन्द्र तट पर गणपति विसर्जन की भी व्यवस्था होती है, मुख्य सड़क से रथ यात्रा जाती है. रमज़ान के महीने में राशन की दुकानो पर खास छूट होती है. ईद, दिवाली, क्रिसमस सब मिलकर पूरे जोश से मनाते हैं. मंत्री मडल में गैर स्वदेशी लोगों को भी बराबर का हक़ और जगह दी जाती है. शहर के मुख्य चौराहे पर महात्मा गांधी की मूर्ति लगाईं जाती है. सभी धर्म और समुदाय के प्रार्थना स्थल बनाने के लिए खुले दिल से सहयोग किया जाता है.
आदि काल से ही यात्री अपनी यात्राओं के माध्यम से विभिन्न परिवेशों को देखने को लालायित रहे हैं और अपने अनुभवों को बांटने की कोशिश करते रहे हैं. ऐसे बहुत से यात्री और लेखक हुए जिन्होंने विभिन्न देश, उनकी संस्कृति और परिवेश से अपने लेखन के द्वारा आमजन को परिचित कराया और इसके लिए उन्होंने ढेरों लंबी यात्राएं कीं, गहन शोध किया, अध्ययन किया, उस देश, स्थान की धूल फांकी तब जाकर उसके बारे में कुछ कहा. परन्तु अब समय कुछ और है अब न तो यात्राएं इतनी कठिन रह गई हैं न ही परिवेश इतने अनजाने। तकनिकी और सूचना संचार- सम्पर्क की क्रांति ने जैसे पूरी दुनिया को एक मुठ्ठी तक सीमित कर दिया है. ऐसे में जहाँ कोई भी सूचना हमसे सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर होती है वहां इसकी प्रमाणिकता पर भी उतने ही सवाल खड़े हो जाते हैं.
जाहिर है इसी तरह हर कोई यात्री जो २- ४ दिन के लिए किसी स्थान विशेष को एक पर्यटक की भांति देखता है वह उन पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी तो दे सकता है परन्तु उस स्थान विशेष की विशेषताओं और खामियों का विस्तार से वर्णन नहीं कर सकता। वह अपने सीमित अनुभवों का तो बखान कर सकता है परन्तु उस स्थान या वहां के लोगों के स्वभाव एवं चरित्र पर फैसला नहीं सुना सकता।
अब यदि आप किसी देश में घूमने गए हैं और आपका मेजबान आपको पार्क में घुमाने नहीं ले जाता तो यह समस्या आपके और आपके मेजबान की है न कि पार्क की. जाहिर है आप बिना वह पार्क देखे यह फतवा नहीं सुना सकते कि आपको वहां इसलिए नहीं ले जाया गया क्योंकि वहां के पार्कों का चरित्र अच्छा नहीं है. इसी तरह चार दिन कहीं फाइव स्टार होटल में कुछ खास लोगों के साथ बिता कर आप उस देश के नागरिकों का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं बाँट सकते।
अवलोकन एक कला है और उसे खुले दिल और दिमाग से ही ठीक तरह से किया जा सकता है. उसके लिए अपने चोले से निकल कर उन लोगों की आत्मा से मिलना होता है जिनके बारे में अपने विचार आप रखने जा रहे हैं. उन लोगों की पृष्ठ भूमि, जीवन चर्या, काम काज, कार्य संस्कृति, शिक्षा, आदि सभी कुछ समझना होगा तब कहीं जाकर आप उस देश या उस देश के लोगों के प्रति कोई प्रामाणिक टिप्पणी करने के लायक होते हैं।
सहमत हूँ … इसलिए तो हर कोई यात्री वो नहीं बन पाते तो वास्को डी गामा या इबन बतूता, या बुद्ध बन सके … किसी भी स्तान की आत्मा से मिलने के लिए उसके पास जाना और समझना जरूरी होता है …
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-07-2015) को "दुश्मनी को भूल कर रिश्ते बनाना सीखिए" (चर्चा अंक- 2028) (चर्चा अंक- 2028) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संडे स्पेशल भेल के साथ बुलेटिन फ्री , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
आप कह रही हैं तो शक की कोई ग़ुंज़ाइश नहीं ….लेकिन
काश ! ऐसा ही दुनिया के अन्य देशों में भी होता ……यानी हमारे यहाँ भी ! यूँ …यहाँ भी सभी धर्मों के लोग हैं ….लेकिन नफरत और पाखण्ड जगज़ाहिर है यहाँ का ।
सुन्दर पोस्ट.
बहुत सुंदर–और बगैर किसी पूर्वाग्रह के सत्य को स्वीकारना–एक चारित्रिक विशेषता है–वरना नजरिये अक्सर एकतरफा ही होते हैं.
सच ही है अवलोकन एक कला ही है बिना सोचे समझे किसी के बारे में कोई अवधारणा बना लेना सही नहीं है उसे कई पैमानों पर परखना चाहिए
It’s appropriate time to make some plans for the future and it is time to be happy. I’ve read this post and if I could I desire to suggest you few interesting things or suggestions. Perhaps you could write next articles referring to this article. I want to read even more things about it!