आसमान के ऊपर भी
एक और आसमान है,
उछ्लूं लपक के छू लूँ
बस ये ही अरमान है।
बना के इंद्रधनुष को
अपनी उमंगों का झूला ,
बैठूँ और जा पहुँचूँ
चाँद के घर में सीधा।
कुछ तारे तोडूँ और
भर लूँ अपनी मुठ्ठी में,
लेके सूरज का रंग
भर लूँ सपनो की डिब्बी में।
उम्मीदों का ले उड़नखटोला
जा उतरूं कुबेर की छत पे
प्रतिफल से सोने के सिक्के
भर लूँ अपनी जेबों में।
तोडूँ एक बादल का टुकड़ा
प्रेम जल भरा हो जिसमें
उडूँ मुक्त गगन में फ़िर
बाँध के उसको आँचल में।
यूँ समेट सब अभिलाषाएं,
बन जाऊँ वर्षा का जल कण
छम छम करती बोछारों संग
आ पहुँचूँ फिर धरती पर।
बंद पलक पर राह जो दिखती
खो जाती खुलने पर अखियाँ
कितना अच्छा होता गर ये
न होता बस एक सपना।
aaha! bahut sunder kavita…… aapne mere baal man ko chhoo liya….. pata hai main ab bhi bilkul aisa hi sochta hoon…….
aapki is kavita ne man moh liya hai….. ab to isey roz padhoonga…..
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने । रचना गहरा प्रभाव छोडऩे में समर्थ हैं ।
मैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं । समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
अनिवासियों की हिन्दी कविताओ में अभिव्यक्ति की सहजता और एक ख़ास सोंधापन , मौलिकता महकती है
जो यहाँ भी शिद्दत के साथ मौजूद है –
बना के इंद्रधनुष को
अपनी उमंगों का झूला ,
बैठूं और जा पहुंचूं
चाँद के घर में सीधा।
वाह बहुत सुन्दर मेरी तरफ से दो पंक्तियाँ आपके लिये
परिंदे देखकर उड़ते हुए आकाश में यूँ ही
करे तेरा कभी मन ओड़नी लेकर उडाया कर शुभकामनायें
कविता मन में एक बेहद सुंदर चित्र बनाती है.अपनी इच्छा का विश्व काश ऐसा ही होता.
वाह….!
पहले तो लगा कि ये बालगीत है,
यह दिखता बालगीत सा है
परन्तु अपने में समेटे हुए है पूरा संसार!
बेहतरीन ख्वाब और सुन्दर रचना
सुन्दर और सहज मनोभाव!!
अच्छा लगा.
बहुत खूब
Vaah … bahut sundar, kalpana ki belagaam udaan … aasmaan ke peeche bhi ek aasmaan … kamaal ki rachna hai …. lajawaab
sapne dekho,rang bharo…….wahi to ek din sach hote hain
very nice poem , shikha ji,
aapke saath hamne bhi aasmaan ki sair kar li
भीतर बैठा बचपन यूँ ही कुलांचे भरता रहता है …
सुन्दर कविता …!!
बना के इंद्रधनुष को
अपनी उमंगों का झूला ,
बैठूं और जा पहुंचूं
चाँद के घर में सीधा।
बहुत सुन्दर…
स्वप्न नगरी का चक्कर हम भी लगा आये हैं…आपके साथ-साथ..
मनोहर है…!!
bahut sundar khayal aur utni hi sundar kavita ………… Shukriya
अरमान हों तो इतने ही खूबसूरत हों
कविता हो तो इतनी ही प्यारी हो
वाह! क्या बात है।
shayad har insaan ki chahat ko aapne shabd de diye………ek saans mein padh gayi aur usi mein doob gayi……….kya khoob likha hai……..badhayi
सपने देखना कभी न बन्द करें ..इसलिये कि सपनो की ज़मीन पर ही सच जन्म लेता है ..।
shikha,
aare bilkul uchhalo…lapko aur chhuo…aur seedhe chaand ke ghar ja kar khoob saare tare todna ..jab mann bhar jaye to ummeedon ke udankhatole par baith kuber ke ghar ki chhat se sone ke sikke bhi le aana……aaj kal sona bahut mahnga ho gaya hai..:):) …..haan ye achchha hai ki baadal ke zariye bund ke roop men wapas aa jaana…. nahi to tumhaari kami lagegi na hum sabko….
bahut pyaari nazm…..bass sapne jaisi..
love u
एक अलग ही अनुभूति कराती है
सपनों के आकाश की ये उडान..
साथ ही एक शेर भी याद आता है..
'तुम आसमां की बुलंदी से जल्द आ जाना
हमें ज़मीं के मसाइल पे बात करनी है'
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
kalpana ….like an unbridaled horse….jab chhuttti hain toh bas thamne ke naam hi nahi leti……….bahut hi maasoom kavita hain…..
यूँ समेट सब अभिलाषाएं,
बन जाऊं वर्षा का जल कण
छम छम करती बोछारों संग
आ पहुंचू फिर धरती पर।
आपकी कवितायें हमेशा एक उमंग और उछाह लिए होती हैं..इन्हें पढ़कर हमेशा ख़ुशी की अनुभूति होती है…एक नया जोश और खुशनुमा अहसास जागता है..शुक्रिया
very nice aap ke kabeta dil tak tuch karte hai ……
very very nice
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बहुत ही बढ़िया।
सादर
नई पुरानी हलचल की बदौलत आपकी इतनी पुरानी मासूम सी कविता पढ़ने को मिली…
सुन्दर रचना
सुंदर स्वप्नमई रचना ….एक पल को तरोताजा कर गयी …!!
बोले तो एकदम छा गयी दिल पर, और मन मचल उठा कि उछलूँ, लपक के छू लूं… 🙂
सादर
मधुरेश
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है
…. आज की नयी पुरानी हलचल में ….ज़िंदगी मासूम ही सही .
खुबसूरत सतरंगी रचना…
सादर.
वाह …बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
बहुत खूब ! भावों की निर्बंध उड़ान…बहुत सुन्दर
सहज एवं सरल कविता
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति………
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