आजकल भाव
सब सूख से गए हैं
आँखों से पानी भी
गिरता नहीं
परछाई भी जैसे
जुदा जुदा सी है
मन भी अब
पाखी बन उड़ता नहीं
पंख भी जैसे
क़तर गए हैं.
पर फिर भी
ये दिल धडकता है
ज्यादा इत्मीनान से.
ख़ुशी भी झलकती है
अपने पूरे गुमान से
हाँ पर
ख़्वाबों को मेरे
ज़ंग लग गई है
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
ऐसा ही कुछ मेरे साथ हैं… भाव सूख गए हैं….. कुछ ख्याल ही नहीं रहता…. पर आँखों से पानी गिरता है…. आँखों से पानी दो कारणों से गिरता है…एक तो माँ की बहुत याद आती है…. दूसरा यह सोच कर कि जिन्हें मैं अपना समझता हूँ… वही धोखा दे देते हैं…. कई बार मैं भी अपनी परछाई देखता हूँ…. तो हर वक़्त ऐसा लगता है कि सूरज …हमेशा सर पर ही रहता है….परछाई दिखाई ही नहीं देती… मन अब उड़ता ही नहीं…. पंख तो नहीं कतरे गए हैं…. हाँ ! पंखों को ज़ंग लग गया है…. बिलकुल वैसे… जैसे ख़्वाबों को… कोई तरंग ही नहीं है….
कविता वही सच्ची होती है…. जिससे पाठक खुद को जोड़ सके…. और आपने यह अपनी इस कविता में यह बख़ुभी निभाया है…. यह कविता मेरे कहीं अन्दर तक उतर गयी है… ऐसा लगा कि आपने मेरी ही फीलिंग्स को लिख दिया है…. इतनी अच्छी कविता के लिए… आपका बहुत बहुत थैंक्स …..
"बहुत भावमयी रचना…"
क्या बात है दी?? महफूज़ भैया तो गर्मी की वजह से फ्रस्टेट हैं, आपको क्या हुआ? 🙂
"बहुत भावमयी रचना
@ दीपक ! हा हा हा ..मुझे घर शिफ्ट करना है ..
गहन नैराश्य भाव लिए हुए आपकी ये कविता.. मै सोचता हूँ अगर मन के पाखी का स्थाई भाव नैराश्य बन जाये तो जिन्दगी कितनी अजीब सी होती होगी ना. और शुन्य तो हमेशा ही अतृप्त होता है. और सबको अपने में विलीन कर लेता है.
बहुत सुन्दर कविता .आभार
ख्वाबो को जंग मत लगने दीजिये … आँखों का क्या होगा ..
सुन्दर रचना
सुन्दर रचना
आजकल भाव
सब सूख से गए हैं
आँखों से पानी भी
गिरता नहीं
परछाई भी जैसे
जुदा जुदा सी है
शिखा जी बहुत सुंदर भाव…बढ़िया रचना के लिए बधाई
दिल से निकली भावमय प्रस्तुति , बधाई ।
आजकल भाव
सब सूख से गए हैं
यहाँ तो बहुत गर्मी है…सब कुछ सूख रहा है.. :):)
आँखों से पानी भी
गिरता नहीं
सावन को आने दो…
परछाई भी जैसे
जुदा जुदा सी है
धूप में निकला ही नहीं जाता..परछाईं कहाँ से साथ होगी?
मन भी अब
पाखी बन उड़ता नहीं
पंख क़तर दिए हैं
ये दिल धडकता है
ज्यादा इत्मीनान से.
ख़ुशी भी झलकती है
अपने पूरे गुमान से
बस ये गुमान रहे काफी है..:):)
ख़्वाबों को मेरे
जंग लग गई है
ह्म्म्म…हकीकत का सैंड पेपर लो और छुडाओ जंग….
***************
रचना मन को छूने वाली….बहुत भावमयी…पढते हुए नमी आ गयी….ऊपर जो कुछ लिखा शायद नमी को छुपाने का एक बहाना मात्र…
संगीता जी ने सही कहा …..सैंड पेपर ले लीजिये और छुड़ाइए ये जंग …वैसे निम्बू से भी छूट जाता है ……
अरे इतनी खूबसूरत सखी ख्वाब नहीं देखेगी तो कौन देखेगा भला ……!!
सुन्दर भावमयी कविता …
अच्छा लगा पढना…
बहुत ही गहरी और परिपक्व रचना…….
bahut sundar rachna…par khwaabon ko jara regmaal laga dijiye…unhe jang na lagne dijiye…
वाह क्या बात कही है
ख़्वाबों को मेरे
जंग लग गई है
जंग लगे ख्वाब थोड़ा फड़फ़ड़ायेंगे
जंग हटते ही ऊँची उड़ान पर जायेंगे
आँखों का पानी उतरे न भले ही सूख जाय -कुछ कहती है कविता !
बेहतरीन रचना …..भावपूर्ण
वाह! बहुत गहरे! उतर गये भाव दिल में…
अब दिल्ली आकर भी संतों से नहीं मिलेंगी तो यही होगा…शून्य के साथ तृप्ति…बेहतरीन कंट्रास्ट है…
मेरे ख्याल से जंग से आपका तात्पर्य रस्ट से है…तो फिर इसे ज़ंग कर लीजिए…जंग तो वॉर होती है…
जय हिंद…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
जब तुम ही जंग को स्वीकार करोगी तो रुक न जायेगी ये सृष्टि की प्रक्रिया.
बस मन की आँखें खोलो
सब उसी तरह से है
तुम्हारे रंग भरने की जरूरत है
हाँ पर
ख़्वाबों को मेरे
ज़ंग लग गई है
Alfaaz aur kalpana ko to qatayi zang nahi hai..vilakshan pratibha shaali hain…dua karti,hun, khwabon pe laga zang jald utar jaye..
bahut hi sundar rachna.
lakh tatolo man ko ab,
sab bhavsunya sa lagta hain.
lakh sameto khwabo ko,
sab bikhra-bikhra sa lagta hain.
ज़िन्दगी फेज़ में ही तो आती है.. क्या नहीं?
nakaratmakta hai …par behad achhi rachna hai di .. 🙂 naye nazare dekhiye…khaabon ki jung utar jayegi.. 🙂 yaa khab hi naye ho jayenge.. 🙂
सुन्दर रचना ,ऐसे पल भी आते हैं उदासी के,… बस वे ठहर ना पायें,ये कोशिश करनी है…
कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं,..जिनकी तुम A.C.हो 🙂 हाँ यानि जावेद अख्तर की…( सबने, मेरी पुरानी डायरी का इतना जिक्र किया कि बहुत कुछ याद आ गया…नोट किया हुआ.)
"एक ये दिन, जब जागी रातें,दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शाम को भी पलकें बोझिल रहती थीं.
एक ये दिन जब ,लाखों गम और अकाल पड़ा है आँसू का,
एक वो दिन जब जरा सी बात पर नदियाँ बहती थीं."
जंग लगे ख्वाब शून्य तृप्ति ही दे सकते हैं ..
भावुक कर दिया …!!
ये महफूज़ खुद तो कुछ नहीं लिखताहै …
बस दूसरों की कविता हड़पता है …
इसका ब्लॉग तो सिर्फ ब्लोगर्स का आभार प्रकट करने के लिए है
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
सच्चाई के करीब ले जाती कविता।
——–
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
वाह….बहुत ही भावुक मनमोहक अभिव्यक्ति…
Hi..
Jang Khwaab main lagne na den..
Unhen mahkta sa rakhen..
Prem hruday main basata hai jo..
Use chhalakta sa rakhen..
Khwab chah dikhlate saare..
Chah se jeevan chalta hai..
Chah na ho to band ghadi sa..
Jeevan bhi na chalta hai..
DEEPAK..
सार्थक सृजन.
bahut hi sadgi se bhavon ko saheja hai.
bahut hi uttam rachna….
sochne par majboor kiya….
yun hi likhte rahein…
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं…..
jaroor aayein…
aapki pratikriya ka intzaar rahega…
regards..
http://i555.blogspot.com/
Good One!!!
Smiles 🙂
Prashant
nice khubsurti se likha hai badhaiyan
Bahut achchhee kavita,man ko chhoone vali..
पहले मुझे लगता था भाव सूखने की भी कोई उम्र होती होगी फ़िर यहा जब सबको पढा तो ये भाव भी टूटा.. हमे हर कदम, हर मन्जिल के बाद सोचना पड्ता है 'what is next?' और कभी कभार तो मन्जिले ही नही दिखती… पंखों को ज़ंग नही लगा.. शायद काफ़ी समय से आपने उडा ही नही.. एक अन्ग्रेजी मूवी थी ’the girl next door'.. उसमे बन्दी एक बडी सही बात अक्सर पूछती थी ’what is the last craziest thing you have done' बडी समझ आयी हमे 🙂 तब से कभी कभार पगला जाते है 🙂
बहुत सुन्दर कविता.. जैसे बहुत कुछ सिखा गयी हो..
@रश्मि जी:
डायरी का सबने किसने जिक्र किया? 🙂
jung lage khababo se bhi aapne badi pyari panktiyan rach di……..:)
khubsurat rachna!!
kabhi samay mile to yahan aayen
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7945.html
http://www.jindagikeerahen.blogspot.com
अद्भुत…शानदार प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
are nahin-nahin aisa nahin honaa chaaiye….haan….kavitaa magar acchhi ban padi hai sach…..
nice
ये दिल धडकता है..ज्यादा इत्मीनान से.
ख़ुशी भी झलकती है..अपने पूरे गुमान से
हाँ पर..ख़्वाबों को मेरे….ज़ंग लग गई है
?????????????????????????????
क्यों शिखा जी?
ये जंग मत लगने दीजिये….तमन्नाओं की चमक कायम रखिये..
यही ज़िन्दगी है.
yahi tripti, yahi muskaan us jung per bharee padti hai
subah tript man kee khaas dost ban jati hai aur sare bhaw laut aate hain
Agar ise jang kahte hain….to laga rahne dijiye… dheere dheere chhute to shabdon ki khubsurat baarish mayassar hogi…
Bahut din baad aapko padha…wahi khushi hui
"khwaabon ko jung"… kaafu sundar bimb ban pada hai…accha likhti hai..likhte rahein!
कभी कभी ऐसा होता है … आप तो उसपर भी इतनी सुन्दर रचना लिख डाली …
ऐसा होता रहता है अक्सर … पर ख्वाबों को जंग नही लगना चाहिए … वो जीवित रहने चाहिएं …. तभी तो सृजन की गुंजाइश बची रहेगी ….
ख़ुशी भी झलकती है
अपने पूरे गुमान से
हाँ पर
ख़्वाबों को मेरे
ज़ंग लग गई है
…..मनोभावों की भावपूर्ण प्रस्तुति…
Shikha tumhari ye rachna kayi baar padhi ek saath…har baar kahin na kahin dil ko chhuti rahi….
keep writing dear!
very nice… !
शिखा Didi बहुत सुंदर भाव…बढ़िया रचना के लिए बधाई
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
Rattling clean site, regards for this post.
Its superb as your other content : D, thankyou for posting. “A gift in season is a double favor to the needy.” by Publilius Syrus.