जीवन की रेला-पेली है.
कुछ चलती है, कुछ ठहरी है.
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने हो गई देरी है.
अब भावों में उन्माद नहीं
क्यों शब्दों में परवाज़ नहीं
साँसे कुछ अपनी हैं बोझिल
या चिंता कोई आ घेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने ,हो गई देरी है.
थे स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण बस अभी हरे
अवसादों का पाला छाया
या फिर ये रात घनेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने हो गई देरी है.
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं ‘चन्द्र की आभा कम है
मन-रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों आँख हुई नम मेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
बहुत बहुत आभार गिरीश पंकज जी का, जिन्होंने मेरी अनगढ़ पंक्तियों में मात्राओं का सुधार कर इसे गीत बनाने की कोशिश की .
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों पलकें नम ये मेरी हैं
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
vaqt jab nikal jata hai to haath malte hi raha jaate hain …bahut umda likha hai.
समय रहते मौन मुखर हो जाए… तो कितने समाधान निकल आते हैं…!
मौन की प्रखरता का सटीक बयान है यह अभिव्यक्ति!
कल ही एक मित्र ने कुछ डायलोग मारे थे ..उसी को कोपी-पेस्ट कर रहा हूं:-
महान काम करने की कोई उम्र नहीं होती, प्रायश्चित करने की कोई अवधि नहीं होती, सफलता पाने की कोई उम्र नहीं होती… महान बनने के लिए कोई उम्र नहीं होती….!
पंकज झा.
वक्त के साथ चलने में ही समझदारी है क्यूंकि वक्त किसी के लिए नहीं रुकता। …अनुपमा जी की बात से सहमत हूँ।
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों पलकें नम ये मेरी हैं
Yahee zindagee hai!
थे स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण बस अभी हरे,
अवसादों का पाला पड़ गया
या फिर ये रात अँधेरी है .
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने हो गई देरी है.
bahut hi badhiyaa
बड़ी थकेली-थकेली बातें लिखीं हैं!
हम तो यही कहेंगे- हारिये न हिम्मत ,विसारिये न राम! 🙂
समय मनाने फिर आयेगा,
धैर्य कहाँ तक ढह पायेगा।
मौन प्रखर हो व्यक्त हो गया न? फिर काहे की देरी? जब जागे तभी सबेरा 🙂 🙂
मौन प्रखर हो व्यक्त हो गया न? फिर काहे की देरी? जब जागे तभी सबेरा 🙂 🙂
बढ़िया कविता…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
nice
वक्त भले ही किसी के लिए नहीं ठहरता लेकिन देरी तो कभी नहीं होती । वंदना जी ने सही कहा –जब जागो तभी सवेरा ।
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों पलकें नम ये मेरी हैं
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
simply superb!!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है! आपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है! आपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
भावनाओं का यह हीरा नायाब है. इसे तराश कर भविष्य में और चमकदार बना लिया जाएगा.थे
''स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण बस अभी हरे,
अवसादों का पाला पड़ गया
या फिर ये रात अँधेरी है .
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने हो गई देरी है.
सुन्दर………एक सार्थक गीत के लिए .बधाई.
shikha ji..
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
जो वक्त गया वो बीत गया…
क्यों कहा की हो गयी देरी है…
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
मन में क्या बात लिए तुम कुछ…
अन्दर ही अन्दर जलते से…
कजरारी आँखों पर डाली…
तुमने तो पलक घनेरी है…
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
जो बीत गया, वो बात गयी…
क्यों दिल पर उसको ले बैठे…
मन में क्यों लिए उदासी हो…
खुशियों से नज़र क्यों फेरी है…
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
कोई अवसाद लिए मन में….
तुम दीप बुझाए बैठी हो…
मन के दरवाज़े बंद किये…
मानो की रात अँधेरी है…
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
जीवन में कष्ट भी आते हैं…
कंटक पथ पर उग आते हैं…
तुम पथिक रुको न, अब चल दो…
तुमसे यह विनती मेरी है…
क्या बात हुई, ये बतलाएं…
क्यों आँखें नम सी तेरी हैं…
सुन्दर कविता…हमेशा की तरह…
दीपक शुक्ल…
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जब मौन प्रखर हो ही गया है तो वक्त को भी ठहरना पड़ेगा …
थे स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण बस अभी हरे,
अवसादों का पाला पड़ गया
या फिर ये रात अँधेरी है .
फिर धूप निकलेगी ..पाले का असर खत्म होगा ..मन तृण पर हरियाली आएगी ..
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि भी चमक ले कर आएगी …और नम आँखों में नयी आशा की ज्योति जलेगी .. भावों को खूबसूरत शब्द दिए हैं …
काफ़ी हद तक सधा हुआ गीत है, भावों के स्तर बहुत अच्छी प्रवाहपूर्ण निरन्तरता है । छन्द का निर्वाह कहीं कहीं गड़बड़ाया है ।
"थे स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण अभी बस हरे
अवसादों का पाला पड़ गया…"
जीवन में जो भी है अकिंचन है, नियति के अधीन, क्षणजीवी, इसी शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती सीधी-सच्ची पंक्तियाँ हैं । आकुल अंतर के विषण्ण मौन को अभिव्यक्ति देने की सहजता प्रभाव छोड़ती है ! जीवन की रेला-पेली में इस प्रकार की रचनाएँ ही हैं जो हर मोड़, दोराहे-चौराहे पर हमक़दम हमराह बना करती हैं ! छंदमुक्त कविता से गेय काव्य की ओर आपका प्रस्थान मुझे बहुत रुचा । बहुत-बहुत बधाई शिखा जी !!
गिरीश पंकज, अश्विनी जी व् सभी गुणी जानो से मेरा अनुरोध है कि कृपया अगर सुधरने की गुंजाइश हो तो इस रचना को सुधारने में सहायता करें आप सभी के सुझाव सर आँखों पर.
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति……
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों पलकें नम ये मेरी हैं
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है. ……
वक्त के साथ चलने में ही समझदारी है क्यूंकि वक्त किसी के लिए नहीं रुकता। …सटीक अभिव्यक्ति…
मौन की प्रखरता ही जैनियों की संलीनता है -इसे और गहनता दिया जाय तो फिर क्या कहने!
मैं तो इतना ही कहूंगा कि 'स्पंदन' की अभिव्यक्ति तो मौन में ही होती है. यूं भी मुखर तो भाषण होता है भावनाएं नहीं…
आपका मौन अनबूझा हो तो उसकी मुखरित व्यंजना भी पहेली से कम नहीं होगी.
वाह! बहुत ही बेहतरीन लिखा है…
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं शशि की शीतलता कम है
मन रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों पलकें नम ये मेरी हैं
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
sunder bhav
badhai
rachana
मौन प्रखर हो तो शब्द भी मौन का संगीत सुनने को निशब्द हो जाते हैं..
सुन्दर रचना….
गहरी अभिव्यक्ति।
मौन जब मुखर हो जाए तो काफी सारी समस्याएं खुद ब खुद सुलझ जाती हैं।
संवाद का आधार भी समय तय करता है ….. गहरी अभिव्यक्ति
bahut achchha laga apka geet
आपकी इस कविता को पढने से ऐसा लगा कि आप यह मानती हैं कि कविता का मतलब कुछ कह देना नहीं है, यानी रचना में वाचालता आपको मंज़ूर नहीं है। आप ख़ामोशी (मौन) की कायल हैं। आपकी कविता में मौन जो है वह कई अर्थ और रंग लिए हुए है। अपनी धारणाओं और मान्यता के बल पर ही आपने इस रचना को रवि, चन्द्र और मन की ज्योति (रश्मि) में ढाला है।
बहुत बहुत बहुत ही अच्छी कविता…
शानदार पंक्तियां..
बहुत दिनों बाद एक छंदयुक्त कविता का आनंद मिला, वरिय कविजनों की रचनाएं किताबों में पढ़ा था, जो छंदयुक्त हुआ करती थी। अब नेट पर पढ़ अच्छा लगा।
अवसाद जीवन की खुशियाँ छीनने में समर्थ है !दूर रहें इससे …
शुभकामनायें आपको !
जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है,
आंधी हो तूफां, ये थमता नहीं है,
तू न चला तो चल दे किनारा,
बड़ी ही तेज़ समय की ये धारा,
ओ तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा…
जय हिंद…
सुँदर गीत, मन प्रसन्न कर दिया आपने इतना सुँदर गेय गीत पढ़वाकर . कई बार मौन किसी भी अभिव्यक्ति से ज्यादा प्रखर होता है
bahut achchi lagi……
I love it!!
बहूत सुन्दर
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं 'चन्द्र की आभा कम है
मन-रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों आँख हुई नम मेरी है …
जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते अहिं जब निराशा हावी होने लगती है … ऐसे मैं मौन नहीं आवाज़ को प्रखर करना चाहिए …
सुंदर बहुत सुंदर शिखा जी…
इस तरह का गीत मैंने आपकी लेखनी से आज ही पढ़ा है … लिखती रहें…
बहुत सुन्दर गीत…
सादर बधाई…
man k hare haar hai,man k jite jeet………..
भाव कणिकाओं को अच्छे से पिरोये हुए है यह गीत खुद से संवाद करता सा .स्वगत कथन सा .
बहुत सुन्दर लगा यह नवगीत
बहुत सुन्दर शिखा जी… अति सुन्दर कविता… कितना सुन्दर पन्तिया है
थे स्वप्न अभी परवान चढ़े
हुए थे मन तृण बस अभी हरे
अवसादों का पाला छाया
या फिर ये रात घनेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने हो गई देरी है… वाह शिखा जी वाह
बहुत ही सुन्दर लयबद्ध गीत दिल को छू गया।
bahut sundar geet hai. har pankti behad bhaavpurn aur arthpurn…
नहीं रवि की ज्योति मंद है
नहीं 'चन्द्र की आभा कम है
मन-रश्मि क्यों फिर मद्धम है
क्यों आँख हुई नम मेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है…
रवि और चन्द्र तो अपनी आभा के साथ है फिर क्यों रश्मि मंद है …
शब्दों ने अवसाद के पल को मुखरित किया ,,,दुआ है यह बस कविता ही हो !
गहरी भावनाओं से लिखी लयबद्ध सुंदर रचना…
बहुत अच्छी पोस्ट …बधाई
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है….
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्त है लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
बहुत सुन्दर गीत…
सादर बधाई…
मुझे देर क्या हुई कुछ भी बचा नहीं कहने को.. एक खूबसूरत गीत के लिए आप को बधाई!! अभिव्यक्ति की गत्यात्मकता और कविता की गया शैली में प्रस्तुति प्रशंसनीय है!!
शिखा जी बहुत ही सुन्दर कविता के लिए बधाई और शुभकामनाएं |
This comment has been removed by the author.
बहुत ही बढ़िया गीत….. जीवन की इस रेलम पेल में वक्ता किसी की पकड़ मने शायद नहीं. सुंदर प्रस्तुति.
shikhaa jii maun jab prkhar ho to smaadhaan nikalne hi lagate hai .
बहुत सुन्दर – सधा हुआ गीत है!!
बहुत ही बढिया गीत बन पड़ा है।
बहुत ही सुन्दर गीत
behad khoobsoorat abhivykti …badhai
कल १७-१२-२०११ को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक़्त ने हो गई देरी है.
Bahut sundar….
http://www.poeticprakash.com
Bhavo evam shabdo ka khoobsoorat sangam
अब भावों में उन्माद नहीं
क्यों शब्दों में परवाज़ नहीं
साँसे कुछ अपनी हैं बोझिल
या चिंता कोई आ घेरी है
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ
कहा वक्त ने ,हो गई देरी है.
अति सुन्दर,दिल को छूती रचना.
भावविभोर हो गए जी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा शिखा जी.
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