जब से सोचने समझने लायक हुई, न जाने कितने सपने खुली आँखों से देखे. कभी कोई कहता कोरे सपने देखने वाला कहीं नहीं पहुंचता तो कभी कोई कहता कोई बात नहीं देखो देखो सपने देखने के कोई दाम पैसे थोड़े न लगते हैं.पर उनमें ही कुछ बेहद पोजिटिव और मित्र किस्म के लोग भी होते जो कहते कि अरे सपने – जरूर देखो वर्ना पूरे होने की उम्मीद किससे करोगे. और मैं, हमेशा ही जो अच्छा लगे वह मानने वाली, झट से आखिरी वाला ऑप्शन मान लेती। इसीलिए सपने देखना कभी बंद नहीं हुआ. परन्तु उन्हें पूरा करने के लिए कभी कोई खास मशक्कत भी नहीं की. जिंदगी जिस राह पर ले गई हँसते, मुस्कराते, शिद्दत और ईमानदारी से बढ़ लिए. कभी पीछे मुड़ कर देखा तो कुछ सपने याद भी आये, आँखें कुछ नम हुईं, एक हुड़क उठी, थोड़ी सी कसमसाहट और बस, फिर थामा हाथ उसी जिंदगी का, साथ लिया वर्तमान को, ठोकर मारी अतीत को और चल पड़े.
जिंदगी बहुत जिद्दी और एगोइस्ट किस्म की होती है. उसे ज़रा सा लाइटली लेना शुरू करो तो तुरंत पैंतरा बदल लेती है. उसके किये फैसलों को स्वीकारना या न स्वीकारना हमारे बस में नहीं होता परन्तु अपने अनुसार उन्हें ढालना जरूर हम चाहते हैं. और जब वह भी नहीं कर पाते तो उसी में रम जाते हैं. फिर जब एक कम्फर्ट जोन में चले जाते हैं तो फिर जिंदगी अपना दाव चलती है. हमेशा कोई न कोई सरप्राइज देकर अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने की बुरी आदत जो है उसे. ज़रा किसी ने क्षण भर चैन की सांस ली नहीं कि, फोड़ दिया कोई बम उसके सिर पर.
सालों बाद पैरों में बंधे पहिये थमे थे. मकान को घर की तरह समझना सीख लिया था. और उसकी चार दीवारी के अंदर की हवा में ही सुकून के रास्ते खोज लिए थे. कि फिर न जाने क्यों उसने वर्षों से बंद पड़ा एक झरोखा खोल दिया. बाहर से आती तेज हवा का झोंका अंदर आया और फिर उड़ा ले गया वह सब, जो किसी तरह समेट कर सहेज लिया था. अब वह बाहर की हवा अंदर आई तो मजबूर करने लगी अपने साथ रमने को, ठेलने लगी फिर से उसी रास्ते पर जिसे पीछे, बहुत पीछे छोड़ आई थी. बहुत मुश्किल था फिर से उसी राह तक पहुंचना उस ताज़ी हवा के साथ जिसे सहने की आदत भी नहीं रही थी. पर जाना तो था. कैसे भी, किसी भी तरह, अकेले, उसी तेज हवा के साथ, संभालते हुए खुद को . हो सकता है डगमगाऊं थोड़ा, सहम जाऊं कभी, या न समझ पाऊँ किस ओर जाना है…
परन्तु कदम बढ़ गए हैं तो राह मिल ही जायेंगी, कुछ पहचाने मोड़ मिलेंगे तो मंजिल भी याद आ ही जायेगी. आखिर अपनी ही है जिंदगी, इतनी कठोर भी ना होगी.
"जिंदगी बहुत जिद्दी और एगोइस्ट किस्म की होती है. उसे ज़रा सा लाइटली लेना शुरू करो तो तुरंत पैंतरा बदल लेती है."
ज्यादा सीरियसली ले लो तो कौन सा रहम खा लेती है … पैंतरा तो तब भी बदलती ही है न … क्यों ??
जिंदगी हर मोड पर बदल जाती है ……… कितना भी सँवारो पता नहीं अगले पल क्या होगा 🙂
Sach hi to hai sapne dekho tabhi na pure hoge ek nahi do nahi teen chaar to ho hee jayege… sapne dekhne k paise nahi lagte…!
वाकई ज़िंदगी कभी भी खुद को lightly नही लेने देती। ज़िंदगी में डूब कर ही लिखा है आपने शिखा !
मेरे हिसाब से ज़िंदगी की अपनी कहानी है, वो आपसे रायशुमारी थोड़े न करती है…. जीते जाइए, मज़े लीजिये…. 🙂
परन्तु कदम बढ़ गए हैं तो राह मिल ही जायेंगी, कुछ पहचाने मोड़ मिलेंगे तो मंजिल भी याद आ ही जायेगी…..
absolutely right…
एक थ्रिलर है ज़िन्दगी… जिसके हर मोड़ पर कुछ न कुछ हमें हैरान कर जाता है.. यही इसकी ख़ासियत भी है। कितनी बोरियत भरी होती ज़िन्दगी अगर वह टिपिकल बॉलीवुड स्टाइल की फिल्म होती.. जिसका अंत हर कोई प्रेडिक्ट कर लेता है।
बड़े फलसफाने अंदाज़ में बयाँ कर दिया आपने ज़िंदगी की हकीकत और फितरत |
जब भी करीब से देखने की कोशिश करो इसे ,झट दूर होने लगती है और उससे बेरुखी इख़्तियार कर लो तो साया सी बन जाती है |
शुभकामनायें …..जैसे भी मोड़ आयें जीवन की गति बनी रहे
जिन्दगी को याद करते हुए अपने अन्दर की सही और अच्छी पड़ताल की है।
जिंदगी अपने हिसाब से ही चलती है , कोई लाख कोशिश करे !
कुछ नया शुरू किया है तो बताएं न , बधाई दे दूं 🙂
क्या काम शुरू किया , यह तो बताया नहीं ! फिर भी शुभकामनायें आपको .
जिन्दगी आखिर बड़ी छोटी होती है , उसे भरपूर एंजॉय किया जाये !
उफ़ ये जिंदगी भी
पर इसे निभाना तो पड़ेगा
चलो मुस्करा कर ही मनाएं
इस जिद्दी बिगडैल जिंदगी को —
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2014) को "कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (चर्चा मंच-1508) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
God makes beautiful things ! Thanks for sharing
जिंदगी ठहरने कहाँ देती है!
फलसफा तो बहुत सटीक है और लिखा भी प्यारा है..मगर वजह बतायी जाय!!!
देश वापसी का पिलान तो नहीं बन गया 🙂
whatever may be the case…..i wish you a smooth journey of life !! i know you are a smart rider !!
anu
जिंदगी का फलसफाना अंदाज भी अच्छा रहा ..जिधर ले चले उधर बढ़ते रहो .
आपकी इस प्रस्तुति को आज की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 66 वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
ढीले पड़ें तो ज़िन्दगी भरमाना प्रारम्भ कर देती है, ज़िद्दी होना ही पड़ता है।
शिद्दत से देखा गया सपना और उसी शिद्दत से किया गया हो प्रयास सफलता मिलती ही है ….!!बधाई एवं शुभकामनायें ….!!
ऐ ज़िन्दगी
गले लगा ले,
मैंने भी तेरे हर इक ग़म को
गले से लगाया है… है ना!!
कल 02/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
कमाल है यही सोच रहा था मैं। बस थोड़ा सा हट कर। पहले दोनो ऑप्शन मानकर सपने देखता हूं…और आखरी वाली बात से प्रेरित होकर सपने में रमा रहता हूं। सच मैं अचानक कोई मोड़ आपको आपके कंफर्ट जोन से बाहर आने को प्रेरित करने लगते हैं।
सुन्दर लेखन
एक दम सही बात है जी 🙂
yahi jindgi hai jo apne sath kai rang aur mod laati hai ….bahut sundar …
ज़िन्दगी के ये खूबसूरत पल समेटलो …. न जाने फिर कब किस मोड़ पर ज़िन्दगी बदल जाए ….. वैसे भी बदलने में कभी खुद का प्रयास होता है तो कभी नियति का . सपने को निरंतर देखते रहो …. मत मानो कि सपना पूरा हुआ …. :):) तो यह चलता रहेगा न :):)
समय के झरोखे से अतीत ओर वर्तमान की नज़र से देखना ओर उसको लिखना भी एक कला है … भविष्य में जिंदगी किस करवट बैठेगी ये तो पता नहीं होता .. पर सपने देखो तो जिंदगी इतनी बेरहम नहीं रहती …
हम सब की ज़िन्दगी ऐसी ही है, कब दांव बदल दे पता ही नहीं चलता. पर इतना ज़रूर है कि सपने देखना छोड़ना नहीं चाहिए, कमसे कम यह दुःख तो न होगा कि पहली कोशिश भी न की. संभावना तो बनी रहती है. दार्शनिक अंदाज़ बहुत पसंद आया. शुभकामनाएं.
प्रभावशाली और विचारपूर्ण
उत्कृष्ट
बधाई —-
आग्रह है–
वाह !! बसंत——–
बड़ी विचित्र है ज़िन्दगी -डिफ़ाइन करने चलो तो एक फ़लसफ़ा बनता चले !
jindagi kaisi bhi ho use har pal jiye
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