समेटे हर लम्हा खुद में
हर ख्वाब का इन पर बसेरा है
झुकती हैं जब हौले से ये
शर्मो हया की वो बेला है
जो उठ जाएँ कुछ अदा से
मन भंवर ये बबला हो जाये
ये पलकें हैं प्यारी पलके
न बोले पर सब कह जाएँ
जो दो पल झपकें ये पलकें
तन मन सुकून यूं पा जाये
जो मिल जाये अपना सा कोई
खुद पर ही फिर उसे बिठाएं
जो गिरें तो हो जाये रात सनम
जो उठे तो सवेरा हो जाए
जो मिल जाएँ किसी से ये पलकें,
अनुराग ही पूरा हो जाये.
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
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