बसंत पंचमी ( भारतीय प्रेम दिवस ) बीत गया है ,पर बसंत चल रहा है और वेलेंटाइन डे आने वाला है ..यानी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ..अजी जनाब खिले ही नहीं है बल्कि दामों में भी आस्मां छू रहे हैं ,हर तरफ बस रंग है , महक है ,और प्यार ही प्यार बेशुमार . …वैसे मुझे तो आजतक ये प्यार का यह फंडा ही समझ में नहीं आया ….कहीं कहा जाता है ..प्यार कोई बोल नहीं ,कोई आवाज़ नहीं एक ख़ामोशी है सुनती है कहा करती है …तो कहीं कहा जाता है ….दिल की आवाज़ भी सुन ….
अजीब कन्फ्यूजन है …वैसे अगर आप गौर फरमाएं तो प्यार की परिभाषाएं कुछ इस तरह भी हो सकती हैं .
एक नन्हे बच्चे के लिए माँ है प्यार …
स्कूल जाता है तो स्कूल की छुट्टी है प्यार..
थोड़ा और बड़ा होता है तो टीचर है प्यार…
एक कुंवारे के लिए एक करोणपति की इकलौती बेटी है प्यार
और एक नवयुवती के लिए कोई मिस्टर परफेक्ट है प्यार.
एक गृहणी के लिए सुकून के दो पल हैं प्यार
एक पति के लिए पत्नी का मौन है प्यार.
एक अधेड़ पुरुष के लिए किसी कमसिन का हेल्लो हो सकता है प्यार
एक कवि के लिए चाँद है प्यार
और एक पाठक के लिए कवि की कविताओं से बच पाना है प्यार .
तो जी प्यार एक, रूप अनेक टाइप बात है कुछ. ..जरा सोचिये वेयर इस द टाइम टू हेट, व्हेन देयर इज सो सो मच टू लव …
यूँ मुझे इस प्रेम उत्सव से ज्यादा प्यार रंग उत्सव से है जिसका ऑफिशियल आगाज बसंतपंचमी से हो जाता है ...खासकर कुमायूं में तो हो ही जाता है. जहाँ बचपन में मनाई होली की तस्वीरें अब तक मेरे ज़हन में ताज़ा हैं. वहां बसंतपंचमी से ही होली की बैठकें शुरू हो जाती थीं .यानी बारी बारी हर एक के घर में बैठक होती जहाँ होली की टोली/मंडली हारमोनियम ,ढोलक के साथ पहुँचती और ” जल कैसे भरूँ जमना गहरी ” और ” काली गंगा को कालो पानी ” की सुर लहरियां गूंजने लगतीं, फिर जलपान के साथ संध्या का समापन होता और यही कार्यक्रम होली तक जारी रहता. .फिर होली वाले दिन भी ऐसी ही टोली में सब निकलते और नाचते गाते एक एक के घर जाते एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाते और फिर वह भी टोली में शामिल हो जाता ..मैंने आजतक इतनी साफ़ सुथरी ,सभ्य ,सुघड़ और रोचक होली और कहीं नहीं देखी .…
कुमाऊँनी होली बैठक .
फिर पहाड़ों से निकल कर मैदानों में आये तो देखा होली का विकराल रूप. जितने तथाकथित सभ्य लोग उतना ही असभ्य होली मनाने का तरीका .जहाँ जब तक कीचड़ में न फैंका जाये किसी का फगवा पूरा नहीं होता था.रंग ,कीचड़,कोलतार जो मिले पोत दो. होली से एक दिन पहले तैयारी में और दो दिन बाद के , सही दशा में आने में बेकार …पर फिर भी होली है भाई होली है…
पर सबसे यादगार रही उसके बाद मोस्को के होस्टल में मनाई गई होली जहाँ किसी भी तरह का रंग ,गुलाल का इस्तेमाल संभव नहीं था. तो शुरुआत तो हुई हम लड़कियों की लिपस्टिक से सभी कुछ बहुत ही सभ्य तरीके से चल रहा था लिपस्टिक से टीके लगाये जा रहे थे ज्यादा से ज्यादा उसी से मूंछे दाड़ी बना दी जा रही थीं. अब वो जाने होली की खुमारी थी या विनाश काले विपरीत बुद्धी ,अचानक एक महाशय को जाने क्या सूझा, दाल गरम करते दूसरे महानुभाव पर जरा सा पानी छिड़क दिया… और बस.. फिर तो लेकर उन्होंने दाल का पतीला ही पहले वाले पर उलट दिया और जी शुरू हो गई दाल,, चावल , मसालों की खाती पीती होली .दाल चावल,सब्जी और मसाले ख़तम हो गए तो .तो फ्रिज से निकाल कर हर चीज़ इस्तेमाल की गई और एक बार फिर सदियों बाद भारत में ना सही पर भारत वासियों ने दूध दही की नदियाँ बहा दीं .होली का खुमार उतरा तो समझ में आया कि ये स्व: निर्मित नदिया अपने आप तो सागर में मिलने से रहीं इन्हें इनके गंतत्व तक पहुँचाना भी हम ही को पड़ेगा और फिर हुआ सफाई अभियान और एक हफ्ते तक कमरे से लेकर कपड़ों तक में मसाले की सुगंध आती रही. घर का राशन ख़तम हो गया वो अलग.पर होली मन गई और बहुत खूब मन गई .और मिल गया एक मनपसंद त्यौहार मनाने का आत्मिक सुख..
जी हाँ हमें पता है कि होली अभी दूर है …पर हमने सोचा कि होली पर तो रंग बिरंगी रचनाओं से ब्लॉगजगत सराबोर रहेगा . और हम भी व्यस्त रहेंगे ये रंग भरा त्यौहार मनाने में , अंग्रेजों के गोरे गालों पर गुलाल वैसे भी बहुत खिलता है..तो हम अपने ब्लॉग पर अबीर ,गुलाल का एक टीका अभी लगा देते हैं .
आप सभी को रंगों भरे इस मौसम की बहुत बहुत शुभकामनाएं. .
पिछले साल की होली
शिखा,
होली किसी न किसी रूप में सब जगह एक जैसी ही होती है. कुमाऊँ में जो ढोल और हारमोनियम के साथ गाते बजाते मनाई जाती है वही हमारे बुंदेलखंड में भी फाग गयी जाती है और खूब मस्ती में सब गाते बजाते हुए निकालते हैं. होली में भंग कि मस्ती भी जरूर कहीं न कहीं मिल जाती है. कुल मिला कल बस मस्ती ही मस्ती होती है. वैसे मसाले वाली होली रोचक लगी. ऐसा घर में होने लगे तो माँ बेलन लेकर दौड़ा देती.
फागुन का रंग सब जगह दिखाई दे रहा है….
उधर मैंने फेसबुक पर होली की फोटो डाली…इधर प्रशांत भाई भी जोगीरा सा रा रा रा रत रहे हैं..
और आपकी पोस्ट भी..ऐसा लग रहा जैसे होली आ गयी…:)
होली है………..
आदरणीय शिखा जी
नमस्कार !
होली का रंग सब जगह दिखाई दे रहा है
रंगों भरे इस मौसम की बहुत बहुत शुभकामनाये. .
sb
rochak
aur
jaankari se bharpoor bhi…
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट ! प्यार के अनेक रूप !
होलियारी पोस्ट के साथ होली का स्वागत है।
शुभकामनाएं।
अभी तो होली का अहसास भर है ,पूरे महीने का होलिकोत्सव अभी बाकी है.
ये लो जी होली से पहले ही होली का मज़ा . वैसे भी ऋतुराज बसंत के आगमन के बाद मौसम में प्यार छलकता ही है और होली के रंग उसमे जीवन को जीने की राह दिखा जाते है . होली से जुडी बहुत सारी खुशनुमा यादें है जिनको याद करके बरबस ही मुस्कान आ गयी होठो पर . सब कुछ तो है आपके इस पोस्ट में . प्रेममयी , मसालेदार और रंगीली पोस्ट .
हमारी भी शुभकामनाएं ले लीजिये … इन अडवांस ! मस्त पोस्ट … लगे रहिये !
आदरणीय शिखा जी
प्यार के विविध रूप और उन्हें व्यक्त करने के अंदाज …साथ में होली ..का गुलाल ..कुल मिलाकर विविध रंगी है आपकी यह पोस्ट …आपका आभार
प्यार की परिभाषाएं तो खूब रही.
साथ में होली की मस्ती.
बहुत ही खूब.
सलाम
शिखा जी
बहुत अच्छा काम किया जो अभी से होली की याद दिला दिया बचपन में हम भाई बहन सब महीने पहले से होली की तैयारी करने लगते थे और होली भी पूरे पांच दिन चलती थी किन्तु विवाह के बाद तो मुंबई में होली ढंग से पांच घंटे भी नहीं चलती है कब आई कब गई पता ही नहीं चलता है | इस बार निश्चित रूप से ब्लॉग पर कई तरह की होली देखने पर पढ़ने को मिलेगी शुरुआत
कुमाऊँनी होली और रूस की मसाला होली से हो गई है अब आगे आगे देखते है की होली का कौन कौन सा रूप निकाल के बाहर आता है | और हा पुरा वसंत ही भारतीयों के लिए प्रेम प्रदर्शन का समय होता है बस लोग पश्चिम का विरोध करने के धुन में अपना भूल गये है |
होली है प्रेम का अल्हड़ स्वरूप।
''एक कवि के लिए चाँद है प्यार……''
प्यार-रंग में डूबी पोस्ट के लिए बधाई. पोस्ट पढ़ कर मेरे दिल ने कहा-''तुम भी इतनी प्यारी बात कहने की कोशिश करो'''…बस मूड बना और एक एक गीत ने आकर ले लिया.. दो दिन बाद मेरे ब्लॉग में नज़र आयेगा. इस्काश्रेय ''स्पंदन'' को ही जाएगा. सुन्दर विचारो से भरे आलेख के लिए फिर बधाई..
बसंत के रंगों के साथ ही होली के रंगों का स्वागत अच्छा है…. वैसे प्यार के हर रूप को इतनी सहजता और सुन्दरता से बयां करना भी खूब रहा…… 🙂
एक पोस्ट में बसंत पंचमी, वैलेंटाईन डे और होली सबको निपटा दिया.. हमारी बिहार की होली भी मज़ेदार होती थी.. अब न वो दोस्तरहे, न समाज.. मगर रूस की होली हँसीदार लगी, लंदन की मज़ेदार और कुमाऊँ की शानदार!!
बहुत सुंदर जानकारी जी, वेसे जर्मन मे भी होली से मिलता जुलता एक त्योहार आता एह जिसे हमारे बाबेरिया मे तो फ़ाशिंग कहा जाता हे तो जर्मन भाषा मे उसे कारिन्वाल कहा जाता हे, ओर इस मे भी लोग खुब हंगामा करते हे,इस बार ७ मार्च को आ रहा हे
पूरी पोस्ट अच्छी ….पर ये दो बातें सबसे अच्छी शिखा दी…..
एक नन्हे बच्चे के लिए माँ है प्यार … 🙂
स्कूल जाता है तो स्कूल की छुट्टी है प्यार.. 🙂
प्रेम के कई रूपों को दिखाने के लिये धन्यवाद..
पति के लिए पत्नी का मौन है प्यार …मस्त !
प्यार के विभिन्न रूपों का दर्शन कर लिया और होली का आगाज़ भी ….!
आपको भी बहुत शुभकामनायें !
पति के लिए पत्नी का मौन है प्यार …मस्त !
प्यार के विभिन्न रूपों का दर्शन कर लिया और होली का आगाज़ भी ….!
आपको भी बहुत शुभकामनायें !
प्यार की परिभाषा बहुत बढ़िया लगी .और होली पर आपका लेख भी मन होलीमय किये दे रहा है .
अच्छा लगा ये रंग महसूस करके ।
पहले टीवी नहीं था तो त्योहारों में जीवन्तता थी और उनका इन्तजार भी। अब तो बस खानापूर्ति रह गयी है। मसालों के साथ होली बढिया रही, अब तुम्हारे पास मसाले थे तो तुमने मसालों से खेल ली और जिनके पास कीचड़ होती है वे कीचड़ से खेल लेते हैं। यह त्योहार ही ऐसा है। अभी से बधाई।
SPANDAN
SABSE PAHALE AAPKA ABHINANDAN
BAHUT SUNDER
एक नन्हे बच्चे के लिए माँ है प्यार …
स्कूल जाता है तो स्कूल की छुट्टी है प्यार..
hahahaha…sahi holi thi didi…waise main to holi khelta hee nahi…holi ke din khaane peene ka saamaan lekar..ek kamre me band ho jata hun ..koi kitna bhi kahe darwaza nahi kholta….
सुन्दर रंग बिखेरा आपने…
रंग मन तक उतर आये…
फागुन मुबारक !!!
aapne to poora man hi faguni kar diya ……….. aur kavita to bahut achchi lgai vesheskar vo pankiti ………. adhed ke liye .. sunder yuvati ka hello hi pyaar hai 🙂
आप का लेख पढ़ते हुए कुमाउनी होली के दृश्य याद आ गए| धन्यवाद|
संस्कृत में एक कहावत है- उत्सवप्रियः मानवः, अर्थात मनुष्य उत्सव-प्रिय होता है। यह उत्सव- प्रियता होली के अवसर पर अपने उच्चतम शिखर पर पहुँच जाती है। आपका यह वर्णन काफी सरस लगा। आभार।
बेहतरीन रंगारंग पोस्ट….
एक पाठक के लिए कवि की कविताओं से बच पाना है प्यार
???????????
rang shuru……. chutki bhar rang meri taraf se roj
शिखा जी बहुत सुंदर आलेख है |बधाई |
शिखा जी बहुत सुंदर आलेख है |बधाई |
प्रेम के रंग में मसाले काफी चटपटे लगे ….अलग अलग होने के बाद भी सब मिल कर नया रूप दे रहे हैं …मुझे भी अपने कॉलेज की होली याद आ गयी …जैसा अजीत जी ने कहा …हमने तो पानी और मिट्टी से ही होली खेली थी .:)
कुमायूं की होली की झलक अच्छी लगी …
लगता है अभी से रंग चढ गया है होली का …
अच्छा…अँगरेज़ पुलिस लेडिज को रंग लगाते हुए आपको डर नहीं लगा 😉
बाकी ये गलत बात है की होली के इतने दिन पहले से ही आपने होली का जिक्र छेड़ दिया 🙁
और बाकी एक शेर पे मुशायरा तो कल हो ही चूका है फेसबुक पे 😉
ब्लॉग जगत में वसंतोत्सव की शुरुआत हो गयी| बधाई| प्रेम ही है जो सबको जोड़ता है| अगर मैं सही हूँ तो यह प्रेम ही था जिसने नक्सलियों का दिल पिघलाया और उनने कल बस्तर में 18 दिनों तक कैद जवानों को बिना शर्त रिहा कर दिया|
प्यार की परिभाषायें बडी सटीक रही, आपने अधेड तक तो बात पहुंचा दी पर बुढऊ (विशेषकर ब्लागर्स) लोगों के प्यार के बारे में भी बता देती तो लगता कि बुढऊ लोगो की भी जगह है कहीं.:)
वाकई बसंत पंचमी के आते ही इस पूरे जीव जगत में फ़ाग की मस्ती अपने आप चढ जाती है और होली आते आते तो यह मस्ती खत्म. अत: कुमाऊ में होली का पर्व बसंत पंचमी से होली तक चलता है उसके पीछे यही कारण होता होगा. इस मौसम में गंभीर से गंभीर आदमी भी मस्ती के मूड में आजाता है. होली की इस शुरूआती पोस्ट के लिये शुभकामनाएं.
रामराम.
वैसे ये प्यार कुछ ज्यादा ही सुखद होता है…………..एक पति के लिए पत्नी का मौन है प्यार. प्यार की अनूठी परिभाषाओं के साथ होली के बेहतरीन रंग भी देखने को मिले.. सुंदर प्रस्तुति.
बस तो होली भी आई ही समझो
'jara sochiye where is time to hate,when there is so so much to
love.' yeh soch jivan me bana rahe to har din hi holi aur basantpunchmi hai.Ati sunder prempoorn abhivyakti.
Ho sake to mere blog "Mansa vacha
karmna" per bhi tasreef laye.
ये हुई न बात।
बसंत, वेलेंटाइन और होली के रंगों को खूबसूती से बिखेरा है।
महीना पहले हमारी तरफ से हैप्पी होली।
वाह प्यार के कितने रंग और सराबोर मन
होली की याद आ रही है और होली भी चली आ रही है धीरे धीरे । आपकी पोस्ट पढ़कर एक बार महसूस भी कर लिया होली को ! ऐसा उत्सव और कोई नहीं। शुभकामनाएँ एवं धन्यवाद !
सबसे पहले तो देरी के लिये माफ़ी………यहाँ तो होली के रंगो से सराबोर कर दिया और मसालों वाली होली तोहमेशा याद रहेगी…………मज़ा आ गया पढकर्।
नमस्कार…
वसंत पंचमी से होली तक का सफ़र…रंगों से सराबोर कर गया….आज भले ही ये कागजी रंग हों पर आत्मिक तो अवश्य लगे…रंग लगा नहीं और सब रंगीन हो गया….हाँ ये मसालों की गंध समायी होली तो आज भी आपके जेहन में अपनी सुपरिचित सुगंध भर देती होगी….
होली करीब है चलिए आपने याद करा दिया आज ही होली के अवकाश का आरक्षण करता हूँ…
वैलेंटाइन डे का गुलाब तो अरसे से रखा किताब में सूख गया है हाँ…होली के रंग आज भी रंगीन हैं जैसे पहले हुआ करते थे….आज भी होली की प्रतीक्षा में ही गालों की अभ बढ़ जाती है….आँखों की चमक आज भी बता देती है की हमें होली कितनी प्रिय है….
वैसे बिहारी भाई का कहना भी सही है….बसंत पंचमी, वलेंटाइन डे और होली को एक साथ निपटा दिया….अब हमारी गुज़ारिश है की विगत कई वर्षों की भांति एस बरस भी होली पर नयी और धमाकेदार पोस्ट लेकर आयें जिसे ब्लॉगजगत अगली कई होलियों तक याद करे….
शुभकामनाओं सहित…
दीपक…
ye comment pata nahi kyon blog par nahi dikh raha mail men aaya tha –
अनूप शुक्ल has left a new comment on your post "प्रेम, रंग और मसाले":
बड़ी मजे-मजे वाली परिभाषायें बतायीं आपने प्यार की।
एक पाठक के लिए कवि की कविताओं से बच पाना है प्यार . इसमें कवि की जगह अपना नाम लिखने से बचा गई न! होशियार कवि हैं आप।
दाल-चावल वाली होली के किस्से मजेदार लगे। कुमायूं की होली के किस्से कभी तरुण ने लिखे थे खडी होली नाम से। http://www.readers-cafe.net/uttaranchal/2009/03/kumaoni-holi-festival-of-songs-music-and-colors/
मजेदार पोस्ट!
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट
होली का स्वागत है।
सच कहा बड़े भैया (बिहारी बाबु) ने एक ही पोस्ट में दो महीने को निपटा दिया आपने…:) सरस्वती पूजा, प्रेम दिवस के साथ होली के रंग भी मिला दिए…:)
"एक अधेड़ पुरुष के लिए किसी कमसिन का हेल्लो हो सकता है प्यार "…पर एक अधेर स्त्री के लिए क्या हो सकता है, ये भी बता देती तो हमारा ज्ञान वर्धन होता ………..:डी
प्रेम दिवस की शुभकामनायें…:)
वाह …प्रेम के रंगों में रंगी यह बेहतरीन प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ।
होली के रंगों में बात ही कुछ अलग है ….वसंतोत्सव पर सारी गंभीरता भूल मन बच्चा बन जाता है ! रशियन होली का फोटो बहुत अच्छा लगा शिखा ! संग्रहणीय है ! शुभकामनायें आपको !
पोस्ट पढ़कर मन पुलकित हो गया। हम जैसे ब्लॉगर के लिए एक सुंदर पोस्ट पढ़ना ही है प्यार।
आपने हमें यह दे दिया- आभार।
आप यूँ ही रंग और प्यार बिखेरती रहिए। शुभकामनाएँ।
रोचक पोस्ट!
बहुत अच्छा लगा।
अरे वाह!!! अभी से इतनी रंगीनी??
शिखा वार्ष्णेय जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
प्रेम, रंग और मसाले में आपने कितने रस मिला दिए ! बसंत , वेलेंटाइन डे , होली …
लोक रंग भी , कविता जैसा भी कुछ , सामान्य ज्ञान भी … भई वाह ! बहुत ख़ूब !
वैसे हमें भी आज तक प्यार का यह फंडा समझ में नहीं आया न हो तो परी से न हो … होने को ऐरी ग़ैरी नत्थूख़ैरी से हो जाए… 🙂
बहुत मेहनत से तैयार इस पोस्ट के लिए आभार और हार्दिक बधाई !
प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
प्रणय दिवस मंगलमय हो ! 🙂
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
– राजेन्द्र स्वर्णकार
शिखा तो अभी से होली के रंग मे रंग गयी। चलो हम भी नहा लिये तुम्हारे रंग मे। बधाई शुभकामनायें।
daal chawal/ masaale ki holi
ye bhi khoob kahi aapne/
ran-birangi post ke liye shukriya
aapko padhna hamesha hi achha lagta he, kyunki usme aapke apne rang jo ghule hue hote hain…
aapko bhi basant aur holi ki agrim shubkamnaye!
प्यार और होली का अदभुत मिश्रण।
———
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
अगर एक कुवारे के लिए एक करोडपति की इकलौती बेटी है प्यार है तो हमें तो अभी तक सच्चा प्यार नहीं मिला.. 🙂
मैं देर करता नहीं… देर हो जाती है
क्या लिखूं.. सब लोग तो आपकी पोस्ट पर इतना अच्छा लिख जाते हैं कि मेरे लिए कुछ बचता ही नहीं… फिर भी एक बात कह देता हूं. सच तो यह है कि शिखाजी की प्रेम बगैर मसालों के परवान भी नहीं चढ़ता है. मुझे नहीं लगता कि सादे चावल या सादी दाल सा प्रेम कोई ग्रहण भी कर पाएगा. प्रेम में हींग का तड़का… ढिशुम.. ढिशुम जरूरी है. होली की पोस्ट के बहाने आपकी पोस्ट प्रेम के विविध आयामों पर एक विमर्श की मांग करती है.चूंकि आपका लेखन मुझे पसन्द है इसलिए मैं अपनी कम्पयूटर टेबल पर गरम मसाले की दो पुड़िया रखकर टिप्पणी लिख रहा हूं.. हा… हा… हा…
सचमुच अच्छा लगा. बधाई
manmohak rangarang post.
रंगों से सराबोर सतरंगी मन.
एक पति के लिए पत्नी का मौन है प्यार …
पर हमेशा ये जरूरी नहीं है … पति अक्सर चाहता ही की उसकी पत्नी चहकती रहे … मुस्कुराती रहे …
होली के रंगों की दास्ताँ ने हमें भी पुराने दिन याद करा दिया …
पूरे बसंत माह की शुभकामनाएं ….
ही ही ही आपको भी होली की ढेर साडी शुभकामनायें ….हल्दी मसले वाली होली की शुभ कमान्याए..
बड़ी मजे-मजे वाली परिभाषायें बतायीं आपने प्यार की।
एक पाठक के लिए कवि की कविताओं से बच पाना है प्यार . इसमें कवि की जगह अपना नाम लिखने से बचा गई न! होशियार कवि हैं आप।
दाल-चावल वाली होली के किस्से मजेदार लगे। कुमायूं की होली के किस्से कभी तरुण ने लिखे थे खडी होली नाम से। http://www.readers-cafe.net/uttaranchal/2009/03/kumaoni-holi-festival-of-songs-music-and-colors/
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आपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर… साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
अत्यंत सुंदर संस्मरण।
प्रेम की बेहद हृदयस्पर्शी परिभाषा और सबसे रोचक रहा मसालों की होली एकदम जबरदस्त … कल्पना करके बहुत हँसी आई साथ ही आनंद भी।
सुंदर लेखन।
सादर।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर प्रेम के सभी रंगों से सरोवार