“क्या आपके कारोबार में घाटा हो रहा है?,या आपके बच्चे आपका कहा नहीं मानते और उनका पढाई में मन नहीं लगता , या आपकी बेटी के शादी नहीं हो रही ? क्या आप पर किसी ने जादू टोना तो नहीं किया ? यदि हाँ तो श्री …..जी महाराज आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं। यदि आप पर किसी ने काला जादू किया है तो ऊपर वाले की दया से उसी समय उतार दिया जाएगा और आपको ….जी महाराज से मिलकर यह एहसास अवश्य होगा कि इतनी कम उम्र में उन्होंने इतना इल्म कैसे पाया” .
क्या लगता है आपको ? यह भारत के किसी पुराने से कस्बे में एक रिक्शे पर लगे लाउड स्पीकर की आवाज है ? जी नहीं.यह आवाज आ रही है दुनिया के सबसे विकसित और आधुनिक कहे जाने वाले शहर लन्दन में प्रसारित होने वाले एक हिंदी रेडिओ प्रसारण चैनल से. यूँ कहने को कहा जा सकता है कि यह सिर्फ एक विज्ञापन है। किसी ने पैसे दिए तो रेडियो ने चला दिया।आखिर रेडिओ स्टेशन चलाने के लिए विज्ञापन तो चाहिए ही।फिर आजकल तो मीडिया के सामाजिक सरोकार की बात करना भी फ़िज़ूल ही है। फिर भी कुछ दायित्व तो अपने श्रोताओं के, अपने समुदाय के प्रति इन मीडिया के माध्यमों का बनता ही है। खासकर तब जब आप अपने देश से बाहर दूसरे देश में अपने देश का, अपनी संस्कृति का और अपने लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लन्दन में मुश्किल से २ या ३ एशियाई रेडियो चैनल हैं, जिनपर भारतीय भाषाओँ के गीत और अन्य कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं और लन्दन व आसपास के इलाकों में पूरे एशियन समुदाय द्वारा प्रभुत्ता से सुने जाते हैं .ऐसे में मीडिया की कुछ तो जबाबदारी बनती ही है। बात श्रद्धा विश्वास तक सिमित हो तो किसी को एतराज नहीं होता, दुनिया में बहुत सी जगह पर सदियों से ज्योतिष और इस तरह बुरी आत्माओं के छुटकारे का वैकल्पिक इलाज प्रचलन में हैं और धड़ल्ले से किया भी जाता हैं, परन्तु जब यह श्रद्धा, अंधविश्वास का रूप लेकर घातक हो जाए तब इसका यूँ प्रचार करना नागरिकों को पथभ्रष्ट करना ही कहलायेगा।
बी बी सी समाचार के अनुसार इंग्लैंड में एक व्यक्ति को उम्रकैद की सजा हुई है जिसने अपने घरवालों के साथ मिलकर अपनी ६ महीने की गर्भवती पत्नी नैला मुमताज को 2009 में बेहोश करने की प्रक्रिया के दौरान मार डाला। लड़की के ससुराल वालों के मुताबिक मुमताज के अन्दर जिन्न था जिसे नैला के माता पिता ने पकिस्तान से उसके साथ भेजा था और जिसे वह निकालने की कोशिश कर रहे थे।
वहीं 2010 में १५ वर्षीय लड़के के साथ हुआ एक हादसा ब्रिटेन के निवासी नहीं भूल सकते, जिसकी, उसके अन्दर के तथाकथित राक्षस को निकालने के लिए पूरे एक दिन की झाड फूंक के दौरान दर्दनाक मौत हो गई।
यूँ इस तरह के झाड फूंक या भूत, आत्माओं को भगाने की प्रक्रिया से हुए घायलों या मृतकों का कोई अंतरराष्ट्रीय डेटा बेस नहीं है अपितु इनकी संख्या दर्जनों में है. आज भी लोग इस तरह के इलाजों में हजारों पौंड फूंक देते हैं। और बी बी सी की रिपोर्टों के अनुसार सैकड़ों एशियन लन्दन में इस तरह के इलाज करने का दावा करते हैं और बहुत से लोग आज भी मानसिक बिमारियों के लिए इन ओझाओं के पास जाना ज्यादा पसंद करते हैं।उन्हें विश्वास होता है कि उन बुरी आत्माओं को यह ओझा निकाल देंगे जिनका उल्लेख कुरान में जिन्न के रूप में किया गया है।
इन विश्वासों के आधार पर ना जाने कितने बेगुनाह अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं ,तो क्या इसके पीछे इस तरह के विज्ञापनों के राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण की कोई जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. कानूनी न सही मानवीय उसूलों के आधार पर इतना ख़याल तो मीडिया के किसी भी साधन को रखना ही चाहिए कि यदि वह समाज में किसी अच्छी संस्कृति का विकास नहीं कर सकते तो कम से कम कुरीतियों को बढाने में भी सहयोग न करें .
(दैनिक जागरण के “लन्दन डायरी” सतम्भ (24th aug 2013)में प्रकाशित )
lo kar lo baat ham india mein hee pareshaan they
aapki pareshani jayaj hai !!
ओह …
क्या कहा जाए ???
हम इक्कीसवीं सदी में हैं !!!!!
जाति,समुदाय, धर्म, देश…अन्धविश्वास की कोई परिधि नहीं है. आज भी यह कुरीति दुनिया-भर में प्रचलन में है. अनेक संस्थाएँ निरंतर, मनुष्य में तर्कसंगत व विज्ञानसम्मत दृष्टिकोण विकसित करने में लगी हैं, किन्तु पोंगा-पंथी चेष्टाएँ हावी हो जाती हैं अंधश्रद्धा पर. दुष्परिणाम आए दिन हम देखते ही हैं. मीडिया अत्यंत शक्तिशाली औज़ार है तमाम तरह की विसंगतियों को निर्मूल करने का. किन्तु बात वहीँ आती है…मीडिया भी अक्सर अपने जवाबदेही भूल जाता है. सही कह रही हैं आप "…आजकल तो मीडिया के सामाजिक सरोकार की बात करना भी फ़िज़ूल ही है। फिर भी कुछ दायित्व तो अपने श्रोताओं के, अपने समुदाय के प्रति इन मीडिया के माध्यमों का बनता ही है। खासकर तब जब आप अपने देश से बाहर दूसरे देश में अपने देश का, अपनी संस्कृति का और अपने लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।…बात श्रद्धा विश्वास तक सीमित हो तो किसी को एतराज नहीं होता…परन्तु जब यह श्रद्धा, अंधविश्वास का रूप लेकर घातक हो जाए तब इसका यूँ प्रचार करना नागरिकों को पथभ्रष्ट करना ही कहलायेगा." अंधभक्ति के मुद्दे पर हर समाज में जागरूकता लाने की ज़रुरत है. मीडिया के साथ में प्रबुद्ध वर्ग यदि यह संकल्प ले ले तो दृश्य परिवर्तन की पूरी सम्भावना है. सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई शिखा जी !
पूरी तरह सहमत ….
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने . क़म से कम भारत मे आकाशवाणी से इस तरह के विज्ञापन प्रसारित नही किये जाते. येह तो स्पष्ट है कि अन्धविश्वास विकसित देशो मे भि जडे फैलाये हुए है .
इस मामले में हमारा दुबई अच्छा है … ऐसे किसी भी प्रचार को मान्यता नहीं देता …
ऐसे प्रचार के लिए कोई आचार संहिता वो भी कठोर जरूर होनी चाहिए …
भई विलायती ओझा हैं , कुछ तो दम होगा ! 🙂
ये सब वहां भी होता है?? हमें तो पता ही नहीं था 🙁
लन्दन जैसे विकसित जगह में भी…अन्धविश्वास ,दिस-इम्पवरिंग विश्वास ….|
चलिए भारत ही अच्छा हैं ,आकाशवाणी में कम से कम ये सब तो नही आते …
कुछ तो है हममे , ऐसे ही थोड़े अंग्रेज हिंदुस्तान को संपेरे और मदारी का देश बोलते थे या है . हमारे यहाँ तो उच्च शिक्षित व्यक्ति बी तथाकथित बाबा के यहाँ पंक्ति में खड़ा पाया जाता है . अनपढ़ की क्या विसात . ये सिद्ध हुआ है की शिक्षा और अंधविश्वास के बीच गहरा तो नहीं लेकिन नाता जरुर है . बढ़िया चर्चा इस सामाजिक समस्या पर .
kya kahun bahtu se padhe likhe loog bhi in baton pr vishvash karte hain
rachana
अंधविश्वास हर जगह है ….. बेवकूफ बनने वाले हों तो कोई भी बना सकता है ।
यहाँ के बाबा तो कुछ ज्यादा ही पहुंचे हुये हैं ।
वहाँ भी? हद हो गई. पैसों के लिए क्या क्या न होता है. हमारे यहाँ अशिक्षा के कारण यह सब टिका हुआ है, पर वहाँ… मीडिया को किसी भी तरह के प्रचार या प्रसारण से पहले निश्चित ही जागरूक रहना चाहिए.
हे भगवान् , विदेश में अपना हिंदुस्तानीपन दिखाने को और भी चीजें है , हद है !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !
अंधविश्वास ऐसी चीज है जिससे पढ़े-लिखे भी नहीं बचते। लेकिन मीडिया को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
ऐसे बाबा लोगो से बच कर रहने की जरुरत है …जागरूकता लाने की जरुरत है .
पता नहीं कब सुधरेंगे लोग
ले लोट्टा , लंदन में भी ठगैती बाबा सब कमा धमा रहे हैं , हद है जी
कमाल है …लंदन में भी कथित बाबाओं का गोरख धंधा हो रहा है …इट इस टू मच हो गया है जी
लन्दन ने भी विकास कर है लिया है 🙂 तेरह की संख्या और बिल्लियों से आगे !
मीडिया को इस तरह के मामलों में समझदारी दिखानी चाहिए
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