“बिहार की एक ट्रेन में, बोतल से पानी पी लेने पर एक युवक की कुछ लोगों ने जम कर पिटाई कर दी” सोशल मीडिया पर छाई इस एक खबर ने मुझे न जाने कितनी ही बातें याद दिला दीं जिन्हें मैं इस मुगालते में भुला चुकी थी कि अब तो बहुत समय बीत गया। हालात सुधर गए होंगें।
पर क्या बदला है???
पूरे हिन्दुस्तान को तीन – तीन बार देखने के बाद भी पापा की हमारे साथ कभी बिहार देखने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। जबकि बिहार से ज्यादा शायद ही किसी राज्य की ऐतिहासिक संस्कृति इतनी संपन्न रही हो। हमारे किसी स्थान का प्रस्ताव रखने पर भी “वह बिहार में है” इस वाक्य के साथ उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता। यहाँ तक कि कहीं और जाते हुए भी यदि रास्ते में ट्रेन बिहार से गुजरती तो, बेशक रात के 2 बजे हों पापा अपनी सीट पर चौकस बैठे रहते और हम दोनों बहनो को ऊपर की सीट पर चुपचाप सोये रहने की हिदायत दे दी जाती। बिहार की सीमा में घुसने से पहले ही हमें ताकीद कर दिया जाता कि टॉयलेट वगैरह कहीं जाना हो तो अभी निबट आया जाए फिर ट्रेन बिहार में घुस जायेगी तो अपने केबिन से नहीं निकलना है। गोया बिहार न हुआ गब्बर सिंह हो गया। कि चुपचाप अपनी सीट पर सो जाओ वर्ना बिहार आ जायेगा।
फिर बिहार से ट्रेन के गुजरने पर ही वह अपना बिस्तर सीट पर लगा कर आराम करते।
हमें समझ में नहीं आता था कि बिहार के बाहर निकलते ही हर एक मिलने -जुलने वाले से दीदी, जीजा, भौजी, भैया, काकी, काका का रिश्ता बना लेने वाले बिहार के लोग इतने क्रूर और और खतरनाक क्यों हैं कि हमारे वह पापा जिनके माथे पर ट्रेन के चम्बल के बीहडों तक से गुजरने पर शिकन नहीं आती, बिहार आते ही तनाव में आ जाते हैं।
यूँ बिहार इस मामले में सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि भारत से बाहर भी खासा प्रसिद्द है।
अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है। मैं एक अंग्रेजी कंपनी के साथ भारत पर कुछ डॉक्यूमेंट्री के लिए काम कर रही थी। एक जगह पर बिहार का कुछ प्रसंग आने पर प्रोड्यूसर ने एडिटर को समझाते हुए कहा। “क्योंकि यह बिहार है। कभी इंडिया का सबसे संपन्न और शिक्षित समझे जाना वाला राज्य, जहाँ की संस्कृति किसी जमाने में दुनिया में सबसे आगे थी। परंतु आज यह शायद भारत ही नहीं दूनिया का सबसे गरीब और अशिक्षित राज्य है। जहाँ का क्रिमिनल रिकॉर्ड सर्वाधिक है। यहाँ के लोग अपने राज्य को संभाल ही नहीं सके”यह कह कर उसने मेरी तरफ देखा, वह अपने वक्तव्य पर मेरी सहमति की मोहर लगवाना चाह रहा था। और मैं चाह कर भी उसकी बात का खंडन नहीं कर पा रही थी। उसने उन फिल्मों के लिए महीनों भारत में बिताये थे, पूरा शोध किआ था। मैं कहना चाहती थी कि नहीं, सब राजनीति है। परंतु नहीं कह पाई। मैं जानती थी कि किसी भी जगह की मिट्टी में अच्छाई बुराई नहीं होती। उसे वहां रहने वाले आप और हम जैसे लोग ही अच्छा या बुरा बनाते हैं।
मैं जानती थी। भारत में यात्रा के नाम पर आगरा, जयपुर, केरल और गोवा तक टूरिज्म सिमट जाता है। सबसे ज्यादा हिस्टोरिकल वैल्यू रखने वाले बिहार के लिए खुद टूरिस्ट एजंसियां “डेट्स नॉट सेफ” कह कर बिहार न जाने की हिदायत देती हैं। उस प्रोड्यूसर को भी वहां न जाने की सलाह दी गई थी।
अत: उसके इस वक्तव्य पर मेरे पास धीरे से सहमति में सिर हिलाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
इस उम्मीद के साथ कि काश आने वाले वक़्त में कोई चमत्कार होगा और बिहार की सीमा पर लगा “सावधान आगे ख़तरा है” का अप्रत्यक्ष बोर्ड हट जायेगा।
पर क्या बदला है???
पूरे हिन्दुस्तान को तीन – तीन बार देखने के बाद भी पापा की हमारे साथ कभी बिहार देखने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। जबकि बिहार से ज्यादा शायद ही किसी राज्य की ऐतिहासिक संस्कृति इतनी संपन्न रही हो। हमारे किसी स्थान का प्रस्ताव रखने पर भी “वह बिहार में है” इस वाक्य के साथ उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता। यहाँ तक कि कहीं और जाते हुए भी यदि रास्ते में ट्रेन बिहार से गुजरती तो, बेशक रात के 2 बजे हों पापा अपनी सीट पर चौकस बैठे रहते और हम दोनों बहनो को ऊपर की सीट पर चुपचाप सोये रहने की हिदायत दे दी जाती। बिहार की सीमा में घुसने से पहले ही हमें ताकीद कर दिया जाता कि टॉयलेट वगैरह कहीं जाना हो तो अभी निबट आया जाए फिर ट्रेन बिहार में घुस जायेगी तो अपने केबिन से नहीं निकलना है। गोया बिहार न हुआ गब्बर सिंह हो गया। कि चुपचाप अपनी सीट पर सो जाओ वर्ना बिहार आ जायेगा।
फिर बिहार से ट्रेन के गुजरने पर ही वह अपना बिस्तर सीट पर लगा कर आराम करते।
हमें समझ में नहीं आता था कि बिहार के बाहर निकलते ही हर एक मिलने -जुलने वाले से दीदी, जीजा, भौजी, भैया, काकी, काका का रिश्ता बना लेने वाले बिहार के लोग इतने क्रूर और और खतरनाक क्यों हैं कि हमारे वह पापा जिनके माथे पर ट्रेन के चम्बल के बीहडों तक से गुजरने पर शिकन नहीं आती, बिहार आते ही तनाव में आ जाते हैं।
यूँ बिहार इस मामले में सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि भारत से बाहर भी खासा प्रसिद्द है।
अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है। मैं एक अंग्रेजी कंपनी के साथ भारत पर कुछ डॉक्यूमेंट्री के लिए काम कर रही थी। एक जगह पर बिहार का कुछ प्रसंग आने पर प्रोड्यूसर ने एडिटर को समझाते हुए कहा। “क्योंकि यह बिहार है। कभी इंडिया का सबसे संपन्न और शिक्षित समझे जाना वाला राज्य, जहाँ की संस्कृति किसी जमाने में दुनिया में सबसे आगे थी। परंतु आज यह शायद भारत ही नहीं दूनिया का सबसे गरीब और अशिक्षित राज्य है। जहाँ का क्रिमिनल रिकॉर्ड सर्वाधिक है। यहाँ के लोग अपने राज्य को संभाल ही नहीं सके”यह कह कर उसने मेरी तरफ देखा, वह अपने वक्तव्य पर मेरी सहमति की मोहर लगवाना चाह रहा था। और मैं चाह कर भी उसकी बात का खंडन नहीं कर पा रही थी। उसने उन फिल्मों के लिए महीनों भारत में बिताये थे, पूरा शोध किआ था। मैं कहना चाहती थी कि नहीं, सब राजनीति है। परंतु नहीं कह पाई। मैं जानती थी कि किसी भी जगह की मिट्टी में अच्छाई बुराई नहीं होती। उसे वहां रहने वाले आप और हम जैसे लोग ही अच्छा या बुरा बनाते हैं।
मैं जानती थी। भारत में यात्रा के नाम पर आगरा, जयपुर, केरल और गोवा तक टूरिज्म सिमट जाता है। सबसे ज्यादा हिस्टोरिकल वैल्यू रखने वाले बिहार के लिए खुद टूरिस्ट एजंसियां “डेट्स नॉट सेफ” कह कर बिहार न जाने की हिदायत देती हैं। उस प्रोड्यूसर को भी वहां न जाने की सलाह दी गई थी।
अत: उसके इस वक्तव्य पर मेरे पास धीरे से सहमति में सिर हिलाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
इस उम्मीद के साथ कि काश आने वाले वक़्त में कोई चमत्कार होगा और बिहार की सीमा पर लगा “सावधान आगे ख़तरा है” का अप्रत्यक्ष बोर्ड हट जायेगा।
बिहार है ही ऐसा हम आज भी अपने जिंदगी के 16 दिन जो हमने बिहार में गुजारे थे, भूलते नहीं हैं, हमेशा ही भय और दहशत के माहौल में रहे, समझ नहीं आता कि जनता कैसे इतना बर्दाश्त कर लेती है, क्यों नहीं जनता आवाज उठाती, भय और दहशत को खत्म कर, वापिस से विश्व की सांस्कृतिक राजधानी बन जाती।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31 – 03 – 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा – 2298 में दिया जाएगा
धन्यवाद
अत्यंत सारगर्भित विचारणीय लेख …
मैंने भी वो न्यूज़ देखा और शर्मिंदा होने के साथ साथ उद्वेलित भी हुयी ओर एक पोस्ट भी बनायीं जिसमे मानवता के गिरते स्तर पर कुछ हाइकु लिखे पर अफ़सोस होता है जब बिहार के बारे में कहीं ऐसा सुनती हूँ या पढ़ती हूँ तब | मैंने जन्म से लेकर २३ साल वह बिताये जो मेरी जिन्दगी के स्वर्णिम साल है कोई भय नही था मुझे बिहार से सुन्दर कोई जगह नही लगती थी जो अपनापन ओर संवेदन शीलता वहां देखी उसके बाद बंगाल ओर अब दिल्ली कहीं नही देखी | आज भी मेरे रोम रोम में बिहार बसता हाई और मैं गर्व से कहती हूँ की में बिहारी हूँ | आपने सही कहाँ राजनीती के जोंक ने बिहार ही नही पूरे देश को ही तबाह कर दिया है असर कहीं कम कहीं ज्यादा दीखता |
Biahar ke wasiyon ko hi aage aana hoga, koi aur kuchh nahi kar sakta.
बिलकुल सही कह रही हैं आप. हर कोई बिहार में जाकर, रहकर नहीं देख सकता. बाहर वाले लोग, पढ़ी, सुनी ख़बरों और वहां से आये लोगों के अनुभवों के आधार पर ही छवि बनाते हैं.
आगे तो आते हैं वे, पर डिफेन्स में 🙂
बिहार की इस समस्या है वहीं के लोग इसको सुलझा सकते हैं …
पर आज ये समस्या पूरे देश की ही बन चुकी है …
मेरे दो भाई बिहार में ही रोजी रोटी के लिये रहे। छात्रों को नकल नही करने दूंगा ये मेरे बडे भाई साहब( प्रोफेसर और हेड एनाटॉमी विभाग मेडिकल कॉलेज टाटानगर) का प्रण था जो उन्होने आखरी दम तक निभाया । छोटे भैया को रंगदारी नही दूंगा की वजह से जल्द ही धंदा बंद करना पडा।
शिखा जी!
जन्म से ही बंगाल में पढ़ा-लिखा-बड़ा हुआ हूं किंतु बिहार में पैतृक भूमि होने के कारण बिहार से जुड़ाव रहा है तथा निरंतर आना-जाना होता रहा है। जिस प्रकार के आतंक और दहशत की चर्चा आपने की है, अब तक मुझे कहीं नहीं दिखी। कोलकाता जैसे महानगर में रहने के बावजूद जब एक बार पटना से रात के ग्यारह बजे बस पकड़ कर मैं वहां से लगभग 200 किलोमीटर गोपालगंज जा रहा था रात के लगभग डेढ़ बजे किसी गंवई बस स्टापेज पर, जहां अन्य कोई व्यक्ति भी नहीं था, अपनी युवा बेटी तथा पत्नी के साथ एक व्यक्ति उस बस में बेझिझक सवार हुआ, तब यकीन मानिए, कोलकाता जैसे महानगर में भी मैं ऐसे किसी दृश्य की कल्पना नहीं कर सकता हूं कि रात के डेढ़ बजे परिवार के साथ कोई बाहर सार्वजनिक सवारी की प्रतीक्षा कर सकता है तथा निकल सकता हैष बहरहाल यह एक उदाहरण ही बिहारियों के मिजाज को दर्शाता है। दरअसल बिहारी लेना और देना दोनों ही शिद्दत से चाहते हैं, चाहे वह प्रेम हो अथवा नफरत। इस अतिरेक में ही चीजें किसी को भली लगती हैं और किसी को बुरी। वैसे महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, चाणक्य, अशोक की यह धरती रही है और आज भी यहां प्रतिभा की कमी नहीं है। बावजूद जिस प्रकार समय एक सा नहीं रहता है, उसी प्रकार अभी बिहार का समय नहीं है, इतना ही कहा जा सकता है। वैसे कभी बिहार जाने की इच्छा हो तो बेझिझक जाइए। यकीन मानिये, बिहार प्रेम से अपनी बांहें फैलाए स्वागत करता मिलेगा। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप किसी पूर्वाग्रह से नहीं ग्रस्त हों।
कमलेश पांडेय
मोबाइलः 09831550640
जी, मैंने यह कहीं नहीं कहा कि बिहार ख़राब है. बल्कि यही कहा है कि उसकी छवि ऐसी है कि लोग डरते हैं. मैंने स्वयं कहा है कि इतिहास और प्रतिभा संपन्न बिहार को वह दर्जा नहीं मिला जिसका वह हक़दार है.
मैं बिहार में रही हूँ ,वहाँ के लोगों से भी काफ़ी मिली-जुली हूँ.मैंने अधिकतर पाया कि लोगों की जैसे चलता है वैसे ही चलने देने की आदत पड़ गई है खुले मन से विचार कर स्थितियों को बदलने की बात वहाँ नहीं होती .दिमाग की कमी नहीं लेकिन उसका सदुपयोग -वहाँ से बाहर निकल जानेवाले करते दिखाई देते हैं ,वहाँ रहनेवाले नहीं .
यही बात ….
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