उगता सूर्य कल यूँ बोला,
चल मैं थोडा ताप दे दूं
ले आ अपने चुनिन्दा सपने
ले आ अपने चुनिन्दा सपने
कुछ धूप मैं उन्हें दिखा दूँ
उल्लासित हो जो ढूंढा
कोने में कहीं पड़े थे,
कुछ सीले से वो सपने
उल्लासित हो जो ढूंढा
कोने में कहीं पड़े थे,
कुछ सीले से वो सपने
निशा की ओस से भरे थे.
गत वो हो चुकी थी उनकी
लगा श्रम बहुत उठाने में
जब तक टाँगे बाहर आकर
सूरज जा चुका था अस्तांचल में
अब फिर इंतज़ार दिनकर का,
कब वो फिर से पुकारेगा,
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
लगा श्रम बहुत उठाने में
जब तक टाँगे बाहर आकर
सूरज जा चुका था अस्तांचल में
अब फिर इंतज़ार दिनकर का,
कब वो फिर से पुकारेगा,
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
गत वो हो चुकी थी उनकी
लगा श्रम बहुत उठाने में
जब तक टाँगे बाहर आकर
सूरज जा चुका था अस्तांचल में
कितने ही सपने मन के कोने में यूँ पड़े पड़े सिल जाते हैं…और सूरज कहीं और व्यस्त होता है…बेहतरीन अभिव्यक्ति
kya baat hai. kai bar to comment likhane ke liye dhabd khojane mushkil ho jate hain.narayan narayan
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति….सीले सीले सपने….दिनकर की धूप….सकारात्मक सोच के साथ इंतज़ार….
बहुत सुन्दर
bahut hi sundar aur bhavpoorn abhivyakti hai, Naa jane kitno ke seele sapne dinkar ki prtiksha me khoontee par tange tange isee tarah bejaan ho jate hain . bahut hi marmsprshee rachanaa .
http://sudhinama.blogspot.com
शिखा जी,
………कुछ सीले से वो सपने
निशा की ओस से भरे थे…….
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
सुन्दर शब्दों में पिरोई गई भावनाओं की माला
कमरे की भीतरी दीवारों पे धूप कहाँ रहती है
उनसे लगे सपनो की आँख हरदम बहती है
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
-बहुत उम्दा भाव…ये सीले सपने…और धूप का इन्तजार!! ओह!!
मौसम में परिवर्तन प्रकृति का नियम है। बदली और कुहासे के बाद सूरज की धूप एक बार फिर चमकेगी। बस अपने सपने बचा कर रखिए…
मेरा आशावादी मन तो यही कहता है।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी।
चूल्हा है ठंडा पड़ा,
मगर पेट में आग है.
गर्मागर्म रोटियां,
कितना हसीं ख्वाब हैं,
सूरज ज़रा आ पास आ,
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम,
आसमां तू मेहरबां है बड़ा.
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम,
सूरज ज़रा आ पास आ….
जय हिंद…
सपने हैं तो साकार भी होगें और किसके रोके रुका है सवेरा
…सुन्दर रचना !!!
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.
रामराम.
उम्दा भाव !!
आपकी रचना सूर्य ग्रहण के समय आयी, जब सूर्य खुद सीला हो रहा था। भाव अच्छे हैं लेकिन चित्र कपड़ों का आपने लगाया?
tumhare har sapno ko surya apni garmi,apna oj dega….taki sapne mukhar rahen
acchi rachna….
जब तक टाँगे बाहर आकर
सूरज जा चुका था अस्तांचल में
अब फिर इंतज़ार दिनकर का,
कब वो फिर से पुकारेगा,
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
शिखा जी ,
बहुत सुन्दर रचना !
हर रात के बाद सुबह आती है ! और नया सूरज !
फिर सब सपने सूखेंगे और प्रथम रश्मि के साथ खिलखिलाने लगेंगे !….
🙂
waah……..bahut hi sundar bhav.
sile sapne jaroor ek din apna arth khoj lenge sooraj ki jagmagati roshni mein……..bas beech mein kabhi kabhi grahan lag jata hai waqt ka magar ek din wo wubah jaroor aayegi.
last line mein ye word edit kar dijiyega……..wubah nhi hai ye ……ye subah hai.
सूर्य और हमारे सपनो की तिज़ोरी
जब सूर्य को ग्रहन लग जाता है
तो सपनो को भी लगा क्या शिकवा
बहुत कोमल भाव है और सरस है
शब्दो का प्रवाह
कभी लिखी मेरी चन्द पन्क्तुया देखे
भोर की पहली किरण कहती सुवह से,
मैं प्रथम उस सूर्य की अभिसारिका हूँ
तुम भले नित की करो जलपान उसके साथ पर
मैं प्रथम उस सूर्य की परिचारिका हूँ।
भाव-विचार में कविता असर तो छोडती है.लेकिन कहीं न कहीं मुझे ये लगता रहा कि यदि इसे मुक्त-छंद में व्यक्त किया जाता तो मुमकिन है,अभिव्यक्ति और प्रभावशाली होती.
ये पंक्तियाँ याद रह जाती हैं:
निशा की ओस से भरे …..
खूंटी पर टंगे
कुछ सीले से … सपने
ये टिप्पणी महज अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए.
अपनी लघुकथा पर आपकी टिप्पणी देखि फिर आपके ब्लॉग का नाम अपनी पत्रिका के नाम पर देखा. कविता और अन्य दूसरी पोस्ट पढ़ीं इन पर टिप्पणी बाद में.
अभी इतना ही कि जो भी लिखा है उसमें दिल की धड़कन भी शामिल दिखती है.
बधाई और धन्यवाद
डॉ . कुमारेन्द्र जी !
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मान बढाया आभारी हूँ…
मेरे ब्लॉग का नाम आपकी पत्रिका पर है …ये बात मुझे नहीं मालूम थी ….जैसा कि आपने कहा कि मेरी रचनाओं में दिल कि धड़कन दिखती है…बिलकुल ठीक पहचाना आपने और बस यही वजह थी कि " स्पंदन" से उपयुक्त नाम नहीं मिला मुझे..
आपकी उपस्तिथि का एक बार फिर से शुक्रिया..आपकी प्रितिक्रियों और मार्गदर्शन का इंतज़ार रहेगा.
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?
शिखा जी कई बार इसी आशा मे ही जीवन निकल जाता है और ये सपने खूँटी पर ही टंगे रह जाते हैं कभी धूप नहीं आती कई बार धूप आती है तो हम उन्हें किसी मजबूरी मे धूप नहीं दिखा सकते। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है धन्यवाद शुभकामनायें
सपने को अक्सर मेहनत की धूप और सही समय तक इंतेज़ार करना होता है पूरा होने तक ……… गहरी बात लिखी है आपने ………..
shikha ji bahut khoobsurat abhivyakti. rachna ki aankrhi lines sangeeta ji ki ek kavita alagani par tange khaab ki yaad dila gayi.
aaj kal surye devta to ruthe hai janaab inhe manana padega tabhi apki khuti per tange khaabo ko khushiyo ki dhoop mil payegi..praarthan hai.
अच्छी रचना ……!!
खुशदीप जी वाली आज देखी ….काफी सटीक उत्तर दिया आपने ……!!
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना सफल हो गया
हर शाम एक उम्मीद जगती है हर रात एक सपना देखा जाता है
यूँ ही एक ना उम्मीद सांझ, रात के बाद
एक महफूज़ सी सुबह निकलती है
सपनों को अगर सुखाना है तो उसे खुंटी पर नही बाहर डारे पर डालना होगा नही तो उन सपनो से बास आने लगेगी ।
उगता सूर्य कल यूँ बोला,
चल मैं थोडा ताप दे दूं
ले आ अपने चुनिन्दा सपने
कुछ धूप मैं उन्हें दिखा दूँ…
बहुत सुंदर पंक्तियाँ….
मुझ में भी बहुत ताप है…. पर डरता हूँ कि कल को सूरज निकलना छोड़ देगा तो …. मेरी ड्यूटी बढ़ जाएगी…..
शिखा वार्ष्णेय जी का नवगीत एक आशावादी गीत है जिसमें अपने पुराने सपनों को साकार होने की आशा बलवती दिखाई दे रही है. एक निराशा तो है लेकिन प्रकृति का नियम तो अट्रल है कि फिर से नया सवेरा होगा और सूरज ज़रूर पुकरेगा तथा जोश और उत्साह की धूप भी दिखाएगा.एक दिशाबोधी और सार्थक गीत के लिए शिखा जी को बधाई.उम्मीद है कि शिखा जी आगे भी अपनी लेखनी से हमें दिशा देती रहेंगी.
– विजय तिवारी ' किसलय'
खूँटी पर टंगे सपने का प्रयोग अच्छा लगा ।
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