मेट्रो के डिब्बे में मिलती हैतरह तरह की जिन्दगी ।किनारे की सीट पर बैठी आन्नाऔर उसके घुटनों से सटा खड़ा वान्या आन्ना के पास वाली सीट केखाली होने का इंतज़ार करताबेताब रखने को अपने कंधो परउसका सिरऔर बनाने को घेरा बाहों का।सबसे बीच वाली सीट परवसीली वसीलोविच,जान छुडाने को भागतेकमीज के दो बटनों के बीच घड़े सी तोंद पे दुबकते सन से बाल रात…

एक दिन उसने कहा कि नहीं लिखी जाती अब कविता लिखी जाये भी तो कैसे कविता कोई लिखने की चीज़ नहींवो तो उपजती है खुद ही फिर बेशक उगे कुकुरमुत्तों सी,या फिर आर्किड की तरहहर हाल में मालकिन है वो अपनी ही मर्जी की।कहाँ वश चलता है किसी का, जो रोक ले उसे उपजने से। हाँ कुछ भूमि बनाकर उसे बोया जरूर जा सकता है। बढाया भी जा सकता…

भाव अर्पित,राग अर्पित शब्दों का मिजाज अर्पित छंद, मुक्त, सब गान अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूं। नाम अर्पित, मान अर्पित रिश्तों का अधिकार अर्पित रुचियाँ, खेल तमाम अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ शाम अर्पित,रात अर्पित तारों की बारात अर्पित आधे अधूरे ख्वाब अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ। रूह अर्पित, जान अर्पित जिस्म में चलती सांस अर्पित कर दिए सारे अरमान अर्पित अब और…