जी हाँ,मेरे पास नहीं है पर्याप्त अनुभव शायद जो जरुरी है कुछ लिखने के लिए नहीं खाई कभी प्याज रोटी पर रख कर कभीनहीं भरा पानी पनघट पर जाकर बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कुआं और बरगद का चबूतरा सब फ़िल्मी बातें हैं मेरे लिए “चूल्हा” नाम ही सुना है सिर्फ मैंने और पेड़ पर चढ़ तोड़ना आम एक एडवेंचर,एक खेल जो कभी नहीं…
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मेट्रो के डिब्बे में मिलती हैतरह तरह की जिन्दगी ।किनारे की सीट पर बैठी आन्नाऔर उसके घुटनों से सटा खड़ा वान्या आन्ना के पास वाली सीट केखाली होने का इंतज़ार करताबेताब रखने को अपने कंधो परउसका सिरऔर बनाने को घेरा बाहों का।सबसे बीच वाली सीट परवसीली वसीलोविच,जान छुडाने को भागतेकमीज के दो बटनों के बीच घड़े सी तोंद पे दुबकते सन से बाल रात…