गद्य

लन्दन में मौसम की खूबसूरती अपने चरम पर है , स्कूलों की छुट्टियां शुरू हो गई हैं और नया सत्र सितम्बर से आरम्भ होने वाला है. ऐसे में हम जैसे के माता पिता के लिए (जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं ) यही समय होता है जो भारत जाकर इन छुट्टियों का सदुपयोग कर आयें. तो हम जा रहे हैं एक महीने…

सामान्यत: मैं धर्म से जुड़े किसी भी मुद्दे पर लिखने से बचती हूँ। क्योंकि धर्म का मतलब सिर्फ और सिर्फ साम्प्रदायिकता फैलाना ही रह गया है। या फिर उसके नाम पर बे वजह एक धर्म को बेचारा बनाकर वोट कमाना या फिर खुद को धर्म निरपेक्ष साबित करना। परन्तु आजकल जिस तरह मीडिया में हिन्दू मुस्लिम राग चला हुआ है मुझे कुछ अनुभव…

 “एक अनुचित और नियम के विरुद्ध स्थानांतरण में,मैंने शासन के कड़े निर्देश का उल्लेख करते हुये ऐसा करने से मना कर दिया। तो महाशय जी ने कलेक्टर से दबाव डलवाया तो मैंने डाँट खाने के बाद लिखा – “कलेक्टर के मौखिक निर्देश के अनुपालन में …. अब मुझे पता है फिर मुझे बहुत बुरी लताड़ पढ़ने वाली है. यहाँ जीना है…

कल यहाँ (लन्दन में ) बी बी सी 3 पर भारत में हुए दामिनी हादसे और उसके प्रभाव पर एक कार्यक्रम दिखाया जा रहा था. जिसमें भारतीय मूल की एक ब्रिटिश लड़की नेट आदि पर उस हादसे को देखकर इतना विचलित होती है कि  वह खुद भारत जाती है, वहां लड़कियों की स्थिति का जायजा लेने। जाने से पहले वह अपनी अलमारी खोल कर ले…

एक दिन स्कूल से आकर एक बच्ची ने कहा – मुझे एक साफ़ कपड़ा चाहिए हमें डी टी (डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी) में शॉर्ट्स सिलने हैं। वह तभी ही प्राइमरी स्कूल से सेकेंडरी में आई थी  सातवीं क्लास में। उसकी बात सुनते ही, बचपन से पनपी मानसिकता और पूर्वाग्रहों से युक्त मैं ..तुरंत पूछा, अच्छा ? फिर क्लास के लड़के उस पीरियड में क्या करेंगे ?…

उसे इंडिया वापस जाना है. क्योंकि यहाँ उसे घर साफ़ करना पड़ता है ,  बर्तन भी धोने होते हैं ,  खाना बनाना पड़ता है.  बच्चे को खिलाने के लिए आया यहाँ नहीं आती.  जब उसे जुखाम हो जाए तो उसकी माँ नहीं आ सकती .  फिल्मो में होली,दिवाली के दृश्य देखकर उसे हूक उठती है. कि उसका बच्चा वह मस्ती नहीं…

अपने देश से लगातार , भीषण गर्मी की खबरें  मिल रही हैं, यहाँ बैठ कर उन पर उफ़ , ओह , हाय करने के अलावा हम कुछ नहीं करते, कर भी क्या सकते हैं. यहाँ भी तो मौसम इस बार अपनी पर उतर आया है. तापमान ८ डिग्री से १२ डिग्री के बीच झूलता रहता है. घर की हीटिंग बंद किये महीना…

  आह हा आज तो त्रिशूल दिख रही है. नंदा देवी और मैकतोली आदि की चोटियाँ तो अक्सर दिख जाया करती थीं हमारे घर की खिडकी से। परन्तु त्रिशूल की वो तीन नुकीली चोटियाँ तभी साफ़ दिखतीं थीं जब पड़ती थी उनपर तेज दिवाकर की किरणें. एकदम किसी तराशे हुए हीरे की तरह लगता था हिमालय। सात रंगों की रोशनियाँ…

इस शहर से मेरा नाता अजीब सा है। पराया है, पर अजनबी कभी नहीं लगा . तब भी नहीं जब पहली बार इससे परिचय हुआ। एक अलग सी शक्ति है शायद इस शहर में कि कुछ भी न होते हुए भी इसे हमने और हमें इसने पहले ही दिन से अपना लिया। अकेलापन है, पर उबाऊ नहीं है। सताती हैं अपनों की…

होली आने वाली है। एक ऐसा त्योहार जो बचपन में मुझे बेहद पसंद था। पहाड़ों की साफ़ सुथरी, संगीत मंडली वाली होली और उसके पीछे की भावना से लगता था इससे अच्छा कोई त्योहार दुनिया में नहीं हो सकता।फिर जैसे जैसे बड़े होते गए उसके विकृत स्वरुप नजर आने लगे। होली के बहाने हुडदंग , और गुंडा गर्दी जोर पकड़ने लगी…