शहर की भीडभाड ,रोज़ के नियमित काम ,हजारों पचड़े ,शोरगुल.. अजीब सी कोफ़्त होने लगती है कभी  कभी उस पर कुछ काम अनचाहे और  आ जाएँ करने को तो बस जिन्दगी ही बेकार ..ऐसे में सुकून के कुछ पल जैसे जीवन अमृत का काम करते हैं ओर उन्हीं को खोजने के लिए इस बार हमने  मन बनाया यहीं पास के एक गाँव जाने का .कि देखें भला कैसे होते हैं यहाँ  के गाँव मन में तो भारत के गाँव की छबि थी तो सोचा चलो यूरोप  के गाँव भी देख लिए जाये .

.लन्दन से करीब २ घंटे की  दूरी पर, ऑक्सफोर्ड से ३५ माईल पर  है एक इलाका जिसे  कहते हैं “कोट्स वोल्ड” किसी मित्र से तारीफ सुन रखी थी ,और फिर यहाँ तो गाँव भी एक टूरिस्ट अट्रेक्शन ही हुआ करता है . वीकेंड आ चुका था तो बस एक नजर मौसम के अनुमान पर डाली और और  चल  पड़े हम. वैसे भी लन्दन में इस (जून -जुलाई )समय बहुत ही सुहाना मौसम होता है और उस दिन तो जैसे परफेक्ट “इंग्लिश समर” था २६ डिग्री तापमान और कार की आधी खुली छत से आती ठंडी हवा उस पर सड़कों के किनारे जहाँ तक नजर जाये वहां तक फैले घास के मैदान ,मुझे एक बात जो हमेशा अचंभित करती है वो ये, कि इतने बड़े बड़े घास के मैदान  ये लोग मेन्टेन  कैसे करते हैं?एकदम सलीके से कटी घास और  करीने से लगे खूबसूरत वन वृक्ष. बच्चों की  चिल्ल – पों के बीच भी हम अपनी आँखों को पूरा बिटामिन G ( ग्रीन :)) दे रहे थे.

चार लाइना  हाईवे से निकल कर हरे भरे जंगल के बीच से निकलती हुई छोटी- छोटी सड़कों पर चलना बहुत ही आनंददायी लग रहा था 
.इस पूरे इलाके में थोड़ी थोड़ी दूरी पर ढेर सारे ऐतिहासिक  गाँव हैं,जिन्हें बहुत ही संग्रहित करके अब तक रखा गया है. और इन्हीं में से एक है “ब्रौटन ऑन द वाटर” जिसे अपने “विंडरश नदी” पर बने ६ खूबसूरत पुलों के कारण कोट्स वोल्ड  का वेनिस कहा जाता है .ये नदी बहुत ही खूबसूरती से गाँव के बीच से बहती हुई निकलती है ओर इसके ही एक किनारे पर बनी हुई है गाँव की हाई स्ट्रीट ( UK के हर इलाके में खरीदारी करने के लिए एक ख़ास स्ट्रीट ) खरीददारी के शौक़ीन लोगों का स्वर्ग.जहाँ बहुत ही नायब और  खूबसूरत गिफ्ट्स और सुविनियर की  छोटी छोटी दुकाने हैं ओर ढेर सारे खाने पीने  के कैफे. पर हाँ अगर आप किसी मैकडॉनाल्ड या पिज्जा हट की तलाश में हैं तो भूल जाइये क्योंकि यहाँ इस तरह का कुछ भी नजर नहीं आएगा यहाँ आये हैं तो पारंपरिक अंग्रेजी खाना ही मिलेगा ,या फिर अपना खाना घर से लाइए और नदी किनारे बैठ कर पिकनिक मनाइए  ..परन्तु हम जैसे नालायक तो घूमने जाये ही क्यों अगर घर से ही खाना बना कर ले जाना हो, तो हमने तो वहीँ एक खूबसूरत से कैफे में फिश -एन- चिप्स का मजा लिया और फिर बाद में आइसक्रीम  भी खाई.

.वैसे यह खूबसूरत गाँव परिवार और दोस्तों के साथ डे आउटिंग  के लिए एकदम परफेक्ट जगह है जहाँ हर उम्र के लोगों के लिए कुछ ना कुछ करने को है …चाहे तो जंगल के बीच लम्बी सैर कीजिये , या आराम से नदी किनारे बैठकर बतखें देखिये और आइसक्रीम का मजा लीजिये ,चाहे तो यहाँ की  खूबसूरत दुकानों में शॉपिंग  कीजिये या बच्चों को यहाँ का मॉडल गाँव ,मोटरिंग एक्जीबिशन में खिलौनों  का संग्रह दिखाइए या फिर मॉडल रेलवे एग्जीबिशन .





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पर हमें जो सबसे अच्छा लगा,वो था  यहाँ का खुला खुला, शांत, पुरसुकून वातावरण,शहरों के खोखले  मकानों की  जगह खूबसूरत  पुराने पत्थर के बने घर और  सबसे अहम् बात बिना झंझट की फ्री पार्किंग वर्ना यहाँ तो कहीं भी जाओ तो आधी जान तो पार्किंग को लेकर अटकी रहती है कि ना जाने कहाँ मिलेगी और कितना लूटा जायेगा.एक बार तो अपने घर के आगे रोड पर भी कार पार्क करने का फाइन  दे चुके हैं हम. कई बार तो लगता है कि ये देश बस इन्हीं जुर्मानों  पर चल रहा है शायद 🙂.
खैर जो भी हो हमारा वो दिन बहुत ही खुशगवार बीता और सारी थकान उतारकर हम फिर से एक शहरी जीवन जीने के लिए तैयार हो गए एक बात और… भारत के और यहाँ के गाँव में बेशक मूल भूत विभिन्नताएं हों पर समानताएं  भी दिखीं  हमें, और वो थी स्वच्छ ,शांत हवा, सरल जीवन धारा,और संतुष्ट सरल लोग.:) तो अब जब भी जी ऊबा इस शहरी जीवन से फिर से बिता आयेंगे एक दिन हम ऐसे ही किसी गाँव की छाँव  में