एक बेहद दुखद सूचना अभी अभी मिली है कि प्रख्यात हिंदी साहित्यकार डॉ. विवेकी राय का आज सुबह पौने पांच बजे वाराणसी में निधन हो गया है। बीते 19 नवंबर को ही उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया था. 
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यश भारती से भी सम्मानित विवेकी राय जी ने हिंदी में ललित निबंध, कथा साहित्य, उपन्यास के साथ साथ भोजपुरी साहित्य में भी एक आंचलिक उपन्यासकार के रूप में खूब ख्याति अर्जित की थी और उनकी रचनाएं मैंने ब्लॉग्स पर पढ़ीं थी.

 

यूँ मैं विवेकी राय जी से कभी मिल नहीं पाई, परंतु मेरे जीवन में उनका एक विशेष स्थान है – मेरी पहली पुस्तक (समृतियों में रूस)पर पहली टिप्पणी स्वरुप उनके ही आशीर्वचन हैं. 
असल में मैंने अपने ब्लॉगर साथियों के उत्साह वर्धन पर पुस्तक लिख तो ली थी परंतु उसे प्रकाशित करवाने के लिए सशंकित थी. मुझे एक ईमानदार सलाह की जरुरत थी. तब मैंने एक मित्र के द्वारा पुस्तक की पाण्डुलिपि उन्हें भिजवाई कि यदि हो सके तो कुछ पन्ने पढ़कर ही सही वह यह बता सकें कि वह एक यात्रासंस्मरण के रूप में छपवाने लायक है भी या नहीं.
वे अस्वस्थ थे, उनकी आँखों में तकलीफ रहती थी, ज्यादा पढ़ नहीं पाते थे. परन्तु मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब उन्होंने थोड़ा -थोड़ा करके पूरी किताब पढ़ी और मेरे जीवन की सबसे अनमोल और खूबसूरत टिप्पणी मुझे दी. 
मेरे मित्र के यह पूछने पर कि “किताब कैसी लगी ?” उन्होंने दो शब्द कहे ” लेडी सांकृत्यायन” यह सुनकर मित्र हँसे और पूछा “कुछ ज्यादा नहीं हो गया ?” वे बोले “बिलकुल नहीं, बस भाषा पर थोड़ा सा और कमांड आ जाये और वह समय के साथ आ जायेगा” और इसके बाद किताब पर आशीर्वचन स्वरुप उन्होंने कुछ पंक्तियाँ भी लिखकर भेजीं.
मेरे लिए उनके ये शब्द एक ऐसी जड़ी बूटी की तरह थे जिसने मेरे मन के न सिर्फ सब संशय दूर कर दिए बल्कि आगे चलने का सही मार्ग भी मुझे दिखाया. 
एक सशक्त, वरिष्ठ साहित्यकार का एक एकदम नए रचनाकार के प्रति यह विनीत व्यवहार न सिर्फ मुझे उनके प्रति आदर और श्रद्धा से भर गया बल्कि अब तक वरिष्ठ और स्थापित साहित्यकारों के गुरूर पूर्ण व्यवहार के बारे में सुनी हुई बातों को भी धूमिल कर गया था. 
एक ऐसे बेहतरीन रचनाकार से न मिल पाने का अफ़सोस मुझे आजीवन रहेगा और उनके शब्द मुझे हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे 
हिन्दी साहित्य के इस पुरोधा को शत शत नमन .