मुझसे एक बार जिंदगी ने
कहा था पास बैठाकर।
चुपके से थाम हाथ मेरा
समझाया था दुलारकर।
सुन ले अपने मन की,
उठा झोला और निकल पड़।
डाल पैरों में चप्पल
और न कोई फिकर कर।
छोटी हैं पगडंडियां,
पथरीले हैं रास्ते,
पर पुरसुकून है सफ़र.
मान ले खुदा के वास्ते।
और मंजिल ?
पूछा मैंने तुनक कर.
उसका क्या ?
कभी मिली है किसी को?
बोली जिंदगी चहक कर।
दिखे राह चलते जहाँ,
पा लेना उसे वहाँ ।
मैं कुछ कसमसाई,
थोड़ा डगमगाई,
फिर भी गेहूं के आगे
गुलाब चुन न पाई.
अब राह कुछ सरल है
मंजिल की तलाश जारी है
मन है यूँ ही भटका हुआ
जिंदगी की प्यास तारी है.
-मंजिल की फिकर किसे है जब यात्रा इतनी रोमांचक और रूमानी हो चले 🙂
सफर यूं ही जारी रखे
जिंदगी मे तलाश तो जिंदगी भर ज़ारी रहती है !
तलाश कामयाब हो।
गहरे एहसासों के गहरे निशान
बहुत सुंदर अहसास.
ज़िंदगी की प्यास बड़ी चीज़ है
रास्ते मिलते रहेंगे …
मंज़िल का क्या सोचना
जर्नी ही शानदार रहे ।
और ज़िंदगी से
यूँ ही गुफ्तगू भी…! वाह… ! 🙂
गेंहू के आगे गुलाब चुन पाना सरल कहाँ । गूढ़ पंक्तियाँ ।
खूब सूरत —-मंजिल का क्या सोचना
रास्ते मिलते रहेगे—–।
ज़िन्दगी ने बोला…पास बैठाया…हाथ थामा…दुलारा…..
ये क्या कुछ कम है….
बहुत सुन्दर नज़्म……
बधाई शिखा !!
अनु
आपकी तलाश कामयाब हो …शुभकामनायें।
इसे कहते हैं, गागर में सागर …….
नियत करके लक्ष्य अपना झूलते रहते अधर में
जिन्दगी को अपने अन्दर ही तलाशना पड़ता है।
nice
और इस अधर में ल्टकने में भी सुख को ढूढ लाते हैं हम…
जब तक प्यास तारी रहेगी ज़िन्दगी दुलारती रहेगी और सफ़र चलता रहेगा । खूबसूरत अहसास से भरी नज़्म ।
जिंदगी की प्यास ही सफ़र है , यह सफ़र है तो मंजिलों की फिकर किधर है !!
जीवन की तलाश तो निरंतर जारी रहती है … और अंतिम समय तक रहनी चाहिए … शायद यही जीवन है …
जिंदगी के सफ़र में यूँही आगे बढ़ते रहे , मंजिल का क्या , वो बदलती रहती है .
मंजिल का पता मिले न मिले..पर राह में भी कम आनंद नहीं जीवन-बोध के लिए. सुन्दर रचना.
मन्ज़िलें अपनी जगह हैं – रास्ते अपनी जगह… और मंज़िलों से ज़्यादा ख़ूबसूरत सफर ही होता है!! बहुत ख़ूब!!
bahot sunder……
खूबसूरत कविता
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