नया साल फिर से दस्तक दे रहा है …और हम फिर, कुछ न कुछ प्रण कर रहे हैं अपने भविष्य के लिए ….कुछ नाप तोल रहे हैं ..क्या पाया ? क्या खोया ? ये नया साल जहाँ हम सबके लिए उम्मीदों की नई किरण लेकर आता है ,वहीँ हम सबको आत्मविश्लेषण का एक मौका भी देता है….ये बताता है की वक़्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता.वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता …हमें उसके साथ कदम से कदम मिलाने पड़ते हैं…..आज इसी अवसर पर ये कविता आपके समक्ष है …अवसर के मुताबिक खुशगवार नहीं है ..इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
मुठ्ठी भर रेत
हर पल हर क्षण होती हैं
तमन्नाएँ,ख्वाइशें महत्वकांक्षा एँ
भरने कि उड़ान,छूने की आसमान
पर नहीं होती दृढ इच्छाशक्ति
कमजोर पड़ जाती हैं कोशिशें
अलग हो जाती हैं प्राथमिकतायें.
और इंतज़ार करते रहते हैं हम
सही वक़्त का.
अचानक.
एहसास होता है
अपनी नाकामी का
उन बहानों का
जिन्हें वक़्त के ऊपर
टाल दिया हमने
और फिर
अवसाद विषाद और
तनाव के बीच
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह
Nav Varsh ki hardik shubhkamna..!!
वक्त रेत ही तो है जो प्रतिपल खिसकता जा रहा है
Happy New Year 2010
बंद मुट्ठी से रेत इसलिए फिसलती है क्योंकि उसी मुट्ठी में इक दिन आसमां ने समाना है…उसके लिए जगह तो खाली
होनी चाहिए न…
नया साल आप और आपके परिवार के लिए असीम खुशियां ले कर आए…
जय हिंद…
कर्म की प्रधानता को हायीलायीट करती एक सशक्त रचना
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे – यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती है जिन्दगी …क्या खूब …
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें …!!
it is not always enough to forgiven by others.Sometimes you have to learn to forgive yourself. Happy new year didi. Arvind tank
नए साल की बहुत बहुत बधाई ..पसंद आई आपकी यह रचना
सुन्दर अभिव्यक्ति…..वक़्त यूँ ही रेत की तरह फिसल जाता है…..इसे बंध तो नहीं सकते पर
सही उपयोग में ला सकते हैं….बधाई
नव वर्ष की शुभकामनायें
शानदार जानदार पोस्ट
नुतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
@sameerjee! bahut samman ke saath, lekin ise aap kya kahiyega!
आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
waise aap achcha likh rahi hain.bahut hi bhavpurn kavita.nikat sach ke.
बढिया रचना है।बधाई।
आप को तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत की तरह
कभी लौट कर ना आनेवाले,बीतते वक़्त का…अच्छा अहसास दिलाया..बढ़िया अभिव्यक्ति
नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं
हक़ीकत की धरातल पर लिखी रचना है …. अक्सर बीती बातों को लेकर कभी कभी पछतावा होता है ……. पर वक़्त तब निकल चुका होता है …. बहुत उम्दा बात ……..
आपको और आपके पूरे परिवार को नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ……..
waah ………kya baat kah di.
nav varsh mangalmay ho.
लाजवाब करते विचार और उतने ही जबरदस्त चित्र।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
——–
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
bohot khoob….
naya sal mubarak….
likhte rahiye..
shubhkamnaye..
सच कहा है शिखा जी,
बस ये है कि जीवन इसी तरह शिक्षा भी तो देता है
नववर्ष की शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
नए वर्ष में अनुगुंजित
पुराने वर्ष की आवाज़ – बहुत सुंदर!
नया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह
अति सुन्दर रचना
आशु
जीवन कि सही समझ किसी भी तनाव किसी भी विषाद किसी भी भय से व्यक्ति ही नहीं समाज को भी मुक्त रख सकती है .. स्वयं को कविता में अभिव्यक्त कर पाना भी जीवन कि समझ को विकसित करने कि दिशा में कला पूर्ण प्रयास होता है.. जीने के अतिरिक्त जीवन में कुछ भी नहीं जिसके लिए जिया जाये या मरा जाये… जो कुछ जीवन में मिला है उस पर गहरी नजर से कभी देखिये..जीवन ही मूल है शेष सब bonus है
apni baat ko kehne k liye shabdo ka achha chunaav hai.badhayi.
Rachna achchi lagi.Nav varsh ki dheron shubkamnayen.
Dil gadgad hota hai..jab aap jaisi bahumukhi pratibhaye videsho me hote huwe bhi hindi ka hath nahi chhodati….jab ki dusre taraf apne hi desh me hindi ko jalakar rajniti ki roti seki jatin kai…!
Apki pratibha ko NAMAN…….
वर्षा जी, इतने सुन्दर तरीके से आपने वक्त के महत्व को समझाया। बहुत ही खूबसूरत कविता। धन्यवाद।
sunita ji ! aap galti se shikha ki jagah varsha likh gain hain 🙂 ..
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
बहुत बढिया
शुभकामनाएं
bahut khub….jindagi ka ek alg rang
अवसाद विषाद और
तनाव के बीच
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह
वक़्त की रेत से तुलना बहुत अच्छी लगी।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
आभार.
संगीता जी का भी आभार,जिन्होंने
अपनी सुन्दर सुन्दर हलचल प्रस्तुत कर
इस पोस्ट पर आने का मौका दिया.
jab haath se vaqt ret ki tarah muththi se fisal jaata hai tabhi to vaqt ki keemat ka ehsaas hota hai.isi bhaav ke prati sajag karti bahut achchi prastuti.
बढ़िया रचना… जाने क्यूँ ये शेर याद आ गया…
"वह उम्र कम रहा था मेरी,
मै साल अपने बढ़ा रहा था…"
सादर…
बिलकुल सही बात कहती हुई जानदार रचना .. ….बधाई.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 10- 11 – 2011 को यहाँ भी है
…नयी पुरानी हलचल में आज …शीर्षक विहीन पोस्ट्स ..हलचल हुई क्या ???/
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह
Bahut sundar…
http://www.poeticprakash.com
bilkul sahi kha shikha ji…waqt ret ki tarah fisal jata hai ..aur khali mutthi me sivay khalipan ke kuchh nahi bachta…
सुन्दर अभिव्यक्ति!
दिन जो पखेरू होते,पिंजडे में,मैं रख लेता—
वक्त, मुठ्ठी मेम बंद रेत ही है.
सुन्दर प्रस्तुति….!!
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