आज भी, जब भी विदेशी मीडिया में हिन्दुस्तान का जिक्र होता है तो उसमें सांप भालू का नाच दिखाते लोग, मूर्तियों को दूध पिलाते लोग दिखाए जाते हैं, भारत को किस्से कहानियों का, तमाशबीनों का देश समझा जाता है जिसके नागरिक किवदंतियों और चमत्कारिक कहानियों को अपना इतिहास बताते हैं.
जी हाँ, बरसों से सुनते आये हैं कि हम भारतीय बेबकूफ हैं, अन्धविश्वासी हैं. न जाने किन किन चीज़ों पर विश्वास करते हैं. पत्थर की मूर्तियाँ बना कर पूजते हैं वो भी १ – २ नहीं ३५ करोड़. इंसान तो इंसान सांप, हाथी, बन्दर यहाँ तक कि नदी और पेड़ पौधों को भी नहीं छोड़ते. मिर्गी के दौरों को किसी प्रेत आत्मा का असर समझते हैं और मीजिल्स जैसी बीमारियों को माता का प्रकोप. किसी अंग्रेज़ के लिए हिन्दुस्तान इतिहास का एक अध्याय जैसा है. और अब एक नया शिगूफा कि कोई भी बीमारी हो,डर हो तो उसके पीछे है ….कोई राज़ पिछले जनम का…
पर जरा सोचिये क्या हम सचमुच अन्धविश्वासी हैं ? बेबकूफ हैं ? यदि हाँ तो फिर हम उन इजिप्शियन को क्या कहेंगे? जो नदी,पर्वत,सूरज आदि को पूजा करते थे. क्या वो मृत्यु के बाद की जिन्दगी पर विश्वास नहीं करते थे ?जिसके लिए उन्होंने mummified जैसी तकनीक इजाद की, जिसके साथ वो उसकी जरुरत का सारा सामान रखा करते थे, जिन्हें आज भी दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य के रूप में देखा जाता है. क्या कहेंगे आप दुनिया के एक सबसे विकसित और so called सभ्य कहे जाने वाले उस देश को जो उन mummies को इतिहास की सबसे बड़ी धरोहर और विज्ञान की एक उपलब्धि मानते हुए अब तक बड़े गर्व के साथ अपने संग्रहांलयों में सजाय हुए है.
ब्रिटिश मुजियम में रखी(संरक्षित ) एक जिंजर नाम की ममी जिसके साथ उसकी जरुरत का सामान भी मौजूद है
चलिए ईजिप्ट और उसकी बातें आदि काल की हो गईं पर क्या कहेंगे आप उन अंग्रेजों को? जो आज भी कुछ बड़े पत्थरों को एक स्थान पर सजाये (इंग्लैंड में स्थित स्टोन हेंज )बड़े फक्र से कहते हैं कि वह एक आश्चर्य है. वे पत्थर क्यों हैं, किसलिए हैं ? पता नहीं. शायद पहले लोग उनसे मौसम या ग्रहों की स्थिति का पता लगाते थे. अब उन्हें तो कोई बेबकूफ नहीं कहता पर जब हम कहते हैं हमारे पूर्वज बांस घुमा कर ग्रहों और मौसम की जानकारी पाते थे तो उसे कहानी कहा जाता है और हमारे पत्थर पूजने को अन्धविश्वास…
स्टोन हेंज
और तो और पश्चिम देशों में आज भी हेलोइन जैसे त्यौहार मनाये जाते हैं. भूत,चुड़ैलों के अस्तित्व को माना जाता है. यहाँ भी haunted house पर लोग यकीन करते हैं जहाँ उनकी रानियों की आत्माएं घूमा करती हैं. सांता क्लोस जैसे चमत्कारिक चरित्र पर बच्चों को विश्वास दिलाया जाता है. फिर उन्हें क्यों नहीं कोई अन्धविश्वासी कहता?
हेलोइन के दौरान अमरीकी सड़कों पर भुतहा परेड …त्यौहार मानते लोग.
जाने दीजिये ये सब. परन्तु प्रभु ईसा मसीह का एक दिन मरना और दूसरे दिन पुन: जीवित होना …इसे क्या कहेंगे आप ? क्या ये पुनर्जीवन नहीं है? इसपर तो सारा विश्व यकीन करता है…फिर हमारी ही मान्यताएं गलत और तर्कहीन क्यों? हम ही अन्धविश्वासी और बेबकूफ क्यों?
यहाँ ये सब कहने से मेरा ये मतलब कदापि नहीं कि हमें इन सबमें विश्वास करना चाहिए या अन्धविश्वासी होना चाहिए. मेरा मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचना भी नहीं है. मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि जब सारा विश्व इन मान्यताओं को किसी न किसी रूप में मानता है तो अन्धविश्वासी,पिछड़ा हुआ और बेबकूफ सिर्फ हम हिन्दुस्तानियों को ही क्यों कहा जाता है?
आक्रामक !!!!
सवाल-दर-सवाल है!!!!!
वाह, बहुत ज़बरदस्त. अच्छा प्रश्न उठाया है…सबकी अपनी मान्यताएं होती हैं. उन पर फब्तियां कसना उचित नहीं…बढ़िया आलेख
हमारे यहाँ आधुनिक व बुद्धिजीवी कहलाने के लिए ऐसी बातो को मानने वालों को अंधविश्वास कहा जाता है…..इस विषय पर मैने भी कुछ पोस्टे लिखी थी….आप ने सही प्रश्न उठाया है..बढ़िया आलेख है।धन्यवाद।
क्यूंकि हमलोग खुद ही अपनी सभ्यता और संस्कृति की शिकायत करते रहते हैं !!
सचमुच यक्ष प्रश्न ! सोचकर जवाब देते हैं !
बहुत खूब , बढ़िया जानकारी रही । आभार
आज के so called वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत देशवासी केवल उन्ही बातों को स्वीकार कर पाते है जो उनके सफल वैज्ञानिक प्रयोग के दायरे में आता है, लेकिन वे भूल जाते है की हर दायरे में विस्तार की संभावना शेष रहती है | आज जो मान्यताये महज किस्से – कहानी सी प्रतीत होती है वही भविष्य का सत्य भी हों सकता है |
शिखा जी, आदाब
उस्ताद शायर शादां साहब का
ये शेर याद दिला दिया आपने-
ज़माना अपने नुकाइस से बेखबर है मगर
पराई आंख का तिनका दिखाई देता है
नववर्ष की शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बिलकुल सही कहा,शिखा….और इसके लिए शायद हम ही कहीं ना कहीं दोषी हैं…हमेशा अपनी चीज़ों की मीम-मेख निकालते रहते हैं…वर्ना देखने जाएँ तो हमसे कहीं ज्यादा अन्धविश्वासी हैं वे,लोग… बहुत अच्छा किया…जो इतने सिलसिलेवार ढंग से जानकारी दी..जबतक हम अपने संस्कारों,अपने रीती-रिवाज़ पर गर्व नहीं करेंगे…दूसरे हमें नीचा दिखने का कोई मौका क्यूँ छोड़ें…
बहुत अच्छा लिखा है आपने। आपके विचारों से सहमत हूं।
मैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-तुम्हारी आंख के आंसू-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
मैं अभी आता हूँ…. अभी सिस्टम ठीक नहीं हुआ है….परेशां हो गया हूँ…. मैं…. ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ……
Are bilkul sahi baat kahi hai..Shikha..
karte sab hain bas naam hamara hai…
ek baat aur bataun…angrejon mein bhi dahej ki pratha hai..yahan bhi shaadi mein kharcha ladki waalon ko hi karna hota hai…
isaai dharm ka base hi punarjanm par hai…
bhoot pishaach ye sabhi maante hain…
lekin danka hamare naam ka hi bajta hai…
bahut hi sarthak aalekh…
हमें अंग्रेजो ने गुलाम भी तो बनाया था दो सौ साल.. अंग्रेज तो चले गए.. पर दो सौ साल पुरानी गुलामी हमारे जींस में अब भी मौजूद है.. वक़्त लगेगा पर बदलेंगे..
बहुत ही उम्दा पोस्ट ..!
बेहद तार्किक प्रश्नावली !
अतिसुन्दर !
यहाँ कोई किसी को बेवकूफ नहीं कह सकता. हमें तो गर्व होना चाहिए की हमारे पूर्वज खग की भाषा जानते थे. सांप भालू को भी नचाते थे.
उन दिनों दुनिया देखती थी और उनका मनोरंजन भी करते थे.
कमजोरी हमारी है. आज वे दिखाते हैं तो हम ताली बजाते हैं. और अपने देश में ऐसे नटों और कलाकारों को गाली देते हैं.
हाँ, अंधविश्वास ठीक नहीं है. वैसे पृथ्वी के हर भू-भाग में अंधविश्वास कायम है. आस्था परम्परा भी यथा रूप में कायम है.
तर्क बहुत अच्छा है। ज्यादा कुछ न कह कर बस इतना ही कहना चाहूँगी। हमारे देश में विदेशी आते हैं और बेकारी,बेरोजगारी,भूखमरी की चंद तस्वीरे खींच ले जाते हैं। और हम चुपचाप देखते रह जाते हैं।
ek bahut hi satye prashn aapne uthaya hai is so called developed(western) world ke samne,
padh santushti hui, aur ek karara tamacha bhi hai, un logo par, jo doosron ko nasihat aur khud ko fajihat dete rehte hain
bhadhaie
इसलिए क्योंकि हम बँटे हुवे हैं ……… अपनी धरोहर की कद्र खुद ही नही करते ……… अपनी मान्यताओं पर खुद खरे नही उतरते ………. हम शक्तिवान नही हैं …… मजबूत नही हैं ………. खुद पर गर्व नही करते ………
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वो विदेशी हमें बेवकूफ कहते हैं सो तो कहते हैं किन्तु इसे क्या कहें कि हमारे ही तथाकथित पढ़े लिखे बंधुगण भी उनकी बात को सही मानते हैं और हमें बेवकूफ कहते हैं।
are waah……..kitna sadhaa hua vyakhyaan hai… bahut hi achha laga, ise publish karwao
Rashmi di ! aapne itna maan dia ..bahut abhari hoon …par publish karana hamare haath main thode na hai 🙂
satya vachan… Madam!!!!!!!
बताईये भला तभी तो कहते हैं कि बद से बदनाम बुरा । माने कि अपने गणेश जी जब दूध पी लेते हैं हम लोग अपने उनके तोंद पर अटैक कर देते हैं उहां गौड जी जब तब ….स्कौच लगा लेते हैं उनको कोई कुछ नहीं कहता । हुम्म , आप लोग जैसे हमारे लोग नहीं होते तो पता नहीं ई सब पोल कौन खोलता ।
चलिए मजाक से इतर यही कहना है कि असली सच यही है कि स्थितियां तो सभी जगह एक सी हैं हां उनका चित्रण अलग अलग किया जाता है । बहुत ही सार्थक बात कही आपने
Sheekha di, mumbaiya bhaasha main kahu to aapne to bus "Waat laga di bheedu"..
behtarin shabdo ke saath behtarin prastuti…
छद्म विज्ञान बुद्धि वाले कुछ काले अंग्रेजों के रहते हमारे समस्त शास्त्र, रीति रिवाज, परम्पराएँ, ज्ञान-विज्ञान इत्यादि सब कुछ अन्धविश्वास के दायरे में आता है…..जब तक पश्चिमी सोच नहीं बदलती कुछ नहीं होने वाला…हमारा समस्त आदि ज्ञान-विज्ञान यूँ ही अन्धविश्वास की भेंट चढ जाने वाला है।
अन्धविश्वास किसी भी भी समाज में हो, गलत ही है …हर युग की अपने मान्यताएं और विश्वास होते है ,जिनकी उपादेयता समय के साथ मात्र प्रतीकात्मक रह जाती है.उनको सहेज कर रखना स्वीकार्य सांस्कृतिक लक्षण हो सकता है,पर उनको जीवंत मूल्यों की तरह वर्तमान में भी पालना-पोशना तो कतई उचित नहीं है ,चाहे यह यूरोप में हो रहा हो ,या भारत में…
सच है. अन्धविश्वास विदेशों में कुछ ज़्यादा ही है. इसका मतलब ये नहीं कि भारत इसमें पीछे है, लेकिन केवल यही चीज़ें दिखा के हमें पिछडा दिखाने की कोशिशें हमेशा होती हैं. सुन्दर आलेख.
tआपने जो बात उठाई है ..और जो तथ्य पेश किये हैं..उन पर कई दृष्टि से comment किया जा सकता है । यदपि ये विषय बहुत ही subjective है पर फिर भी मैं यहाँ बस अपना पक्ष रखने की कोशिश कर रहा हूँ ।
मैं ऐसा सोचता हूँ की कोई बेवक़ूफ़ किसी दुसरे के कहने से न तो साबित होता है न कोई कर सकता है और जहां तक हमारी संस्कृति का सवाल है ,वो इतनी विशाल थी और है की उसे हम आप ब्यान करने की बस कोशिश ही कर सकते हैं ।
दूसरी बात -"बेवकूफी" आप किसे कहेंगे ,मसलन कुछ दसक पहले ये बोलना की किसी mobile नामक यंत्र कभी होगा ,ये भी बेवकूफी लग सकती थी । यहाँ कुछ लोग ये कह सकते हैं की ये बेवाक्कोफी नहीं लगती क्यूंकि भविष्य में क्या ho वो कोई कैसे जान सकता है ..पर वास्तव में भविष्य ही नहीं ,हमें किसी भी उस वक़्त की पूरी तरह जानकारी हो ही नहीं सकती जब हम वहाँ नहीं थे और मैं सोचता युगों पहले कोई तो ऐसा वक़्त था जब की लिखित चीजें नहीं..फिर उस वक़्त की बातों को मानन बेवकूफी कैसे ?
वो सच हो सकती है । हो सकता है मैं आपलोगों को थोडा अन्धविश्वासी जान पडू पर ऐसा नहीं है..वैसे भी आजकल दुसरो को अन्धविसवासी कहना fashion statement बन चूका है । ..पर जाने दें..कुछ तथ्य मैं भी बताना चाहूँगा —
१। vedic mathematics को न केवल पूरी दुनिया मान रही है बल्कि उसका प्रयोग भी कर रही है , उन theorems के proof अब तक नहीं। यहाँ ये बता दूं की वैदिक maths को सामने लाने का श्रेया एक जगद्गुरु जी को जाता है..जिन्हें यह सुनकर बड़ा दुःख होता था की लोग वेदों को practical नहीं मानते ॥
पर अगर वैदिक गणित सही है..तो वेदों की दूसरी बातें क्यूँ नहीं ??
२ रामायण में श्री राम ने समुन्द्र पर जो पुल बनाया था उसे satellite से अभी भी समुन्द्र की गहराइयों में देखा गया है । अब ये नहीं कहा जा सकता की ये वही पुल है पर समुन्द्र के निचे मिली इस संरचना से हु-बी-हु मिलती पुल का उलेख बर्षो पहले रामायण में है..ye बहुत बड़ा coincidence है !!
ये दो नहीं कई तथ्य पेश किये जा सकते हैं..और सबसे बड़ी बात की जिन्हें अन्ध्विस्वास कहा जाता है ..उस पर ही ये लोग research करने ही नहीं आते बल्कि खुद उसका अपने नाम से आजकल patent भी बना रहे हैं (yoga ॥homeopathy ..etc inhe bhi kuchh waqt pehle andhviswaas me gina jata tha ) ।
शायद मैं पूरी सही तरीके से अपना तर्क नहीं पेश कर पाया ..पर मैं ये कहना चाहता हूँ की हम सभी ..भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का एक बड़ा ही सुनेहरा और अजूबो से भरा past है ,और आज के टाइम पर हमें दो दिशा में प्रगति कर रहे हैं।
१ future me naye inventions nayi discovery karke
2 apne puraani discoveries ,knowledge ko wapas dhundh kar .. aur isi chhipi knowledge ko aksar andhviswaas bhi kaha gaya hai ( kuchh sach me andhviswaas bhi hain par sabhi nahi )
क्यूंकि अपने पूर्वजों और उनके अमूल्य बौधिक सम्पदा पर मिटटी डालने वाले हममे से ही अनगिनत हैं …बहुत अच्छे सवाल और तर्क प्रस्तुत किये आपने …बधाई …!!
मजबूत तर्को के साथ आपने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है। दुनिया में इतने परिवर्तन होने के बाद भी गोरी चमडी के का अपना दम्भ बना हुआ है। सुन्दर लेख के लिए बधाई
संदीप! बहुत ख़ुशी हुई ये देखकर की तुम्हारे जैसे नई पीडी के पड़े लिखे लोग ऐसा सोचते हैं ….बिलकुल सही कहा है तुमने ,में भी यही कहना चाहती थी .परन्तु यहाँ जो कुछ लोगों ने कहा उससे भी मैं सहमत हूँ की हम ही अपनी मान्यताओं और उपलब्धियों की कदर नई करते.और बाहर के लोग हम से ही सीखकर हमही पर लागू करते हैं और हम चुपचाप बेठ कर उनकी जी हजुरी.हम अपने घर में बैठकर कितना भी गाते रहे हैं की हमने ये किया ,वो किया …पर मानता कौन है. हाँ एक zero के अविष्कार को जरुर मानते हैं पर बिलकुल ऐसे जैसे ३ idiots में चेतन भगत को 🙂 .
अब देखो गडित के एक method Kumon सिखाने के लिए हमारे देश में लोग अपने बच्चे को मेहेंगी फीस देकर भेजते हैं ,जबकि Kumon हमारे वैदिक maths पर ही आधारित है …पर किसने सोचा वेद पढ़ाने का अपने बच्चों को.?….हमारे कोटिल्य की कूटनीति पढ़कर अंग्रेज़ हम ही पर शासन करते हैं और हम अपना नालंदा छोड़ कर cambridge जाते हैं…..जरुरत है की पहले हम खुद अपनी संस्कृति ,और उपलब्धियों का मान करना सीखें ,तभी कोई बाहर वाला करेगा
जब सारा विश्व इन मान्यताओं को किसी न किसी रूप में मानता है तो हम क्यूँ नहीं? हम मानें तो पिछड़े और वो मानें तो अगड़े….
आपके इस लेख से पूरी तरह सहमत…..
बहुत अच्छी पोस्ट….
शिखा जी,
ये पश्चिम की श्रेष्ठतर होने की ग्रंथि है जो कभी भारत की सांप-सपेरो वाली छवि गढ़ लेती है…भारत मुश्किल से इस छवि से उबरता है तो कोई डैनी बॉयल भारत आकर स्लमडॉग मिलियनेयर्स के ज़रिए दुनिया के सामने गरीबी, पिछड़ेपन और बेइमानी का नया मलीन चेहरा पेश कर देता है…ये स्थिति तभी बदल सकती है जब हम खुद पर विश्वास करना सीखेंगे…भारत में क्या क्या बुरा है, उसे दूर करने के लिए हमें खुद ही गहराई से सोचना है…लेकिन भारत में क्या क्या अच्छा हुआ…दुनिया को ये बताना भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है…
जय हिंद…
बेवकूफों की कमी नहीं, एक खोजो हजार मिलते हैं।
——–
सुरक्षा के नाम पर इज्जत को तार-तार…
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है ?
bhut hi sartha vishy uthaya hai aap ne dhnybaad par is ke liye jimmedaar hum hi hai kyun ki hame apna kad hamesha bouna lagta hai
saadar
praveen pathik
9971969084
शिखा जी ,
बहुत ही सशक्त लेखन है आपका …..वाजिब प्रश्न उठाये हैं आपने …अन्धविश्वासी होना गलत है …पर भुत-प्रेतों का अस्तित्व होना अंधविश्वास नहीं सच्चाई है …..!!
पूरी दुनियां बेवकूफों से भरी पड़ी है।
आश्चर्य यह कि एक की बेवकूफी दूसरा बताता है।
बिजली के आविष्कार से पहले बल्ब की रोशनी की कल्पना भी बेवकूफी थी .. ज्यों बल्ब जला, लोगों को रोशनी का ज्ञान हुआ
.
वैसे ही, ज्यों-ज्यों ज्ञान का प्रकाश फैलेगा लोग इन अंधविश्वासों को मानना छोड़ देंगे।
..वैचारिक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें।
शिखा मैडम ,लेख तो वाकई अपने बहुत अच्छा लिखा है ,पश्चिमी सभ्यता में १३ नंबर को भी अशुभ माना जाता है ,यहभी एक अंधविश्वास है ! फिर मूवी "रंग दे बसंती" का वह डायलोग "कोई देश परफेक्ट नहीं होता ,उसे परफेक्टबनाना पड़ता है !" यहाँ फिट बैठता है ! हिन्दुस्तान अब तरक्की कर रहा है ,यह सारी दुनिया जानती है लेकिन सकारात्मक रूप से स्वीकार नहीं कर पा रही है ! लेकिन कोई बात नहीं " अल इस वेल "
अच्छे लेखन के लिए शुभकामनाएं !
shikha ji,
atiuttam lekh.
jahan tak andhvishwas aur parampara ki baat hai to aaj bhi kuchh samaj mein aisa ho raha jiska na to koi auchitya hai na upyog. fir bhi hamari sanskriti ka ang hai, sahejna aur samman dena chahiye.
jahan tak videshon mein is wajah se bewkoof manne ki baat hai to mujhe nahin lagta ki wo bewkoof mante honge balki kautoohal ki baat lagti hogi, aur shayad is wajah se wo ise hin jyadatar pesh karte honge. vidwata ke kshetra mein bharat ko kahin bhi koi kam nahin aank sakta, kyuki bharat ne har kshetra mein khud ko saabit kar dikhaya hai.
videsh mein aisi chhawi wo hin prastut karte honge jo bharat ko purntah jante hin na honge.
aap jaisi lekhika ka lekh hamare desh ko uchit samman dilaye is aasha ke sath bahut badhai sweekaren.
shubhkamnayen.
शिखा जी बहुत लंबी कमेंट्स कि कतार लांघ कर आना पड़ता है
एक कहावत है कुत्तों के भोंकने से हाथी अपनी चाल नहीं बदला करते.हालाँकि किसी को कुत्ता किसी को हाथी ठहराना मेरा मकसद नहीं..डेल कार्नेगी कि एक पंक्ति थी "NO BODY KICKS A DEAD DOG" कुछ है हम में जो उन्हें चुभता है.. नहीं तो यह कैसे संभव था कि इतने पिछड़े हुए गुलाम देश से एक ओशो .. एक कृष्णमूर्ति .. एक भक्ति वेदांत .. एक विवेकानन्द .. एक गाँधी .. पूरे पश्चिम में उथल पुथल पैदा कर देते .. बिना तलवार और बन्दूक के! यह बात उन्हें चुभती होगी कहीं .. फिर भी हमें उनका शुक्रिया करना चाहिए यदि वे हमें आइना दिखातें हैं .. हेनरी थोरो और आइंस्टीन जैसे और भी बहुत से लोगो ने भारत के पक्ष में जो कमेन्ट दिए हैं वह भी तो हमें याद रखने चाहिए ..सच्ची बात यह है कि अज्ञान क्रूरता का जनक है और यह सारी दुनिया पर लागू है.. हमें हम और वे कि भाषा से मुक्त होकर समग्र मानव समाज के सन्दर्भ में सोचना चाहिए .. बिना मकसद के अतीत को ढोना मूर्खता है .. आज लैपटॉप के ज़माने में हाई ब्रिड टी.वि को बचा कर रखना मूर्खता ही है..शादी ब्याह के नाम पर हमारे यहाँ कि लड़कियां जो अत्याचार झेल रही हैं किस अक्लमंदी का सबूत है .यह बहस बहुत लंबी और दूर तक जा सकती है बहस के लिए बहस करना अच्छा नहीं .. किसी निष्कर्ष तक आये बिना इसे बीच में नहीं छोड़ा जाना चाहिए .. जरी रखिये
अंधविश्वास और संस्कृति मंे फर्क करने की जरूरत है। न कि दूसरों को कटघरे में खड़ा करने की। दूसरों को मूर्ख साबित कर हम होशियार नहीं हो जाएंगे।
bahut achchi parstuti
SHIKHA JI KMAAL KR DIYA AAPNE ——————-
BAHUT HI SAHI SWAAL UTHAYA HAE ——OR AAPNE APNE AALEKH **KI KYA HAM VEVKOOF HAE*** ME AAPNE IN TASVEERON KA JO ISTEMAAL KIYA HAE VO BAHUT HI SEBSETIVE BNAATE HEN AARTICLE KO….ME AAPKE VICHAARON KA OR JIN BHAI OR DOSTON NE COMMENTS DIYE HAEN ME UNKA BHI SAMMAN KRTA HUN ….AAP KO BDHAI..RHI BAAT INDIA KO KOSNE VAALO KI TO EK KHAVAT HAE JO DUSRON PR UNGLIYAN UTHAATE HAE UNKI TARF CHAAR UNGLIYA PEHLE SE HI KHUD KI UTHI REHTI HAE..BHARAT KO SAMJHNE KE LIYE UNHE PEHLE SUNY KO SAMJH LENA CHAHIYE FIR KOI TIPPANI KRNA CHAHIYE..BHRAT KI NDIYON KA JAL YNHA KE PEDH POUDHE OR VANSPTI KI VISHESHTAAYE ..MANTRVIGYAAN..SANSKIRT ..OR HINDI KO SAMJHE FIR USKE AAGE BAAT KRE,-AAPKO OR AAPKI KALM KO PUNH NAMAN
एक ही बात सही है कि ’अन्धविश्वास व सन्स्क्रिति में फ़र्क कर लेना चाहिये’। हम आभारी हैं उनके जो हमारी आलोचना करते हैं तभी हम इतनी बडी सार्थक बहस करके अपने व पराये सभी दिग्भ्रान्त लोगों को जबाब दे पारहे हैं। हमें अपने शास्त्रों का अध्ययन करके उनके बारे में लिखना व लिखते रहना चाहिये बिना कठिनाइयों व कुतर्कों से डरे।
shikha ji sorry for late coming…bahut acchha lekh hai…me bas ek baat kahungi..jab ham apni sanskriti apni uplabdhiyo ko hi samman nahi denge to dusro se kya umeed rakh sakte hai.dekha jata hai ki hamare celibrity jo public k liye ideal mane jate hai hamare tirange ka apmaan karte hai aur use pehrave ki tareh prayog karte hai..ye ek example hai hamara apni sanskriti ko samman dene ka.
bahut sashakt lekhan …aage b intzar rahega. shukriya.
wakai me wahi haal hai "aap karo to sahi, hum kare to kharab' .
sach me nature se bada god koi nhi hai.
shubhkamnayeapko! jyoti….
मंत्र शक्ति आज के युग में भी पूर्ण सत्य एवं प्रत्येक कसौटी पर खरी है हमारे ऋषियों ने जब वेद और मंत्रों की रचना की तो उनका उद्देश्य मंत्र और साधना को जीवन में जोड़ना था। ऋषि केवल साधना करने वाले अथवा जंगलों में आश्रम बनाकर रहने वाले व्यक्ति नही थे, वे उस युग के वैज्ञानिक, चिकित्सक, अध्यापक, राजनीतिज्ञ, कलाकार व्यक्तित्व थे। उन्होंने जो लिखा वह पूर्ण शोध और अनुसंधान से युक्त था। For more information visit http://www.mantarvigyan.blogspot.com
बहुत सही….क्या सुन्दर वर्णन किया है थोड़े में ही आपने…वाह वाह. बधाई.
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