नया साल फिर से दस्तक दे रहा है …और हम फिर, कुछ न कुछ प्रण कर रहे हैं अपने भविष्य के लिए ….कुछ नाप तोल रहे हैं ..क्या पाया ? क्या खोया ? ये नया साल जहाँ हम सबके लिए उम्मीदों की नई किरण लेकर आता है ,वहीँ हम सबको आत्मविश्लेषण का एक मौका भी देता है….ये बताता है की वक़्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता.वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता …हमें उसके साथ कदम से कदम मिलाने पड़ते हैं…..आज इसी अवसर पर ये कविता आपके समक्ष है …अवसर के मुताबिक खुशगवार नहीं है ..इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
मुठ्ठी भर रेत
हर पल हर क्षण होती हैं
तमन्नाएँ,ख्वाइशें महत्वकांक्षाएँ
भरने कि उड़ान,छूने की आसमान
पर नहीं होती दृढ इच्छाशक्ति
कमजोर पड़ जाती हैं कोशिशें
अलग हो जाती हैं प्राथमिकतायें.
और इंतज़ार करते रहते हैं हम
सही वक़्त का.
अचानक.
एहसास होता है
अपनी नाकामी का
उन बहानों का
जिन्हें वक़्त के ऊपर
टाल दिया हमने
और फिर
अवसाद विषाद और
तनाव के बीच
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह