फ़्रांस की राजधानी पेरिस – द सिटी ऑफ़ लव, भव्यता, संम्पन्नता, ग्लेमर का पथप्रदर्शक.बाकी दुनिया से अलग एक शहर, जिसकी चकाचौंध के आगे सब कुछ फीका लगता है. लन्दन आने वाले हर व्यक्ति के मन में सबसे पहले इस फैशन की इस राजधानी को देख लेने की इच्छा बलबती होने लगती है. लन्दन से कुल ३४३ km ( सड़क से ) दूर पेरिस तक जाने के लिए सभी यातायात के साधन मौजूद हैं. परन्तु हमने जाना तय किया यूरो स्टार से,यह ट्रेन लगभग सवा दो घंटे में पेरिस पहुंचा देती है और आप इंग्लिश चैनल पार करते समय ट्रेन का समुन्द्र के अन्दर बनी गुफा में से होकर जाने का भी अनुभव ले पाते हैं. हालाँकि सिवा इसके कि आपको पता है कि आप समुंदर के अन्दर से जा रहे हैं और किसी भी तरह का अलग अहसास इसमें नहीं होता.बरहाल कुछ ही समय में आप एक देश से दूसरे देश पहुँच जाते हैं. परन्तु इंग्लेंड फ़्रांस की सीमा पर पहुँचते ही कस्टम और इमिग्रेशन के समय आपको अहसास होता है कि आप दूसरे देश में आ गए हैं और खासकर अगर आप इंग्लेंड से आये हैं तो वहां के पूछताछ अधिकारीयों के चेहरे पर अनमने भाव भी दृष्टिगोचर होने लगते हैं. आप को कुछ ज्यादा ही गौर से देखा और परखा जाने लगता है.
अब हमारी समझ में आ चुका था कि क्यों लोग लन्दन से पेरिस का फिक्स टूर लिया करते हैं और हमने अपने बल बूते पर अपनी सुविधा के अनुसार पेरिस देखने की योजना बनाकर कितनी बड़ी भूल की थी. खैर “देर आये दुरुस्त आये” की तर्ज़ पर हमने फिर साईट सीन दिखाने वाली खुली बस के दो दिन के टिकट लिए और निकल पड़े पेरिस घूमने .सीन नदी के किनारे बसा यह शहर वाकई बेहद खूबसूरत है और ज्यादातर दर्शनीय इमारतें इसी नदी के दोनों तरफ बनी हुई हैं जिन्हें आपस में पुराने बने हुए दर्शनीय पुल जोड़ते हैं.यूँ बस से सभी स्थल दिखाई दे ही रहे थे पर सबसे पहले हमने मुख्य स्थल एफिल टावर ही देखने की ठानी .
लोहे के इस विशाल टॉवर का निर्माण १८८९ में वैश्विक मेले के लिए शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर हुआ था. और इसे बनाने में २ साल २ महीने और पांच दिन लगे थे.। एफ़िल टॉवर को गुस्ताव एफ़िल नाम के एक इंजिनियर ने बनाया था. यह वही व्यक्ति थे जिन्होंने स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का बाहरी खाका भी बनाया था.और उन्हीं के नाम पर एफिल टॉवर का नामकरण हुआ है। १९३० तक एफ़िल टॉवर दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। आज की तारीख में टॉवर की ऊँचाई ३२४ मीटर है, जो की पारंपरिक ८१ मंज़िला इमारत की ऊँचाई के बराबर है। और इस तीन मंजिला टॉवर को टिकट खरीद कर देखा जा सकता है. दूसरी मंजिल तक और तीसरी मंजिल तक जाने के अलग अलग पैसे हैं.शायद उंचाई से डरने वाले लोग दूसरी मंजिल से ही वापस आ जाते होंगे पर हमने तीसरी मंजिल तक जाने के लिए टिकट लिया और पहुँच गए यह देखने कि आखिर लोहे के इस बड़े से खम्भे नुमा चीज़ में ऐसी क्या बात है कि इसे दुनिया के आश्चर्यों में गिना जाता है.
५७ मीटर की उंचाई पर बनी टॉवर की पहली मंजिल पर गुस्ताव एफ़िल की ओर से श्रद्धांजलि के रूप में १८ ओर १९ सदी के महान वैज्ञानिकों के नाम बड़े स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं. जो नीचे से दिखाई देते है। बच्चों के लिए एक फ़ॉलॉ गस नामक प्रदर्शन है जिसमें खेल-खेल में बच्चों को एफ़िल टावर के बारे में जानकारी दी जाती है। यहीं कांच की दीवार वाला 58 Tour Eiffel नामक रेस्टोरेंट भी है.
११५ मी. की ऊंचाई पर स्थित एफ़िल टावर की दूसरी मंज़िल से पैरिस का सबसे बेहतर नज़ारा देखने को मिलता है,हमें बताया गया कि मौसम साफ़ हो तो करीब ७० कि० मि० तक यहाँ से देखा जा सकता है.। इसी मंज़िल पर एक कैफ़े और सुविनियर खरीदने की दुकान भी है। दूसरी मंज़िल के ऊपर एक उप-मंज़िल भी है जहाँ से तीसरी मंज़िल के लिए लिफ्ट ले सकते है।
२७५ मी. की ऊँचाई पर एफ़िल टावर की तीसरी मंज़िल चारों ओर से शीशे से बंद है। यहाँ गुस्ताव एफ़िल का ऑफ़िस भी है. इसे कांच की दीवारों से ढका गया है,ताकि यात्री इसे बाहर से देख सकें। इस ऑफ़िस में गुस्ताव एफ़िल की मोम की मूर्ति रखी है। तीसरी मंज़िल के ऊपर एक उप-मंज़िल है जहाँ पर सीढ़ियों से जा सकते है। इस उप-मंज़िल की चारों ओर जाली लगी हुई है और यहाँ पैरिस की खूबसूरती का नज़ारा लेने के दूरबीनें रखी हुई हैं । इस के ऊपर एक दूसरी उप मंज़िल है जहाँ जाना मना है । यहाँ रेडियो और टेलिविज़न की प्रसारण के लिए एंटीना है.
तो तीसरी मंजिल से ही एक बार दूरबीन से झांककर हम नीचे उतर आये.पेट में चूहे कूद रहे थे और टॉवर के रेस्टोरेंट में उनके पैसों के एवज में खाने लायक हमें कुछ नहीं मिला था.नीचे परिसर में आये तो कुछ खाने के स्टाल थे जहाँ फ्रेंच ब्रेड के ही कुछ किस्म के सेंडविच मिल रहे थे किसी तरह उन्हीं में से कुछ लिया और पेट की आग को शांत किया. एक और बात समझ में आई कि यहाँ खाना भी आसानी से नहीं मिलने वाला सुबह होटल में नाश्ते के समय भी हालाँकि होटल के किराये में फ्रेंच नाश्ता शामिल था, जिसमें सिर्फ क्रोजंट और कॉफी था. कोई अंडा नहीं ब्रेड तक नहीं. फ्रेंच नाश्ता मतलब = क्रोजंट और कॉफी बस.खैर रात को किसी अच्छे होटल की आशा में किसी तरह वही खाकर गुजारा कर हम लोग निकले ल्रूव म्यूजियम देखने.
फ्रांसीसी भाषा में – Musée du Louvre- यूरोप का सबसे पुराना और विश्व के प्रसिद्द संग्रहालयों में से एक है.पिरामिड के आकार का प्रवेश द्वार वाले इस अद्भुत संग्रहालय में उनीसवीं सदी तक की सभ्यताओं की स्मृतियाँ रखी हुई हैं. कला के एक से बढकर एक उत्कृष्ट नमूनों के साथ मेरे लिए जो एक सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र था वह था – मिस्र की सभ्यता का लाइव मॉडल – इतना बेहतरीन. कि लगता था उसी समय के एक शहर में विचरण कर रहे हैं. यहाँ गलियों से होते हुए निकलेंगे उन सार्वजानिक जल कुंडों में और फिर बाजार, दुछत्ती घर और ब्रेड को पकाने वाले सार्वजानिक मिट्टी के तंदूर. मुझे वहां घूमते हुए बेहद मजा आ रहा था परन्तु साथ के बाकी लोग जल्दी में थे लिओनार्डो द बिंची (Leonardo da Vinci) की उस कला कृति को देखने के लिए, जिसका कथित रहस्य आज तक बना हुआ है. “मोना लीसा”. विन्ची की इस रहस्यमयी छोटी सी तस्वीर में मुझे समझ में नहीं आया कि ऐसा क्या था कि सबसे ज्यादा भीड़ वहीँ लगी हुई थी पर शायद कला के पारखी समझ सके हों हमें तो वह बहुत ही साधारण सी एक औरत की तस्वीर भर लगी.
यूँ यह संग्रहालय इतना बड़ा है कि पूरा देखने में एक हफ्ता तो लग ही जाये पर हम दो घंटे में घूम घाम कर निकल आये उसके बाद हमारा लक्ष्य था
नोट्रे दाम कथेड्रल – कहा जाता है कि मार्बल के इस खूबसूरत चर्च को देखे बिना पेरिस की यात्रा अधूरी है.मध्युगीन पेरिस के गोथिक वास्तुकला का यह एक अद्भुत नमूना है.और इसे बनाने में १०० से अधिक साल लगे थे.अंदाजा लगया जा सकता है कि पेरिस के दर्शनीय स्थलों में इसका क्या स्थान है .
पेरिस में देखने लायक कथेद्रल और संग्रहालय इतने हैं कि आप देखते देखते थक जाओ परन्तु वह ख़त्म ना हों. अत: हमने निश्चय किया कि अब बाकी सभी इमारतें बस में बैठ कर ही देखी जाएँ और उस सीन नदी को भी, जिसका नौका विहार काफी प्रसिद्द है पर हमारे पास समय नहीं था.
शाम होने लगी थी और अँधेरा होते ही एफिल टॉवर रौशनी से जगमगा उठता है. सो इस “इवनिंग ऑफ़ पेरिस” को हम वहीँ बैठकर निहारना चाहते थे.जिसके लिए पूरे परिसर में लोग जमा हो उठे थे.जिसे जहाँ जगह मिली जम गया था. और इंतज़ार कर रहा था उस पल का जब वह लोहे की ईमारत एक खूबसूरत रोमांटिक ईमारत में बदल जाएगी. और वाकई रौशनी में भीगा एफिल टॉवर पूरे माहौल को जैसे देदीप्यमान कर देता है.परिसर की सीढियों में बैठे जोड़े अपलक उसे निहारते हुए भावुक हुए जा रहे थे.पेरिस की रंगीनियों का समय आरम्भ हो चुका था.पेरिस के नाईट क्लब अपने शबाब पर आ रहे थे परन्तु हमें अपने डेरे पर लौटना था.लौटने हुए देखी हमने वह जगह जहाँ पेपेराज्जी से भागते लेडी डायना और डोडी का एक्सीडेंट हो गया था और इस रंगीन शहर में इस प्रेमी जोड़े की कब्र भी शामिल हो गई थी.
दूसरा दिन डिज़नी लैंड के लिए सुनिश्चित था.अब डिज़नी लैंड की व्याख्या करने यहाँ बैठी तो जाने कितने आलेख लिखने पड़ें अत: सिर्फ इतना बता देती हूँ कि सपनो की सी इस दुनिया में वह सब कुछ है जिसकी आप खूबसूरत से खूबसूरत कल्पना कर सकते हैं. बच्चों के लिए स्वर्ग जैसा, यह ऐसा स्थान है जो एक अद्भुत दुनिया की सैर करता है. परन्तु फ़्रांस की इस अद्भुत दुनिया में बहुत जरुरी है कि आप आपना होश ना खोएं .वर्ना शायद अपना बटुआ, या बैग या फिर कैमरा भी भी खो सकते हैं. जैसे हमने खोया अपना बैग जो बाद में ढूंढने से हमें मिला एक कचरा पेटी में, अन्दर से एकदम खाली….
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आपके इस उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
awwwwwwww…. peris ki ranginiyon mein dil ke saath batua bhi kho gaya ….
bahut bujhe dil se likhaa hai ye article
शिखा वार्ष्णेय जी ..!
पेरिस की इस एक दिवसीय यात्रा वृत्तांत के बारे में आपको इस बात के लिये साधुवाद दिया जाना आवश्यक हो जाता है कि यह एक यथार्थपरक आलेख है। प्राय: यात्रावृत्त लिखते समय दर्शनीय स्थलों की भव्यता से प्रवाहित होकर सम्भावित यात्री को वह जानकारी देना छूट जाता है जो उसके लिये विशेष सहायक हो सकती है।
भाषा और शैली के आडम्बर से परे व्यवहारिक शैली में सम्यक जानकारी से परिपूर्ण एक रोचक और उपयोगी आलेख। बधाई
bahut badhiya … peris se milwane ka abhar
जुस्तजू जिसकी ती उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख दुनिया हमने!
/
अगर इसी बात को यूं कहें कि
सैर दुनिया की कभी चाहके न की हमने,
आपके ब्लॉग से पर घूम ली दुनिया हमने!!
/
शिखा जी 'एन इवनिंग इन पेरिस' के लिए आभार!!!
बहुत रोचक यात्रा वृतांत्।
आपके इस इस लेख यात्रावृत्त को पढकर लगा हम भी थोड़ा पेरिस घूम लिए |रोचक वर्णन |
जानकारी से परिपूर्ण एक रोचक और उपयोगी आलेख। बधाई|
Aapne prekshneey sthalonka warnan bahut badhiya kiya hai…..maine to Paris dobara janese kaan pakde! English na bolneke karan behad mushkil huee. Ek jagah pe to India ye koyee desh hai yebhee wahan pata nahee tha!
"क्षमा ! सही कहा आपने मुझे भी यह शहर नहीं सुहाया.
शिखा जी आपको शायद यह लगे की मैं हर बार एक ही बात कहती हूँ मगर क्या करूँ कहे बिना रहा भी नहीं जाता आपके इस आलेख ने एक बार फिर मेरी भी पेरिस की यादों को ताज़ा कर दिया और एक बात है जिस से मैं पूर्णतः सहमत हू। 🙂 मोना लिसा वाली बात से मुझे भी समझ नहीं आया की आखिर ऐसा क्या है उस पंटिंग मे जिसे देखने के लिए लोग टूटे पड़े होते है वहाँ… जब कि वहीं उसे कहीं ज्यादा खूबसूरत पंटिंग्स है जिसमें से मुझे वो बेहद पसंद है यदि आपने ध्यान दिया हो तो जिसमें एक लड़की पानी में लेटी है सफ़ेद फ्रॉक में और उसके हाथ पाओं बंधे हुए हैं ऐसी न जाने कितनी अदबुद्ध पाईंटिंग्स हैं वहाँ…
यात्रा वृतांत हो या संस्मरण , आपकी लेखनी उसमे रोचकता का पुट ऐसे डालती है की पाठक आपने आप को संस्मरण से जुड़ा हुआ और वर्णित स्थान पर खुद को महसूस करने लगता है . एतिहासिक पेरिस , आधुनिकता की होड़ में सरपट दौड़ते शहरो का सिरमौर है. पेरिस के तमाम दर्शनीय स्थलों के बारे में रोचकता से प्रकाश डालने के लिए शुक्रिया .हम तो बिना वीसा के ही घूम आये जी . वीसा लेकर जाने का प्रोग्राम भी बनाते है .
बढ़िया प्रस्तुति, यूँ लगा मानो हम भी घूम लिए पेरिस ! यह सत्य है कि ये लोग बहुत अधिक मिलनसार नहीं होते !मेरा भी इन फ़्रांसिसी जाट भाइयों से खूब पाला पडा था, एक वक्त, जब फ्रांस की कंपनी प्रफिटी ने च्युइंगम बनाने की फैक्ट्री गुडगाँव में लगाई थी सन ९२-९३ के दौरान ! मगर हाँ, अपने हरयाणवी भाइयों के बीच ये लोग मुझे ज्यादा नहीं अखरते थे 🙂
"शिखा जी 'एन इवनिंग इन पेरिस' के लिए आभार!!!"
इस से बढ़िया और क्या कहते … 😉
ओह आपने तो पेरिस घुमा दिया। हमें भी अच्छी तरह समझ आ गया है कि एजेण्ट द्वारा ही जाना चाहिए।
बहुत रोचक और उपयोगी यात्रा वृतांत्। बहुत सुन्दर चित्र..ाभार..
मज़ा आ गया घूमकर …
isa yatra vritant ne hamen paris ghuma diya aur usaki tasveeron ne to usako bilkul hi sajeev bana kar darshan bhi kara diye.
isa saphar ko yun hi kabhi kahin aur kabhi kahin ghuma kar jari rakhana.
पेरिस में जाने के लिए थोड़े फ्रेंच शब्द और वाक्य तो सीखने ही चाहिए | उनके बिना वहान काम चलना बहुत मुश्किल है |
और वो यात्रा ही क्या जहाँ पर स्थानीय भाषा और संस्कृति से परिचय न हो |
भाषा की समस्या के साथ वहां मेट्रो, पैदल, और taxi से आवागमन करना ही बेहतर हैं |
मेट्रो स्टेशन पर टिकेट खिड़की वाले जरूरत पडने पर थोड़ी बहुत अंग्रेजी में समझा देते हैं |
नोट्रे दाम से थोडा आगे चलकर एक छोटी सी गली में शाकाहारी रेस्तौरांत भी है,
मगर वहां भारतीय खाना नहीं मिलता, कुछ मोरोक्कों डिश मिल जाती हैं |
बहुदा लोव्रे के आगे ओबेलिस्क के पास कोई सरदार सामान बेचता दिख जाता है |
डिस्नी लैंड मैंने नहीं देखा पर लिस्ट में है, कुछ सालों में जरूर जाऊँगा |
मेरी एक धारणा है कि ख़ूबसूरत इन्सान… में हर चीज़ ख़ूबसूरत होती है… उसका कॉन्फिडेंस लेवल बहुत हाई होता है और उसकी सोच बहुत पौज़ीटिव होती है… आपकी यह पोस्ट भी बिलकुल वैसी ही है… आपके और आपके लेख जैसी… इतना लाइव डिस्क्रिप्शन इतना आसान नहीं होता लिखना… मुझे ट्रेवेलौग पढने का बहुत शौक़ है… और यह ट्रेवेलौग तो बहुत ही सुंदर लिखा … आपके हाथों में जादू है… सच में…
यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
S
S
S
यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
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यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
मेरी एक धारणा है कि ख़ूबसूरत इन्सान… में हर चीज़ ख़ूबसूरत होती है… उसका कॉन्फिडेंस लेवल बहुत हाई होता है और उसकी सोच बहुत पौज़ीटिव होती है… आपकी यह पोस्ट भी बिलकुल वैसी ही है… आपके और आपके लेख जैसी… इतना लाइव डिस्क्रिप्शन इतना आसान नहीं होता लिखना… मुझे ट्रेवेलौग पढने का बहुत शौक़ है… और यह ट्रेवेलौग तो बहुत ही सुंदर लिखा … आपके हाथों में जादू है… सच में…
यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
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यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
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यह हाथ हमें दे दे ठाकुर…
Shikha ji…
Bahut din baad aapne punah videsh yatra karwayi hai…apne blog ke madhyam se…aapki Venice , Rome, Cambridge aadi ki yatra abhi tak yaad hai…:)…
Paris..ab se pahle do baar ghuma hai…..ek baar 'Superman II' movie main aur doosri baar to sabko pata hi hai…' An evening in Paris'… Kash…' An evening in Paris' tab na dekhte jab agle din humara final exam tha….to shayad hum bhi Kshama ji v Pallavi ji ki tarah vahan ka jikr apni jubani kar rahe hote…haha..:)…
Aapki lekhan kala par kya kahen…uske to sabhi kayal hain….London sthit Bharteey dootawas wale bhi, aur yahan Diamond pocket books wale bhi….:)…dheere dheere es sankhya main aur bhi badhottari hoti jaa rahi hai….
Aapkr aalekh ko padh kar yun laga jaise France wasiyon ke rookhe rawaiye se humara mukh bhi kasela ho gaya ho….haan ek baat badi santoshjanak lagi……..ki….''France main bhi choron ki badi jamat maujood hai''…haha.. Ab log vyarth apne desh ko kosna band kar den shayad….
Sundar aalekh…
Saadar..
Deepak..
शिखा जी , बहुत अच्छा लगा पेरिस की सैर करके ।
lekin इतना सुन्दर शहर और इतनी परेशानियाँ !
यह अजीब लगा । क्या उन्हें टूरिस्ट्स की फ़िक्र नहीं रहती ।
पेरिस की यात्रा …आपकी नज़र से
पढ़ना अच्छा लगा ..
कुछ नई बाते पढ़ने को और सिखने को भी मिली ..आभार
" डॉ दराल ! शायद रूखापन वहाँ के लोगों के स्वभाव में ही है.वर्ना एक टूरिस्ट स्थान के लिए सुविधाएँ तो हैं ही.और शायद यही बात स्विटजरलैंड को पेरिस से अलग करती है.
bahut badhiya … peris se milwane ka abhar
sunder tarike se saja man mohak alekh bahut bahut badhai .kuchh kharidari bhi ki kya?
rachana
मोहम्मद रफ़ी का "आओ तुमको दिखलाता हूँ पेरिस की एक रंगीं शाम…देखो ये पारियों की टोली, मीठी मीठी जिनकी बोली…" गुनगुनाते हुए पेरिस का यह सफ़र बहुत ही सुहाना लगा । सीन की ख़ूबसूरती के कई क़िस्से मशहूर हैं, ऐफ़िल टावर का नीली रोशनी में भीगा हुस्न मन को जगमगाहट से भर गया । लूव म्यूज़ियम के बारे में जानकर, इसी तरह बहुप्रशंसित "मिस्र की सभ्यता का लाइव मॉडल" के बारे में विवरण पढ़कर देखने की उत्सुकता हो रही है। "मोनालिसा" की सामान्य-सी लगने वाली औरत की छवि कई कारणों से अतिसाधरण सौन्दर्य का प्रतिमान है। बटुआमार तो संसार भर में व्याप्त हैं…अँग्रेजी को लेकर की गई टिप्पणी "अपने को अँग्रेज़ कहलाने और अँग्रेजी जानने में गर्व से सर उठाकर चलने वालों का सारा एटीट्यूड यहाँ ज़मीं पर दिखाई देने लगता है …राह का राहगीर हो या होटल मैनेजर कोई भी अँग्रेजी बोलने में रुचि लेता दिखाई नहीं पड़ता" फ़्रांसीसियों के अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम को प्रमाणित करती है। भारत के विशिष्ट तबके ने अँग्रेजी को लेकर जो भ्रम पाल रखे हैं और फैला रखे हैं, उनके लिए यह सत्य-उदघाटन कुछ काम आ सके तो कितना अच्छा हो ! कुल मिलाकर भव्यता संपन्नता और ग्लैमर के शहर का यह पर्यटन अतीव सुखकर रहा । सरस रोचक वर्णन के लिए आपका अभिनन्दन शिखा जी !
सुरुचिपूर्ण आलेख..जायेंगे तो ध्यान रखेंगे..
चलिए जी हम आपके आजीवन शुक्रगुजार हो गए आपने अपने साथ हमें पेरिस घुमा दिया……
हम लोगों के लिए आप 'संजय' का काम कर रही हैं,
रूस के बाद अब पेरिस भी देख लिया |
आभार |
ओह …खूबसूरत शामे .पैरिस की याद दिला दी ….!!बहुत बारीकी से लिखा गया लेख पैरिस घूमने वालों के काम आयेगा ….
शानदार वर्णन किया है आपने पेरिस का |
सटीक और सुन्दर. पेरिस भ्रमण हम भी कर लिए. संग्रहालय में तो एक हफ्ते लगेंगे ही. न जाने क्यों वहां चोरियां बहुत होती हैं.
लगा आपके साथ घूम लिए। (और कर भी क्या सकते हैं, वहां जाना तो सोच से भी परे है!)
साथ ही मिली बहुत अच्छी जानकारी।
पिछली जून में पेरिस घुमा था.
सेन नदी में भी घुमे.
डिजनीलैंड भी गए'
लूडो शो भी देखा.
थैंक्स गोड़,हम पैकज टूर में थे.
आपने बहुत सही बाते वर्णित की हैं
अंग्रेजी के प्रति बहुत बेरुखी है वहाँ.
सुन्दर जानकारीपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,शिखा जी.
कहीं आपको मेरे अनुरोध बुरा तो नही लगता?
बहुत रोचक वर्णन पैरिस का .. यात्रा वृतांत पढते हुए लगता है कि साथ साथ सैर कर रहे हैं .. दर्शनीय स्थलों कि ऐतिहासिक जानकारी भी मिली … उत्कृष्ट लेखन
२ घंटे में ३५० किमी, यहाँ तो ९ घंटे से कम नही लगते.
वाह!!!
बिना टिकिट यात्रा का मज़ा आ गया 🙂
शुक्रिया.
२ घंटे में ३५० किमी, यहाँ तो ९ घंटे से कम नही लगते.
@भारतीय नागरिक – Indian Citizen!जी हाँ यही खासियत है उस ट्रेन की.
अच्छी जानकारी दी….. सब कुछ समेटे हुए….
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
—
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
—
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
Aisa laga jaise peris ki yatra pr mai hi hoon bahut hi sundar aur jeevant lekh ….badhai shikha ji .
बढ़िया घुमाया पेरिस…अगला ट्रिप कहाँ का है ??? 🙂
आपकी नज़रों से किसी भी जगह को देखना का अलग ही मज़ा है … पेरिस की ये लाजवाब जानकारी और चित्रमय झांकी बता रही है फेशन की राजधानी का हाल … बहुत बाहर शुक्रिया …
दो दिन के पेरिस प्रवास में जो मैं नहीं देख सका वह आपके नज़र से देख कर तृप्त हो लिया …अंत तक बांधे रहने वाला लेख,
…. आभार आपका !
अच्छी जानकारी.
वाह!! आनन्दम!! मज़ा आया पढ के. हम जैसे लोग, जिनके खाते में पेरिस जाने का हिसाब दूर-दूर तक दर्ज़ नहीं है, के लिये तो एकदम नायाब तोहफ़ा है ये शिखा. ऐसे ही लिखती रहो, और हम मुफ़्त में सैर करते रहें. सुन्दर-सजीव चित्रण.
बहोत सुंदर प्रस्तुती ।
आपका हमारे ब्लॉग पर स्वागत है ।
हिंदी दुनिया
Peris jaane kab hoga lekin aaj aapki yah post padhka ham bhi kho gaye peris ki vadiyaon mein…
..sundar prastutikaran ke liye aabhar
मुझे पेरिस हमेशा से आकर्षित करता रहा है.मेरे देश के बाहर जाने और दर्शनीय स्थलों में उसका पहला स्थान रहा है.हालाँकि,अभी तक बाहर जाने का मौका सुलभ नहीं हो पाया है.
लन्दन और पेरिस इतने पास हैं,यह भी आज जाना.दोनों शहरों का अपना इतिहास है और अपने इतिहास से मिलना किसे सुखद नहीं लगता ?
आप सौभाग्यशाली हैं जो 'मोनालिसा' से भी मिल पाईं !
कभी जाऊंगा तो आपकी हिदायतें साथ होंगी !
बैग मिला एक कचरा पेटी में, अन्दर से एकदम खाली
साबित हुआ दुनिया गोल है
या
हमने पश्चिम की नकल की है
या
पेरिस ने पूरब की संस्कृति अपनाई है 🙂
कुल मिला कर बढ़िया वृतांत
This comment has been removed by the author.
आपके पेरिस यात्रा के उत्कष्ट लेखनी को पढ़ कर कई अच्छी रोचक जानकारी मिली,…सुखद यात्रा के लिए बधाई …आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति,
WELCOME TO NEW POST –26 जनवरी आया है….
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए…..
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को गणतन्त्र दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – गणतंत्र दिवस विशेष – जय हिंद … जय हिंद की सेना – ब्लॉग बुलेटिन
घर बैठे पेरिस की यात्रा हो गई।
सुंदर वर्णन।
रोचक वर्णन
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा………
पेरिस घूमकर मजा आ गया, और एक बात का पता चल गया कि अंग्रेजों को ऊधर से भारत ट्रेनिंग देकर भेजा जाता है कि भारत में ठग रहते हैं और उनसे कैसे बचा जाये, क्या ऐसे ही अंग्रेज पेरिस जाने के पहले ट्रेनिंग देते हैं ?
घर बैठे- बैठे पेरीस कि सैर भी हो गई.
धन्यवाद शीखा जी
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
उत्कृष्ट लेखन..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना !
tum to ham jaise yudhisthir ke liye sanjay ho… pata nahi kya kya dikhaogi…:))
par jo bhi hai… behtareen hai…
ek dum hamari aankhe anubhav karne lagti hai..:)
happy republic day!
तीन बातें कहनी हैं
१- आपने हमें भी पेरिस घुमाया इसके लिए शुक्रिया.
२- ….तब तो कैमरा, पर्स आदि के मामले में शायद पेरिस की अपेक्षा अपना दिल्ली थोड़ा सा ठीक है ….
३- अरे ! हम होते तो घर से उबले आलू की सब्जी और पूड़ियों के साथ आम का अचार भी लेकर ही जाते …आ गया न मुंह में पानी ….अरे यही तो अपना देशी अंदाज़ है खाने का और सैर करने का.
बहुत बेबाक लिखा है आपने.
bahut sundar chitra aur sundar vritant.
bahut hi umda aur jankaripurn post,bdhai aap ko,pahli baar aap ke blog par aana hua,acha blog hai aap ka
आपकी यात्रा पढ़ कर अच्छा लगा.
लेकिन इंग्लैंड और फ्रांस हैं कि आज भी इतिहास ढो रहे हैं. पिछले हफ़्ते ही मैंने पाया कि फ़्रांसिसी अनौपचारिक बातचीत के दौरान तो अंग्रेज़ी बोल रहे थे पर औपचारिक बातचीत शुरू होते ही दुभाषिए के सिरहाने जा बैठे… बड़ा मुश्किल है समझदारों को समझाना.
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने…हम पहले जर्मनी और बाद में पेरिस वगरेह जगहों पर गए थे….पेरिस की भव्यता और सुंदरता वाकई अद्वितीय है!…लंदन से पेरिस जाने का भी एक अलग लुफ्त है…अगली बार इसी रूट से सफर करेंगे…बहुत अच्छी अनुभूति,धन्यवाद शिखाजी!!
आज 29/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
sunita ji ki halchal men
aapki prastuti dekh kar
bahut achha laga.
yaatra ka bahut hi sundar trike se varnn kiya aap ne…bdhaai…
गौ वंश रक्षा जाग्रति हेतु निर्मित मंच पर आप का हार्दिक स्वागत है
http://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/
हाँ ,फ़्रांस-वासियों को अपनी भाषा और संस्कृति पर इतना अभिमान है कि दूसरी कोई भाषा समझ लें तो भी उसमे बात करना पसंद नहीं करते( पहले कभी अंग्रेजों के हाथों उन्हें बड़ी ज़िल्लत उठानी पड़ी थी उसी की प्रतिक्रिया लगती है यह )-बाहरवालों के लिये सौजन्य भी प्रायः कम ही प्रदर्शित करते हैं .
पेरिस जाने वालों के लीये बहुत सुंदर जानकारी देता रोचक पोस्ट,बहुत अच्छा लेख,…
बेहतरीन प्रस्तुति,
welcome to new post –काव्यान्जलि–हमको भी तडपाओगे….
bhut khubsurat
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