मन की राहों की दुश्वारियांनिर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा परऔर यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करतेये तो होती हैं संभावनाओं की गुलामये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयंदेख कर हालातों का रुखमुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पेकुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों मेंफिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएंआपके ही हाथों में निहित होती हैं.****************************
कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूँ हीतैरने को हलके होकरशून्य मेंमिले जहाँ बहाव ,बह चलेंक्यों जरुरी है उनकासही गलत निर्धारण करनाउन्हें भारी बना देनाऔर करना ज़बरदस्ती,बाँधे रखने की कोशिश।जबकि बंध तो नहीं पाते वे फिर भीक्योंकि मन की डोरी होती है बड़ी कच्चीउससे बाँध भी लें उन पलों कोतो रगस उसमें भी लगती हैफिर शनै : शनै : कोमल सी वो डोरीटूट जाती है कमजोर होकर.
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बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
बढ़िया है !!!
वाह जी, बहुत ही खूबसूरती से मन के भावों को शब्दों में पिरोकर यहाँ प्रस्तुत किया है आपने….:)
उन्मुक्त मन से उन्मुक्त रचना | लिखने से पहले ठोस मन , लिखने के बाद तरल हुआ सा लगता है |
उलझा सुलझा सा कुछ…
दोनो कविताएं पसंद आई…
मन प्रसन्न हुआ…
यह देखकर की तुम्हारी जीवन की राह
या जीवन की सोच में संभावनाएं संतुष्टि की सी…
'हर फ़िक्र को हवाओं में अड़ाना जैसे जानो…'
क्योंकि सच ही कहा है:
कुछ पल छोड देने चाहिए यूं ही
तैरने को हल्के होकर
शून्य में…
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो ……..बहुत सुन्दर …बहुत सही भाव उभरे हैं इन पंक्तियों में
उलझे सुलझे मन की दोराहे पर , परिस्थिति जन्य मोड़ पर खुद की सोच ही कम आती है . इत्ती दार्शनिकता भर दिया , मूड पीरा गया समझने के चक्कर में . मन हल्का करते है अब .अपना साक्षात्कार पहुचे लोग ही करते है , बहुत सुन्दर
मन के साथ दिमाग बड़ी जबरदस्ती करता है। सामाजिक प्राणी होने का सबसे बड़ा बोझ ते यही बिचारा सहता है। एक गीत है…
मन के मत से मत चलियो, बेसबरा है मरवा देगा…
man to sach me sambhavnayen hi talash karti hai..:)
par ye sambhavnayen kahan ban pate…
behtareen…
you deserved every bit of it…what say shikha 🙂
मन की ऐसी उलझन सुलझन से हर मन कभी न कभी दो चार होता है…..मगर अपनी नैया खेने से ये बाज नहीं आता…..धार में खुद-ब-खुद बह जाने देना इसकी फितरत में नहीं शायद ….
अनु
:):)
कुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों में
फिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएं
आपके ही हाथों में निहित होती हैं.
बहुत सुन्दर… बढिया कवितायें हैं शिखा. बधाई.
मन के विचारों की खूबसूरत रचना
मेरा अपना मेरा है
उस पर हक़ भी मेरा है
क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .
इसी को आत्मसाक्षात्कार कहते हें. जो अपने से अपना ही होता है .
बहुत सुंदर भावों को व्यक्त किया है.
:):):)
बहुत ही उम्दा और भावपूर्ण रचना |
मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है |
बुलाया करो
बेहतरीन रचना |
मनकी उलझने सुलझने के लिए कहाँ होती है
बहुत सुंदर कविता|
बहुत ही प्यारी प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
आपकी भाषा पर पकड़ काफी अच्छी है |
शब्दों का सुन्दर प्रयोग |
-आकाश
उलझा सुलझा, पर प्रवाह सा।
देखा!! भारतवर्ष की आध्यात्मिक यात्रा के उपरांत दार्शनिकता का बोध होना स्वाभाविक है!! बहुत ही गहराई लिए!!
bahut sunderta ke sath …..
हर पल जीवन में कुछ न कुछ घटित होता है …. एक ही साथ खुशियाँ और परेशानियाँ दोनों ही आ जाते हैं …. सामंजस्य बैठाना ही एक मात्र उपाय रह जाता है
ऐसे समय जो मन में भाव आते हैं उनको बहुत खूबसूरती से पिरोया है …. उलझाने हौसले के आगे अपना दम तोड़ ही देती हैं ….
भाव प्रवण रचनाएँ
हर पल बदलता जीवन …
पल पल बदलता मन …
इक पल ठहरता मन ….
दे जाता स्पंदन ….बस वो पल …..
वही है जीवन …!!भाव प्रवण….
बहुत सुन्दर रचना …..एक सोच सी देती हुई …!!
मेरा अपना मेरा है
उस पर हक़ भी मेरा है
क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .
खुबसूरत मनोभाव सहज सरल कथन जो अंतरद्वन्द को प्रकट करती है.
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .
यह निचोड़ जो विस्मृत न हो तो जीवन बन जाए…
सार्थक आत्मचिंतन व भावपूर्ण अभिव्यक्ति ….
आखिरी पंक्तियां बेहद सुंदर और सारगर्भित…
फिर क्यों कहते हैं कि हथेली की रेखाएं ही जीवन है …
सोचना हो जाता है कई बार क्योंकि पढ़ा यह भी कि किस्मत तो उनकी भी होती है , जिनके हाथ नहीं होते !
मन के बंधन जबरदस्ती नहीं बांधे जा सकते .
जिंदगी उस दम ही लगी सबसे भली , जब जिंदगी से मैं मैं बनकर मिली !
मन के विभिन्न आयामों की क्षणिकाएं !
बहुत सुंदर कविता|
भावुक मन की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति —
कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूं ही
तैरने को हलके होकर
शून्य में
मिले जहाँ बहाव ,बह चलें |
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .
बेहद खूबसूरत, हृदयस्पर्शी और भावप्रवण प्रस्तुति.
बधाई शिखा जी.
अपने आप से मिलने की चाह से बढ़कर क्या हो सकता है…. ? ऐसा साक्षात्कार निश्चित ही स्वयं की थांती होगा…..
मन को समझने के लिए मन का हो जाना होता है। और जब मन के भीतर प्रवेश करते हैं हैं तो उस अनंत से साक्षात्कार हो जाता है, फिर न कोई उलझी हुई डोर होती है न कोई बंधन ही।
:))
सुन्दर प्रस्तु्ति
आत्म साक्षात्कार ही सबसे बड़ा अभीष्ट है !
दार्शनिक अंदाज़ … पर सच … खुद को छोड़ देना चाहिए लहर के सहारे … कोई न कोई किनारा तक तो वो पहुंचा ही देती है ….
कई बार खुद से मिलना जरूरी भी होता है …
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .
bahut khoob sochne pr majboor karti hai aapki ye kavita
rachana
मन के विचारों की खूबसूरत अभिव्यक्ति,,,,
शिखा जी,,,,मै बहुत पहले से आपका फालोवर हूँ और आपकी पोस्ट पर आता रहता हूँ,
आपसे अनुरोध है कि आप भी फालोवर बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,,आभार,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
साक्षात्कार ,वो भी खुद से खुद का और लहरों पर ….कितना मुश्किल है पर हाँ आवश्यक भी …..
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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मेरा अपना मेरा है
उस पर हक़ भी मेरा है
क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो
Oh my god.. thats profound… how can somebody write this beautifully.. congratz keep writing.
कल 23/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
:)) :))
interview to nahin, autograph please… 🙂
सुन्दर रचना
मेरा अपना मेरा है
उस पर हक़ भी मेरा है
क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो ….शानदार कविता
आपकी इस सुन्दर और भावपूर्ण कविता को पढकर मन की उथलपुथल को कुछ राहत महसूस हुई ।
इस तरह की भावनाएं मन को जब जकड़ती हैं, तो मन उसमें उलझता चला जाता है।
सुंदर रचना ।
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