कभी देखो इन बादलों को!
जब काले होकर आँसुओं से भर जाते हैं,
तो बरस कर इस धरा को धो जाते हैं.
कभी देखो इन पेड़ों को,
पतझड़ के बाद भी,
फिर फल फूल से लद जाते हैं,
ओर भूखों की भूख मिटाते हैं.
कभी देखो इन नदियों को,
पर्वत से गिरकर भी,
चलती रहती है,
अपना अस्तित्व खोकर भी
सागर से मिल जाती है.
फिर क्यों हम इंसान ही ,
दुखों से टूट जाते हैं,
एक गम का साया पड़ा नही की,
मोम बन पिघल जाते हैं.
क्यों हम नही समझते
इन प्रकृति के इशारों को,
हर हाल में चलने के इस ,
जीवन के मनोभावों को.
कभी इस बादल की तरह,
अपने आँसुओं से ,
किसी के पाओं धो कर देखो!
कभी इन पेड़ों की तरह,
अपने दुख के बोझ को,
किसी के सुख में बदल कर देखो.
इस नदियों की तरह,
किसी की पूर्णता के लिए,
ख़ुद को मिटा कर देखो.
कायनात ही
इंसान के सुख-दुःख का आधार है
इस प्रकृति के इशारों में ही ,
जीवन का सार है.
शिखा तुम्हारी कविता में वाकई जीवन का सार है | प्रकृति हमे कई रूप में समजाने का प्रयास करती है| इच्छायें जागकर मनुष्य को कर्म करने क लिए पे्ररित करती है। इच्छा नहीं, तो कर्म नहीं। इच्छाविहीन और विरक्ति, दोनों भाव मनुष्य के भीतर कर्म न करने की सुस्ती पैदा करती है।
इसी तरह एक जीवन सार आप http://www.khaskhabar.com/jeevan-saar.php पर पढ़ सकते है |
जीवन सार पढ़कर अच्छा लगा।
प्रकृति से जोड़ कर सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 22 -09 – 2011 को यहाँ भी है
…नयी पुरानी हलचल में …हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
सुंदर..!!
सुन्दर संदेश देती सार्थक अभिव्यक्ति।
सार्थक संदेशप्रद अभिव्यक्ति…
सादर….
जिसने भी प्रकृति के इशारों को समझ लिया समझो जीवन सार्थक कर लिया. प्रकृति के इशारे फिर उन इशारों से समन्वय ,फिर समन्वय से अपनी बात कहने का तरीका बहुत ही भा गया.
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“First, develop the rate of devaluation monthly by separating the spare price of the thing by the life expectancy in months.”