उसे इंडिया वापस जाना है.
क्योंकि यहाँ उसे घर साफ़ करना पड़ता है ,
बर्तन भी धोने होते हैं ,
खाना बनाना पड़ता है.
बच्चे को खिलाने के लिए आया यहाँ नहीं आती.
जब उसे जुखाम हो जाए तो उसकी माँ नहीं आ सकती .
फिल्मो में होली,दिवाली के दृश्य देखकर उसे हूक उठती है. कि उसका बच्चा वह मस्ती नहीं कर पाता.
उसे शिकायत है कि उसका बच्चा हिंदी नहीं बोलता.
यहाँ से जब वह फ़ोन पर बात करता है तो उसकी अंग्रेजी का भी अनुवाद करके उसे अपनी माँ को बताना पड़ता है.
कोई रिश्तेदार यहाँ नहीं हैं.
छुट्टी में जाओ तो समय कितना कम होता है. कितनी खूबसूरत जगह हैं इंडिया में , देखने का समय ही नहीं मिलता.
वहां उसके भाई के यहाँ दो – दो काम वालियां आती हैं, और कुक अलग.
भाभी ठाठ से रहती है.
उसके बेटे को खाना खिलाते वक़्त आसपास ४ लोग इकठ्ठा हो जाते हैं.
यहाँ दो कमरों के फ़्लैट में उसकी जिन्दगी सिकुड़ कर रह गई है .
वहां जाकर वो कहेगी…
उफ़ कितनी गर्मी है यहाँ ,
बिजली नहीं आती,
काम वाली ने नाक में दम कर दिया है,
बच्चा है कि कितने भी अच्छे स्कूल में डाल दो
अंग्रेजी ढंग से नहीं बोलता,
बेकार के त्योहारों में पैसा, समय बर्बाद करते हैं,
रिश्तेदारों ने जीना हराम कर दिया है ,
कितना सुकून है तुम्हें वहां , न कोई किट किट न पिट पिट.
अपनी मर्जी के मालिक.
पूरा यूरोप, अमेरिका घूमो, यहाँ तो मुल्ला की दौड़ नैनीताल, मसूरी तक. उसके लिए भी कितना सोचना पड़ता है .
जिन्दगी जंजाल है.
और मुझे ख़याल आ रहा था हाल में देखी एक फिल्म का संवाद – कितना भी, सब पाने के लिए यहाँ वहां भागो कुछ न कुछ तो छूट ही जायेगा. बेहतर है, जहाँ जिस वक़्त हो वहां खुश रहो.
सौ बात की एक बात है , जो है उसमे खुश रहो !
अब मैं क्या बोलूँ 🙂 🙂 🙂
कुछ तो बोलो 🙂
संतोष धन जिसके पास वही धनी..वही सुखी….
वैसे शिखा कितना सुकून है तुम्हें वहां , न कोई किट किट न पिट पिट.
अपनी मर्जी के मालिक.
पूरा यूरोप, अमेरिका घुमो 🙂
अनु
बिलकुल सही बात लिखी है …जो है उसी मे प्रसन्न रहना चाहिए ….!!
"ठौर कहाँ …"
न यहाँ न वहाँ !!
राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट
अंतकाल पछताएगा जब प्राण जाएँगे छूट
सच यही है! बहता पानी रमता जोगी केवल जोगियों के बस का है !
photo mein bechare ka expression mast hai….main samajh leta hun ki aapka bhi expression aisa hi ho gaya hoga antim line likhte hue 🙂
सुख दुःख / हर्ष विषाद /सुकून संकट /अपने पराये /यहाँ वहां ….सब सापेक्ष है ,निरपेक्ष कुछ भी नहीं । यह तो मन है ..पल में तोला पल में माशा ….हां एक बात और ..लखनऊ आ जाइये ..मलीहाबादी दशहरी आम आ गया है । अरे खाइये पीजिये ..ठौर ठार की चिंता छोडिये ।
इंसानी फितरत है कभी संतुष्ट न होना . संतुष्ट हो गए तो सरे धन धूर सामान नहीं हो जायेंगे ?
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शिखा जी ,
उसे इण्डिया वापस जाना है ,अच्छी लगी ,फिर ,वहां जाकर वो कहेगी ,भी अच्छी लगी
कभी रु -ब- रु भी सुनेंगे आपको , .
नित्यानंद `तुषार`
यह चिंता मेरी नहीं , किसी और की है :).अपना तो मस्त ही हैं :):).
न यों चैन ,न वों चैन -कुछ ऐसे लोग भी होते हैं !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर…!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Aaj kal insan ko chain kaise bhi nahi he.. Man hamesha bhatkta rahta hain. Yadi insan satosi ho jaye to usse sukhi koi nahi duniya me. SUNDAR RACHNA.Abhar
kash ye bat sab ki samajh me aa jaye
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
सही कहा…खूब कहा।
क्या सही नक्शा खींचा है आपने लोगों की सोच का बहुत बढ़िया…
वैसे सही है "जाही विधि रखे राम,ताही विधि रहिए"… 🙂
हर पल में आनन्द ढूंढो। परायी थाली में हमेशा घी ज्यादा ही लगता है।
एकदम सच्ची बात… जहां रहो, खुश रहो, संतुष्ट रहो…खूब मज़ा आया पोस्ट पढ के 🙂
बिलकुल सही बात लिखी है …जो है उसी मे प्रसन्न रहना चाहिए .
🙂 man ki kahi aur ankahi bhi kahi
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
santosh param sukh .. par santosh ji milte kahan … na thour na thikana 🙂 nice
अब चित भी मेरी, पट्ट भी मेरी तो नहीं हो सकती।
कुछ मिलता है तो कुछ खोना भी पड़ता है।
सही कहा , जो है उसी का आनंद लिया जाये।
देश छोड़ के आए लगभग हर व्यक्ति की यही दशा रहती है … और कई बार तो वो जीवन यूं ही बिता देते हैं लटकते हुए … इस्किये मूल मन्त्र तो यही है … जहां रहो खुश रहो …
संतोष है तो कहीं भी रहो शांति है अन्यथा अशांति आपके पीछे खड़ी मिलेगी
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जो मिलता है उसमें संतुष्टि नहीं होती …… इसी लिए मन दुखी रहता है …. कहीं चैन नहीं …. बढ़िया तुलनात्मक विवरण ।
किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता
सही कहा …..जो जैसा है स्वीकार करने में ही भलाई है
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।
जहाँ भी रहें, रहना सीख लें बस
सात साल पहले की इसी विषय पर मानसी चटर्जी की एक पोस्ट पर अनूप भार्गव की टिप्पणी मौजूं है:
ज़िन्दगी में अधिकांश चीज़ें A La Carte नहीं 'पैकेज़ डील' की तरह मिलती हैं । विदेश में रहने का निर्णय भी कुछ इसी तरह की बात है । इस 'पैकेज़ डील' में कई बातें साथ साथ आती हैं , कुछ अच्छी – कुछ बुरी । अब क्यों कि उन बातों का मूल्य हम सब अलग-अलग, अपनें आप लगाते हैं इसलिये हम सब का 'सच' भी अलग होता है । जो मेरे लिये बेह्तर विकल्प है , वो ज़रूरी नहीं कि आप के लिये भी बेहतर हो ।
बहुत सुन्दर ! ग़ालिब बाबा पहले ही कह गए – " हजारों खाव्हिशें ऎसी "
जीवन जैसा चल रहा है इसे ही सार्थक बनाना चाहिये
मन को खुश करके
सुंदर अनुभूति
आग्रह है- पापा ———
bahut hi sarthak aur bhavpurn abhivyakti.
Kal hi ye samvaad suna aur aksharsha sahi hai….bahut kareene se joda hai dono ko…
dono pahluon ko apne ujagar kiya hai …..ak sundar pryas . pr na jane kyon mera mn kahata hai ki ap . india ke bare me nyay parak drishti nahi dal sakin hain …..pashchaty jagat me rahane se soch me bhi pashchaty ki jhalak aa hi jati hai. India to vh desh hai jahan mai sau bar janam lena apna saubhagy samjhuga……
Pashchaty jagat me riston ke kya mayne rh gye hain ? aaye din shadiya toot rhi hain ….Sambandhon ke tootne ka dard kya hota hai uska mooly kya hai yah bharteey samaj se behatr aur kaun samjhega .?…..marne ke bad koi kandha dene wala bhi vhan nahi hota …sarkari karmchari lason ko utha ke le jate hain …….aadhunikta ke daur me manushyta kho chuki hai pr bharat to bharat hai …..swarg se sundar hai ……prktriti ki gond aur janglon me rahne wala insan bhi videshiyon ki apeksha jyada sanskarwan manushy hai Shikha ji .
वहां खुश रहें जहां हैं।
But a smiling visitor here to share the love (:, btw outstanding style. “Reading well is one of the great pleasures that solitude can afford you.” by Harold Bloom.
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